मनोज कुमार
आज संसार में हर
व्यक्ति किसी न किसी दुख-दर्द से ग्रसित है। रोज़ी-रोटी की चिंता में लोग इस कदर
व्यस्त है कि हंसना ही भूल गए हैं। हंसी को दुनिया की सबसे कारगर दवाई माना जाता
है। दिल-खोलकर मस्ती बिखेरने वाली हंसी, कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। और
खूबी की बात यह है कि यह दवा बिना किसी क़ीमत और बिना किसी लागत के मिलती है। हंसना
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है, क्योंकि हंसना एक योग है। रात को हास्य योग का
अभ्यास करने से सारी चिंताएं मिट जाती हैं और नींद अच्छी आती है। हंसते समय हमारा दिमाग
तनावमुक्त हो जाता है और इधर-उधर भटक रहा मन स्थिर हो जाता है, जिससे ध्यान लगाना
असान हो जाता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
हंसते रहने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। जिस दिन आप खूब
हंसते-मुस्कुराते हैं, उस दिन आपके पुराने शारीरिक दुख-दर्द
भी आपको कम सताते हैं। चिंता, दुख, गुस्से,
चिड़चिड़ेपन, आदि से निज़ात मिलती है। और सौ बात
की एक बात कि हंसता-मुस्कुराता चेहरा बहुत अच्छा लगता है! इसलिए उस दिन को बेकार
समझो, जिस दिन आप हंसे नहीं।
हंसने और हंसाने
का सबसे आसान तरीका है चुटकुला। दुनियां में हंसी फैलाने के लिए 1 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय चुटकुला दिवस के रूप में मनाया जाता
है। तो आज के इस अंतरराष्ट्रीय चुटकुला दिवस पर आप सबों को ढ़ेर सारी हंसियां
मुबारक। सबके साथ हंसी बांटिए, चुटकुलों से ही सही।
दुनिया के महानतम कॉमेडीयन अभिनेता चार्ली चैपलीन का कहना था, ज़िन्दगी में सबसे बेकार दिन वह है जिस दिन आप नहीं हंसे। इसलिए,
किताब-ए-ग़म में ख़ुशी का ठिकाना ढूंढ़ो,
अगर जीना है, तो
हंसी का बहाना ढूंढ़ो।
एक मुस्कान ही शांति की शुरुआत है! हंसे मुस्कुराएं, शांति फैलाएं!!
सलीके का मज़ाक़
अच्छा, करीने की हंसी अच्छी,
अजी जो दिल को
भा जाए वही बस दिल्लगी अच्छी।
ऐसे ही
हंसी-दिल्लगी करने वाले शर्माजी और वर्माजी में गहरी दोस्ती
है। दोनों एक साथ एक ही दफ़्तर में काम करते थे। तीन दशक से भी अधिक की नौकरी करने
के बाद दोनों एक साथ ही दो वर्ष पूर्व सेवा निवृत्त हुए। उनकी मित्रता आज भी यथावत
बनी हुई है। वे रोज़ मॉर्निंग वाक के लिए साथ ही जाते हैं। घर के समीप ही एक पार्क
है, गोल्डन पार्क। प्रतिदिन उस पार्क में गप-शप करते, हँसी-ठहाके लगाते हुए वे सैर
करते हैं और टहलना सबसे अच्छा व्यायाम है को चरितार्थ करते हैं। पार्क के कोने में
लाफ्टर क्लब के कुछ सदस्य एकत्रित होते हैं। शर्माजी-वर्माजी को यह क्लब रास नहीं
आता। ‘इस अर्टिफिशियल हँसी के लिए कौन इसका सदस्य बने। हम
तो नेचुरल ठहाके लगाते ही हैं।’
उस
दिन पार्क के कोने वाले हिस्से से गुज़रते हुए उन्हें ठहाकों की आवाज़ सुनाई नहीं
दी। विस्मय हुआ। शर्माजी ने वर्माजी से पूछा, “बंधु, इन्हें क्या
हुआ? आज इनके ठहाके नहीं गूंज रहे !”
वर्माजी
ने कहा, “रेसेशन का दौर है। मंहगाई आसमान छू रही है।”
शर्माजी
ने कहा, “उसका ठहाकों से क्या लेना देना?”
वर्माजी
ने समझाया, “शर्माजी ये नया युग है। हमारा ज़माना थोड़े ही रहा।
हम तो फाकामस्ती में भी ठहाके लगाते रहें हैं। आज तो हर चीज़ में कटौती करनी पड़
रही है। लोग अब ठहाकों की जगह छोटी सी मुस्कान से ही काम चला ले रहें हैं।”
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