tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post12803855437487081..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: फुरसत में ... जब किस्मत खराब हो तो दोना पत्तर भी दुश्मन हो जाता है!मनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-76594466847528399242011-07-02T11:27:32.048+05:302011-07-02T11:27:32.048+05:30Thanks to nayi purani halchalThanks to nayi purani halchalडॉ0 अशोक कुमार शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/14296351917633881911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-12494297361219868182011-07-02T10:27:49.406+05:302011-07-02T10:27:49.406+05:30वाह !आपका यह संस्मरण बहुत रोचक है, नई-पुरानी हलचल ...वाह !आपका यह संस्मरण बहुत रोचक है, नई-पुरानी हलचल न होती तो यह पढ़ने को ही न मिलता !Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-52221205299773832672011-04-15T18:53:11.769+05:302011-04-15T18:53:11.769+05:30मन का कोना कोना गमक गया भाईजी...
अब तारीफ़ को शब्द...मन का कोना कोना गमक गया भाईजी...<br /><br />अब तारीफ़ को शब्द कहाँ से ढूंढ कर लाऊं.......रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-89652400057502757042011-04-06T17:48:27.451+05:302011-04-06T17:48:27.451+05:30इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसे संस्मरण में फुरसत में...इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसे संस्मरण में फुरसत में मनोज जी ही लिख सकते हैं। अंदाज पसंद आया।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-41325465354487221352011-04-04T20:54:39.248+05:302011-04-04T20:54:39.248+05:30me to is sansmaran ko padh kar hans hans ke lot po...me to is sansmaran ko padh kar hans hans ke lot pot ho gayi...aur vo kahavat yaad aayi....ki sir mundaate hi ole pade...ha.ha.ha.<br /><br />bechare majnu miyaan...ha.ha.ha.ha..ye bhi khoob rahi.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-52596710944959056142011-04-04T16:42:09.457+05:302011-04-04T16:42:09.457+05:30वाह बहुत ही जीवंत संस्मरण एक एक सीन जैसे आँखों के ...वाह बहुत ही जीवंत संस्मरण एक एक सीन जैसे आँखों के सामने चलता सा.<br />वैसे अब तो जमाना बदल गया है:तब की कसार अब निकाल लें ...shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-6920013934383972582011-04-04T16:23:02.332+05:302011-04-04T16:23:02.332+05:30बहुत ही सुन्दर और रोचक संस्मरण है...माटी की खुशबू ...बहुत ही सुन्दर और रोचक संस्मरण है...माटी की खुशबू से सराबोर..:)<br />अच्छा समय चुना ये संस्मरण लिखने का...भाभी जी भी उन स्मृतियों में खो कर अपनी अस्वस्थता भूल गयी होंगी...<br />आशा है....अब बिलकुल स्वस्थ होंगी वे...शुभकामनाएंrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-16409587026381101062011-04-04T14:51:35.187+05:302011-04-04T14:51:35.187+05:30मनोज जी बधाई और आभार। आज ही राय साहब से कह रहा था ...मनोज जी बधाई और आभार। आज ही राय साहब से कह रहा था कि आपको और उनको इस ब्लॉग पर पढकर एक दिमागी सुकून मिलता है। करण जी ने एकदम सही लिखा है कि संस्मरण बहुत बढ़िया ढंग से प्रस्तुत हो रहे हैं। आपके इस संस्मरण को पढ़ते-पढ़ते न जाने कितनी दमित यादें, किस्से और एहसास ताजा हो गए। मैं भी हैदराबाद के पुराने शहर का रहने वाला हूँ और ऐसे कई व्यक्तिगत और अन्य वाकिये यह लिखते हुए ताजा हो चलें हैं। अक्सर कमियाँ और मजबूरियाँ हमें कुछ सीखाती हैं जो तत्क्षण तो समझ नहीं आतीं पर बाद में इसकी कीमत पता चलती है। हमारे जमीन से जुड़े होने में इनकी भूमिका नकारी नहीं जा सकती। <br />इस संस्मरण कि एक और खास बात है कि अक्सर दूसरों के संबंध में इस तरह के प्रसंग लिखने में तो कोई अड़चन महसूस नहीं करते पर खुद पे गुजरे हाल को बयां करना दिलेर ईमानदारी का प्रतीक है। अतः बधाई और आभार। दिल को छूने वाली लेखनी।HOMNIDHI SHARMAhttps://www.blogger.com/profile/14851071856706443401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-2423343011718908232011-04-04T13:06:04.914+05:302011-04-04T13:06:04.914+05:30लोग नाहक ही किसी मजबूर को कहते हैं बुरा,
आदमी तो अ...लोग नाहक ही किसी मजबूर को कहते हैं बुरा,<br />आदमी तो अच्छे होते हैं, पर वक्त बुरा होता है ..<br /><br />अपने संस्मरण को आपने समाज, विचार अपनी मिट्टी से जोड़ दिया है ...<br />सरल भाषा में सोंधी सी खुश्बू आ रही है इस लेख से ... और अंत में मुनीर साहब का ये शेर .... बहुत लाजवब ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-4065821349467657182011-04-04T07:32:34.794+05:302011-04-04T07:32:34.794+05:30नमस्कार,
सच कहा है आपने, मिट्टी गे जुड़े लोग आखिर ...नमस्कार,<br />सच कहा है आपने, मिट्टी गे जुड़े लोग आखिर अपनी संसृति से कट कैसे सकते है? आपने जिस इमानदारी से अपनी अप बीती बयां की है उससे न केवल स्संस्कृतिक लगाव का पता चलता है अपितु यह इस बात को भी प्रदर्शित करता है की यदि सच्चाई को शालीनता के साथ कहा और लिखा जाय तो तो उसके सौन्दर्य और सम्प्रेषण की बराबरी मष्तिस्क की उपजी रचनाये कभी नहीं कर सकती. नैसर्गिक सौदर्य और कृत्रिम सौदर्य में यही तो मूल भूत अंतर है. गाव से जुडा रहनेवाला व्यक्ति मै भी हूँ और बिहार से सटा होने के नाते बहुत कुछ बिहार जैसा ही है, लेकिन सब कुछ नहीं. जनपद बलिया का निवासी हूँ और गंगा तट के गाव भरसर का वासी. गंगा जी की गोद में तीन-तीन घर समां गए लेकिन तट को छोड़ने का मन अब भी नहीं करता. प्रकृति और संस्कृति दोनों से आंतरिक लगाव महसूस करता हूँ. सच तो यह है कि राजधानी लखनऊ में रह कर भी आचार-विचार-व्यवहार से अभी तक ठेठ गवई ही हूँ. शायद इसी लिए इसमें अपना प्रतिबिम्ब भी देख रहा हूँ औं अपनी तश्वीर भी. मन की इस सिधी सपाट अभिव्यकि ने साहित्य और ब्लॉग जगत में एक नई विधा को जन्म दिया है. इसका पल्लवन और पोषण होना चाहिए. यह आत्म चितन तो है ही एक परिवर्तन के साथ तुलना करने का अवसर भी प्रदान करता है जिससे हम स्वयं जान सकते हैं की अब हम किधर जा रहे हैं? यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्द्धि है.<br />इस सरल किन्तु निश्छल अभिव्यक्ति के लिए आभार. नव वर्ष और नवरात्रि की मंगल कामनाएं.Dr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-31069831356646826982011-04-03T22:20:06.598+05:302011-04-03T22:20:06.598+05:30बहुत सुन्दर, जब इसको पढ़ रहा था तो प्रसाद जी की नि...बहुत सुन्दर, जब इसको पढ़ रहा था तो प्रसाद जी की निम्नलिखित पंक्तियाँ मन में कौंध गयीं-<br />जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में समृति सी छाई।<br />दुर्दिन में आँसू बनकर वह आज बरसने आई।।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-85040409610723866752011-04-03T22:12:06.896+05:302011-04-03T22:12:06.896+05:30आदरणीय मनोज जी,
आपका यह आलेख मन की गहराइयों में उत...आदरणीय मनोज जी,<br />आपका यह आलेख मन की गहराइयों में उतर गया.अपनी माटी से लगाव तो अपने-आप में सबसे बड़ा सृजन श्रोत है साहित्य का.आपकी इस रचना ने अनायास ही फणीश्वर नाथ रेणू जी की याद ताजा कर दी.अपनी मिटटी से,अपनी यादों से जुड़े रहना नसीब वालों को हो ही नसीब होता है.इससे पहले भी मुजफ्फरपुर के बारे में आपका संस्मरण पड़ा था.आपकी रचना हमेशा एक ताजगी और अपनापन लिए बढ़ती है.यह हमारा सौभाग्य है कि आपकी लेखनी हमें भी अपनी माटी से जोड़े रखती है.Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-87965437713262375832011-04-03T19:02:07.497+05:302011-04-03T19:02:07.497+05:30मनोज जी आशा है आपकी श्रीमती जी अब स्वस्थ होंगी... ...मनोज जी आशा है आपकी श्रीमती जी अब स्वस्थ होंगी... बाकी नए नए व्याह में ये सब होता ही है... आप तो फब्तियां पर चुप रह गए... लेकिन हम तो एक बार बस में जा रहे थे गाँव से दरभंगा.... रास्ते में एक आदमी बीडी पी रहा था.. पत्नी कुछ असहज हो रही थी... मैंने मना किया तो वो कुछ अड़ गया... फिर क्या था हिंदी फिल्म के हीरो की तरह उसके मुह से बीडी छीन उसके चेहरे पर रगड़ने ही जा रहे थे वो उतर के भाग गया... दब्बू से कविहृदय में इतनी हिम्मत कहाँ से आयी थी नहीं पता.... और एक बात कहू मनोज जी.. जो लोग हनीमून नहीं मानते हैं उनका हनीमून जिंदगी भर चलता है.. सो हनीमून एन्जॉय कीजिये... और करते रहिये...अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-63024973945475459842011-04-03T16:47:10.044+05:302011-04-03T16:47:10.044+05:30“लोग नाहक ही किसी मजबूर को कहते हैं बुरा,
आदमी तो...“लोग नाहक ही किसी मजबूर को कहते हैं बुरा,<br /><br />आदमी तो अच्छे होते हैं, पर वक्त बुरा होता है।”<br />...vykt kee maar jab padti hai to achhe achhon ke hosh thikane aa jaate hai..<br />bahut badiya prasuti.. aabharKAVITAhttps://www.blogger.com/profile/12727771417982430321noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-32885992196278150452011-04-03T14:58:26.749+05:302011-04-03T14:58:26.749+05:30MANOJ JI , SANSMARAN MEREE SABSE
ZIADA PRIY VIDHAA...MANOJ JI , SANSMARAN MEREE SABSE<br />ZIADA PRIY VIDHAA HAI . JAB BHEE<br />KOEE SANSMARANAATMAK LEKH YAA <br />KAHANI MAIN PADHTA HOON TO USMEIN<br />KHO JAATAA HOON . AAPKE IS SANSMARAN MEIN KHO GAYAA HOON . <br />LEKH MUN KO BHARPOOR SPARSH KARTA <br />HAI . VAKAEE VO KYA ZAMAANAA THAA!<br />SUNDAR AUR SAHAJ PRASTUTI KE LIYE<br />AAPKO BADHAAEE .PRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80847039798317011322011-04-03T12:06:15.842+05:302011-04-03T12:06:15.842+05:30बड़ी ईमानदारी से प्रस्तुत मजेदार संस्मरण.....आपने ...बड़ी ईमानदारी से प्रस्तुत मजेदार संस्मरण.....आपने अपनी माटी से लगाव, क्षेत्र-विशेष की भावनाओं को आहत करने वालों पर व्यंग्य एवं सहज मानवीय संकोच को बड़ी बारीकी से समेटा है। बहुत पसंद आया.रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-15725705951734648802011-04-03T09:24:57.293+05:302011-04-03T09:24:57.293+05:30मधुर यादेंमधुर यादेंSulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-90338143583915123572011-04-03T09:00:12.504+05:302011-04-03T09:00:12.504+05:30बहुत मजेदार संस्मरण माटी की खुशबू से सरावोर, इमानद...बहुत मजेदार संस्मरण माटी की खुशबू से सरावोर, इमानदारी से किया गया सहज वर्णन. बहुत बधाई.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-77153975938890327042011-04-02T21:14:50.031+05:302011-04-02T21:14:50.031+05:30manoj ji
wah din bahut hi aaccha din tha...
yeh ...manoj ji<br /><br />wah din bahut hi aaccha din tha...<br /><br />yeh soch kar kabhi likhe bahut majadaar post hogi...<br />aap ka har din subh ho yeh hamari kamana hai...<br /><br />jai baba banaras...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-87019647525584484642011-04-02T15:40:35.026+05:302011-04-02T15:40:35.026+05:30सच है जब किस्मत खराब होती है तो यही होता है।सच है जब किस्मत खराब होती है तो यही होता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80636801747656618332011-04-02T15:34:02.775+05:302011-04-02T15:34:02.775+05:30आपने बहुत फुर्सत में और बड़ी सादगी से अपने जीवन के...आपने बहुत फुर्सत में और बड़ी सादगी से अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण पलों को कहीं गंभीर कहीं चटपटेदार बनाते हुए संस्मरण के रूप में पढ़ने का अविस्मर्णीय अवसर दिया.वाक़ई आपकी लेखन शैली अद्भुत है.आपकी wife के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-17311609308498579892011-04-02T13:43:37.269+05:302011-04-02T13:43:37.269+05:30संस्मरण विधा में आप माहिर हैं...संस्मरण विधा में आप माहिर हैं...Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-19800263771670486172011-04-02T13:29:23.623+05:302011-04-02T13:29:23.623+05:30मनोज जी ,
अपनी निजी जिंदगी का इतना रोचक सं...मनोज जी ,<br /><br /> अपनी निजी जिंदगी का इतना रोचक संस्मरण प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद स्वीकारें |<br /><br />बीते दिनों में कुछ भी कमी रही हो , मगर मज़ा भरपूर था..... १००%<br /><br />अपनी माटी का प्यार ही तो अपना अस्तित्व है | अपनी माटी से बिलगाव पूरे जीवन की चूलें हिलाकर <br /><br />रख देता है |<br /><br /> भाभी जी अति शीघ्र स्वस्थ हों , पुराने दिनों की सुखद स्मृतियाँ फिर आपके जीवन को हर्षोल्लास से <br /><br />भर दें ...यही हार्दिक शुभ कामना है |सुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-42208738134449427552011-04-02T13:07:18.770+05:302011-04-02T13:07:18.770+05:30@ संगीता जी,
सही फ़रमाया आपने। संस्मरण तो बहाना था...@ संगीता जी,<br />सही फ़रमाया आपने। संस्मरण तो बहाना था, इस नए इज़ाद किए देसिल बयना को पहुंचाने का और करण को एक और नुस्खा देने का कि वह इसे अपने अंदाज़ में पेश करे।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-5604783217419212492011-04-02T12:53:01.793+05:302011-04-02T12:53:01.793+05:30श्रीमती जी रेस्ट पर तो क्या यादें आज ताज़ा की हैं...श्रीमती जी रेस्ट पर तो क्या यादें आज ताज़ा की हैं ... मिट्टी से जुड़े रहने की महक अच्छी लगी ...हनीमून का नाम लेना जैसे " ए " सर्टिफिकेट वाली फिल्म .:):) <br /><br />कुल मिला कर संस्मरण सजीव और सुन्दर ...इस संस्मरण से भी देसिल बयना की सुगंध आ रही है ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com