tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post19228609294862034..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: भारतीय काव्यशास्त्र पर चर्चामनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-85729425779906726512010-02-08T10:23:43.875+05:302010-02-08T10:23:43.875+05:30"कहा कहौं मन की खुशी, कहत न बने खगेश....!'..."कहा कहौं मन की खुशी, कहत न बने खगेश....!'<br />राय जी ! समझ में नहीं आता कि किस प्रकार आपको धन्यवाद दूँ ! आपके पोस्ट ने कॉलेज की कक्षाओं की याद दिला दी! इतनी सम्यक और बोधगम्य विवेचना तो कॉलेज में भी नहीं मिली थी........... कम से कम मुझे ! सद्ग्रंथों के लुप्त होने की मार विश्वविद्यालय जीवन में मैं स्वयं झेल चुका हूँ !!! आपका पोस्ट पढ़ कर वर्षों से 'कराल तकनीकी व्यवस्था के कोहरे से कुम्हला रहा हृदय पुष्प' सहस पल्लवित हो गया !!! कोटि-कोटि आभार !!! काश यह पोस्ट.......... स्नातक की कक्षाओं में मिल जाता......... काव्यशास्त्र के छठे पत्र में मेरे अंक ८९ ही नहीं होते.......... ! कभी-कभी स्वीकार करना पड़ता है, "समय से पूर्व और भाग्य से अधिक नहीं मिलता !!!" एक बार फिर से धन्यवाद !!!!करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-40501463666900303962010-02-08T10:21:02.638+05:302010-02-08T10:21:02.638+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-21923274018493757422010-02-08T01:01:37.082+05:302010-02-08T01:01:37.082+05:30काव्य चर्चा शुरू करने का धन्यवाद! आधुनिक कविता या ...काव्य चर्चा शुरू करने का धन्यवाद! आधुनिक कविता या शायरी तो हिन्दी ब्लॉग में यत्र-तत्र दिख रही है परन्तु काव्य की शास्त्रीय व्याख्या की कमी सी थी. जारी रखिये.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-66500408917093164012010-02-07T22:57:48.559+05:302010-02-07T22:57:48.559+05:30Aaj ka vishay accha laga.Aaj ka vishay accha laga.शमीमhttps://www.blogger.com/profile/17758927124434136941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-83327039976447605402010-02-07T22:27:12.976+05:302010-02-07T22:27:12.976+05:30गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है
आखर अरथ अलंक्रिति...गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है<br />आखर अरथ अलंक्रिति नाना।<br />छंद प्रपंच अनेक विधाना॥<br />भाव भेद रस भेद अपारा।<br />कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा॥<br /><br />नाना प्रकार के अक्षर, अर्थ और अलंकार, अनेक प्रकार की छ्न्द रचना, भावों और छ्न्दों के अपार भेद और कविता के भांति-भांति के गुण दोष होते हैं। मैंने परशुराम जी आपसे निवेदन किया था कि आप इस विषय पर कुछ लिखें ताकि इस विषय को लोगों के सामने लाया जा सके। आपने मेरा आग्रह स्वीकार कर हमें क्तितार्थ किया। <br />@ श्री अनुनाद सिंह ने जो बात बताई है वह सही है कि आजकल इंटरनेट पर बहुत कुछ उपलब्ध है। पर परशुराम जी के पास इस सुविधा का अभाव है। इसीलिये आलेख में उन्होंने वैसा लिखा।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-51980287511263130882010-02-07T21:29:31.751+05:302010-02-07T21:29:31.751+05:30बहुत ही सार्थक विषय है । मेरे लिये काफी नई जानकारी...बहुत ही सार्थक विषय है । मेरे लिये काफी नई जानकारी है इसे सहेज कर रख लिया एक बार फिर पढूँगी धन्यवाद्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-88895019433416272632010-02-07T21:23:04.447+05:302010-02-07T21:23:04.447+05:30Accha aalekh.Accha aalekh.ज़मीरhttps://www.blogger.com/profile/03363292131305831723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-79157802075708070412010-02-07T20:25:52.790+05:302010-02-07T20:25:52.790+05:30Bahut hi achcha vishay hai, jaari rakhen!Bahut hi achcha vishay hai, jaari rakhen!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-90711013500014695872010-02-07T18:46:34.253+05:302010-02-07T18:46:34.253+05:30बहुत अच्छी चर्चा आरम्भ की गयी है। साधुवाद।
(यद्यप...बहुत अच्छी चर्चा आरम्भ की गयी है। साधुवाद।<br /><br />(यद्यपि मैं सहमत हूं कि साहित्य के अधिकांश अधिकांश विद्यार्थियों में उच्च कोटि की चर्चा और तत्वों को समझने सामर्थ्य, रूचि, आदि का अभाव है लेकिन इसके आगे आप द्वारा कही हुई बात शायद सत्य न हो कि उत्तम स्तर के ग्रन्थों का अभाव है। वस्तुत: बहुत सारे ऐसे ग्रन्थ अब स्कैन करके अन्तरजाल पर उपलब्ध हैं जो पहले साधारण पहुँच वाले आदमी के लिये दुर्लभ थे। मुझे लगता है कि मम्मट की सरी रचनाएं अन्तरजाल पर उपलब्ध हैं।)अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.com