tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post247642169660395436..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: आँच- 117 : केतकी का सुवास पूरे वातावरण में खुशबू भर देता है!मनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger38125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-12407455934683554422012-09-04T23:16:18.572+05:302012-09-04T23:16:18.572+05:30आदरणीय आचार्य जी
आपके सुझाव सर माथे...ये मेरी दूसर...आदरणीय आचार्य जी<br />आपके सुझाव सर माथे...ये मेरी दूसरी कहानी थी...भविष्य में आपको निराश न करूँ ऐसा प्रयास रहेगा.<br />सादर<br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-13971905527028465102012-09-04T23:12:45.174+05:302012-09-04T23:12:45.174+05:30शुक्रिया देवेन्द्र जी..
मेरे ख़याल से केतकी अति संव...शुक्रिया देवेन्द्र जी..<br />मेरे ख़याल से केतकी अति संवेदनशील और भावनात्मक रूप से कमज़ोर लड़की है....और वो अपने भावनाएँ उजागर भी नहीं करती...बल्कि उसने झूठे दिखावे किये अंश को स्वयं से दूर करने के लिए..<br />और वो अंगूठियों का पहनना अंधविश्वास नहीं बल्कि उसका पागलपन कह लें...दीवानी सी लड़की की कल्पना की थी मैंने केतकी का चरित्र गढ़ते समय....हां अंश के लिए आपकी आलोचना सही है...उसका चरित्र कुछ अस्पष्ट और दबा सा रहा.....<br />अभी सीख ही रही हूँ अतः मेरी कमियों को माफ किया जाय :-)<br />सादर<br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-83302460730958318852012-09-04T16:04:42.956+05:302012-09-04T16:04:42.956+05:30इस पर तभी ध्यान गया जब अपनी कविता पढ़ी आँच पर। आज ...इस पर तभी ध्यान गया जब अपनी कविता पढ़ी आँच पर। आज फुर्सत मिला तो पहले कहानी पढ़ी फिर समीक्षा। कहानी का अंत पढ़कर लगा कि कोई बात किसी के मन मस्तिष्क पर कितना गहरा जख्म दे जाती है! खुद को मनहूस ही समझ लिया केतकी ने!! <br /><br />आपकी समीक्षा पढ़ी आपने अंगूठी से जोड़कर उसे अंधविश्वासी सिद्ध कर दिया। आपकी समीक्षा में आई कुछ बातों को छोड़कर (जैसे अंश के बारे में....) सभी से सहमत हूँ। पूरी कहानी पढ़ते वक्त केतकी इतनी छाई रही कि अंश के बारे में जानने की इच्छा ही नहीं हुई।<br /><br />मुझे कहानी उत्कृष्ट लगी। वह शायद इसलिए भी कि इतना डूब कर बहुत दिनो बात मैं कोई कहानी पढ़ सका। मुझे अंधविश्वासी नहीं मानसिक आघात से अभिषप्त एक लड़की की कहानी लगी। अंश की एक बात के लिए आलोचना करना चाहूँगा कि वह सच्चा प्रेमी नहीं था। उसे पता लगाना चाहिए था केतकी के बारे में। डूबना चाहिए था नदी में और साफ करनी चाहिए थी उसकी शंकाएं। अंश ने प्रेमी के रूप में निराश किया। <br /> देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-82175608722098429452012-08-25T20:57:16.005+05:302012-08-25T20:57:16.005+05:30आपकी समीक्षा एपिटाइज़र का काम कर रही है । कहानी पढ...आपकी समीक्षा एपिटाइज़र का काम कर रही है । कहानी पढूंगी तब फिर से आऊंगी यहां ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-58691225389369488112012-08-25T13:54:30.141+05:302012-08-25T13:54:30.141+05:30आपका समीक्षात्मक वर्णन ही बहुत कुछ समझा गया आपका समीक्षात्मक वर्णन ही बहुत कुछ समझा गया alka mishrahttps://www.blogger.com/profile/01380768461514952856noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-31824314553706547512012-08-24T20:02:45.281+05:302012-08-24T20:02:45.281+05:30गम्भीर कहाँनी की उतकृष्ट समीक्षा ...!!
अनु जी आपक...गम्भीर कहाँनी की उतकृष्ट समीक्षा ...!!<br /><br />अनु जी आपको व सलिल जी दोनो को बधाई ...!!Anupama Tripathihttps://www.blogger.com/profile/06478292826729436760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-24999215180444918212012-08-24T10:20:48.399+05:302012-08-24T10:20:48.399+05:30कृपया दूसरे वाक्य को यूं पढ़ें:"क्या दूसरों क...कृपया दूसरे वाक्य को यूं पढ़ें:"क्या दूसरों के अनिष्ट के विचार को प्रश्रय देना श्रेयसकर होगा?"मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-17924039799697719042012-08-24T09:20:35.234+05:302012-08-24T09:20:35.234+05:30बड़े भाई,
निवेदन ही कर सकता हूं। किया।
आपने मान रख...बड़े भाई,<br />निवेदन ही कर सकता हूं। किया।<br />आपने मान रखा।<br />आभार। <br />पात्रों का चयन और उसके चरित्र को गढ़ना रचनाकार के दायरे में आता है। समाज में कई ऐसे पात्र मिल जाते हैं। समीक्षा में आपने विभिन्न बिन्दुओं को बड़ी सूक्ष्मता से विश्लेषित किया है। आंच पर रचनाओं का चयन रचना के कुछ अलग और विशिष्ट होने के कारण ही किया जाता है। और समीक्षक अपने नज़रिए से उसे देखते हैं तो एक विशिष्ट आभा का सृजन होता है।<br />रचनाकार भी, एकाध अपवाद को छोड़कर इसे सकारात्मक ही लेते आए हैं। हमें इस बात की ख़ुशी रही है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-40125589182154639622012-08-24T00:21:25.701+05:302012-08-24T00:21:25.701+05:30मेरी एक टिप्पणी फिर स्पैम में है। मेरी एक टिप्पणी फिर स्पैम में है। मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-22628890638147071922012-08-24T00:15:20.668+05:302012-08-24T00:15:20.668+05:30केतकी इतनी नकारात्मक भी नहीं है कि उसे मानसिक रोगी...केतकी इतनी नकारात्मक भी नहीं है कि उसे मानसिक रोगी करार दिया जा सके? क्या अनिष्ट के विचार को प्रश्रय देना श्रेयसकर होगा? केतकी को उससे ज्यादा कौन जानता है? केतकी में लोकहीत के कार्यों को भी तो लेखिका ने लिखा है। वह अपने पुराने कपड़े किस तरह से लोगों में बांट देती है। कैसे अपने आस-पास के लोगों के दुखों को भांप लेती है और कैसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनको खुश करती है। इस ओर शायद आपने ध्यान नहीं दिया। यह मानवीय संवेदना ही है जो व्यक्ति-व्यक्ति को भिन्न संस्कार देती है। केतकी के संस्कार अच्छे हैं। वह हमेशा दूसरों का सुख चाहती है। वर्ना तो समाज में स्वार्थी लोगों की भीड़ है। जिन्हें अपने न्यस्त स्वार्थ के अलावा कुछ नज़र नहीं आता। केतकी संवेदनशील लड़की है और उसमें मानसिक रोगी के गुण देखना बिलकुल उचित नहीं है। मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-85564075795532226372012-08-24T00:06:11.164+05:302012-08-24T00:06:11.164+05:30मनोज जी के आदेश (वे इसे अनुरोध की संज्ञा देते हैं)...मनोज जी के आदेश (वे इसे अनुरोध की संज्ञा देते हैं) के तहत, तुरत इस कहानी का चुनाव और अपनी कार्यालयीन व्यस्तताओं के बीच बहुत ही जल्दबाजी में लिखी गई यह समीक्षा लोगों ने सराही तथा इस पर विमर्श किया और अपने विचार रखे. सही अर्थों में यही "आँच" के सफलता है, जब समीक्षक की समीक्षा से बाहर जाकर लोग अपने विचार रखें और समीक्षा को इंटरैक्टिव बनाएँ. <br />प्रिय मित्र मनोज भारती की बातें इस पोस्ट का विस्तार सिद्ध हो रही हैं तथा आचार्य परशुराम जी की टिप्पणी ने कथा के सन्देश को एक दिशा और सोच प्रदान की है. अन्य पाठकों ने जिन त्रुटियों (जैसे प्रकाशन की तिथि आदि) की ओर इंगित किया है वह सहज स्वीकार्य है और उसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप से क्षमा प्रार्थी हूँ. <br />"आँच" इस ब्लॉग का एक ऐसा स्तंभ है, जहाँ स्तरीय रचनाओं का बिना किसी पूर्वाग्रह के मूल्यांकन किया जाता है और प्रयास यही रहता है कि इसमें उस रचना के प्रति एक पाठक के विचार शिल्प और विधा, अभिव्यक्ति और सन्देश के आईने में परखे जा सकें!!<br />आप सभी पाठकगन का मैं व्यक्तिगत रूप से और मनोज-परिवार की ओर से आभार व्यक्त करता हूँ! चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-30299622368313019632012-08-23T22:14:29.156+05:302012-08-23T22:14:29.156+05:30कहानी भी पढी़ और समीक्षा भी । लाजवाब !कहानी भी पढी़ और समीक्षा भी । लाजवाब !सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-5945729875990562672012-08-23T20:03:02.493+05:302012-08-23T20:03:02.493+05:30आपने अपनी समीक्षा में कहानी के गुण-दोषों को इतनी ब...आपने अपनी समीक्षा में कहानी के गुण-दोषों को इतनी बारीकी से परखा है कि कहानी बिना पढ़े मैं समझ गया। लेकिन लगा कि एक बार कहानी अवश्य पढ़ लेनी चाहिए। पढ़ा तो मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरी कल्पना इतनी सटीक कैसे बैठी। वास्तव में संक्षेप में जो धूप के साथ वर्षा का रंग दिखाया है, प्रशंनीय है। लेखिका के लिए इतना सुझाव दिया जा सकता है कि इस प्रकार की मानसिकता को लेखन में प्रश्रय नहीं देना चाहिए चाहे भले ही स्वाभाविक हो या सच घटना पर आधारित ही क्यों न हो। इसमें किसी ऐसी परिस्थिति को जन्म देने की आवश्यकता थी कि केतकी अपनी इस प्रकार की मानसिकता से उभरकर समाज के लिए एक उपयोगी पात्र के रूप में दिखे। साहित्यकार का काम समाज को उसके भद्दे रूप का आइना दिखाकर श्रेय की ओर प्रेरित करना है। केतकी के चरित्र में भले ही पाठकों उदात्तता दिखे। लेकिन मुझे वह एक मानसिक रोग से पीड़ित सी लगी। यह टिप्पणी अगर लेखिका या पाठकों को अच्छा न लगे, तो उसके क्षमा करेंगे।<br />जो भी हो समीक्षा लाजबाब है। आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-64987218266305866752012-08-23T17:26:42.418+05:302012-08-23T17:26:42.418+05:30केतकी देवता पर न चढाई जाती हो, किन्तु उसका सुवास प...केतकी देवता पर न चढाई जाती हो, किन्तु उसका सुवास पूरे वातावरण में केवड़े की खुशबू भर देता है!<br />बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ...आभार सहित शुभकामनाएं आपको, अनु जी को बधाई ... सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-14985439624372681292012-08-23T16:02:53.702+05:302012-08-23T16:02:53.702+05:30अजवाब समीक्षा है केतकी की ... इस कहानी का ताना बान...अजवाब समीक्षा है केतकी की ... इस कहानी का ताना बाना नारी पात्र को लेके लिखा गया है ... कहानी और समीक्षा सार्थक है ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-29199532156098722472012-08-23T15:03:56.479+05:302012-08-23T15:03:56.479+05:30मेरी टिप्पणी स्पैम में है मनोज जी!!! कृपया उसे मुक...मेरी टिप्पणी स्पैम में है मनोज जी!!! कृपया उसे मुक्ति दें। मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-51075653437541947992012-08-23T14:59:17.552+05:302012-08-23T14:59:17.552+05:30केतकी कहानी पढ़ी थी और उस पर टिप्पणी भी दी थी। लेक...केतकी कहानी पढ़ी थी और उस पर टिप्पणी भी दी थी। लेकिन जिस दृष्टि से सलिल जी ने इस कहानी को देखा है,उस कोण से मैंने नहीं देखा था। कहानी में अंधविश्वास की आहट मुझे सुनाई नहीं दी। लेकिन कहानी का प्रवाह,शब्द-संयोजन और उसकी बनावट में कहीं कोई कमी नजर नहीं आई। समाज में सच में कुछ पात्र केतकी की तरह के होते हैं। इसलिए इस कहानी में असहजता और अवास्तविकता के दर्शन नहीं होते। यद्यपि कहानी का अंत दुखांत है,लेकिन यह समाज में होता है और बहुत से लोग केतकी की तरह व्यवहार करते हैं। एक दृष्टि से वे अच्छे लोग होते हैं,संवेदनशील होते है। किसी को दु:ख देना नहीं चाहते। अपने बारे में एक विशिष्ट सोच लेकर चलते हैं और अपने अतीत की घटना से स्वयं को इतना जोड़ लेते हैं कि वे सारी उम्र उस से मुक्त नहीं हो पाते और कभी-कभी किसी का अहित न हो यह सोचकर आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं। कहानी का अंत केतकी की आत्महत्या से होता है लेकिन उसके अंतिम शब्द अनमोल हैं: अगले जन्म में भी अंश ही बनना......और मैं बनूंगी तुम्हारी,सिर्फ तुम्हारी....झरूंगी तुम पर हरसिंगार बन कर...<br /><br />हर जन्म में केतकी बनूँ ,इतनी भी अभागी नहीं हूँ !!!<br /><br />इन शब्दों में भी आशा की एक किरण है...लेकिन वह अगले जन्म तक फैल गई है...फिर दूसरा जन्म भी हममें से बहुत लोगों के लिए अंधविश्वास ही है। <br /><br />कहानी में फिल्मी पन बेशक है लेकिन कहानी में कविता की तरह अनेक अर्थ भी निहित हैं। निश्चित ही एक बेहतरीन कहानी। <br />मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-54446481703544673252012-08-23T14:23:10.432+05:302012-08-23T14:23:10.432+05:30अरुण जी यह आपके द्वारा दिए गए सुझाव का ही प्रतिफल ...अरुण जी यह आपके द्वारा दिए गए सुझाव का ही प्रतिफल है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-72360796921653015172012-08-23T13:03:01.443+05:302012-08-23T13:03:01.443+05:30कहानी पहले पढ़ी थी ..... जो बातें मन में उठी थीं व...कहानी पहले पढ़ी थी ..... जो बातें मन में उठी थीं वो आपने समीक्षा में कह दीं .... सटीक समीक्षा ... समीक्षक और कहानीकार दोनों को बधाई और शुभकामनायें संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-32596115378458427262012-08-23T12:50:14.472+05:302012-08-23T12:50:14.472+05:30आभार श्याम जी,
जानकारी के लिए शुक्रिया.आभार श्याम जी,<br />जानकारी के लिए शुक्रिया.ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-66948918891626006842012-08-23T12:28:02.725+05:302012-08-23T12:28:02.725+05:30वास्तव में केवडा व केतकी अलग अलग पौधे हैं .... केव...वास्तव में केवडा व केतकी अलग अलग पौधे हैं .... केवडा के पुष्प सफ़ेद व केतकी से बड़े होते हैं ...अधिक अंतर न होने से उसे ही केतकी समझ लिया जाता है....<br />--- केतकी नाम का पेड़ भी होता है ... जिसकी लकड़ी मजबूत व सम होती है फर्नीचर बनाने में उत्तम..<br />--- किसी की भी पूजा में केतकी के फूल नहीं चढाये जाते ...कहीं कहीं केवडा विष्णु व् शिव को छोडकर अन्य देवों पर चढाया जाता है ... <br />--- केतकी की झाडी में प्राय: सर्प रहते हैं अतः प्रातकाल तोडने पर दुर्घटना होने आशंका से उसे देवों पर चढाने से वर्जित किया गया होगा.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-62541762218067687972012-08-23T12:26:22.299+05:302012-08-23T12:26:22.299+05:30लेखिका और समीक्षक दोनों को बधाई....बहुत अच्छी समीक... लेखिका और समीक्षक दोनों को बधाई....बहुत अच्छी समीक्षा की है सलिल जी ने 'केतकी' की।Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-71924468904829586492012-08-23T11:55:39.011+05:302012-08-23T11:55:39.011+05:30----केतकी के फूल सफ़ेद व पीले होते हैं ... सफेद को ...----केतकी के फूल सफ़ेद व पीले होते हैं ... सफेद को केवडा कहते हैं...असली केतकी पीली होती है जिसे स्वर्ण केतकी कहते हैं.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-92171080813277807042012-08-23T11:39:44.127+05:302012-08-23T11:39:44.127+05:30बेहतरीन समीक्षा सलिल जी. आपकी समीक्षा एक बेंचमार्क...बेहतरीन समीक्षा सलिल जी. आपकी समीक्षा एक बेंचमार्क बना देती है....अनु जी की कहानी भी अच्छी है...आंच को नियमित देख अच्छा लग रहा है... अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-46167287042747679022012-08-23T11:39:38.891+05:302012-08-23T11:39:38.891+05:30very good thoughts.....
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर ...very good thoughts.....<br />मेरे ब्लॉग<br /><a href="http://jeevanvichaar.blogspot.com" rel="nofollow"><br />जीवन विचार</a> पर आपका हार्दिक स्वागत है।<br />Shanti Garghttps://www.blogger.com/profile/03904536727101665742noreply@blogger.com