tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post6276149626768094370..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: स्मृति शिखर से–21 : हौ राजा, चढ़ाई है!मनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-77126282781585157402012-08-29T13:41:03.087+05:302012-08-29T13:41:03.087+05:30हो राजा, आपकी कई पोस्टें रह जाती है बिना पढ़े .......हो राजा, आपकी कई पोस्टें रह जाती है बिना पढ़े .... आनंद का अहसास और पुरानी लोक परम्पराओं की जानकारी एक साथ मिलती है.<br /><br />साधुवाद.<br /><br />जै राम जी की.<br /><br /><br /><br />दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-55154216687437981462012-08-22T23:15:52.814+05:302012-08-22T23:15:52.814+05:30'हौ राजा "एक काल पात्र सा खडा है इस संस्म...'हौ राजा "एक काल पात्र सा खडा है इस संस्मरण में ...कृपया यहाँ भी पधारें -<br />ram ram bhai<br />बुधवार, 22 अगस्त 2012<br />रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .<br />What Puts The Ache In Headache?<br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-118242306240282782012-08-22T22:59:19.561+05:302012-08-22T22:59:19.561+05:30जो व्यक्ति अपने मूल को नहीं त्यागता वह सच का आग्र...जो व्यक्ति अपने मूल को नहीं त्यागता वह सच का आग्रही होता है और जिसने बीते कल को भुला आज को ही मूल मन लिया उसे क्या कहें ?Ramakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-21092622864211000332012-08-22T21:22:00.302+05:302012-08-22T21:22:00.302+05:30केशव बाबू, आपका यह वर्णन अन्तर्मन को गुदगुदा गया।केशव बाबू, आपका यह वर्णन अन्तर्मन को गुदगुदा गया।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-89794169516745256362012-08-22T20:27:31.894+05:302012-08-22T20:27:31.894+05:30ऐसे अनूठे चरित्र समाज को कितना कुछ दे जाते हैं जिस...ऐसे अनूठे चरित्र समाज को कितना कुछ दे जाते हैं जिसका मुल्यांकन किया ही नहीं जा सकता। मात्र एक ईमानदारी के बल पर भिक्षा मांगते हुए भी दाता बन जाते हैं। मैं हमेशा कहता हूँ कि सभी को संस्मरण जरूर लिखने चाहिए। सभी की जिंदगी में कभी न कभी ऐसे व्यक्तियों से सामना होता है जो श्रद्धेय होते हैं, प्रेरक होते हैं।<br /><br />..इसे साझा करने के लिए आभार।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-21245455461904579502012-08-22T20:01:23.190+05:302012-08-22T20:01:23.190+05:30रोचक लोक रीतियाँ..सुन्दर वर्णन..रोचक लोक रीतियाँ..सुन्दर वर्णन..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-76333552252486864382012-08-22T18:01:31.821+05:302012-08-22T18:01:31.821+05:30नत मस्तक श्रद्धा हुई, उन्नत कर्म प्रधान |
हौ राजा ...नत मस्तक श्रद्धा हुई, उन्नत कर्म प्रधान |<br />हौ राजा बम बम बजे, लगे तान प्रिय कान |<br />लगे तान प्रिय कान, मान बढ़ जाय विलक्षण |<br />परम्परा निर्वाह, धर्म का कर संरक्षण |<br />नेक नियत आतिथ्य, पुजारी हूँ बाबा का |<br />वा री भिक्षा वृत्ति, कबहुँ पर धन न ताका ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-53815734287136513392012-08-22T16:55:30.100+05:302012-08-22T16:55:30.100+05:30आज तो आपके स्मृति शिखर से हमने भी कुछ स्मृतियों के...आज तो आपके स्मृति शिखर से हमने भी कुछ स्मृतियों के पल पुनः जी लिए.. "हौ राजा! चढाई है!"..लोक व्यवहार का यह मुहावरा हमारे ज़माने का एक मुहावरा याद दिला गया.. "जा, बढ़ा के!!" आपने तो 'राजा' और 'चढाई' दोनों की व्याख्या कर दी, लेकिन 'जा बढ़ा के' का, न तो उद्गम मालूम है न इतिहास.. <br />फिर याद आया एक राजा, जिसे बांधकर अपने साथ ले जाने सिकंदर महान आया था, लेकिन न ले जा सका. हमारा देश ऐसे राजाओं से भरा पड़ा है(था)... और आखिर में, लगता है यह गुलज़ार साहब का जन्म-सप्ताह है इसलिए हर पोस्ट में मुझे उनकी झलक दिख रही है.. अरुण जी की कविता में भी और आपकी इस स्मृति से भी.. फिल्म किताब में ऐसे ही रेलगाड़ियों में भीख माँगने वाले एक भिखारी को दुत्कारने पर एक व्यक्ति अपने मित्र को समझाता है कि इनसे ऐसे मत बोलो, यह यहाँ के सबसे "रईस" भिखारी हैं. तीन तो कोठियां हैं इनकी मुम्बई में.. सच है करण जी, निर्लिप्तता का इतना अच्छा उदाहरण और कहीं नहीं मिल सकता. इस एक भाव में, ईमानदारी, त्याग, सादगी और अपने काम के प्रति प्रेम और परमात्मा के प्रति समर्पण की भावना निहित है!!<br />अद्भुत है यह वर्णन!!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80544033128523892812012-08-22T16:50:49.251+05:302012-08-22T16:50:49.251+05:30परिस्थितियों के आकलन को एक नया नज़रिया मिला गया .....परिस्थितियों के आकलन को एक नया नज़रिया मिला गया ......निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-48588867932744516112012-08-22T15:50:59.632+05:302012-08-22T15:50:59.632+05:30कभी कभी जिन्दगी हमें चित कर देती है. सोचने का मौक़ा...कभी कभी जिन्दगी हमें चित कर देती है. सोचने का मौक़ा ही नहीं देती. Kumar Padmanabhhttps://www.blogger.com/profile/00743001936020943683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-7489995431834182482012-08-22T15:26:53.948+05:302012-08-22T15:26:53.948+05:30हौ राजा चढ़ाई है ! .... आह ! आनंद आ गया..हमलोग भी...हौ राजा चढ़ाई है ! .... आह ! आनंद आ गया..हमलोग भी चढ़ाई करते थे.. कभी विदेश्वर बाबा की तो कभी कपलेश्वर बाबा की...कभी चढ़ाई होती थी उगना महादेव की..... बहुत प्रचलित है यह मुहावरा...कभी हमलोग महाभोज के लिए भी कहते थे... लोकरंग का अदभुद नमूना है आपका लेख... शुभकामना... अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.com