tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post3837195587701087404..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: मन तरसे इक आंगन कोमनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-11963473403697344912010-03-11T16:58:06.794+05:302010-03-11T16:58:06.794+05:30जीवन की छोटी छोटी, हल्की फुल्की चुटकियों को रचना म...जीवन की छोटी छोटी, हल्की फुल्की चुटकियों को रचना में ढाल कर बहुत सुंदर लिखा है ....... बधाई ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-67373485328707774712010-03-10T17:39:45.024+05:302010-03-10T17:39:45.024+05:30शिल्प में कहीं कहीं सघनता का अभाव है, परन्तु भाव इ...शिल्प में कहीं कहीं सघनता का अभाव है, परन्तु भाव इतने गहरे हैं कि नश्तर की भांति सीधा हृदय में चुभ जाते हैं ! धन्यवाद !!करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-36624370956483510542010-03-10T13:32:35.693+05:302010-03-10T13:32:35.693+05:30औपचारिकता के बीच खोजे,
मानवता के आनन को !!
मन तरसे...औपचारिकता के बीच खोजे,<br />मानवता के आनन को !!<br />मन तरसे इक आंगन को !!<br />kitna sach haiरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-76259826450452604312010-03-10T11:36:30.968+05:302010-03-10T11:36:30.968+05:30Bahot he achi kavita likha hai apne Manoj Ji..Gaon...Bahot he achi kavita likha hai apne Manoj Ji..Gaon ki tulna to hum shahar se kar he ni sakte..Gaon me rahne ka jo anand hai wo sahar me kahan...Rachna Karnahttps://www.blogger.com/profile/01778833565266862817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-8194784418274971532010-03-10T11:16:50.148+05:302010-03-10T11:16:50.148+05:30बहुत ही सुन्दरता से आपने गाँव और शहर में रहने का ...बहुत ही सुन्दरता से आपने गाँव और शहर में रहने का जीवन बखूबी प्रस्तुत किया है! बहुत ही अच्छे भाव के साथ इस उम्दा रचना के लिए बधाई!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-53231231037424455312010-03-10T08:56:57.910+05:302010-03-10T08:56:57.910+05:30अपने-अपने मन का संत्रास,
दिल की व्यथाएं !
ड्राइं...अपने-अपने मन का संत्रास,<br /><br />दिल की व्यथाएं !<br /><br />ड्राइंग रूम की साजिशों में,<br /><br />दबती चौपाल की कथाएं !!<br /><br />आंगन का तुलसी चौरा,<br /><br />सिमटकर गमले में बंद !<br /><br />सुमनों की सुरभि की जगह,<br /><br />इत्र की शीशी का मकरंद !!<br /><br />आग उगलती धरती,<br /><br />क्या हो गया, सावन को?<br /><br />मन तरसे इक आंगन को !!<br />बदलते हुये परिवेश मे बहुत ही अच्छी कविता है। अब वो पुरानी मस्ती और खुशियाँ आज के भौतकवादी युग मे खो सी गयी हैं। धन्यवाद इस सुन्दर कविता के लिये।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-49162997486979419022010-03-10T06:54:34.362+05:302010-03-10T06:54:34.362+05:30अपने भावो को कविता के माध्यम से प्रस्तुत करने मे स...अपने भावो को कविता के माध्यम से प्रस्तुत करने मे सफ़ल रहे है आप.शमीमhttps://www.blogger.com/profile/17758927124434136941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-12908525926604254172010-03-10T00:36:00.105+05:302010-03-10T00:36:00.105+05:30आग्रहों से दूर वास्तविक जमीन और अंतर्विरोधों के कई...आग्रहों से दूर वास्तविक जमीन और अंतर्विरोधों के कई नमूने प्रस्तुत करता है।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-25539438079722448402010-03-09T23:55:40.288+05:302010-03-09T23:55:40.288+05:30बहुत ही सुन्दर रचना । वाकई में, गाँव की मस्ती और व...बहुत ही सुन्दर रचना । वाकई में, गाँव की मस्ती और वातावरण शहर की हवाओं मे कहाँ ।dipayanhttps://www.blogger.com/profile/07385176375960362837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-81108690152893770002010-03-09T23:28:26.505+05:302010-03-09T23:28:26.505+05:30आपने शहरों के व्यवहार को बखूबी लिखा है....यहाँ तो...आपने शहरों के व्यवहार को बखूबी लिखा है....यहाँ तो पड़ोस में जाना भी नहीं हो पाता.. सब खुद में ही व्यस्त रहते हैं....अच्छी अभिव्यक्तिसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-64463252561285416402010-03-09T21:18:20.821+05:302010-03-09T21:18:20.821+05:30बहुत सुंदर चित्र्ण किया आप ने, शहर ओर ओर देहात मै ...बहुत सुंदर चित्र्ण किया आप ने, शहर ओर ओर देहात मै फ़र्क भी खुब बताया.<br />धन्यवाद इस सुंदर रचना के लियेराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-80468243673621180222010-03-09T21:01:41.407+05:302010-03-09T21:01:41.407+05:30सर , कविता में आंचलिकता का स्वाद है । आज के इस भौ...सर , कविता में आंचलिकता का स्वाद है । आज के इस भौतिकतावादी एवं भागदौड़ के जीवन में यह कविता ठंडे हवा के झोके समान है ...............<br /><br />बहुत सुन्दर ।संतोषhttps://www.blogger.com/profile/11841048417122825134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-56945292579491051112010-03-09T20:02:24.669+05:302010-03-09T20:02:24.669+05:30सरल एवं देशज शब्दों से सजी सुन्दर कविता. धन्यवाद ए...सरल एवं देशज शब्दों से सजी सुन्दर कविता. धन्यवाद एवं आभार.ज़मीरhttps://www.blogger.com/profile/03363292131305831723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-88561560245759777992010-03-09T19:28:02.561+05:302010-03-09T19:28:02.561+05:30!कंक्रीट के इस शहर में,ढ़ूंढ़ता बेवश मन
वहां,छप्प...!कंक्रीट के इस शहर में,ढ़ूंढ़ता बेवश मन <br />वहां,छप्परों पर फैली कद्दुओं की लत्तियां !यहां,दो-चार मणीप्लांट की हरी-हरी पत्तियां !! <br /><br />मानवता के आनन को !!<br />मन तरसे इक आंगन को !!<br /><br />vo apanapan bhee shahro me kanha...........<br />bahut sunder bhav aur gaon shahar ke jeevan par roshanee daalatee sunder abhivykti .Apanatvahttps://www.blogger.com/profile/07788229863280826201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-87712222450923422662010-03-09T19:13:31.264+05:302010-03-09T19:13:31.264+05:30छप्परों पर फैली कद्दुओं की लत्तियां !
यहां,
दो-चार...छप्परों पर फैली कद्दुओं की लत्तियां !<br />यहां,<br />दो-चार मणीप्लांट की हरी-हरी पत्तियां !!<br />वहां,<br /><br />औपचारिकता के बीच खोजे,<br />मानवता के आनन को !!<br />मन तरसे इक आंगन को !!<br />Bahut achha lagi rachna.Wastav mein ek aisa aagan har koi chahta hai jahan औपचारिकता nahi apnapan ho...... aur jise sachha apnapan milta rahe wah khushnaseev hai ...<br />Bahut badhai.....कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-461143273170610292010-03-09T18:41:22.857+05:302010-03-09T18:41:22.857+05:30कमाल की कविता. गांव और आंगन का चित्र सामने उभरकर ...कमाल की कविता. गांव और आंगन का चित्र सामने उभरकर प्रस्तुत हो गया है.मोहसिनhttps://www.blogger.com/profile/05133114471401092669noreply@blogger.com