फ़ुरसत में ... 113
नवाबगंज पक्षी-विहार की यात्रा
मनोज कुमार
फ़ुरसत से “फ़ुरसत में” आया हूं ... बहुत दिनों के बाद!
पिछले हफ़्ते सरकारी काम से कानपुर जाना हुआ। राजभाषा हिंदी के क्रियान्वयन के काम से जुड़े रहने के कारण सम्मेलनों का आयोजन भी मेरा दायित्व है। कानपुर प्रवास भी इसी कड़ी का एक हिस्सा था। कोलकाता से कानपुर पहुंच कर महसूस हुआ कि यहां जाड़े का आगमन हो चुका है। अपन पूरी तैयारी से गए नहीं थे, इसलिए आधे-अधूरे तैयार लोगों के साथ जो हश्र होना चाहिए था--- वही हुआ। शाम तक नाक बहने लगी, ... और रात होते-होते अनवरत छींकों ने परेशानियां बढ़ा दी। संगी-साथी और आने वाले दर्शनार्थी तरह-तरह के उपदेश और आदेश देते रहे। उनमे से एक जो अविस्मरणीय रहा वह यह था – “आता हुआ और जाता हुआ – दोनों जाड़ा बहुत ख़तरनाक होता है। इसमें सबसे ज़्यादा संभल कर रहने की ज़रूरत होती है।” मुझे भी लगा मैंने ये कौन-सी मुसीबत मोल ले ली है। ये सर्दी तो दो-तीन दिनों में चली जाएगी, पर इतने सारे आदेश और उपदेश तो मेरा जीवन-भर पीछा करते रहेंगे। हमारी तरफ़ एक कहावत बहुत प्रचलित है – “लुच्चक मौगत माघ महीना”! अपन तो कार्तिक में ही भुगत रहे थे।
ख़ैर! जैसे-तैसे बहती हुई नाक और आती-जाती छींकों की नाव पर सवार हमने सम्मेलन की वैतरणी पार कर ही ली। फिर कानपुर को प्रणाम किया और जुगल किशोर के साथ कानपुर-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग 25 द्वारा अमौसी एयरपोर्ट के लिए प्रस्थान किए।
आते हुए जाड़ों में न सिर्फ़ मेरा प्रवास का कार्यक्रम था, बल्कि इस ऋतु के आगमन के साथ-साथ बहुत से प्रवासी पक्षियों का भी भारत-प्रवास का कार्यक्रम होता है। दरअसल नवंबर से फरवरी के दौरान भारत में कई विदेशी पक्षी छुट्टियाँ बिताने आते हैं। कुछ पक्षी तो साइबेरिया जैसे दूर-दराज़ के इलाक़ों से यहां आते हैं। जाड़े के मौसम के आते ही प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी से भारत रंगीन हो जाता है। 1200 से अधिक की संख्या में प्रवासी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां भारत में आकर यहां के पक्षियों की बिरादरी में शामिल होकर इनकी पहले ही से रोचक और समृद्ध परंपरा में चार चांद लगा देते हैं। पक्षियों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास एक अद्भुत घटना है, जो सदियों से घटित होती आ रही है। ऐसे कई अध्ययन किए जा चुके हैं जिनसे यह पता लगा है कि ये पक्षी मौसम में आए बदलाव, प्रतिकूल तापमान और भोजन की अनुपलब्धता के कारण अपने मूल स्थान से पलायन करते हैं। उनके स्थाई निवास में भोजन, आश्रय और प्रजनन का संकट पैदा हो जाता है, इसलिए ये पक्षी अनुकूल वातावरण की खोज में हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर भारत व अन्य देशों की तरफ़ कूच कर जाते हैं। यहां वे अंडे देते हैं, अपना परिवार बढ़ाते हैं और अपने बच्चों के साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपने देश लौट जाते हैं।
कानपुर-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कानपुर से लगभग 45 कि.मी. की दूरी पर नवाबगंज पक्षी विहार, जनपद उन्नाव के नवाबगंज तहसील के अन्तर्गत स्थित है। इस पक्षी विहार की स्थापना वन्य प्राणी (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत वर्ष 1984 में हुई थी। यह विहार जिस जगह स्थित है, वहाँ बस, टैक्सी या निजी वाहनों से बड़ी सुगमता से पहुंचा जा सकता है। 224.60 हेक्टेयर में फैले इस पक्षी विहार की स्थापना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय व प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा एवं संवर्धन के साथ इनके प्राकृतवास (Habitat) का भी संरक्षण किया जाना है।
एक मित्र, गगन चतुर्वेदी से बात हो रही थी। उसने पूछा, “आजकल तुम्हारे ब्लॉग पर एक्टिविटी कम क्यों है?”
मैंने बताया, “इन दिनों पक्षियों के प्रवास पर पुस्तक लिख रहा हूं।”
उसने उल्लास से कहा, “फिर तो वापसी में तुम नवागंज पक्षी विहार ज़रूर जाओ।”
और उसके इस सुझाव ने इस पक्षी विहार जाने के प्रति मेरी उत्सुकता बढा दी। और कुछ ही देर में जब हमारी टैक्सी NH-25 पर दौड़ रही थी, मेरे मन में भी रंग-बिरंगे सैंकड़ों-हज़ारों पक्षियों के दर्शन की कल्पना दौड़ रही थी। लगभग सवा घंटे की यात्रा के पश्चात हम पक्षी विहार पहुंचे। गेट पर कोई खास गहमा-गहमी नहीं दिखी। टिकट काउण्टर के बाहर कुर्सी लगाकर धूप सेकते सज्जनों ने हमें तो निराश ही कर दिया – “अभी कहां चले आए? पक्षी तो दिसम्बर में आएंगे।”
हमने भी हिम्मत नहीं हारी, “कुछ तो दिख ही जाएंगे।”
“हां, सो तो है।”
फिर उन्होंने पांच मिनट तक एक रजिस्टर में हमारा नाम-धाम, ठौर-ठिकाना, हमारी गाड़ी का नम्बर आदि नोट किया और तीस रुपए के भुगतान पर हमें टिकट थमाया। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही, पक्षियों की जानकारी देते बड़े-बड़े बोर्ड पर जब हमारी नज़र गई, तो हमें लगा कि कुछ अलग तो दर्शन होंगे ही। हम आगे बढ़े तो कुछ युवाओं को दूरबीन लगाए निगाहबीन करते पाया। हमारा हौसला बढ़ा कि कुछ तो है। थोड़ा पछतावा भी हुआ कि काश हमारे पास भी दूरबीन होती। ख़ैर, दूरबीन न सही, पर 15x ज़ूम वाला कैमरा तो है ही, पक्षी दिखते ही खींच लूंगा फोटो!
हम झील के किनारे बने पैदल पथ (Pedestrian path way) पर आगे बढ़े। कल्पना तो यह कर रखी थी कि झुंड के झुंड प्रवासी पक्षी दिखेंगे, ... उन्हें कैमरे में क़ैद करूंगा, ... लेकिन स्थिति उलट थी। सिवाए झाड़-झंखाड़, जंगल, सड़े-गले पदार्थों के कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। यहां तक कि झील का पानी भी कहीं साफ-सुथरा नहीं। हम आगे बढ़े तो सड़क पर काम करते मज़दूर मिले। पूछने पर उन्होंने बताया कि दर्शनार्थी की सुविधा के लिए साइकिल ट्रैक बन रहा है। हम ख़ुश हुए, अगली बार बेहतर सुविधाएं मिलेंगीं।
रास्ते के दोनों ओर दूर-दूर तक नज़र दौड़ाते हम आगे बढ़ रहे थे, पर कहीं भी प्रवासी पक्षी तो क्या स्थानीय पक्षी भी नहीं दिख रहे थे। तभी एक कर्मचारी दिखा। उनसे पूछा, तो उन्होंने बताया, ‘पक्षी देखना था, तो सुबह पांच बजे आते। अभी तो सब झाड़ियों में छुप गए होंगे।’ तब ग्यारह बज रहे थे। फिर भी हम हिम्मत हारने को तैयार नहीं थे। आगे बढ़ते गए। एक आदमी उल्टी दिशा से आता दिखा। उससे पूछा, “पक्षी कहां दिखेंगे? दिखेंगे भी या नहीं?” उसने बताया, “आगे जाकर दाएं मुड़ जाइए, जंगल है ... दिख जाएंगे।”
हम उनके बताए रास्ते पर बढ़ चले। शुद्ध, शांत, स्थिर प्राकृतिक वातावरण में चलने का अभूतपूर्व सुख तो मिल रहा था, लेकिन प्रवासी पक्षियों के न दिख पाने का दुख भी साथ-साथ चल रहा था। पक्षी तो मिल नहीं रहे थे, पानी में कमल दिखा हमने उसकी तस्वीर उतार ली। आगे बढ़े, तो सड़क की बाईं ओर किसी बड़े पक्षी का कंकाल मिला। बाहरी किसी व्यक्ति का काम तो यह होगा नहीं, शायद स्थानीय जीवों का दुस्साहस हो यह। ऊपर नज़रें उठाई तो देखा एक बड़े पेड़ की शाखा पर मधुमक्खियों ने अपना छाता बना रखा था। हमने इधर-उधर नज़रें दौड़ाई। तभी काफ़ी दूर पक्षियों का एक दल दिखा। हमने कैमरे को फोकस कर उनपर निशाना साधा और शटर दबाया। हमें लगा, हमारी तीर्थ-यात्रा सफल हुई। कुछ और दिखे जो पानी पर चहलकदमी कर रहे थे। वे भी हमारे कैमरे में क़ैद हुए।
कुछ ही दूर आगे बढ़ने पर देखा कि एक पक्षी रास्ते के किनारे बैठा है। दाईं ओर नज़र घुमाई तो एक और पक्षी दिखा जो तेज़ी से कभी ज़मीन पर, तो कभी पेड़ की शाखाओं पर उड़-उड़ कर बैठ रहा था। इतना तो हम संतुष्ट हुए कि पांच-छह प्रकार के प्रवासी पक्षियों के दर्शन हुए। यदि हम तड़के भोर में आते तो शायद अधिक देख पाते और क़रीब से देख पाते।
यह पक्षी विहार काफ़ी बड़ा है। इसके बीचों-बीच में एक बड़ी झील है। उसके चारों तरफ़ पैदल पथ बने हैं। जगह-जगह पर View Shed और Watch Tower बने हैं। सच मानिए अगर आप पक्षी-दर्शन के शौकीन हैं, तो यहां अवश्य पधारिये, धैर्य और लगन के साथ सारा दिन बिताइए, बड़े मनोरम, सुंदर, रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षियों से आपकी मुलाक़ात होगी। स्थानीय जानकारों के अनुसार दिसम्बर का महीना इनके दर्शन के लिए उपयुक्त होता है।
इस पक्षी विहार में कई तरह के पक्षी आते हैं – जैसे – सीकपर (Northern Pintail), लालसर (Red-crested Pochard), चेता बत्तख (Garganey Teal), लाल सीर (Common Pochard), चमचा बाजा (Spoonbill Duck), नीलसर (Mallard), डुबडुबी (Little Grebe), अंधा बगला (Pond Heron), जामुनी जलमुर्गी (Purple Moorhen), गुगराल (Spot-billed Duck), नकटा (Comb Duck), छोटी सिल्ही (Lesser Whistling Teal), टिटीरी (Red-wattled Lapwing), गाय बगला (Cattle Egret), पटोखा बगला (Intermediate Egret), छोटा लालसर (Wigeon), ठेकारी (Common Coot), बेखुर बत्तख (Gadwall), जलपीपी (Bronze-winged Jacana), पिहो (Pheasant-tailed Jacana), छोटा पनकौवा (Indian Cormorant), अंजन (Grey Horn), नरी अंजन (Purple Heron), घोघिंल (Asian Openbill Stork), सारस (Sarus Crane), काला बाजा (Black-headed Ibis), लोहा सारस (Black-necked Stork), सवन (Bar-headed Goose), पनवा (Darter)।
इस पक्षी विहार की यात्रा से लैटते हुये, अशानुरूप संख्या में पक्षियों को न देख पाने का क्षोभ तो था ही, साथ ही यह बात भी मन को साल रही थी कि हम प्रकृति के प्रति ईमानदार नहीं हैं. हमने अपने चारों ओर प्रदूषण का एक सैलाब जमा कर रखा है. यह भी एक कारण है कि जिस सोच के साथ मैं पक्षियों के दर्शन के लिये गया था, वह अधूरा रहा। पर्यावरण के प्रति हमारे संकल्प सिर्फ़ दर्शनों और सिद्धांतों तक ही सीमित रह जाते हैं, व्यवहार में हम प्रकृति और प्रकृतवासी और उनके प्रकृतवास के प्रति काफ़ी क्रूर हैं। शायद इसी कारण से हमें पक्षी दिखे भी तो काफ़ी कम और जो दिखे वो भी बड़े डरे, सहमे से लग रहे थे।
भोले प्रवासी पक्षी तो शायद अगले महीने आएंगे ही, क्योंकि उनके अपने घर में संकट होगा, तो वे अपने लिए एक बेहतर वातावरण की तलाश में यहाँ चले ही आएंगे, लेकिन सबसे चिंताजनक बात, स्थानीय पक्षियों का भी न दिखाई देना है। हमें स्थानीय व प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा एवं इनके प्राकृतवास के संरक्षण की दिशा में निरंतर गंभीरता से न सिर्फ़ सोचना बल्कि अनुपालन भी करना चाहिए।
“पर्यावरण संतुलन हेतु वन एवं वन्य जीवों की रक्षा करें।”
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