tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post1635559538389037801..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस- कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएंमनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger82125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-5102944264279940952022-09-13T23:31:40.328+05:302022-09-13T23:31:40.328+05:30बहुत ही सार्थक एवं चिंतनपरक लेख...
लाजवाब क्षणिकाए...बहुत ही सार्थक एवं चिंतनपरक लेख...<br />लाजवाब क्षणिकाएं ।Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-82333502339982399832022-09-12T17:19:47.078+05:302022-09-12T17:19:47.078+05:30बारह साल पुरानी पोस्ट आज भी उतनी ही प्रासंगिक है ,...बारह साल पुरानी पोस्ट आज भी उतनी ही प्रासंगिक है , अन्तर इतना है कि आज हिन्दी कोई दीन हीन भाषा नहीं है ,बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपना सर्वत्र अधिकार करती जा रही है . मैं अभी सिडनी में आयोजित हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित गोष्ठी में गई वहाँ हिन्दी की प्रस्तुति से मन पुलकित होगया . हिन्दी पढ़ाने वालों की देश में इज्ज़त हो कि न हो पर बाहर हिन्दी को काफी प्रोत्साहन मिल रहा है . असल में हिन्दी को उपेक्षित स्वयं अंगरेजी को जीवन उद्धारक मानने वाले हिन्दी भाषियों ने ही किया है . या तो वे संस्कृत निष्ठ हिन्दी का उदाहरण देकर हिन्दी का मज़ाक बनाते हैं या व्याकरण , मात्राओं की अशुद्धियों को नज़रअन्दाज करके हिन्दी का स्वरूप बिगाड़ रहे हैं . सड़ी गली पुरातन चीजें बेकार होती हैं तो हर नई चीज़ भी अनुकरणीय नहीं होती . फिर अंगरेजी माध्यम से शिक्षा के प्रसार और मोह ने भी हिन्दी को पीछे किया है लेकिन हिन्दी पीछे नहीं होगी ,जब तक हिन्दी से प्रेम करने वाले , गर्व करने वाले रहेंगे . जब देश की एक राष्ट्रभाषा की बात आती है , तो वह निर्विवाद सत्य है कि हिन्दी ही एकमात्र भाषा है जिसे देश में सबसे अधिक बोला समझा जाता है . अब यह कहना तो बेमानी है , गलत है कि राष्ट्रभाषा की क्या ज़रूरत या राष्ट्रभाषा का विचार अधिनायकवाद का प्रतीक है . पूरे देश में प्रान्तीय भाषाओं के अलावा एक भाषा ऐसी होनी चाहिये जिसे सब बोल समझ सकें . <br />क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं . खासतौर पर पहली गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-36897501445794563612022-09-12T13:33:43.406+05:302022-09-12T13:33:43.406+05:30सर्वकालिक विमर्शन ।सर्वकालिक विमर्शन ।Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-32236108920954464702010-09-22T17:22:13.867+05:302010-09-22T17:22:13.867+05:30आपकी दोनों क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगी ।
गागर में साग...आपकी दोनों क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगी ।<br />गागर में सागर भर दिया है ।जुगल किशोरhttps://www.blogger.com/profile/13301162594819383710noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-22391626125348262822010-09-22T17:20:47.726+05:302010-09-22T17:20:47.726+05:30आपका लेख बहुत अच्छा है । हिंदी के बारे में आपकी रा...आपका लेख बहुत अच्छा है । हिंदी के बारे में आपकी राय से मैं बिल्कुल सहमत हूँ । आलोचना तो हर कोई कर लेता है पर उस पर अमल बहुत कम लोग ही कर पाते है ।जुगल किशोरhttps://www.blogger.com/profile/13301162594819383710noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-63090254243735668382010-09-22T04:49:27.889+05:302010-09-22T04:49:27.889+05:30Manoj jee kafee anupasthitee rahee meree.......ise...Manoj jee kafee anupasthitee rahee meree.......iseke liye kshamaprarthee bhee hoo.......<br />aapkee kshanikae ek se bad kar ek hai........<br />Hindi ke bare me kya kahoo isase aseem pyar hee mujhase blogs ke chakkar lagvata hai.........<br />ab to aisa lagta hai ki rachanao ke madhyam se aur likhee tippaniyo se bahuto ko samjhane bhee lagee hoo .<br />post ke liye AabharApanatvahttps://www.blogger.com/profile/07788229863280826201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-28719414733511353342010-09-21T17:48:52.207+05:302010-09-21T17:48:52.207+05:30क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगी । इसमें दर्द है, तड़प है,...क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगी । इसमें दर्द है, तड़प है, चुभन है । <br />तुम्हारी जुदाई ही काफी है <br />मुझे हरपल मारने के लिए ........... दर्द का एहसास कराती है ।रीताhttps://www.blogger.com/profile/17969671221868500198noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-20463923100541582242010-09-21T17:00:51.786+05:302010-09-21T17:00:51.786+05:30आपके विचार बिल्कुल सही है कि .........
ये न पूछे म...आपके विचार बिल्कुल सही है कि .........<br />ये न पूछे मिला क्या है हमको <br />हम ये पूछें किया क्या है अर्पण<br /> उपरोक्त दो पंक्तियां शत प्रतिशत सही है । हम आलोचना तो बहुत अच्छी कर लेते हैं पर जब उस पर अमल करने की बात आती है तो ज्यादातर लोग पीछे हट जाते है अथवा परिस्थितियां उनके प्रतिकूल हो जाती है ।रीताhttps://www.blogger.com/profile/17969671221868500198noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-23737479322997387892010-09-20T16:10:13.821+05:302010-09-20T16:10:13.821+05:30हिंदी दिवस पर आपका उदगार सत्य है। लेकिन अब लोगों म...हिंदी दिवस पर आपका उदगार सत्य है। लेकिन अब लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा हो रही है।आशा है परिवर्तित परिस्थित में लोगों की मानसिकता में भी समय के प्रवाह के साथ आमूल परिवर्तन अवश्य होगा।<br />दोनों क्षणिकाएं हृदयस्पर्शी होने के साथ-साथ आपकी साहित्यिक भाव-भूमि के साथ सहजता से सामीप्य स्थापित करने मे सक्षम सिद्ध हुई हैं।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-9583544366452134212010-09-20T00:38:48.315+05:302010-09-20T00:38:48.315+05:30लेख तो सारगर्भित है ही ..क्षणिकाएं कमाल की लगीं.लेख तो सारगर्भित है ही ..क्षणिकाएं कमाल की लगीं.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-57065627286364275622010-09-19T17:12:57.720+05:302010-09-19T17:12:57.720+05:30पीपल !
उग आना तुम
मेरी कब्र पर
हवा से कांपते
तुम्ह...पीपल !<br />उग आना तुम<br />मेरी कब्र पर<br />हवा से कांपते<br />तुम्हारे पत्ते<br />दिलाते रहेंगे<br />एहसास मुझे<br />कि उसकी सांसे<br />तिर रही है<br />यहीं कहीं..<br />इतना ही काफी है<br />मेरे जीने के लिए ..<br /><br />प्रेम का अनूठा एहसास लिए ..... कोमल भावनाओं का संगम है यह रचना ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-85100444274185303462010-09-19T12:33:33.960+05:302010-09-19T12:33:33.960+05:30"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पा..."माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-53359021069621597122010-09-19T12:33:15.141+05:302010-09-19T12:33:15.141+05:30लेख व दोनों क्षनिकाए अच्छी लगी ..लेख व दोनों क्षनिकाए अच्छी लगी ..संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-55573180013910215632010-09-19T10:03:19.156+05:302010-09-19T10:03:19.156+05:30"कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फसाने की
सुन..."कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फसाने की<br /><br />सुनाता जा रहा है जिसको जितना याद आता है।<br /><br />इन दिनों मैंने अखबार पढना ही बंद कर दिया है, क्योंकि<br /><br />है पता हमको वहां पर कुछ नया होगा नहीं<br /><br />हाथ में हर चीज़ होगी आइना होगा नहीं।"<br /><br />मनोज भाई साहब गजब की पंक्तियों से की है आपने शुरुआत, क्षणिकाओं ने तो बोल्ड ही कर दिया है मुझे .बेहद सुंदर एवं प्रभावी प्रस्तुति.Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-67420289066809038972010-09-19T09:59:28.548+05:302010-09-19T09:59:28.548+05:30हम हैं न !
हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, ह...हम हैं न !<br /><br />हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, हिन्दी प्रेमी। आपके आलेख के अंतिम पैरा की बात तो समझ में आती है लेकिन शहर का एक अख़बार हमेशा लिखता है, ट्रक की ठोकर से...... या फिर अधेड़ ने मेट्रो में खुद कुशी की। ख़बर पढ़ने पर पता चलता है कि अघेड़ की उम्र थी मात्र 40-42.<br /><br />सबको पढ़कर संभवत: हंसी आए कि ग्रेजुएट हो जाने तक मुझे यह नहीं पता था कि मातृभाषा क्या होती है। मेरा ख़याल था कि जिस भाषा में आप खुद को सहजता से अभिव्यक्त कर सकें वही आपकी मातृभाषा है। मैं नौकरी के आवेदन पत्रों पर बिना किसी से कुछ पूछे मातृभाषा के कॉलम में हिन्दी लिखा करती थी लेकिन एक बार आवेदन पत्र पोस्ट करने से पहले बड़े भाई साहूब को दिखाया कि ज़रा चेक कर लें। देख कर उन्होंने कहा कि तुम्हारी मातृभाषा हिन्दी कैसे हो गई? क्या माँ से हिन्दी में बात करती हो? घर में वार्तालाप किस भाषा में करती हो? तब से मैंने उस कॉलम में सही भाषा दर्ज करनी शुरू की। <br /><br />राजभाषा में कार्यसाधक और प्रवीणता वाली terminology के आधार पर यही कहूंगी कि मुझे गर्व है कि मुझे मातृभाषा में कार्यसाधक ज्ञान है लेकिन हिन्दी में प्रवीणता। <br /><br />ख़ैर, साल भर में एक महीना हिन्दी को याद कर लेने वालों के नाम पर बहस करके कोई फायदा नहीं। <br /><br />क्षणिकाओं ने सचमुच मोह लिया। अच्छी पेशकश।नीलम शर्मा 'अंशु'https://www.blogger.com/profile/14900740334956197090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-40042119889103032332010-09-19T09:59:23.959+05:302010-09-19T09:59:23.959+05:30हम हैं न !
हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, ह...हम हैं न !<br /><br />हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, हिन्दी प्रेमी। आपके आलेख के अंतिम पैरा की बात तो समझ में आती है लेकिन शहर का एक अख़बार हमेशा लिखता है, ट्रक की ठोकर से...... या फिर अधेड़ ने मेट्रो में खुद कुशी की। ख़बर पढ़ने पर पता चलता है कि अघेड़ की उम्र थी मात्र 40-42.<br /><br />सबको पढ़कर संभवत: हंसी आए कि ग्रेजुएट हो जाने तक मुझे यह नहीं पता था कि मातृभाषा क्या होती है। मेरा ख़याल था कि जिस भाषा में आप खुद को सहजता से अभिव्यक्त कर सकें वही आपकी मातृभाषा है। मैं नौकरी के आवेदन पत्रों पर बिना किसी से कुछ पूछे मातृभाषा के कॉलम में हिन्दी लिखा करती थी लेकिन एक बार आवेदन पत्र पोस्ट करने से पहले बड़े भाई साहूब को दिखाया कि ज़रा चेक कर लें। देख कर उन्होंने कहा कि तुम्हारी मातृभाषा हिन्दी कैसे हो गई? क्या माँ से हिन्दी में बात करती हो? घर में वार्तालाप किस भाषा में करती हो? तब से मैंने उस कॉलम में सही भाषा दर्ज करनी शुरू की। <br /><br />राजभाषा में कार्यसाधक और प्रवीणता वाली terminology के आधार पर यही कहूंगी कि मुझे गर्व है कि मुझे मातृभाषा में कार्यसाधक ज्ञान है लेकिन हिन्दी में प्रवीणता। <br /><br />ख़ैर, साल भर में एक महीना हिन्दी को याद कर लेने वालों के नाम पर बहस करके कोई फायदा नहीं। <br /><br />क्षणिकाओं ने सचमुच मोह लिया। अच्छी पेशकश।नीलम शर्मा 'अंशु'https://www.blogger.com/profile/14900740334956197090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-37348063658738267082010-09-19T09:58:32.689+05:302010-09-19T09:58:32.689+05:30हम हैं न !
हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, ह...हम हैं न !<br /><br />हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, हिन्दी प्रेमी। आपके आलेख के अंतिम पैरा की बात तो समझ में आती है लेकिन शहर का एक अख़बार हमेशा लिखता है, ट्रक की ठोकर से...... या फिर अधेड़ ने मेट्रो में खुद कुशी की। ख़बर पढ़ने पर पता चलता है कि अघेड़ की उम्र थी मात्र 40-42.<br /><br />सबको पढ़कर संभवत: हंसी आए कि ग्रेजुएट हो जाने तक मुझे यह नहीं पता था कि मातृभाषा क्या होती है। मेरा ख़याल था कि जिस भाषा में आप खुद को सहजता से अभिव्यक्त कर सकें वही आपकी मातृभाषा है। मैं नौकरी के आवेदन पत्रों पर बिना किसी से कुछ पूछे मातृभाषा के कॉलम में हिन्दी लिखा करती थी लेकिन एक बार आवेदन पत्र पोस्ट करने से पहले बड़े भाई साहूब को दिखाया कि ज़रा चेक कर लें। देख कर उन्होंने कहा कि तुम्हारी मातृभाषा हिन्दी कैसे हो गई? क्या माँ से हिन्दी में बात करती हो? घर में वार्तालाप किस भाषा में करती हो? तब से मैंने उस कॉलम में सही भाषा दर्ज करनी शुरू की। <br /><br />राजभाषा में कार्यसाधक और प्रवीणता वाली terminology के आधार पर यही कहूंगी कि मुझे गर्व है कि मुझे मातृभाषा में कार्यसाधक ज्ञान है लेकिन हिन्दी में प्रवीणता। <br /><br />पिछले हफ्ते किसी आगंतुक ने ऑफिस की लिफ्ट में पूछा, कि इस फ्लोर पर कौन सा ऑफिस है। मैंने कहा, हिन्दी सेक्शन। बाद में उन्होंने कहा, हिन्दी सेक्शन में हैं इसलिए आपकी हिन्दी अच्छी है। मैंने कहा, जी नहीं सर, माफ कीजिएगा, हिन्दी अच्छी है इसलिए हिन्दी सेक्शन में हूं।(मज़े की बात यह है कि अनायास ही ट्रैक बदल कर अंग्रेजी के क्षेत्र से राजभाषा के क्षेत्र मे पदार्पण हो गया।) <br /><br />ख़ैर, साल भर में एक महीना हिन्दी को याद कर लेने वालों के नाम पर बहस करके कोई फायदा नहीं। <br /><br />क्षणिकाओं ने सचमुच मोह लिया। अच्छी पेशकश।नीलम शर्मा 'अंशु'https://www.blogger.com/profile/14900740334956197090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-13414853400848090192010-09-19T09:57:17.015+05:302010-09-19T09:57:17.015+05:30हम हैं न !
हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, ह...हम हैं न !<br /><br />हिन्दी अख़बारों की छोड़िए, हम हैं न, हिन्दी प्रेमी। आपके आलेख के अंतिम पैरा की बात तो समझ में आती है लेकिन शहर का एक अख़बार हमेशा लिखता है, ट्रक की ठोकर से...... या फिर अधेड़ ने मेट्रो में खुद कुशी की। ख़बर पढ़ने पर पता चलता है कि अघेड़ की उम्र थी मात्र 40-42.<br /><br />सबको पढ़कर संभवत: हंसी आए कि ग्रेजुएट हो जाने तक मुझे यह नहीं पता था कि मातृभाषा क्या होती है। मेरा ख़याल था कि जिस भाषा में आप खुद को सहजता से अभिव्यक्त कर सकें वही आपकी मातृभाषा है। मैं नौकरी के आवेदन पत्रों पर बिना किसी से कुछ पूछे मातृभाषा के कॉलम में हिन्दी लिखा करती थी लेकिन एक बार आवेदन पत्र पोस्ट करने से पहले बड़े भाई साहूब को दिखाया कि ज़रा चेक कर लें। देख कर उन्होंने कहा कि तुम्हारी मातृभाषा हिन्दी कैसे हो गई? क्या माँ से हिन्दी में बात करती हो? घर में वार्तालाप किस भाषा में करती हो? तब से मैंने उस कॉलम में सही भाषा दर्ज करनी शुरू की। <br /><br />राजभाषा में कार्यसाधक और प्रवीणता वाली terminology के आधार पर यही कहूंगी कि मुझे गर्व है कि मुझे मातृभाषा में कार्यसाधक ज्ञान है लेकिन हिन्दी में प्रवीणता। <br /><br />पिछले हफ्ते किसी आगंतुक ने ऑफिस की लिफ्ट में पूछा, कि इस फ्लोर पर कौन सा ऑफिस है। मैंने कहा, हिन्दी सेक्शन। बाद में उन्होंने कहा, हिन्दी सेक्शन में हैं इसलिए आपकी हिन्दी अच्छी है। मैंने कहा, जी नहीं सर, माफ कीजिएगा, हिन्दी अच्छी है इसलिए हिन्दी सेक्शन में हूं।(मज़े की बात यह है कि अनायास ही ट्रैक बदल कर अंग्रेजी के क्षेत्र से राजभाषा के क्षेत्र मे पदार्पण हो गया।) <br /><br />ख़ैर, साल भर में एक महीना हिन्दी को याद कर लेने वालों के नाम पर बहस करके कोई फायदा नहीं। <br /><br />क्षणिकाओं ने सचमुच मोह लिया। अच्छी पेशकश।नीलम शर्मा 'अंशु'https://www.blogger.com/profile/14900740334956197090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-8971180284367839552010-09-19T09:06:39.589+05:302010-09-19T09:06:39.589+05:30मनोज जी आज आपकी इस तूतू मैंमैं में कुछ कहने का मन ...मनोज जी आज आपकी इस तूतू मैंमैं में कुछ कहने का मन हो आया। <br />आपकी भावनाओं को आहत करने का कतई इरादा नहीं है। फिर भी आपकी दूसरी क्षणिका के बारे में कहूं तो पहली बात यह कि पीपल का पेड़ अगर कब्र पर उगा तो वह जल्द ही कब्र में रहने वाले को बेदखल कर देगा,क्योंकि उसकी अपनी जड़ें इतनी मजबूत और गहरी होती हैं कि किसी और को साथ रहने ही नहीं देता। पर यह भी सही है कि पीपल ही कब्र की दरार तक पहुंच सकता है। <br />बोले तो बिंदास जी की बात पढ़कर अच्छा लगा। संयोग से मुझे केवल इतनी अंग्रेजी आती है कि मैं पढ़कर समझ लेता हूं। कोई बोल रहा हो तो टूटा फूटा समझ लेता हूं। लेकिन मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं होता कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती है। पर हिन्दी में मैं उतना ही पारंगत हूं। इसलिए अपना सब काम हिन्दी में ही करता हूं।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-63741927044230545532010-09-19T06:03:42.422+05:302010-09-19T06:03:42.422+05:30काश हम सब सिर्फ अपने को बदलने की सोच भी पाते.. बढ़...काश हम सब सिर्फ अपने को बदलने की सोच भी पाते.. बढ़िया क्षणिकाएं लगीं सर.. आभार.दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-83484233591295536582010-09-19T05:34:59.669+05:302010-09-19T05:34:59.669+05:30ये न पूछे मिला क्या है हमको
हम ये पूछें किया क्य...ये न पूछे मिला क्या है हमको<br />हम ये पूछें किया क्या है अर्पण <br /><br /><br />-कवितायें बहुत उम्दा लगीं.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-58175066058126816162010-09-19T01:54:55.099+05:302010-09-19T01:54:55.099+05:30किसी ज़माने में सँस्कृत आम जन से दूर रखी गयी थी..
म...<i><br />किसी ज़माने में सँस्कृत आम जन से दूर रखी गयी थी..<br />मैं कई बार अलग अलग तरीके यह बात रख चुका हूँ, हिन्दी को इतने क्लिष्ट शब्दों से न लाद दो कि वह जन जन से दूर होती जाये ।<br />परन्तु तथाकथित विद्वान इसको मँच से नीचे सामान्य आदमी के स्तर तक उतरने ही नहीं देना चाहते, जिससे कि वह इसे सहलता से स्वीकार कर सकें ।<br /></i>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-4911695870879758762010-09-19T00:40:06.697+05:302010-09-19T00:40:06.697+05:30@ आशा जी
बहुत प्रेरक बातें कहीं है आपने कि हमें एक...@ आशा जी<br />बहुत प्रेरक बातें कहीं है आपने कि हमें एक ऐसी लकीर खींचनी चाहिर जो दूसरी लकीर से बड़ी हो।<br /><br />गर्भ के कारण नौकरी से हटाई गई एयर होस्टेस को बहाल करने का आदेश<br />दूसरी बात तो बस मन की बात है कि जब जीना मौत बन जाए तो मर कर जीने का मन करता है।<br /><br />धन्यवाद!<br />प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-39946466602579567232010-09-19T00:34:51.539+05:302010-09-19T00:34:51.539+05:30आपका लेख पसंद आया । कहते सब हैं करता कोई कुछ नही ।...आपका लेख पसंद आया । कहते सब हैं करता कोई कुछ नही । हम सब ब्लॉगर अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं इसी को बढाना है अंग्रेजी के आगे हिंदी की इतनी बडी और मोटी लकीर खींचनी है कि वह बिना कुछ किये ही बडी हो जाये ।<br />दूसरी क्षणिका की आखरी लाइन समझ में नही आई जब कब्र हैं में हैं तो.................Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-65801968683200645232010-09-19T00:34:24.780+05:302010-09-19T00:34:24.780+05:30@ बोले तो बिन्दास जी
बहुत सही कहा आपने कि हमें भी ...@ बोले तो बिन्दास जी<br />बहुत सही कहा आपने कि हमें भी हिन्दीतर भाषाएं सीखनी चाहिए। मैंने बांग्ला, तेलुगु और पंजाबी सीखी जब इन प्रांतो में मेरी पोस्टिंग रही।<br /><br />धन्यवाद!<br />प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com