शुक्रवार, 24 जून 2011

शिवस्वरोदय – 48

शिवस्वरोदय – 48

आचार्य परशुराम राय

पूर्णनाडीगतः पृष्ठे शून्याङ्गं च तदाग्रतः।

शून्यस्थाने कृतः शत्रुर्म्रियते नात्र संशयः।।261।।

अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव इसे नहीं दिया जा रहा है।

भावार्थ – जब कोई सैनिक सक्रिय स्वर की दिशा में युद्ध के लिए प्रस्थान करे, तो उसका शत्रु संकटापन्न होगा। पर यदि निष्क्रिय स्वर की दिशा में युद्ध के लिए जाता है, तो शत्रु से उसका सामना होने की संभावना होगी। यदि युद्ध में शत्रु को निष्क्रिय स्वर की ओर रखकर वह युद्ध करता है, तो शत्रु की मृत्य अवश्यम्भावी है।

English Translation – When a soldier moves for a war in the direction of active breath, his enemy will get trouble. But if he moves in the direction of inactive breath, he has to face his enemy. When he fights with enemy by keeping him in the side of inactive breath, the death of enemy is sure.

वामाचारे समं नाम यस्य तस्य जयी भवेत्।

पृच्छको दक्षिणभागे विजयी विषमाक्षरः।।262।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – यदि प्रश्नकर्त्ता स्वरयोगी से उसके चन्द्र स्वर के प्रवाहकाल में बायीं ओर या सामने से प्रश्न करता है और उसके नाम में अक्षरों की संख्या सम हो, तो समझना चाहिए कि कार्य में सफलता मिलेगी। यदि वह दक्षिण की ओर से प्रश्न करता है और उसके नाम में वर्णों की संख्या विषम हो, तो भी सफलता की ही सम्भावना समझना चाहिए।

English Translation – During the flow of breath through left nostril of the replying authority and the questioner, being letters in his name in even number, puts query from the left side or front side, success can be predicted, and if his name has letters in odd numbers and he asks question from the right or back side, the same result is predicted.

यदा पृच्छति चन्द्रस्य तदा संधानमादिशेत्।

पृच्छेद्यदा तु सूर्यस्य तदा जानीहि विग्रहम्।।263।।

अन्वय – यह श्लोक भी लगभग अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – यदि प्रश्न पूछते समय चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, तो संधि की सम्भावना समझनी चाहिए। लेकिन यदि उस समय सूर्य स्वर चल रहा हो, तो समझना चाहिए कि युद्ध के चलते रहने की सम्भावना है।

English Translation – If at the time question regarding war, the answering person has the breath flowing through left nostril, a compromise between both the side can be predicted. But when at the time question the breath is active right nostril, continuation of war should be the right prediction.

पार्थिवे च समं युद्धं सिद्धिर्भवति वारुणे।

युद्धेहि तेजसो भङ्गो मृत्युर्वायौ नभस्यपि।।264।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में ही है।

भावार्थ – चन्द्र स्वर या सूर्य स्वर प्रवाहित हो, लेकिन यदि प्रश्न के समय सक्रिय स्वर में पृथ्वी तत्त्व प्रवाहित हो, समझना चाहिए कि युद्ध कर रहे दोनों पक्ष बराबरी पर रहेंगे। जल तत्त्व के प्रवाह काल में जिसकी ओर से प्रश्न पूछा गया है उसे सफलता मिलेगी। प्रश्न काल में स्वर में अग्नि तत्त्व के प्रवाहित होने पर चोट लगने की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है। किन्तु यदि वायु या आकाश तत्त्व प्रवाहित हो, तो पूछे गए प्रश्न का उत्तर मृत्यु समझना चाहिए।

English Translation – Whether the breath is active in left or right nostril, but Prithvi (earth) Tattva is present in the breath at the time of questioning about a war, both the sides will be equally powerful. In case of presence of Jala (water) Tattva in the breath, success to the side of questioner is predicted. Presence of Agni (fire) Tattva in the breath predicts getting wounded in the war. But if Vayu (air) or Akash (ether) Tattva is present in the breath, answer to the question is death only.

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस ज्ञानवर्धक शृंखला की यह कड़ी भी अच्छी लगी।

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  2. इस ज्ञान वर्धक कार्य के लिए बारम्बार साधुवाद

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  3. स्वर विज्ञान का ज्ञान प्रदान करने के लिए आभार,

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  4. स्वरों के ज्ञान का स्रोत कहाँ है...बातें बड़े पते की हैं...

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  5. बाणभट्ट जी, कई ग्रंथों में स्वरोदय विज्ञान पर चर्चा मिलती है। लेकिन शिवस्वरोदय काफी प्रसिद्ध और प्रामाणिक माना जाता है। इसीलिए शिवस्वरोदय को ही लेकर यह शृंखला शुरु की गयी है। यदि इस शृंखला के प्रारम्भिक अंकों को पढ़ेंगे, तो आपको इसका विवरण मिल जाएगा। आभार।

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