-- करण समस्तीपुरी
दुआ हर ओर से आए, दिवाली तब दिवाली हो।
दिया हर घर में जल जाए, दिवाली तब दिवाली हो॥
जले आहुतियाँ पहले सभी कलुषित विचारों की।
अँधेरा मन का मिट जाए, दिवाली तब दिवाली हो॥
न जानें कौन से रस्ते से वन को थे गए रघुवर।
अवध में लौट कर आएँ, दिवाली तब दिबाली हो॥
विदेशी क़ैद में विष्णु-प्रिया बैठी सिसकती हैं।
जो अपने घर चली आए, दिवाली तब दिवाली हो॥
न माँगे भीख होरी, ना मरे बुधिया कुपोषण से।
मिले जब काम हाथों को, दिवाली तब दिवाली हो॥
ये भ्रष्टाचार, ये आतंक, ये महँगाई है 'केशव'।
इन्हें कोई मिटा जाए, दिवाली तब दिवाली हो॥
-: ज्योति-पर्व की अनंत मंगल-कामनाएँ :-