tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post1288544820044664230..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: आँच-77 .....आभासी दुनियाँमनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-22713886446656063862011-07-16T10:08:25.196+05:302011-07-16T10:08:25.196+05:30संतोष त्रेविदी जी की कविता की समीक्षा भी करिए कहा ...संतोष त्रेविदी जी की कविता की समीक्षा भी करिए कहा मुझ जैसी बिंदास को आप कवियत्री बना बैठे . कवि या कवियत्री वो होता हैं जो खुद को कवि या कवियत्री कहता हैं मैने तो कभी कहा नहीं<br />फिर भी संतोष जी नाराज हैं शायाद केवल उनकी कविता को ही समीक्षा का संवेधानिक अधिकार हैंरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-27293660878519835582011-07-15T21:35:51.554+05:302011-07-15T21:35:51.554+05:30भाई अरविन्द मिश्र ने एक सार्थक-प्रश्न उठाया है तो ...भाई अरविन्द मिश्र ने एक सार्थक-प्रश्न उठाया है तो मनोज जी ने उसका एक चलताऊ-सा जवाब दे दिया है.कवी या कवयित्री होने के लिए कोई संख्यात्मक आंकड़ा नहीं बल्कि सार्थक रचना का होना असली पैमाना है.जो रचना कोई उद्देश्य की पूर्ति करती दिखे,मन के सहज उदगार हों ,कविता होती है.जिस प्रकार लोग दस-दस ब्लॉग बनाकर 'ब्लॉगर' बन बैठे हैं उस नज़रिए से यदि 'कवयित्री' को देखें तो फिर मनोज जी की बात सही हो सकती है.<br />अनूप शुक्ल की व्यंजना सब कुछ बयान कर देती है !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-58793801406192750792011-07-15T09:21:54.576+05:302011-07-15T09:21:54.576+05:30बहुत बढिया कविता और बहुत अच्छी समीक्षा.मैं केवल उन...बहुत बढिया कविता और बहुत अच्छी समीक्षा.मैं केवल उन कविताओं को ही पसंद करता हूँ जिनकी भाषा सरल हो और जिनसे कवि या कवियित्री का मन्तव्य स्पष्ट हों.रचना जी अपनी कृति को बेवजह बौद्धिक लबादा औढाने से बचती है और यही बात मुझ जैसे एक आम पाठक को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है.इस कविता में जो बात कही गई है वो सभी पर लागू न होती हो लेकिन ये सच है कि हममें से कई ऐसे है जो रोजमर्रा की जिंदगी के खालीपन को भरने के लिये ही यहाँ आये है पर इस बात को स्वीकार नहीं करते.अन्त में सलिल जी की कही बात से बिल्कुल सहमत हूँ.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-42809369872009750252011-07-14T23:34:14.124+05:302011-07-14T23:34:14.124+05:30आंच देखकर आया था पर यहाँ तो शोले धधक रहे हैं.. आज ...आंच देखकर आया था पर यहाँ तो शोले धधक रहे हैं.. आज कवियों की बहुतायत है.. और यही कविता की विजय है.. वे दिन हवा हुए जब कविता का अर्थ शेक्स्पियेर के सोंनेट और पन्त जी की छंदबद्धता हुआ करती थी.. गुलज़ार की कविता को कभी किसी ने टाइम्स ऑफ इंडिया की न्यूज़ हेडलाइन कह दिया था.. <br />आज वियोगी कवि होने की पहली शर्त हो न हो.. मन से कविता का प्रस्फुटन ही उसको कवि बनाता है.. बिना कोइ कविता लिखे भी कोइ कवि हो सकता है यदि वह कविता के भावों साथ सामम्न्जस्य स्थापित कर पाटा हो.. हर वो व्यक्ति शायर है जो यह समझता ही कि किस शेर पर कहाँ दाद देनी है.. इसके लिए चाहे उसने सारे जन्म कोइ भी शेर न लिखा हो!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-70643002183454712572011-07-14T22:24:03.593+05:302011-07-14T22:24:03.593+05:30सभी के प्रति आदर भाव रखते हुए एक निवेदन -
बेहतर ह...सभी के प्रति आदर भाव रखते हुए एक निवेदन -<br /><br />बेहतर होता चर्चा रचना पर ही होती, रचनाकार पर नहीं। यही आलोचना का धर्म है।हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-9943712326871313972011-07-14T17:37:53.327+05:302011-07-14T17:37:53.327+05:30समीक्षा बहुत अच्छी रही!
हम भी आशा में हैं!समीक्षा बहुत अच्छी रही!<br />हम भी आशा में हैं!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-54634410761921885372011-07-14T17:26:37.919+05:302011-07-14T17:26:37.919+05:30सोचा रचना और समीक्षा पर अपने विचार रखूं...पर, यहाँ...सोचा रचना और समीक्षा पर अपने विचार रखूं...पर, यहाँ तो कुश्ती ही शुरू हो गयी...अब क्या कहूँ...विचार को सकारात्मक ढंग से लिया जायेगा,संदेह है इसमें....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-8500662533461549762011-07-14T16:46:34.955+05:302011-07-14T16:46:34.955+05:30"कलम अपनी साध/और मन की बात बिल्कुल ठीक कह/जिस..."कलम अपनी साध/और मन की बात बिल्कुल ठीक कह/जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख/और इसके बाद भी हमसे बड़ा तो दिख" <br />ठीक से याद नहीं शायद डॉ रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है....<br />रचना की कविताएँ नए युग की नई कविता है जो छन्द मुक्त है...वैसे भी आज नई संवेदना को व्यक्त करने के लिए नई शब्द शैली ही असरदार दिखती है.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-47813471406043030992011-07-14T16:29:35.003+05:302011-07-14T16:29:35.003+05:30इस समीक्षा को पढने से पहले रचना जी की कविता नहीं प...इस समीक्षा को पढने से पहले रचना जी की कविता नहीं पढ़ पाया था... अब पढ़ा हूं... कविता और समीक्षा कैसे एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं, इसका उत्कृष्ट उदहारण है यह समीक्षा ...<br />... बीच बहस में आते हुए कहना इतना ही निवेदन है कि जो भी महिला कविता लिखती है कवियत्री हो गई... कवियत्री मुझे नहीं लगता कि विशेषण है... जिससे स्पष्ट हो कि कवियत्री कैसी कविता लिखती है.. यह शब्द कहीं से भी कविता की गुणवत्ता और स्तर की बात नहीं करता... तो इस विषय पर इतनी चर्चा हो गई यह आश्चर्यजनक है....<br />.. हिंदी -रोमन में लिखने के सम्बन्ध में मेरा निजी विचार है कि अब इसमें भी परहेज नहीं होना चाहिए कि हिंदी देवनागरी में है कि रोमन में... वैसे सुना है कि गूगल ब्लॉग्गिंग बंद कर रहा है ऐसे में हिंदी लिखने वालों के पास रोमन के अतिरिक्त विकल्प कम रह जायेंगे... फोंट्स में हिंदी टंकण अब भी थोडा मुश्किल है...<br />... आंच आज समीक्षा से इतर मुद्दों पर दहक रहा है..अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-21450510244868245612011-07-14T16:21:38.945+05:302011-07-14T16:21:38.945+05:30mujhe lagta hia ki , bekaar ki baato me ham commen...mujhe lagta hia ki , bekaar ki baato me ham commentbaazi kar rahe hai .. hindi blogjagat ek bada pariwaar hai aur kam se kam yahan to ek dusare par kuch mat kaho dosto.. ab yahi ek jagah hai jo bhale hi invisible hai lekin phir bhi dilo ko jode rakhti hai ... <br /><br />khush rahiye aur dusro ko bhi khush rakhiye .. <br /><br />ab mere peeche mat padh jaana bhai kog.,maine hindi bhi angreji me likhi hai ... ha ha ..<br /><br />chill down friends.. हिंदी ब्लॉग्गिंग अभी अच्छे समय से गाजर कर फिर से recession वाली स्तिथि में आ गया है , एक दूसरे की तारीफ करे.. न कि झगडा. यहाँ ब्लॉग तो बनते ही इसलिए है कि , बस कुछ लिखा जा सके. यहाँ किसे साहित्य का पुरूस्कार लेना है ..<br /><br />एक जीवन है ,, उसे न तकलीफ देते हुए जिए और न ही तकलीफ लेते हुए .. <br /><br />धन्यवाद. <br />आपका<br />विजय [ अरे वही कविताओ के मन से वाला ]vijay kumar sappattihttps://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-89464163738024790712011-07-14T14:23:41.563+05:302011-07-14T14:23:41.563+05:30वैसे अरविंदजी के घराने की टिप्पणी करके कल को कोई म...वैसे अरविंदजी के घराने की टिप्पणी करके कल को कोई मिसिरजी से पूछ सकता है-<br /><br /><b>मिसिरजी वैज्ञानिक चेतना संपन्न कैसे हुये? क्या कुछ सौ वैज्ञानिक लेख लिखकर कोई वैज्ञानिक चेतना संपन्न कहला सकता है?</b><br /><br />लेकिन कौन पूछेगा भला? मिसिरजी से सब डरते हैं। :)<br /><br />हम भी पूछ थोड़ी रहे हैं एक बात कह रहे हैं बस्स! :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-73296913056288319572011-07-14T14:15:26.533+05:302011-07-14T14:15:26.533+05:30अरविंद जी की टिप्पणी देखकर लगा कि वे रचनाजी के सच्...अरविंद जी की टिप्पणी देखकर लगा कि वे रचनाजी के सच्चे फ़ालोवर हो लिये हैं। रचनाजी ने एक बार <a href="http://paricharcha.myindiya.com/opinion/2009/1398" rel="nofollow">सवाल किया </a> था-<b>अनूप शुक्ल की हिंदी योग्यता क्या है?</b><br /><br />अरविंदजी का सवाल <b>रचना कवयित्री हैं ? एकाध कविता लिखने से कोई कवयित्री हो जाता है क्या ?</b> रचनाजी के घराने का ही सवाल है। है कि नहीं?<br /><br />बाकी पोस्ट अच्छी है। कई बातों से सहमत। कुछ से असहमत लेकिन बतायेंगे नहीं किससे सहमत हैं/किससे असहमत हैं। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-30201875122560554162011-07-14T13:20:25.251+05:302011-07-14T13:20:25.251+05:30समीक्षा अच्छी है.समीक्षा अच्छी है.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-61866109865963278412011-07-14T12:13:22.062+05:302011-07-14T12:13:22.062+05:30मैने रोमन में अपनी बात कहती थी अपने पोएम ब्लॉग पर ...मैने रोमन में अपनी बात कहती थी अपने पोएम ब्लॉग पर क्युकी तब गूगल ने फोनेटिक ट्रांसलेशन की सुविधा नहीं डी थी . मेरा कार्य क्षेत्र इंग्लिश से जुडा हैं और मै कंप्यूटर पर ही अपने काम करती हूँ इस लिये हिंदी में सब कुछ करना मेरे लिये असंभव हैं और रहेगा . हा रोमन से देवनागरी में लिखने की सुविधा हैं सो अपनी सोच को अब देवनागरी में व्यक्त करती हूँ .<br />मै कविता नहीं लिखती अगर शिल्प के आधार की बात करे तो , मै केवल शब्दों के कोलाज तैयार करती हूँ .<br />हाँ ये जरुर कह सकती हूँ की मेरी ब्लॉग पोस्ट पर लिखी हिंदी एक १२ साल के बच्चे को भी समझ आ जाती हैं क्युकी वो उसमे शिल्प और शब्द का सही रूप नहीं खोजता . ब्लॉग पर लिखना आसन हैं इस लिये करती हूँ , करती हूँ और खुश होती हूँ क्युकी कभी टिपण्णी के लिये नहीं करती .<br />मनोज जी को कविता पसंद आयी उन्होने इसको समीक्षा उपयुक्त समझा इसके लिये उनका और समीक्षक का आभार .<br />काफी पहले भी मेरी एक कविता पर समीक्षा और बहस हुई थी आप यहाँ देख सकते हैं <br /><br />http://sarathi.info/archives/288#comments <br /><br />इसके अलावा एक और कविता पर भी काफी बहस हुई जो यहाँ उपलब्ध हैं <br /><br />http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2008/07/blog-post_10.html<br /><br /><br />हम किसी के बनाने से बनते नहीं<br />तो किसी के मिटाने से मिटेगे नहीं<br />थैंक्सरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-85410585609096836522011-07-14T11:46:10.890+05:302011-07-14T11:46:10.890+05:30रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि ’बिहारी’ ने कोई महाकव्य न...रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि ’बिहारी’ ने कोई महाकव्य नहीं लिखा है। कोई खंडकाव्य नहीं लिखा है। एक अदद कविता तक नहीं लिखी है। केवल सात सौ दोहे लिखकर वे न केवल इतिहास में अमर हो गये वरण हिन्दी साहित्येतिहास के एक काल-खंड का सबल प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी भी कला का नियामक संख्या-बल नहीं, उसकी गुणवत्ता होनी चाहिये। <br />मैं यह नहीं कहता कि आलोच्य कविता गुणवत्ता के स्तर पर बहुत उत्कृष्ट है। किंतु समीक्षक की अपनी दृष्टि है। वे मार्गदर्शक का काम करते हैं। अगर वे कमजोर रचनाओं को कसौटी पर नहीं कसेंगे तो सशक्त रचना कहाँ से मिलेगी। <br />वैसे भी किसी केलिये आदरसूचक शब्द प्रयोग करने के लिये किसी सिद्धांत, व्याकरण या संविधान की आवश्यकता नहीं होती।करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-4672106019019930172011-07-14T11:36:33.326+05:302011-07-14T11:36:33.326+05:30समीक्षा बहुत अच्छी लगी।
धन्यवादसमीक्षा बहुत अच्छी लगी।<br /><br />धन्यवादअवधेश पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02792814598011905404noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-86760888188542408172011-07-14T10:49:27.637+05:302011-07-14T10:49:27.637+05:30समीक्षा अच्छी लगीसमीक्षा अच्छी लगीसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-1807517007570642592011-07-14T10:25:45.112+05:302011-07-14T10:25:45.112+05:30कविता पर समीक्षा के बहाने कुछ बातें तो पते की हो र...कविता पर समीक्षा के बहाने कुछ बातें तो पते की हो रही हैं। अच्छा प्रयास है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-34779285973351563832011-07-14T10:08:16.555+05:302011-07-14T10:08:16.555+05:30@ मिश्र जी,
मैं मनोज कुमार जी की बातों से सहमत ह...@ मिश्र जी, <br /><br />मैं मनोज कुमार जी की बातों से सहमत हूँ। कवि शब्द पहले वेदों में आया है ईश्वर के लिए। एक ब्रह्माण्ड की रचना करने के कारण उन्हें कवि कहा गया, सरदार पूर्ण सिंह ने केवल पाँच रचनाएँ लिखी हैं और उनकी गणना उच्च कोटि के रचनाकारों में होती है। हरिऔध जी ने केवल एक महाकाव्य लिखा है और उन्हें महाकवि कहा जाता है। इसी प्रकार प्रसाद जी ने भी केवल एक ही महाकाव्य लिखा है और उन्हें महाकवि मानने से कौन इनकार कर सकता है।<br /><br />यदि थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाय कि रचना जी ने यही एक कविता लिखी है, जबकि ऐसा नहीं है, तो यह उनकी अन्तिम रचना होगी यह कैसे मान लिया गया, यह मेरी समझ से तो परे है।<br /><br />कविता में बिखराव अवश्य है, पर कवयित्री ने आजकल के जीवन से जुड़ी समस्याओं को कविता में बहुत ही मौलिक ढंग से दिखाया है, जिसपर समीक्षक ने सूत्र रूप में सशक्त ढंग से विवेचना की है। दोनों ही बधाई के पात्र हैं।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-17986499986573144512011-07-14T08:38:08.079+05:302011-07-14T08:38:08.079+05:30@ आ. अरविंद जी,
मैंने ऐसी कोई परिभाषा नहीं देखी जि...@ आ. अरविंद जी,<br />मैंने ऐसी कोई परिभाषा नहीं देखी जिससे यह पता चलता कि एक कवि या कवयित्री कहलाने के लिए कितनी कविता लिखनी चाहिए।<br /><br />एक कविता के रचनाकार को कवि या कवयित्री कहा जा सकता है, ऐसा मेरा मानना है। <br /><br />जहां तक रचना जी का सवाल है उनके कविता के भी ब्लॉग्स हैं। लिंक ये रहे<br />१. http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/<br /><br />२. http://rachnapoemsjustlikethat.blogspot.com/<br /><br />३. http://rachnapoemswords.blogspot.com/मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-2958678223098402402011-07-14T08:23:34.415+05:302011-07-14T08:23:34.415+05:30अच्छी समीक्षा.अच्छी समीक्षा.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-69360974914919683932011-07-14T07:21:17.219+05:302011-07-14T07:21:17.219+05:30शब्दाधिक्य और वर्णनात्मक शैली शिल्प के प्रति कवयित...शब्दाधिक्य और वर्णनात्मक शैली शिल्प के प्रति कवयित्री की शिथिलता प्रकट करते हैं-<br />रचना कवयित्री हैं ? एकाध कविता लिखने से कोई कवयित्री हो जाता है क्या ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com