tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post3800269346370151745..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: भारतीय काव्यशास्त्र :: रस सिद्धांतमनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-59130898485921108372011-01-19T10:56:38.698+05:302011-01-19T10:56:38.698+05:30.
________ अभ्यास _____
— अव्ययीभाव में अव्यय संज....<br /><br />________ अभ्यास _____<br />— अव्ययीभाव में अव्यय संज्ञा है, <br />जबकि स्थायिभाव में 'स्थायिन्' (पूर्व पद) विशेषण है। <br /><br />— अव्ययीभाव का अर्थ - 'अव्यय सा हो जाना' है. अव्ययी अर्थात नित्य या अक्षय रहने वाला. घट-बढ़ से रहित और आदि-अंत से रहित, सदा-सर्वदा रहने वाला, अविनाशी, विकारशून्य ['शिव', 'विष्णु' और 'परब्रह्म' वत] भाव. <br /><br />— स्थायिभाव का अर्थ - 'स्थायी रूप से रहने वाले भाव' है या वे भाव जो मानव प्रकृति में ही नहीं अन्य प्राणियों में भी स्थायी रूप में पाए जाते हैं। <br /><br />— समस्त पद में 'स्थायिन्' शब्द में 'हस्तिन्' या 'करिन्' की तरह 'न्' हट जाता है। <br />यदि 'हस्तिन्' और 'नक्षत्र' को समास रूप में लिखना होगा तो 'हस्तीनक्षत्र' नहीं 'हस्तिनक्षत्र' बनेगा। <br /><br />— 'स्थायिन्' और 'भाव' मिलकर समस्त रूप में 'स्थायिभाव' ही बनता है।<br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-22064347081251267452011-01-19T10:31:39.635+05:302011-01-19T10:31:39.635+05:30.
आचार्य जी,
मुझे एक-एक क्षण भारी पड़ रहा था. आपन....<br /><br />आचार्य जी,<br />मुझे एक-एक क्षण भारी पड़ रहा था. आपने प्रतिटिप्पणी देकर न केवल मेरी शंका का समाधान किया अपितु भविष्य में मुझसे सीखने वाले विद्यार्थियों और साथियों को भी सही दिशा दे दी. मैं उपकृत हुआ. <br /><br />वर्तमान के 'हिन्दी मानक ब्यूरो' द्वारा निर्धारित 'हिन्दी मानक व्याकरण' पर आपकी क्या राय है? <br />भविष्य में यदि कहीं उलझा तो अवश्य आपसे ही समाधान लूँगा. <br /><br />एक निजी समस्या का निराकरण करें :<br />आचार्य जी, मैं रस-छंद-अलंकारों में रुचि रखता हूँ और अब वह रुचि अर्थोपार्जन और पारिवारिक उलझनों के चलते घटने की ओर है, मैं उसे जीवित रखना चाहता हूँ. साथ ही कुछ नवीन अध्याय भी जोड़ना चाहता हूँ. <br />क्या ब्लॉग-लेखन के ज़रिये ही अपनी दबी महत्वाकांक्षा को पूरा कर पाऊँगा. <br /><br />— आपका स्मृति उपासक एक बलात शिष्य. <br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-50514731360730423172011-01-19T09:39:23.198+05:302011-01-19T09:39:23.198+05:30@ प्रतुल जी,
आपने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है। इसे...@ प्रतुल जी,<br /><br />आपने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है। इसे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है - अव्ययीभाव में अव्यय संज्ञा है, जबकि स्थायिभाव में 'स्थायिन्' (पूर्व पद) विशेषण है। अव्ययीभाव का अर्थ - 'अव्यय सा हो जाना' है, जबकि स्थायिभाव का अर्थ - 'स्थायीरूप से रहने वाले भाव' है या वे भाव जो मानव प्रकृति में ही नहीं अन्य प्राणियों में भी स्थायी रूप में पाए जाते हैं। समस्त पद में 'स्थायिन्' शब्द में 'हस्तिन्' या 'करिन्' की तरह 'न्' हट जाता है। यदि 'हस्तिन्' और 'नक्षत्र' को समास रूप में लिखना होगा तो 'हस्तीनक्षत्र' नहीं 'हस्तिनक्षत्र' बनेगा। वैसे ही यहाँ 'स्थायिन्'और 'भाव' मिलकर समस्त रूप में 'स्थायिभाव' ही बनेगा।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-58610853839982038422011-01-19T08:53:53.992+05:302011-01-19T08:53:53.992+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-68223257302298823752011-01-19T08:50:33.939+05:302011-01-19T08:50:33.939+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-65005050467903889322011-01-17T22:05:18.089+05:302011-01-17T22:05:18.089+05:30.
जल्दबाजी में त्रुटि हो गयी :
दवाई का दवाइयाँ ....<br /><br />जल्दबाजी में त्रुटि हो गयी : <br /><br />दवाई का दवाइयाँ .......... समझें. <br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-89641720297730722852011-01-17T21:24:13.047+05:302011-01-17T21:24:13.047+05:30.
आचार्य जी, धन्यवाद जानकारी के लिये.
फिर भी मु....<br /><br />आचार्य जी, धन्यवाद जानकारी के लिये. <br /><br />फिर भी मुझे कुछ शंका है उसका युक्तियुक्त समाधान करें :<br />मैं अब तक जानता था कि <br />— ईकारांत शब्द बहुवचन में इकारांत हो जाते हैं. यथा : भाई का भाइयों/ भाइयो. दवाई का दवाईयाँ संबंधी का सम्बन्धियों आदि.<br />इसी प्रकार ऊकारांत शब्द बहुवचन में उकारांत हो जाते हैं. यथा : झाडू का झाडुओं आदि .<br /><br />— कई बार ईकारांत शब्द प्रत्यय के साथ मिलकर भी इकारांत होते देखे जाते हैं. यथा : स्थायी से स्थायित्व. <br /><br />आचार्य जी, अति विनम्रता से एक प्रश्न कर रहा हूँ :<br />— क्या 'अव्ययी' शब्द को 'भाव' शब्द के साथ लिखते हुए भी अव्ययिभाव लिखा जाना चाहिए? <br /><br />कृपया व्याकरण सम्मत समझायें. <br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-42732362040411505552011-01-17T17:33:49.080+05:302011-01-17T17:33:49.080+05:30@ प्रतुल जी
स्थायिभाव यदि एक शब्द के रूप में लिखा...@ प्रतुल जी<br /><br />स्थायिभाव यदि एक शब्द के रूप में लिखा जाता है तो य पर हृस्व इ की मात्रा (यि) होनी चाहिए और यदि अलग-अलग लिखा जाए तो य पर दीर्घ ई की मात्रा (यी) लगेगी। वैसे आपका कहना सही है प्रायः हिंदी भाषी आजकल स्थाय़ीभाव ही लिखते है।<br />शेष टंकण संबन्धी त्रुटियाँ आपके सुझाव के अनुसार ठीक कर दी जाएंगी।<br />आपका आभार,आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-50620225646723250862011-01-17T12:18:45.557+05:302011-01-17T12:18:45.557+05:30.
मनोज जी,
त्रुटि सुधार करें :
— स्थायिभाव को स....<br /><br />मनोज जी, <br />त्रुटि सुधार करें : <br />— स्थायिभाव को स्थायीभाव करें. <br />— अधिकाँश को बिना चन्द्र के लिखें, केवल अनुस्वार के साथ. <br />— लज्जा और हास के मध्य अर्ध-विराम लगाएँ. <br /><br />रुचि से पढ़ा और आगे के भाग की प्रतीक्षा भी है. <br />आचार्य परशुराम जी को मेरा 'नमन' .... कहें. <br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-39643546092846420552011-01-17T09:06:17.680+05:302011-01-17T09:06:17.680+05:30@ वंदना जी,
चर्चा मंच में सम्मान देने के लिए आपका...@ वंदना जी,<br /><br />चर्चा मंच में सम्मान देने के लिए आपका आभारी हूँ।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-48826045435924621182011-01-17T09:04:55.892+05:302011-01-17T09:04:55.892+05:30सभी पाठकों का प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ।सभी पाठकों का प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-36363805149499425252011-01-16T23:50:37.144+05:302011-01-16T23:50:37.144+05:30जानकारीपरक और दुर्लभ पोस्ट....... आभारजानकारीपरक और दुर्लभ पोस्ट....... आभार डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-48280728518641042402011-01-16T22:12:37.102+05:302011-01-16T22:12:37.102+05:30हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में आपका योगदान अविस्मरण...हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में आपका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।<br /><br />आपका आभारहरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-15963535700014737672011-01-16T21:00:13.099+05:302011-01-16T21:00:13.099+05:30भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपूर्ण कार्य...भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपूर्ण कार्य कर आप एक महान कार्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-60115616915520951132011-01-16T19:28:40.431+05:302011-01-16T19:28:40.431+05:30बहुत ही ज्ञानवर्धक और जानकारी युक्त पोस्ट............बहुत ही ज्ञानवर्धक और जानकारी युक्त पोस्ट............ सुंदर प्रस्तुति.उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-32359144687128941272011-01-16T19:25:39.087+05:302011-01-16T19:25:39.087+05:30भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य भरतमुनि द्वारा प्रत...भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य भरतमुनि द्वारा प्रतिपादित रस सिद्धांत .....में वर्णित रसों की संख्या और उनका विश्लेषण बहुत ज्ञानवर्धक रहा ....रस को काव्य की आत्मा मानने वाले आचार्यों में भरत का स्थान पहले आता है ..उसके बाद बाकी आचार्यों ने इसकी व्याख्या अपने अपने तरीके से की ...सारगर्भित पोस्ट के लिए आपका आभारकेवल रामhttps://www.blogger.com/profile/04943896768036367102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-49144617290511615092011-01-16T16:35:21.228+05:302011-01-16T16:35:21.228+05:30आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल...आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी<br /> प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है<br />कल (17/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट<br /> देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर<br />अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।<br />http://charchamanch.uchcharan.comvandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-50272071948684605352011-01-16T16:33:40.842+05:302011-01-16T16:33:40.842+05:30बेहद उपयोगी पोस्ट्……………आभार्।बेहद उपयोगी पोस्ट्……………आभार्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-86468950949958239272011-01-16T14:39:36.151+05:302011-01-16T14:39:36.151+05:30जानकारीपरक पोस्ट.जानकारीपरक पोस्ट.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-57899875538140097152011-01-16T14:00:22.977+05:302011-01-16T14:00:22.977+05:30प्रेम जी की बात उचित है और मुझपर यह सर्वथा लागू हो...प्रेम जी की बात उचित है और मुझपर यह सर्वथा लागू होती है.. एक बिल्कुल वैज्ञानिक एक साहित्यिक विषय पर!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-24309476254490786992011-01-16T11:06:52.011+05:302011-01-16T11:06:52.011+05:30jaankari achi lagi.jaankari achi lagi.ज़मीरhttps://www.blogger.com/profile/03363292131305831723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-62757027133222453782011-01-16T09:59:55.007+05:302011-01-16T09:59:55.007+05:30बहुत उपयोगी और ग्यानवर्द्धक पोस्ट। धन्यवाद।बहुत उपयोगी और ग्यानवर्द्धक पोस्ट। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-81362668019036824052011-01-16T07:41:24.769+05:302011-01-16T07:41:24.769+05:30शृंङ्गारहास्य करुण रौद्रवीरभयानका:।
वीभत्साद्भुतसं...शृंङ्गारहास्य करुण रौद्रवीरभयानका:।<br />वीभत्साद्भुतसंज्ञौ चेत्यष्टौ नाटये रसा: स्मृता:॥<br />--<br />बहुत ही उपयोगी रही यह पोस्ट!<br />हिन्दी भाषा के संवर्धन में आपका योगदान सराहनीय है!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-15753429255309413792011-01-16T07:40:53.076+05:302011-01-16T07:40:53.076+05:30शृंङ्गारहास्य करुण रौद्रवीरभयानका:।
वीभत्साद्भुतसं...शृंङ्गारहास्य करुण रौद्रवीरभयानका:।<br />वीभत्साद्भुतसंज्ञौ चेत्यष्टौ नाटये रसा: स्मृता:॥<br />--<br />बहुत ही उपयोगी रही यह पोस्ट!<br />आपने हिन्दी भाषा के संवर्धन में आपका योगदान सराहनीय है!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-76535709078615101192011-01-16T07:26:30.985+05:302011-01-16T07:26:30.985+05:30रस सिद्धांत पर चर्चा के अंतर्गत आचार्य अभिनवगुप्त ...रस सिद्धांत पर चर्चा के अंतर्गत आचार्य अभिनवगुप्त के विचार और रसों का वर्णन ज्ञानार्जन की दृष्टिकोण से अपने आप में पूर्ण है।सुझाव है -जिन लोगों ने इसका अध्ययन नही किया है,इसे नोट कर लें।<br />विप्रल्ल्भ श्रृंगार संबंधी पोस्ट का इंतजार रहेगा।आपका यह पोस्ट सराहनीय है।धन्यवाद। सादर।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.com