tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post4953771408001954525..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: भारतीय काव्यशास्त्र – 124मनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-22524070737946831132012-09-04T08:19:06.865+05:302012-09-04T08:19:06.865+05:30वक्रोक्ति पर सबसे ज्यादा काम ब्लॉगजगत में हुआ है।वक्रोक्ति पर सबसे ज्यादा काम ब्लॉगजगत में हुआ है।कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-12605651186835146342012-09-03T07:20:02.072+05:302012-09-03T07:20:02.072+05:30अच्छी जानकारियां मिलीं.आभार .अच्छी जानकारियां मिलीं.आभार .Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-88359396710285379552012-09-03T00:45:44.567+05:302012-09-03T00:45:44.567+05:30बहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 03-0...बहुत ख़ूब!<br />आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 03-09-2012 को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow"><b>सोमवारीय चर्चामंच-991</b></a> पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ<br />चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’https://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-82728944805655329352012-09-02T22:27:37.562+05:302012-09-02T22:27:37.562+05:30अद्भुत. अद्भुत. रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-62480432985143555272012-09-02T18:44:04.598+05:302012-09-02T18:44:04.598+05:30अलंकारों के बीच सूक्ष्म अंतर को बहुत से उदाहरणों क...अलंकारों के बीच सूक्ष्म अंतर को बहुत से उदाहरणों को समझ कर लगा कि हमें प्रयोग करते वक़्त सतर्कता रखनी चाहिए। कविता में इस तरह के प्रयोग से तो चमत्कार ही उत्पन्न हो जाएगा।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-42020038265169012652012-09-02T17:54:57.478+05:302012-09-02T17:54:57.478+05:30आभार इस बहुमूल्य पोस्ट के लिए....
सादर
अनु आभार इस बहुमूल्य पोस्ट के लिए....<br /><br />सादर<br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-43101443246620277372012-09-02T15:48:49.190+05:302012-09-02T15:48:49.190+05:30बहुत ही रोचक वर्णन.. बहुत ही सुन्दर व्याख्या.. आचा...बहुत ही रोचक वर्णन.. बहुत ही सुन्दर व्याख्या.. आचार्य जी, मुझे इस विषय में बड़ा आनंद आता है और इसका प्रयोग बिना विषय को जाने हुए मैं यदा-कदा करता रहता हूँ.. <br />प्रायः फेसबुक पर लोगों की बातों पर कमेन्ट करते समय इस प्रकार की आलंकारिक भाषा लोगों को प्रभावित करती है और कई बार हास्य भी उत्पन्न करती है.. मज़ा तो तब आता है अजब कहने वाले ने किसी दूसरे अर्थ में बात कही होती है और टिप्पणीकर्ता ने उसका एक अन्य अर्थ में उत्तर दिया होता है.. <br />कई बार वे अर्थ मूल वक्तव्य को एक नवीन आयाम प्रदान करते हैं और कई बार अर्थ का अनर्थ भी कर डालते हैं!! जैसे नारीणाम् को न अरीणाम् ग्रहण करना.. बहुत सुन्दर दृष्टांत!!<br />चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.com