शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

त्याग पत्र : भाग 4

पिछले सप्ताह आपने पढ़ा --- सी.पी.डब्ल्यू.डी. के अभियंता बांके बिहारी सिंह की इच्छा थी कि एक पढ़ी लिखी लड़की से उसकी शादी हो। उसके पिता ठाकुर बचन सिंह ने जब राघोपुर के गोवर्धन बाबू की कन्या रामदुलारी के बारे में सुना तो उसे अपने घर की बहू बनाने के लिए लालायित हो गए। रामदुलारी ने जब महाविद्यालय में पढ़ाई करने का मन बनाया तो घर के सदस्यों की राय उसकी इच्छा के विपरित थी। ... अब आगे पढ़िए ....

---चार---

बाबा ने आवाज लगा तो दी पर रामदुलारी को न आते देख लगे रामायण पाठ करने। मास पारायण वे नियमित रूप से करते थे। सामने रेहल पर पोथी थी। पोथी पर पन्ने पलटते रामायण बांचने में बाबा तल्लीन हो गए।

मैया के दो टूक जवाब और बाबू-चाचा के विचार ने रामदुलारी को भीतर से व्यथित कर दिया था। उसने दिन-भर भोजन नहीं किया। परतापुर वाली चाची की बहुत चिरौरी करने पर शाम को फल के दो टुकड़े खा लिए थे। रात में दूध पीकर सोने चली गयी थी। बिछौना पर पड़ते ही उसकी आंखों से गंगा-जमुना बह चली। दिन की घटना मन में आते ही वह अश्रु-विगलित स्वर के साथ बिलख-बिलख कर रोती रही। मानसिक यंत्रणाओं से वह अत्यधिक त्रस्त थी। मन अपनी आशाओं और यथार्थ के बीच तालमेल बिठाना चाह रहा था। पर वह उसमें सफल नहीं हो पा रही था। कठोर संकल्प ने क्षुधा और निद्रा से जैसे कट्टी कर ली थी। रात भर रामदुलारी की आँखें अविरल बहती रही। लम्बी अंधेरी रात में बसबिट्टी से यदा-कदा आने वाली लक्ष्मीवाहन और दादुरों की आवाज़ उसके सपनो पर घिर रहे अन्धकार को चीर कर आने वाली आशा की किरण प्रतीत हो रही थी।

गायों के रंभाने की आवाज़ सुनकर निर्धन नित्य की भांति अपनी चिर-परिचित खांसी के साथ जगा। बाबा की सुबह पराती के साथ होती है। 'उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोबत है....' के बीच-बीच मे रामदुलारी, लक्ष्मण, गिरधारी की पुकार भी लगाते रहते हैं। आज भी बाबा की पराती और पुकार जारी थे। खिड़की से झांकते सूरज की पिली किरणों में खेल रही नन्ही खजन चिडैयाँ पर रामदुलारी की सूजी आँखें भी पड़ीं पर मन द्वन्द्वों का परित्याग कर बिस्तर से उठने का प्रोत्साहन न दे पाया। लेटे-लेटे काफी पल बीत आया। तभी पानी भर कर लाने वाली कोनैला वाली की आवाज़ आयी, “हे रामदुलारी बौआ ! किरिन माथा पर गेलैक आ अहां अई ठाम पड़ल छियई! बाबा कतेक हांकैत रहथिन। रामदुलारी उठी, आंगन पार कर बाहर आई। बाबा अपने आसन पर विराजमान थे। सामने रेहल पर पोथी थी। रामायण बांच रहे थे। वह हाथ बांधे चुपचाप खड़ी हो गई। पोथी के पन्ने पलटते "सुनु सिये सत्य आशीस हमारी ! पूजहि मन-कामना तुम्हारी......" रामायण बांचने में बाबा तल्लीन थे। रामदुलारी की ओर उनका ध्यान भी न गया था। बालकांड की समाप्ति पर उन्होंने सियावर रामचंद्र की जय किया। तभी उनका ध्यान रामदुलारी की ओर गया। उन्होंने पूछा, क्या हुआ है”?

सिर झुकाये पैर के अंगूठे से भूमि के पृष्ठ कुरेदती रही, बोली कुछ भी नहीं। बाबा ने रामायण के पृष्ठ बदलते हुये कहा, बोलो।

मेरी गांव के विद्यालय की पढ़ाई पूरी हो गई है। अब आगे की पढ़ाई के लिए पटना जाना होगा। मैय्या, बाबू, चाचा सब इसका विरोध कर रहें हैं। मुझे आगे पढ़ना है।

बाबा कुछ देर तक मौन रहे, फिर पूछा, क्या करोगी आगे पढ़कर?”

मैं ज्ञान अर्जन करना चाहती हूं। इस गांव की सारी लड़कियां लिखने-पढ़ने की आकांक्षा सिर्फ डोली चढ़ने भर के लिये पालती हैं। मैं पढ़कर कुछ बनना चाहती हूं। मैं हिन्दी-साहित्य में एम.ए. करना चाहती हूँ।

पैनी दृष्टि से अपनी पोती का मुंह निहारकर, पुनः रामायण की ओर दृष्टि ले जाते हुए बाबा मानो रामजी से आज्ञा लेना चाह रहें हों। बाबा ने रेहल पर धरा रामायण के पृष्ठ मूंदते हुए रामदुलारी की ओर दुलार-भरी दृष्टि घुमाई और गम्भीर स्वर में बोले, गांव में तो सभी मर्यादित होते हैं। सभ्यता और संस्कार, परम्परा और आस्था में उनका विश्वास होता है, परन्तु शहर में हमारे घर की बेटी अकेली रहेगी ? वहां भांति-भांति की कुटिलताएं होती हैं। तू वहां नहीं टिक पाएगी, रामदुलारी।

क्षमा करें बाबा ! मैं आपकी इस विचारधारा से सहमत नहीं हूं। हमें मर्यादा और घर की परंपरा निभाना आता है। और फिर शहर में सभी वैसे नहीं होते, जैसी शंका आप जता रहें हैं। वहां भी सभ्य लोग होते हैं, सभ्यताएं पलती हैं।

पर वे शहरी, स्वभाव से अलग होते हैं। हम ग्रामीणों पर अत्याचार करते उन्हें देर नहीं होती।

आपका आशीर्वाद, आपकी शिक्षाएं, रामजी की कृपा रहते मेरा कुछ भी अहित नहीं होगा, बाबा! आप हमें आदेश दे दीजिये बाबा !!

यह तुम्हारा अटल विश्वास है। अंतिम निर्णय है।

अपना शीश नवाकर रामदुलारी बोली, हां बाबा।” कहते हुए आंसू की दो बड़ी-बड़ी बुँदे म्लान कपोल पर लुढ़क आई

बाबा कुछ देर तक सोचते रहे। उनके मन में पिछली पीढ़ी का पुराना नेह और नई पीढ़ी की आकांक्षा के बीच रस्साकसी चल रही थी। संयत स्वर में बोले, गोबर्धन ! गिरधारी ! उर्मिला !

बाबा के सामने गोवर्धन बाबू सिर झुकाए खड़े थे। मैय्या बाबू के पीछे थी और गिरधारी चाचा बगल में। भले ही घर मे ज्येष्ठ पुत्र होने का उनका ओहदा था पर बाबा के सामने बात मुंह से निकालने की हिम्मत नहीं थी। बाबा ने कम शब्दों में अपनी बात कही। रामदुलारी में कोई आचरण दोष देखा तुमने? कभी ऊंचे स्वर में बोलते पाया है? किसी का अनादर या घर की मान मर्यादा के विपरीत कोई काम किया है उसने?” कोई उत्तर न पाकर उन्होंने आगे कहा, नहीं न, तब रामदुलारी की इच्छानुसार उसे आगे पढ़ाई करने की आज्ञा मैंने दे दी है। तुम लोग भी इससे सहमत होगे। उसके अच्छे-बुरे की सोच तुमसे अच्छी तरह कर सकता हूं मैं।बाबा ने विचारपूर्वक निर्णय देते हुए कहना जारी रखा , हमें बाहर वालों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। हमने अपनी पोती में कोई ऐब नहीं देखा है। हमारी घर की मर्यादा की छांह में पली है रामदुलारी। वह स्वावलंबी बनना चाहती है। तो तुम लोग उसके पैरों में बेड़ी डालना चाहते हो। मैं ऐसी ग़लती नहीं करूंगा। वह शहर जाएगी पढ़ने।” फिर रामदुलारी से मुखातिब हो बोले, "बेटी ! तुम्हारा आत्मविश्वास देखकर मैं तुम्हें अपनी सहमित देता हूं। रामजी तुम्हारी रच्छा करें। तुम्हारी मनोकामना पूरी हो।

रामदुलारी का मस्तक स्वमेव श्रद्धा से नत हो गया। उपकृत नयनों से वह बाबा को देखने लगी। फिर गांव में काली माई के थान पर दौड़ी चली आई। माई को सौ-सौ धन्यवाद दिया। अपनी मनोकामना पूरी करने के आशीष मांगे। उधर भीतर-ही-भीतर पराजित-सा मन लिए गोवर्धन बाबू आंगन की ओर चल पड़े।

***

गाँव की भोली रामदुलारी कैसे करेगी पटना शहर मे निर्वाह ? शिक्षा के साथ बचेगी कुल की गरिमा... या छोड़ देगी संस्कारों की छाँह ?? पढिये.. अगले हफ्ते ! इसी ब्लॉग पर !!

त्याग पत्र के पड़ाव

भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥



21 टिप्‍पणियां:

  1. आखिर कथा सकारात्मक दिशा मे मुड़ ही गयी... सुन्दर !

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  2. Bhai aap toh kahani likhte nahi chitra gadh dete ho.... bahut achchha !

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  3. ्बहुत अच्छी एवं सुन्दर ढंग से बुनी गयी रचना---अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।
    पूनम

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  4. Pichle hafte se soch raha tha ki age kya hoga.Ab agle hafte tak ,agle ank ki pratiksha rahegi.Dekhna hai kya Ramdulari MA complete kar pati hai ? Sundar lagi yeh kadi. (MOHSIN )

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  5. अत्यन्त सुंदर लिखा है आपने! अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा!

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  6. इस बार गांब की अलसाई भोर जो थोड़ी ग़मगीन भी थी, चित्रण अच्छा लगा।

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  7. पराती और पुकार साथ चलने का सही चित्रण

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  8. Akhir Ramdulari ne aage ki padai ke liye sabko raji kara hi liya . Aage kahani kis or mudti hai , yehi dekhna hai. intezar Rahega.

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  9. Likhte rahe. Mai tho Shirshak TYAGPATRA ke bare me soch raha hu ki is kahani me kya hoga aur kaun tyagpatra prastut karega.

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  10. बहुत सुंदर लगी आप की यह कहानी, राम दुलारी जरुर बाबा का मान रखेगी, एक अच्छे परिवार को दर्शाया आप ने जहा सभ्यता ओर संस्कारो को सम्मान दे कर भी समाज मै बढने की ताकत रखते है लोग

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  11. Sundar prernadayak katha...agle bhaag ki atiutsukta se prateeksha rahegi....

    Katha ka gathan tatha bhasha ne man baandh liya...maithil pariwesh ka jeevant chitran kiya hai aapne....

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  12. कहानी निरंतर हमें ग्रामीण परिवेश और पारिवारिक संस्कारों के बीच संदेश देते हुए अच्छी लग रही है। और साथ ही आगे क्या होगा की उत्सुकता भी बनी रहती है।

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  13. कहानी अच्छी जा रही है और साथ में गांव-घर का अनुपम वर्णन भी मिल रहा है।

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  14. Kahani ab bahut achhi lagne lagi hai....Raamdulari ka sapna saakaar hota dekh bahut khushi mil rahi hai.Chalo koi toh hai raamdulari ki vyatha ko samajhne wala.Par antim panktiyon mein aapke dwara uthaya gaya prashn bhi bahut satiik hai....Intezaar hai agli kari ka!!!

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  15. story me aapne aanchalikta ka jo frageence dala hai wo kabile tarif hai.

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  16. hum abhi isko padha tho achcha laga ! aakir ladki ko q nahi padhna chahiye? wo baba ne bahuth achcha kam kiya.
    - thyagarajan

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