tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post294593393061467812..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: आंच-120 : चांद और ढिबरीमनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-9814432754063784992012-09-29T00:36:13.455+05:302012-09-29T00:36:13.455+05:30धरती के जीवन की मूल संवेदनाओं को समेटती यह कविता ब...धरती के जीवन की मूल संवेदनाओं को समेटती यह कविता बार-बार पढ़ने का मन होता है ! प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-64374381630440810562012-09-28T22:30:47.370+05:302012-09-28T22:30:47.370+05:30उम्दा |
इस समूहिक ब्लॉग में पधारें और हमसे जुड़ें ...उम्दा |<br />इस समूहिक ब्लॉग में पधारें और हमसे जुड़ें |<br /><a href="http://kavyasansaar.blogspot.com/" rel="nofollow"><b>काव्य का संसार</b></a>काव्य संसारhttps://www.blogger.com/profile/01544084782046012575noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80746334350893094862012-09-28T22:21:33.756+05:302012-09-28T22:21:33.756+05:30पहली बार पढ़ा...बहुत अच्छा लगा..पहली बार पढ़ा...बहुत अच्छा लगा..रश्मि शर्माhttps://www.blogger.com/profile/04434992559047189301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-29545862353324190492012-09-28T18:47:02.318+05:302012-09-28T18:47:02.318+05:30मैंने भी उनकी यह रचना पढ़ी है औ आज आपने उसकी बहुत ...मैंने भी उनकी यह रचना पढ़ी है औ आज आपने उसकी बहुत ही समीक्षा करके उसे और भी खूबसूरत बना दिया सचमुच विचारणीय विषय है। Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-59960216804939176492012-09-28T14:25:20.909+05:302012-09-28T14:25:20.909+05:30प्रभावित करती संतुलित समीक्षा..प्रभावित करती संतुलित समीक्षा..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-43667799183571305652012-09-28T08:56:45.576+05:302012-09-28T08:56:45.576+05:30जितनी सुंदर कविता उतना सुंदर ही विश्लेशण भी !जितनी सुंदर कविता उतना सुंदर ही विश्लेशण भी !सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-2775536301703638342012-09-28T08:39:12.279+05:302012-09-28T08:39:12.279+05:30न जाने किस तरह तो रात भर छप्पड़ बनातें हैं ,
सवेर...न जाने किस तरह तो रात भर छप्पड़ बनातें हैं ,<br /><br />सवेरे ही सवेरे आंधियां ,फिर लौट आतीं हैं .<br /><br />यही है बुधिया का असल भारत .बहुत सशक्त रचना है "चाँद और ढिबरी ",बचपन की ढिबरी और लालटेन याद आगई .वो चूने का कच्चा पक्का मकान ,वो पिताजी का झौला ,सुरमे मंजन का ,वो छज्जू पंसारी से रोज़ चार आने का कोटोज़म खरीदना ,लिफ़ाफ़े रद्दी में बेचके आना ,माँ के कहे उसी दूकान पे ,दोस्तों से आँख बचाते ,सब कुछ तो याद आगया ये कविता पढके .<br /><br />पांचवीं से बारवीं कक्षा तक का दौर (१९५६-१९६३ )याद आगया .<br /><br />वही है हिन्दुस्तान आज भी .फिर भी रोज़ होता है यहाँ भारत बंद .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-476344380735936232012-09-28T08:27:52.041+05:302012-09-28T08:27:52.041+05:30इस कविता में बाज़ारवाद और वैश्वीकरण के इस दौर में ...इस कविता में बाज़ारवाद और वैश्वीकरण के इस दौर में अधुनिकता(आधुनिकता ) और प्रगतिशीलता की नकल और चकाचौंध की चांदनी में किस तरह अभावग्रस्त निर्धनों की ज़िन्दगी प्रभावित हो रही है, उसे कवयित्री ने दक्षता के साथ रेखांकित किया है।<br /><br />परेशान बुधिया<br /><br />अपनी झोंपड़ी में<br /><br />रात भर जलाती है ढिबरी<br /><br />हवाओं से आग का नाता<br /><br />उसकी पलकें नहीं झपकने देता<br /><br />रात भर जलती ढिबरी<br /><br />कटौती कर जाती है<br /><br />बुधिया के राशन में<br /><br /><br /><br />बुधिया का संसार अभावग्रस्त हिन्दुस्तान का संसार है .<br /><br /><br /><br />महबूब का चेहरा या<br /><br />बच्चे का खिलौना नहीं<br /><br />बुधिया का चांद तो एक ढिबरी है।<br /><br /><br /><br />जब चांद की रोशनी<br /><br />उसकी थाली की रोटियों में<br /><br />ग्रहण नहीं लगाती<br /><br />सोती हुई मां की बिंदी में उलझी मुनिया<br /><br />खिलखिलाती है<br /><br />यही है सरकारी योजनाओं -नरेगा /करेगा /मरेगा की असली तस्वीर .नाम बड़े और दर्शन छोटे .<br /><br /><br /><br />पारसाल तीज पर खरीदी<br /><br />कांच की चूड़ियां भी<br /><br />बस दो ही रह गई हैं।<br /><br />चूड़ियों की खनक के बगैर<br /><br />खुरदरी हथेलियों की थपकियां<br /><br />मुनिया को दिलासा नहीं देतीं<br /><br /><br /><br />यही है खुले बाज़ार और "वाल मार्ट " का हासिल मनोज भाई .<br /><br /><br /><br />मनोज जी आपके आभारी हैं इतनी सशक्त दास्ताँ हिन्दुस्तान की आपने यथार्थ वादी कविता में सुनवाई .यहाँ रूपक असली है .कलागत चमत्कार नहीं .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-69468917384528500582012-09-28T08:05:19.824+05:302012-09-28T08:05:19.824+05:30पढ़ी हैं दीपिका की रचनाएँ...अति सुंदर समीक्षा .......पढ़ी हैं दीपिका की रचनाएँ...अति सुंदर समीक्षा ..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-81914851064214595982012-09-27T21:15:19.530+05:302012-09-27T21:15:19.530+05:30धन्यवाद मनोज जी, अपनी पारखी नजर से इस कविता को परख...धन्यवाद मनोज जी, अपनी पारखी नजर से इस कविता को परखने के लिए और सभी पाठकों का भी बहुत-बहुत शुक्रिया....दीपिका रानीhttps://www.blogger.com/profile/12986060603619371005noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-8730902281866950792012-09-27T21:02:43.489+05:302012-09-27T21:02:43.489+05:30behad samvedansheel kavita.....shaleen samikcha.behad samvedansheel kavita.....shaleen samikcha.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-76033968877597821902012-09-27T20:40:04.108+05:302012-09-27T20:40:04.108+05:30किसी भी कवि की कविता उस समय जवान होने लगती है जब उ...किसी भी कवि की कविता उस समय जवान होने लगती है जब उस कविता के एक-एक शब्द पाठकों को आत्मीय से लगने लगते हैं,उनके संवेदनात्मक संसार में धीरे-धीरे प्रवेश करने लगते हैं और अंत में कवि की अपनी ही लिखी कविता उसके लिए पराई चीज जैसी हो जाती है। उनकी हर कविता प्रथम बार नवजात शिशु के रूप में दिखती है एवं दूसरी बार पढ़ने पर जवानी की चरम सीमा लांघती सी प्रतीत होती है। दीपिका रानी जी की कविताओं को पढ़ते आया हूं एवं मैंने उन कविताओं में वो सारी चीजें पाई हैं जिसकी चाह हर प्रबुद्ध पाठक को रहती है। इसी क्रम में उनकी अन्य कविताओं की तरह प्रस्तुत कविता "चांद और ढिबरी" भी मानवीय संवेदना के कोमल धरातल को बहुत ही गहराई से स्पर्श करने में सार्थक सिद्ध हुई है। समीक्षक महोदय ने सामाजिक सांस्कारिक मूल्यों एवं कविता के उद्देश्य को जिस बटखरे से तौला है,कविता में अंतर्निहित भावों को रेखांकित किया है,इसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। धन्यवाद।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-51735875929461364012012-09-27T20:10:35.132+05:302012-09-27T20:10:35.132+05:30मनोज जी, आप तो यह जानते ही हैं कि मुझे जब कोई रचना...मनोज जी, आप तो यह जानते ही हैं कि मुझे जब कोई रचना पसंद आती है दिल से, तो मुझे लगता है कि सारी दुनिया को उसकी खबर दूं.. कई बार तो ऐसा भी लगता है कि इसके विषय में मुझसे बेहतर कोई लिख ही नहीं सकता (परमात्मा अहंकार का शमन करे, यदि हो तो).. यदि इन दिनों कार्यालयीन परिस्थिति से जुडी मानसिक परेशानियों ने न घेर रखा होता तो शायद मैं इस कविता पर अपनी प्रतिक्रया अवश्य लिखता.. एक अद्भुत कविता, जो कवयित्री के अनुभव, घटनाओं को नज़रों से नहीं दिल से देखने और कहीं न कहीं माटी से जुड़े होने का संकेत ही नहीं एलान करती है..!! <br />'आँच' पर आये शून्य को भरते हुए और उसके लिए संजीवनी का कार्य करते हुए आप साधुवाद के पात्र हैं!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-15813699328753255832012-09-27T20:01:07.724+05:302012-09-27T20:01:07.724+05:30दीपिका जी की कलम सामाजिक संवेदना की स्याही से लबरे...दीपिका जी की कलम सामाजिक संवेदना की स्याही से लबरेज है . पढता रहता हूँ उनकी कवितायेँ . कसौटी कर कसी कविता उसका ज्वलंत उदहारण है, लेखक और समीक्षक को हार्दिक बधाई . ashishhttps://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-13480076031041579462012-09-27T17:41:14.001+05:302012-09-27T17:41:14.001+05:30बढ़िया समीक्षा .बढ़िया समीक्षा .Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-23528932054341906062012-09-27T16:32:24.358+05:302012-09-27T16:32:24.358+05:30इस कविता में सबसे सुंदर बात तो मुझे बुधिया, बुधिया...इस कविता में सबसे सुंदर बात तो मुझे बुधिया, बुधिया की टिकुली, चाँद और ढिबरी के बीच का अद्भुत तालमेल लगा।<br />बच्चे के लिए माँ की टिकुली ही चाँद है और माँ के लिए ढिबरी ही चाँद है। माँ सो पाती है जब चाँद की रोशनी थाली की रोटियों में ग्रहण नहीं लगाती। बच्ची को सोती हुई माँ के टिकुली सबसे सुंदर लगती है। वह उसे देख खिलखिलाती है। कविता को बार-बार पढ़ने का, कुछ और समझने का मन करता है। बुधिया की लाल टिकुली यह कल्पना नहीं करने देती की बुधिया विधवा है। वहीं टिकुली और सफेद चाँद कहीं संदेह के बीज भी बो देते हैं। शेष आपकी समीक्षा बहुत सुंदर है। आँच में चढ़कर भी यह कविता कुंदन सी निखर कर सामने आई है। यही वह कविता है जिसे पढ़कर मैं दीपिका जी का प्रशंसक बना था। दीपिका जी को बहुत बधाई।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80255509771451084662012-09-27T15:54:40.199+05:302012-09-27T15:54:40.199+05:30दीपिका जी को पहली बार पढ़ा ... प्रभावित किया !!!दीपिका जी को पहली बार पढ़ा ... प्रभावित किया !!!निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-10104730059384038512012-09-27T14:59:33.095+05:302012-09-27T14:59:33.095+05:30bahut sunder....garibi ke sach ko darshati kavita ...bahut sunder....garibi ke sach ko darshati kavita thi dipika ji aur uske upar aapki sameeksha kavita par sone par suhaga ka kaam kar rahi hai. <br /><br />अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-34852051227676046912012-09-27T14:22:34.050+05:302012-09-27T14:22:34.050+05:30दीपिका को पढ़ा है कई बार.वाकई भाव और यथार्थ का अनु...दीपिका को पढ़ा है कई बार.वाकई भाव और यथार्थ का अनुपम संगम हैं उनकी रचनाएँ.<br />आपने आंच पर उसे चढा कर कंचन बना दिया.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-84171139651103161032012-09-27T14:20:47.631+05:302012-09-27T14:20:47.631+05:30दीपिका जी की रचनाओं से रूबरू कराने एवं आँच की कसौट...दीपिका जी की रचनाओं से रूबरू कराने एवं आँच की कसौटी पर लाजबाब समीक्षा,,,,बधाई,,,<br /><br />RECENT POST <a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2012/09/blog-post_26.html#links" rel="nofollow">: गीत,</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-13985754679565659152012-09-27T13:26:16.803+05:302012-09-27T13:26:16.803+05:30दीपिका जी की कविता हमेशा ही सोचने पर मजबूर कर देत...दीपिका जी की कविता हमेशा ही सोचने पर मजबूर कर देती हैं ... बढ़िया समीक्षा । संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-15969534492598954572012-09-27T13:11:16.658+05:302012-09-27T13:11:16.658+05:30दीपिका जी की बेहतरीन रचनाओं में से एक है ये.
आपने ...दीपिका जी की बेहतरीन रचनाओं में से एक है ये.<br />आपने सच कहा मनोज जी कि ऐसी कवितायें लिखी जानी चाहिए....मगर ये हर रचनाकार के बस की बात कहाँ...<br />दीपिका जी कि कविताओं में आग भी है और आँसू भी....<br /><br />लेखिका और समीक्षक दोनों बधाई के पात्र हैं...<br />सादर<br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-89717436526675723792012-09-27T12:25:04.890+05:302012-09-27T12:25:04.890+05:30्सच मे ये कविता एक बेहद संवेदनशील कविता है और आँच ...्सच मे ये कविता एक बेहद संवेदनशील कविता है और आँच की कसौटी पर कस कर तो और निखर उठी है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-8428080211821976222012-09-27T09:23:53.608+05:302012-09-27T09:23:53.608+05:30बढ़िया |
आभार ||बढ़िया |<br />आभार ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80001893407867070752012-09-27T07:41:29.883+05:302012-09-27T07:41:29.883+05:30Dipika ji aur unki rachna se roobaroo karane ka aa...Dipika ji aur unki rachna se roobaroo karane ka aabharअजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.com