tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post1559268404064702317..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: आँच-101 काव्य की भाषा – 4मनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-356599207380320112011-12-23T15:55:29.886+05:302011-12-23T15:55:29.886+05:30आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृ...आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है<br />कृपया पधारें<br /><a href="http://charchamanch.blogspot.com/2011/12/737.html" rel="nofollow">चर्चा मंच-737:चर्चाकार-दिलबाग विर्क</a>दिलबागसिंह विर्कhttps://www.blogger.com/profile/11756513024249884803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-84346997921575534152011-12-23T12:16:53.946+05:302011-12-23T12:16:53.946+05:30wah.....bahut hi gyanvardhak lekh.....wah.....bahut hi gyanvardhak lekh.....mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-15672406820956998102011-12-23T10:21:04.657+05:302011-12-23T10:21:04.657+05:30काफी ज्ञानवर्धक श्रंखला है. "पद-शुचिता" ...काफी ज्ञानवर्धक श्रंखला है. "पद-शुचिता" अति महत्वपूर्ण है.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-9920211840493244742011-12-23T08:52:42.616+05:302011-12-23T08:52:42.616+05:30बहुत ज्ञानवर्धक है आपका आलेख,हरीश जी.बहुत ज्ञानवर्धक है आपका आलेख,हरीश जी.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-39850249447730273422011-12-23T08:50:28.100+05:302011-12-23T08:50:28.100+05:30अच्छा और रोचक आलेख उस पर स्वस्थ चर्चा, कुल मिला कर...अच्छा और रोचक आलेख उस पर स्वस्थ चर्चा, कुल मिला कर सार्थक पोस्ट।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-922438941734024652011-12-23T05:04:12.087+05:302011-12-23T05:04:12.087+05:30hii.. Nice Post
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जहाँ तक शास्त्र सम्मत तर्कों की बात ह...@ सलिल भाई,<br /><br />जहाँ तक शास्त्र सम्मत तर्कों की बात है, तो यह दोष है। जिन्हें इसकी जानकारी है, वे इनसे बचते हैं। बहुतायत प्रयोग तो अनजाने में हुए होते हैं। दोष को जानते हुए स्वीकार करना बाध्यता नहीं, बल्कि हमारी सीमाएँ होतीं हैं। और, जहाँ तक आज के फिल्मी गीतों की बात है, तो वे प्रायः कभी तेज तो कभी मधुर संगीत के बीच घुसे शब्द मात्र होते हैं और संगीत के वजन पर ही चलते हैं, शास्त्रीय सन्दर्भ में उनकी चर्चा करना प्रासंगिक नहीं है। तथापि वहाँ भी अपवाद विद्यमान हैं। <br /><br />सार्थक चर्चा के लिए आभार,हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-43672205793245487712011-12-22T22:33:38.688+05:302011-12-22T22:33:38.688+05:30@ मनोज भारती जी,
आपकी टिप्पणी खोज कर लगा दी है -
...@ मनोज भारती जी, <br />आपकी टिप्पणी खोज कर लगा दी है -<br /><br /><br />मनोज भारती ने आपकी पोस्ट " आँच-101 काव्य की भाषा – 4 " पर एक टिप्पणी छोड़ी है: <br /><br />काव्य में पद शुचिता और अंतिम भाग में शब्दों के सही अर्थ बता कर आपने ब्लॉग जगत के पाठकों का बहुत उपकार किया है।<br /><br />एक सुंदर आलेख !!! <br /><br />,। देते समय कोई चूक हुई लगती है। लेख पढ़ते समय एक वाक्य-दूसरे पर आच्छादित हो तो समझने में कठिनाई होती है।हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-77537428116992088272011-12-22T22:09:38.597+05:302011-12-22T22:09:38.597+05:30मेरी टिप्पणी गायब हो रहीं हैं आपके ब्लॉग से...स्पै...मेरी टिप्पणी गायब हो रहीं हैं आपके ब्लॉग से...स्पैम में देखिए जी!!!मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-62728284705668411792011-12-22T22:02:45.818+05:302011-12-22T22:02:45.818+05:30Gupta ji apka lekh behad upyogi laga ...abharGupta ji apka lekh behad upyogi laga ...abharNaveen Mani Tripathihttps://www.blogger.com/profile/12695495499891742635noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-42362910457709597652011-12-22T21:59:11.089+05:302011-12-22T21:59:11.089+05:30काव्य में पद शुचिता और अंतिम भाग में शब्दों के सही...काव्य में पद शुचिता और अंतिम भाग में शब्दों के सही अर्थ बता कर आपने ब्लॉग जगत के पाठकों का बहुत उपकार किया है।<br /><br />एक सुंदर आलेख !!! <br /><br />,। देते समय कोई चूक हुई लगती है। लेख पढ़ते समय एक वाक्य-दूसरे पर आच्छादित हो तो समझने में कठिनाई होती है।मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-52556936346652188832011-12-22T21:42:38.554+05:302011-12-22T21:42:38.554+05:30Pallavi ने आपकी पोस्ट " आँच-101 काव्य की भाषा...Pallavi ने आपकी पोस्ट " आँच-101 काव्य की भाषा – 4 " पर एक टिप्पणी छोड़ी है: <br /><br />बहुत ही बढ़िया एवं महत्वपूर्ण जानकारी... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत हैहरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-46960363956583085542011-12-22T20:26:19.838+05:302011-12-22T20:26:19.838+05:30ye lekh to diary karne yogy hai jisse aaj vyakran ...ye lekh to diary karne yogy hai jisse aaj vyakran ki itni goodh baaton ka aur kaavy ki baarikiyon ka pata chala. <br /><br />Gupt ji bahut bahut aabhari hun ki itni upyogi aur mahatvpoorn jankari dekar aap ham sab ko kritaarth kar rahe hain.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-85499305302329561092011-12-22T19:41:36.020+05:302011-12-22T19:41:36.020+05:30बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारी दी आप ने..………...बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारी दी आप ने..………आभार्।Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-81857939976567042482011-12-22T19:41:16.162+05:302011-12-22T19:41:16.162+05:30सलिल भाई, दोष तो दोष है, चाहे वह अच्छे साहित्यकार ...सलिल भाई, दोष तो दोष है, चाहे वह अच्छे साहित्यकार के द्वारा हो, चाहे संगीतकार के द्वारा। जब कालिदास, भारवि आदि कवियों पर उँगली उठ सकती है, तो अन्य पर क्यों नहीं। यहाँ तक कि आचार्य पाणिनि तक पर वैय्याकरणों ने उँगली उठाई है। केवल आर्ष कवियों की रचनाओं में इस प्रकार का दोषान्वेषण वर्जित किया गया है।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-83304133073085778522011-12-22T17:08:49.739+05:302011-12-22T17:08:49.739+05:30बहुत ही बढ़िया एवं महत्वपूर्ण जानकारी... समय मिले ...बहुत ही बढ़िया एवं महत्वपूर्ण जानकारी... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-4939913026651848142011-12-22T14:35:33.560+05:302011-12-22T14:35:33.560+05:30बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी.बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-72047188691352686002011-12-22T14:34:39.104+05:302011-12-22T14:34:39.104+05:30बहुत अच्छी जानकारी के लिए साधुवाद !
मैंने कहीं-क...बहुत अच्छी जानकारी के लिए साधुवाद ! <br /><br />मैंने कहीं-कहीं लिखा देखा है "मंदिर निर्माणार्थ हेतु स्वेच्छा से दान दें"<br />"ऐज्मा" को अस्थमा लिखते-बोलते उच्च शिक्षितों से भी सुना है. और लेडी को लेडीज़ बोलना तो सुप्रचलित हो चुका है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-7543307535261182662011-12-22T14:07:29.666+05:302011-12-22T14:07:29.666+05:30हरीश जी,
इस आलेख के प्रथम भाग पर एक बात कहना चाहत...हरीश जी, <br />इस आलेख के प्रथम भाग पर एक बात कहना चाहता हूँ. शब्द संयम, पुनरावृत्ति और अनावश्यक शब्दों का प्रयोग यह बात अवश्य ही ध्यान देने/रखने योग्य है और इनका पालन न होने पर, इन्हें दोष की ही श्रेणी में रखा जाना चाहिए. किन्तु जैसा की मैंने पहले भी कहा था, यहाँ हम कविता को एक शरीर के रूप में देख रहे होते हैं. यदि हम कविता के प्राण, उसकी काव्यात्मकता तथा उसके गेय पहलू पर विचार करें तो हमें इस तरह के शब्दों के प्रयोग की बाध्यता को स्वीकार करना पडेगा. इसका उदाहरण हम फ़िल्मी गीतों से ले सकते हैं, जहां कई साहित्यिक गीतकारों के गीतों में यह दोष दिखाई देते हैं, किन्तु उन्हें स्वीकार करना पडता है क्योंकि संगीत की मांग उन शब्दों के स्थानापन्न शब्दों की अनुमति नहीं देती. <br />आलेख के दूसरे भाग में आपने जो बात कही वह शत प्रतिशत सही है. मुझे याद है आकाशवाणी में एक कार्यक्रम में कवि श्री आरसी प्रसाद सिंह पधारे थे. उद्घोषक ने उन्हें अत्यधिक सामान देने के क्रम में उद्घोषणा की कि कि आज हमारे बीच सर्वश्री आरसी प्रसाद सिंह जी उपस्थित हैं.. भावावेश में दो भूलें.. सर्वश्री कई लोगों के लिए एक साथ 'श्री' लगाने से बना बहुवचन शब्द है और 'श्री' के साथ 'जी' का प्रयोग उचित नहीं है. किन्तु यह एक प्रचलित दोष है, जो बोलने और लिखने में भी लोग करते हैं!!<br />कुल मिलाकर लाभान्वित हुआ हरीश जी!आभार!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-41370950486275195592011-12-22T13:01:35.142+05:302011-12-22T13:01:35.142+05:30अति सुन्दर व उपयोगी जान कारी .....
---निश्चय ही आज...अति सुन्दर व उपयोगी जान कारी .....<br />---निश्चय ही आज नये नये शब्द , भारी भरकम लक्षणा-व्यन्जना प्रयोग के चाव में शब्द व अर्थ दोषों पर ध्यान नहीं दिया जारहा.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-63661524050693314822011-12-22T12:13:45.110+05:302011-12-22T12:13:45.110+05:30बहुत ही उपयोगी जानकारी…………आभार्।बहुत ही उपयोगी जानकारी…………आभार्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.com