tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post6146453254721738030..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: लघुकथा :: उत्साहमनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-45612304707474228272010-11-02T23:40:33.739+05:302010-11-02T23:40:33.739+05:30राजेन्द्र उपाध्याय लिखते हैं-
"कल
रात भर बारि...राजेन्द्र उपाध्याय लिखते हैं-<br />"कल<br />रात भर बारिश होती रही<br />मगर<br />पता ही नहीं चला<br />कई बार<br />पता चल जाता है<br />एक बूंद का टपकना भी।"<br />-------------------<br />कुछ ऐसा ही।कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-15697875614889693422010-11-02T23:30:03.098+05:302010-11-02T23:30:03.098+05:30moh maaya ka jaal bandhano ko todne nahi deta. acc...moh maaya ka jaal bandhano ko todne nahi deta. acchhi lagukatha.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-50388180845750573862010-11-02T21:14:43.035+05:302010-11-02T21:14:43.035+05:30कथा अच्छी लगी.
हरीश जी आपने जिससे प्रेरित होकर यह...कथा अच्छी लगी. <br />हरीश जी आपने जिससे प्रेरित होकर यह कथा लिखी उन्हे भी नमन.शमीमhttps://www.blogger.com/profile/17758927124434136941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-14593321424599426752010-11-02T21:11:46.113+05:302010-11-02T21:11:46.113+05:30एक अच्छी और सधी हुई लघुकथा.एक अच्छी और सधी हुई लघुकथा.ज़मीरhttps://www.blogger.com/profile/03363292131305831723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-82329648811335375852010-11-02T16:50:05.174+05:302010-11-02T16:50:05.174+05:30@ डॉ दिव्या जी,
प्रोत्साहन के लिए आपका आभारी हूँ।...@ डॉ दिव्या जी,<br /><br />प्रोत्साहन के लिए आपका आभारी हूँ।हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80549707417514579982010-11-02T16:45:06.696+05:302010-11-02T16:45:06.696+05:30@ सदा जी,
इस उदात्तता ने मुझे भी गहरे तक स्पर्श क...@ सदा जी,<br /><br />इस उदात्तता ने मुझे भी गहरे तक स्पर्श किया है।<br /><br />आभार,हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-33742582956833618002010-11-02T15:41:06.596+05:302010-11-02T15:41:06.596+05:30.
हरीश जी,
बहुत मार्मिक प्रस्तुति। मन भावुक हो ....<br /><br />हरीश जी,<br /><br />बहुत मार्मिक प्रस्तुति। मन भावुक हो गया। उन्हें मेरी तरफ से भी श्रद्धांजलि। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-42930292977597477612010-11-02T15:38:59.154+05:302010-11-02T15:38:59.154+05:30.
Very accurate presentation .
..<br /><br />Very accurate presentation . <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-77905993037365103962010-11-02T15:34:49.260+05:302010-11-02T15:34:49.260+05:30यह तो आपने बहुत ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया ह...यह तो आपने बहुत ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है इस लघु कथा के माध्यम से कई जगह तो बिल्कुल झकझोर देती है मन को भीतर तक....सुन्दर लेखन आभार।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-17269839700091854202010-11-02T14:27:45.992+05:302010-11-02T14:27:45.992+05:30@ कपिल जी,
आपके शब्द मेरे हृदय को भी अंदर तक छू ग...@ कपिल जी,<br /><br />आपके शब्द मेरे हृदय को भी अंदर तक छू गए।<br /><br />आभार,हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-10792105490780206822010-11-02T14:26:08.132+05:302010-11-02T14:26:08.132+05:30@ करण जी,
वाह ! लिक्विड आक्सीजन !
बहुत सुन्दर ...@ करण जी,<br /> <br />वाह ! लिक्विड आक्सीजन ! <br /><br />बहुत सुन्दर उपमा से विभूषित किया है आपने इस व्यंजना को।<br /><br />आभारषहरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-22837428331911624452010-11-02T14:23:21.640+05:302010-11-02T14:23:21.640+05:30@ संगीता जी, @ राय जी,
प्रोत्साहन के लिए आभारी हू...@ संगीता जी, @ राय जी,<br /><br />प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ।हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-49216688204134497892010-11-02T14:18:45.640+05:302010-11-02T14:18:45.640+05:30@ मनोज जी,
कथा के कई संवेदनशील पहलुओं को स्पर्श क...@ मनोज जी,<br /><br />कथा के कई संवेदनशील पहलुओं को स्पर्श करने तथा अर्थ को विस्तार देने के लिए आपका पुनः आभार। <br /><br />ऐसा लगता है आपने मेरे मन में छिपे शब्दों को हूबहू चुरा लिया है। आपने सही व्यक्त किया है कि कथा में संवेदना के कई स्तर हैं। त्याग है तो त्यागने का भाव भी है। निष्ठा और समर्पण का वह स्तर भी है जब निष्ठा अपना अर्थ खोती सी प्रतीत होती है। लेकिन इन सबसे ऊपर है सामाजिक ताने-बाने को पार करती मानवीय आवेग की पराकाष्ठा जो अनुभव के इस पड़ाव पर, सब कुछ से अनभिज्ञ न होते हुए भी, लाचारी को लाचारी न मान, बेबसी को बेबसी न समझ जीवन के प्रति सहज व सकारात्मक दृष्टि से ओत-प्रोत होकर उसे उल्लास से परिपूर्ण बना देती है और जिसके समक्ष सभी पीड़ाएं छोटी पड़ जाती हैं।हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-29262414641493891922010-11-02T14:05:37.362+05:302010-11-02T14:05:37.362+05:30यह लघुकथा लिखने की प्रेरणा जिस चरित्र से मिली मैने...यह लघुकथा लिखने की प्रेरणा जिस चरित्र से मिली मैने यह कथा उन्हें ही समर्पित की थी। मेरे लिए वह बहुत सम्माननीय हैं। मुझे नहीं पता था कि यह कथा आज के ही दिन लगेगी। ईमानदारी से कहूँ तो इस संदर्भ में मेरा मनोज जी से कोई संवाद भी नहीं हुआ। लेकिन दैवीय संयोग ऐसा कि आज ही, अर्थात् 02 नवम्बर को, उनकी पुण्य तिथि है और उनकी पुण्य तिथि के ही दिन यह कथा ब्लाग पर आ रही है। इस कथा का आज पाठकों के समक्ष आना मेरी ओर से उन्हें श्रद्धांजलि है। <br />इस संयोग में योगदान के लिए मैं मनोज जी का बहुत आभारी हूँ।हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-81793465523524863502010-11-02T13:07:59.292+05:302010-11-02T13:07:59.292+05:30जीवन के मार्मिक क्षण और उन क्षणों के यथार्थ को बिन...जीवन के मार्मिक क्षण और उन क्षणों के यथार्थ को बिना किसी लाग लपेट के, बिलकुल सहजता से व्यक्त करती लघुकथा संवेदना जगा जाती है।<br /><br />आभार,हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/15988235447716563801noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-37788955999241520132010-11-02T12:42:28.805+05:302010-11-02T12:42:28.805+05:30आपकी यह लघु कथा मेरे को अन्दर तक छु गयी....जीवें क...आपकी यह लघु कथा मेरे को अन्दर तक छु गयी....जीवें की सचाई की कितने सही ढंग से आपने ब्यान किया है...<br /><a href="http://isitindya.blogspot.com" rel="nofollow">isitindya.blogspot.com</a>kapilhttps://www.blogger.com/profile/07530547571875085720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-30856065807382598372010-11-02T11:44:04.996+05:302010-11-02T11:44:04.996+05:30बहुत खूब ! हालत कभी-कभी जिंदगी 'लिक्विड-ऑक्सीज...बहुत खूब ! हालत कभी-कभी जिंदगी 'लिक्विड-ऑक्सीजन' जैसी हो जाती है. लिक्विड हमें जीने नहीं देता और ऑक्सीजन हमें मरने नहीं देता... !!करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-79233022365828426022010-11-02T11:40:55.603+05:302010-11-02T11:40:55.603+05:30Lachari ki bela mein jijivisha ki tivrata ko vyanj...Lachari ki bela mein jijivisha ki tivrata ko vyanjit karati badi hi marmik laghukatha. Abhar.आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-40789799482555775282010-11-02T11:31:48.281+05:302010-11-02T11:31:48.281+05:30वृद्धावस्था की लाचारी और जीने की ललक का खाका बहुत ...वृद्धावस्था की लाचारी और जीने की ललक का खाका बहुत सही खींचा है ...मार्मिक प्रस्तुतिसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-28840000675008856662010-11-02T10:26:28.122+05:302010-11-02T10:26:28.122+05:30विसंगतियों पर खरा व्यंग्य प्रहार करती हुई कहानी मे...विसंगतियों पर खरा व्यंग्य प्रहार करती हुई कहानी में वृद्धावस्था की लाचारियों को इस तरह रेखांकित किया है कि कई स्थानों पर रोंगटें खड़े होने लगते हैं। यह सोचना भयावह लगता है कि सतत क्रियाशील रहनेवाला व्यक्ति वृदावस्था आते ही पंगु हो जाता है। रिश्तों में बंधे रहना, रिश्तों को ढोना या फिर अपने हिसाब से रिश्तों को खुद बनाना इन्हीं बिन्दुओं पर यह कथानक रचा गया है। इसमें स्जीवन की टूटन, घुटन, निराशा, उदासी और मौन के बीच मानवता की पैरवी करती मन के आवेग की कहानी है। संवेदना के कई तस्तरों का संस्पर्श करती यह कहानी जीवन के साथ चलते चलते हमारे मन की छटपटाहट को पूरे आवेश के साथ व्यक्त करती है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com