शनिवार, 7 अप्रैल 2012

फ़ुरसत में ... गठबंधन की सरकार!

फ़ुरसत में ... 97

गठबंधन की सरकार!

IMG_3649मनोज कुमार

पिछले दिनों इसी स्तंभ के तहत मैंने फ़ुरसतियाया था – गइल भईंस पानी में ..! आज उसे ही थोड़ा और डुबाता हूं – (बढ़ाता हूं)  – आगे बढ़ने से पहले, उस पोस्ट पर की गई कुछ टिप्पणियों की एक पंक्ति आपकी ख़िदमत में पेश करता हूं – बस आप समझ जाएंगे उसे आगे बढ़ाने का कारण।

१. प्रतिभा सक्सेना : यह तो अधूरी बात हुई आगे क्या-क्या हुआ वह कहानी तो सुनाइये.

२. Arvind Mishra : मेरे मन की जिज्ञासा दूर करें....क्या शादी और कहीं हुयी?

३. आशा जोगळेकर : यहां तो भैंस पानी में चली गई फिर बात बनी कैसे और कहाँ।

४. कौशलेन्द्र : एक अदद "क्रमशः" नामक शब्द के कहीं दर्शन नहीं हुए. उस क्रमशः का क्या हुआ ?

५. ajit gupta : आखिर में विकेट कैसे गिरा यह भी तो बता दीजिए।

इतने लोगों की जिज्ञासा के बाद लगा कि अब आगे की कथा सुना ही डालूं। पहले उस पोस्ट की उन पंक्तियों को यहां दोहराना निहायत ज़रूरी है –

कोई रिश्ते की बात करता तो --- परिवार वालों की तरफ़ से ‘लड़का ज़रा सेटल हो जाए!’ यह कहना सुनते ही मेरे मन में टेप बज उठता गइल भईंस पानी में!

जब यह टेप बार-बार बजा तो मेरे मन में खतरे की घंटियां बजने लगीं। मैंने सोचा अब बंधन में बंधने के लिए मुझे ही कुछ करना होगा। बंधन तो बहुत तरह के होते हैं। मुझे तो “गठबंधन” में बंधना था!

इस एक मात्र उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सबसे पहले मैंने अपने इर्द-गिर्द निगाहें दौड़ाईं फिराई। और हालात का जायज़ा लिया। ऐसा नहीं कि मेरी पुंगी नहीं बजी थी। “पुंगी?” … अरे वही जो आजकल ‘एजेंट विनोद’ की बज रही है। खैर, यह आज का ज़माना है इसलिए गाना और बजाना भी आज का ही है, जिसमें प्यार के गाने पुंगी पर बजते हैं। हमारे ज़माने में तो ‘तन-मन’ डोलता था, अजब बजती थी बांसुरी और गज़ब बजती थी ‘बीन’

ऐसा नहीं कि बीन बजी ही नहीं। दो-चार दफ़े तो बजी ही होगी। पर अपन के लिए ढाई अक्षर तो बस काला अक्षर बन चुका था, और जैसी की कहावत मशहूर है, वो भैंस बराबर ही होता है, शायद इसलिए वह भईंस बार-बार पानी में ही जाती रही – मतलब अपनी बीन बजी भी तो वहाँ भी वही भैंस जो उस धुन पर भी “मन डोले-तन डोले” के बजाय इत्मिनान से पगुराती रही।

मैंने अपनी एक नई धुन उस बीन पर बजा भी ली होती, लेकिन एक विकट समस्या थी। अगर हमने संपेरा बनकर बीन पर एक नई धुन छेड़ भी दी और उस धुन पर किसी का मन-मयूर नाच भी उठा और तब भी यदि घर वाले ना माने तो? … इसलिए घरवालों को ही बात छेड़नी थी। मगर घर में बीन नहीं बज रही थी, बज रहा था टेप… लड़का ज़रा सेटल हो जाए!

‘गइल भईंस पानी में!’

हालाँकि अपन पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में काम करते थे, पर निगाहें सिविल सर्विसेज पर थीं और इसी अर्जुन वाली निगाह के कारण हमें “सेटल नहीं” माने जाने का माहौल बन चुका था। इस विधेयक पर घर की सरकार में एकमत से समवेत स्वर में बहुमत था – सांसदों की वेतन वृद्धि के मुद्दे पर एक सुदृढ़ गठबंधन सरकार की तरह। ऐसे में अगर मत अपने पक्ष में करना था, तो मुझे उनकी गठबंधन में सेंध लगानी थी। और सच्चे प्रजातांत्रिक धर्म का निर्वाह करते हुए मैंने लगाई भी।

गठबंधन में सबसे अहम काम झगड़े को सुलझाना होता है। कोई एक मुद्दा बाक़ी के मन के विरुद्ध उछाल दो, सब उसे सुलझाने/उलझाने में लग जाएंगे। आप अल्पमत में रहकर भी बहुमत वालों के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं। तभी तो गठबंधन की महिमा बड़ी न्यारी है। कई बार... कई क्या, बार-बार देखा गया है कि बहुमत वाले दल को नाकामयाबी का कड़वा फल मिलता है और अल्पमत वाला दल कुर्सी को उपलब्ध होता है।

जब मैंने बार-बार अपने अरमानों की भईंस को पानी में जाता देखा – यानी लड़का अभी सेटल तो हो ले – तो मैंने भी अपना आख़िरी दांव खेल ही दिया। गठबंधन में चाहे कितने भी वैचारिक मतभेद हो जाएँ, गठबंधन टूटने का खतरा कौन उठाता है! शायद गठबंधन की यही सबसे बड़ी कमज़ोरी है, और यही ताकत भी है। इसीलिये जिस दल के पास दो-चार ही सही, समर्थन हो, उनके पौ-बारह और कभी-कभी तो निर्दलीय भी अपना भाव जता/बता ही देते हैं।

खैर, मुझे विगत के अपने अनुभव और भविष्य के रुझान के लिए कोई निश्चित दिशा तो निर्धारित करनी ही थी। मुझे लगा कि अपने भविष्य को ध्यान में रखकर – कोई प्रस्ताव न रखना मेरी बेवकूफ़ी होगी। मैने अपना प्रस्ताव उनकी संसद के पटल पर इस अभिभाषण के साथ पेश किया कि यह आपका आखिरी मौक़ा है, गठबंधन धर्म निभाने का। या तो आप तय कर दें या फरवरी के बाद मैं खुद अपनी सरकार बनाने का प्रस्ताव ले आऊंगा। दूसरे शब्दों में हमने तीन महीने का नोटिस दे डाला था।

इस नंबर-गेम में मेरी नज़र “सरकार” पाने पर टिकी हुई थी। मैंने चैलेन्ज तो दे ही दिया था, मगर मुझे अच्छी तरह मालूम था कि गठबंधन तोड़ना भी आसान नहीं होता। फिर भी अपनी अधिकारिक स्थिति बनाए रखने के लिए मुझे संयम रखना था। अपने निजी विचार मैं प्रकट कर नहीं सकता था। गठबंधन का यह एक अद्भुत नियम है कि यहां निजी विचार दल की स्थिति कमज़ोर करते हैं। अब तो मेरी स्थिति तभी सुधारने की संभावना थी, जब मुझे कोई बाहर से समर्थन देने वाला हो।

मेरा फरमान (एलान) सुनकर उन्हें कुछ खतरे का अंदेशा हुआ – लेकिन ऐसा भी नहीं कि सब कुछ आनन फानन में तय हो गया हो। कुछ ख़रीद-फ़रोख़्त का तो सवाल ही नहीं था, फिर भी समस्या थी। सत्ता पक्ष ने मेरे अभिमत पर मुहर लगाने की ठान ली थी। लगा गठबंधन मज़बूत है, बच गया। बाहर से वही गठबंधन … मज़बूत दिखाई देती है, जिसमें विभिन्न पक्ष एक-दूसरे की भावना का सम्मान करें, चाहे वह मज़बूरी में ही लिया गया निर्णय हो। गठबंधन में स्पष्ट समझ बहुत ही महत्वपूर्ण है। चाहे वह छोटी हो या बड़ी, सभी घटकों के लिए आवश्यक है।

यहां कल तक मेरे मन की बात कोई समझने को तैयार नहीं था और आज जब मैंने समझाया तो उनके पास गठबंधन बचाने की मज़बूरी स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। एक तरफ़ उन लोगों के पास कोई खुला विकल्प नहीं था। न जाने कितनी बार, न जाने कितनी जगह, न जाने कितने लोगों के सामने यह टेप - लड़का ज़रा सेटल हो जाए! – बज चुका था कि सारे सर-समाज में लोग यही कहने लगे थे, “शरण बाबू के यहां तो जाना ही व्यर्थ है। वहां जाने से कहेंगे ‘लड़का ज़रा सेटल हो जाए’!”

इस खेल के बड़े-बड़े खिलाड़ी कह गए हैं कि गठबंधन के लिए विकल्प खुले रखना चाहिए। मेरे पास भी वैकल्पिक गठबंधन के लिए पर्याप्त संख्या-बल नहीं था। साहस और हिम्मत तो संख्या से ही आती है। कहने का मतलब वह भी नही था मेरे पास। न तो पुंगी बजा पाया था और न बीन ही।

बिना किसी विकल्प के मेरी स्थिति तो गैर अस्तित्व वाले हाई कमान की तरह थी। अब तो हमारी सत्ता हमारे हाथ से फिसलती नज़र आ रही थी। आखिर उचित विकल्प के अभाव में जो होते हैं उन्हें ऐसे गठबंधन निबाहते रखने की मज़बूरी भी होती है। मेरी भी थी।

जैसे किसी गठबंधन में सिर्फ इक्का-दुक्का लोग अपना खेल दिखाते हैं – भले ही उनका महत्व हाशिए पड़े आधारविहीन निर्दलीय की तरह ही क्यों न हो, या जो सिर्फ अगले चुनाव तक किसी तरह अपनी साख बनाए रखना चाहते हों, वैसे ही मेरे पक्ष में कुछ ऐसे ही लोग आए। पर कोई निदान न निकला। मेरे घोषणा-पत्र के मेरे वायदे - फरवरी तक... मेरे सामने थे। मेरी स्थिति उस सरकार की तरह हो गई थी, जिसे अब कोई करिश्माई ताकत ही बचा सकती थी। करिश्मा हुआ भी।

एक दिन पटना लॉ कॉलेज के हॉस्टल से, मैं अपने लॉज की तरफ़ जा रहा था। सशक्त क्षेत्रीय दल की तरह एक दूर की रिश्तेदार रिक्शे पर कहीं जा रही थीं। उन्होंने मुझे देखा, तो रिक्शा रुकवा लिया। पहले तो उन्होंने हालचाल लिया फिर पूछ बैठीं कि कहां रहते हो?

मैंने बताया – यहीं पास में महेन्द्रू पड़ाव पर। आप कहां जा रही हैं?

बोलीं – यहीं बगल में रानी घाट, मेरे भाई रहते हैं।

फिर उनका न जाने क्या मन हुआ, पूछ बैठीं – आपकी शादी (गठबंधन) हो गई है?

मैंने कहा - नहीं।

बोलीं – करोगे?

मैंने कहा – हां।

उन्होंने अपने भाई से बात की, उनके भाई ने मेरे माता-पिता से और हमारे गठबंधन की बात पक्की हो गई।

विगत से सबक लेते हुए अब तो मैंने एक कुशल गठबंधन खिलाड़ी की तरह सोच लिया था कि प्रत्येक अवसर का इस्तेमाल भविष्य के लिए अपनी छवि बनाए रखने के लिए करूंगा। इसलिए जब सरकार के साथ गठबंधन की शपथ लेने की घड़ी आई तो हमने पूरे मन-प्राण से गठबंधन का धर्म निभाने का संकल्प लिया।

IMG_3650हर गठबंधन का अपना धर्म होता है। “उस” गठबंधन धर्म को निभाने के लिए सात-सात वचन निभाने होते हैं। मतलब यहां तो सात जनम के लिए सात वचन का प्रोग्राम था। जब सेटल होने के लिए लॉन्ग कट रास्ता अपनाया तो परिणाम तो आपने पिछले अंक में देखा ही था (गइल भईंस पानी में)। इसलिए अब हम हर काम शॉर्ट और शीघ्र करने के आदी हो गए थे। इस सात वचन के झमेले में कौन पड़ता। मैंने पंडित से कहा देख भाई तू अपना काम कर, मैं इसे एक वचन में निपटा देता हूं – और मैंने अपना मंत्र पढ़ दिया –

जो  तुमको  हो  पसंद  वही   बात   कहेंगे।

तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे।

वहां उपस्थित हर महिला ने मेरे इस वचन का ज़ोरदार तालियों से स्वागत किया। इस तरह हमारा गठबंधन पक्का हुआ।

*** ***

पुनश्च :

IMG_3653चौबीस बरसों से हमारी ‘गठबंधन’ वाली सरकार चल रही है। ऐसा नहीं है कि विवाद न हुए हों। लेकिन एक सफल गठबंधन का प्रथम नियम है कि झगड़े सुलझाने के लिए मज़बूत नेतृत्व की ज़रूरत होती है। हमारी गठबंधन में भी ऐसा ही है। सत्ता हमारे ही हाथ में है ... और गठबंधन सफल है ... वह इसलिए कि न सिर्फ़ इस गठबंधन को मैं मज़बूत नेतृत्व दे रहा हूं बल्कि गठबंधन धर्म को पूरी निष्ठा से निभा भी रहा हूं यह कहते हुए कि

जो  तुमको  हो   पसंद वही   बात  कहेंगे।

तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे।

38 टिप्‍पणियां:

  1. और तो सब ठीक है पर ई गठबंधन सरकार नय है जिसे हर पांच साल में भरोसा जितना होता है....इसमें एक बार ही फैसला होता है :-)
    बधाई आपके वैवाहिक जीवन के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  2. हम तो एक सांस में पढ़ गए.... रजत जयंती आने वाली है... फुर्सत में २५ कड़ी लिखिए... हर वर्ष का कोई अनमोल संस्मरण.... फोटो बड़े अच्छे लग रहे हैं....

    जवाब देंहटाएं
  3. गठबंधन की कुछ मजबूरियां होती हैं ऐसा सरकार चलने वाल्रे कहते हैं :):)

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह--

    यह तो लम्बे धारावाहिक की शक्ल भी ले सकता था --

    ३ मिनट में ही लेख समाप्त हो गया ।

    मैं बोला --

    बाप रे बाप

    कितनी व्यर्थ मुट-भेड़े हुईं

    बात बन गई अचानक ।

    आप ने सेट किये हैं मानक ।।

    बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जस्ट हास्य-नथिंग इल्स

      कोड़ा ने सरकार चलाई, निर्दल होकर ।

      काटी खाई खूब मलाई, गल-गल होकर ।



      संसद के बन्दों का रखना ख्याल उचित--

      तख्ता पलटे, नहीं भलाई, पैदल होकर ।।

      हटाएं
    2. रविकर भाई हमने भी जस्ट हास्य ही लिखा है, नथिंग एल्स! :)

      हटाएं
    3. दरअसल एक इंसिडेंट के बाद
      थोडा सचेत रहने लगा हूँ तुरंती में--
      पता नहीं कहाँ अर्थ का अनर्थ हो जाये |

      आभार बढ़िया हास्य -

      हटाएं
    4. @ रविकर जी
      धुत्त!
      जो जी में आए कहिए।
      कम-से-कम हमरे यहां तो ज़रूरे कहिए!!

      हटाएं
  5. गठ बंधन की सरकार तो पाँच साल चल जाये बहुत है ...पर गठबंधन सारी उम्र चलता रहे ... यही कामना है ... वैसे आपका मंत्र बहुत बढ़िया है जिसके कारण कभी भी गठ बंधन पर आंच नहीं आएगी ....रोचक प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  6. मनोज बाबू!
    धीरे-धीरे सप्ताहांत में आने वाली यह श्रृंखला "फुर्सत में" सप्ताह का बेहतरीन अंत करने में सक्षम हो रही है.. आपने इसे भले ही हलके-फुल्के अंदाज़ में लिखा हो, लेकिन इसका एक संजीदा पहलू भी है, जो मुझे बेहद प्रभावित करता है. स्वयं को पात्र बनाकर घटनाओं का रोचक वर्णन जो आपने पिछली कड़ियों में किया है वह सराहनीय है. हास्य लेखन का उद्देश्य "निर्मल आनंद" के अतिरिक्त और कुछ नहीं. ऐसे में किसी की भावना को आहत किये बिना स्वयं पर हंसना प्रशंसा का विषय है.
    हालांकि आज की पोस्ट में आपने जिस प्रकार "सचित्र वर्णन" किया है, यह मान लेता हूँ कि यह पूरी घटना आपकी है और इसके मुख्य पात्र आप ही हैं. सरकार के गठबंधन, पाँच सालों के और आपके सात जन्मों के.. दोनों का तुलनात्मक विवरण होठों से मुस्कान हटने नहीं देता..
    इस मामले में आप सीनियर हैं हमसे.. फिर भी जुगल जोड़ी बने रहने का आशीष तो हमारा अधिकार है!!

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!!!!!.रोचक प्रस्तुतीकरण....
    बधाई आपके वैवाहिक जीवन के लिए !....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....

    जवाब देंहटाएं
  8. आपके वैवाहिक जीवन के लिए और इस रोचक प्रस्तुतीकरण के लिए भी बहुत बहुत बधाई मनोज जी..

    जवाब देंहटाएं
  9. अनुभव सिद्ध सुख का जीवंत दस्तावेज़ .गठबंधन का मूल धर्म समझाता दस्तावेज़ .

    जवाब देंहटाएं
  10. जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे।

    तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे।

    ये हुयी ना बात …………ईश्वर करे ये गठबंधन अमर रहे :)))

    जवाब देंहटाएं
  11. जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे।
    तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे।

    आपका यह मंत्र तो काफी पसंद आया एवं इस मंत्र की अमोघ शक्ति के बल पर आपने अपनी सरकार को सुचारू रूप से चलाया । लेकिन कहीं - कहीं यह भी देखने को मिला कि "गठबंधन की मजबूरी और मजबूरी का गठबंधन" भी तमाम आलेचनाओं के बावजूद भी अपने जिंदगी का सफर तय करते रहता है । प्रस्तुति अच्छी लगी । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  12. इ देखो तनी, फुरसत में गज्ज्बे कर डालते है आप . दूर की सोचते है तभी तो गठबंधन धर्म नीभ जा रहा है . किसी दिन गठबंधन मन्त्र की अगली पंक्ति गाईये "देते ना आप साथ तो मर जाते हम कभी के, पुरे हुए है आपसे अरमान जिंदगी के " देखिएगा करतल ध्वनि के बीच गठबंधन में एक नवीनता का अहसास होगा .

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुंदर प्रस्तुति ....हम चाहें तो जीवन अच्छे से जीना कितना सरल है ....
    बहुत शुभकामनायें आपको ...!

    जवाब देंहटाएं
  14. शादी हो गई ?
    नहीं
    करोगे ?
    हाँ ..
    हाय इस मासूमियत पर कौन न मर जाये :):).
    वैसे गटबंधन की सरकार चलाये रखने का मन्त्र एक दम सटीक है.सालों साल यूँ ही चले यह सरकार.
    समस्त शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  15. जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे।
    तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे।

    आपके इस गठबंधन मंत्र को गांठ बांध लिया है आदरणीय मनोज भईया...:))
    सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  16. यह सातवें जन्म का फेरा था या पहले जन्म का, यह कहना तो बड़ा मुश्किल है। पर यह हास्य संसद यों ही चलती रहे, यही शुभकामना है।

    जवाब देंहटाएं
  17. सरकार तो चलानी ही है, अब चाहे जो करना पड़े।

    जवाब देंहटाएं
  18. युगल जोड़ी हँसी-खुशी पुत्र -पौत्रों(पुत्रियाँ भी सपरिवार इसमें शामिल हैं) सहित आगत रजत-जयन्ती से बढ़ती हुई स्वर्ण और हीरक तक दमकती रहें - फ़ोटो जैसी कमनीय बनी रहें !

    जवाब देंहटाएं
  19. न मन में कोई गांठ,न बंधन में होने की कसक। दाम्पत्य की सफलता की कसौटी यही है।

    जवाब देंहटाएं
  20. गठबंधन का अनुभूत मंत्र तो आपने दे ही दिया है। हास्य का पुट लिए आपकी सहज, संजीदा लेखनी गुदगुदा भी रही है। यह गठबंधन निरंतर चलता रहे, इसके लिए आप द्वय को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  21. आज तो सच मे जैसे गुरुमंत्र सा दे दिया आपने ... ;-)


    "जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे।

    तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे। "

    जवाब देंहटाएं
  22. जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे ...इस तरह तो गठबन्ध अजर अमर होना ही है :)
    बहुत शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  23. आपकी शादी की तस्वीर खूब सुन्दर लगी. आपका मन्त्र तो गुरु मंत्र है. वर्षों यह बंधन बना रहे अपनी मजबूती के साथ

    जवाब देंहटाएं
  24. fursatiya ji ki is fursat ko padh kar laga ki fursatiya bhagwan ne bahut vishram aur bahut mehnat se ise gadha hai...har tarah ki nakkashi ki hai..rajnaitik rang k sath sath apne sansakaro ki garima ko bhi banaye rakkha hai...yahi to bharteey sanskar kahe aur mane jate hain.. bahut aanand aaya is lekh (aap-biti :-)) ko padh kar....yu hi apne fursat ke pal hamare sath share karte rahe aur apki jindgi ke kuchh haseen palo ka ham bhi lutf uthate rahe ...yahi icchha hai.

    apki shamsheer ki dhar kafi tez ho gayi hai. aur photo to bahut kamal ke ho n ho ek bar shatrughan sinha ka aks jhalak hi raha hai. (ha.ha.ha.)

    agli fursat ka intzar rahega....deri se aane k liye kshama.

    जवाब देंहटाएं
  25. din ko rat kah lena aashan hai magar rat ko din banana mushkil ....bhagwan ap ki gathbandhan sarkar ko kai janmon tk chalane ki shakti den ....bahut hi dilchasp lekh ....sadar abhar manoj ji.

    जवाब देंहटाएं
  26. गठबंधन की अपनी लिमिटेशन होती है...सरकार चलती रहनी चाहिए...और जो मन्त्र आपने जपा है.. वही सबसे कारगर है...

    जवाब देंहटाएं
  27. राजनीति के साथ यह पवित्र बंधन को ना जोड़िए। राजनैतिक गठबंधन का कोई धर्म नहीं होता लेकिन विवाह के गठबंधन में धर्म के अतिरिक्‍त कुछ और नहीं होता। आपको ढेर सारी शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  28. दोनो कडियां आज ही पढी ..
    बहुत रोचक ..
    शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  29. मजबूत गठबंधन बहुत सुंदर प्रस्तुति बहुत शुभकामनायें आपको ...!

    जवाब देंहटाएं
  30. शादी की तस्वीर बहुत सुन्दर है ....बहुत सुंदर प्रस्तुति मनोज जी
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ मेरा मार्ग दर्शन करे !
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।