tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post8352922737021200429..comments2024-03-21T16:36:38.774+05:30Comments on मनोज: चौपाल : आंच पर कवि-कर्म और आलोचक धर्ममनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-60330638411693586592010-03-26T16:47:49.943+05:302010-03-26T16:47:49.943+05:30सद्प्रयास सफल हो...
आलेख ने मन आनंदित कर दिया...आ...सद्प्रयास सफल हो...<br />आलेख ने मन आनंदित कर दिया...आभार..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-38173374836421050942010-03-26T16:35:20.474+05:302010-03-26T16:35:20.474+05:30समीक्षा से सही मूल्यांकन होता है...समीक्षा से सही मूल्यांकन होता है...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-22998180351137068292010-03-26T16:31:20.750+05:302010-03-26T16:31:20.750+05:30Humesa ki tarah aj b lekhakon ko sikhne ko mila......Humesa ki tarah aj b lekhakon ko sikhne ko mila...Rachna Karnahttps://www.blogger.com/profile/01778833565266862817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-24525496922476953962010-03-26T16:13:20.071+05:302010-03-26T16:13:20.071+05:30'नरत्व दुर्लभं लोके....... वाणी तत्र सुदुर्लभा...'नरत्व दुर्लभं लोके....... वाणी तत्र सुदुर्लभा............. और वाणी में प्रभाव तो और दुर्लभतर है ! 'दर्द को दिल में जगह दे अकबर ! इल्म से शायरी नहीं आती !!'...... बहुत खूब इलाहाबादी साहब !! शायरी तो सच में नितांत अंतर्भूत है. कल्पना का उद्दाम प्रवाह है........... लेकिन इल्म से शायरी में असर तो आ ही सकता है !! काव्य का हेतु एक बार फिर समझ कर आह्लादित हूँ !! "लोचन" से विकसित 'आलोचना' के क्रम में 'आलोचक की' दृष्टिपथ में जो विम्ब आते हैं उसका वैसा ही प्रतिविम्ब वह प्रस्तुत करता है ! आलोचना की आंच पर चढ़े बिना रचना की परिपक्वता......... आ सकती है... मेरे ख्याल से तो संदिग्ध है !! एक स्वतंत्र आलोचक का मार्ग कितना कठिन होता है..... कुछ खबर तो है मुझे किताबों से ! शास्त्रीयता की कसौटी पर कसे या लोक-व्यवहार की कसौटी पर ! पुनः एक ही विषय पर विभिन्न आचार्यों के अनेक मत........ किसका अनुसरण करे....... इन सभी से एक सामान्य माध्यम मार्ग बनाते हुए आलोच्य रचना पर वह अपना मंतव्य व्यक्त करता है ! <br />आपके लेखन में साहित्यकार के अतिरिक्त एक शिक्षक की शैली निहित है ! 'अंतर हाथ सहार दे.... बाहर मारे चोट !' हर बार बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है और स्मृति पर पड़ीं धुल भी साफ़ होती जाती है !! कोटिशः धन्यवाद !!!करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-81376715751562636342010-03-26T16:11:09.517+05:302010-03-26T16:11:09.517+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-129767057159839772010-03-26T14:50:49.964+05:302010-03-26T14:50:49.964+05:30Lekh padkar acha laga.Lekh padkar acha laga.मोहसिनhttps://www.blogger.com/profile/05133114471401092669noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-10165793860448732682010-03-26T13:34:57.064+05:302010-03-26T13:34:57.064+05:30सही कहा आपने. समीक्षा का भी अपना धर्म है- तटस्थ और...सही कहा आपने. समीक्षा का भी अपना धर्म है- तटस्थ और गुण-दोषों सहित सम्यक मूल्यांकन. साथ ही इसका महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि समीक्षा वस्तुपरक हो न कि व्यक्तिपरक कि अमुक व्यक्ति हमारे गोल का नहीं तो उसके कर्म में दोष ही दोष ढूढ लें. इसके अभाव में निरपेक्षता और मूल्यांकन की सत्यता कैसे सुनिश्चित हो सकेगी. आग्रहों के सभी चश्में हमें अलग रखने होंगे.<br /><br />विशद विवेचन के लिए राय जी को धन्यवाद.हरीश प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/18188395734198628590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-90721370800443834142010-03-25T22:45:48.809+05:302010-03-25T22:45:48.809+05:30POST ACHI LAGI.POST ACHI LAGI.ज़मीरhttps://www.blogger.com/profile/03363292131305831723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-91857956373682509042010-03-25T19:59:03.576+05:302010-03-25T19:59:03.576+05:30आलोचना में मूल्य-निर्धारण होना चाहिए, मूल्यांकन हो...आलोचना में मूल्य-निर्धारण होना चाहिए, मूल्यांकन होना चाहिए।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5482943667856126886.post-6393908124730634492010-03-25T19:10:19.579+05:302010-03-25T19:10:19.579+05:30साहित्य के विकास में आपका ये प्रयास सराहनीय है।साहित्य के विकास में आपका ये प्रयास सराहनीय है।Janduniahttps://www.blogger.com/profile/06681339283219498038noreply@blogger.com