गांधी और गांधीवाद
मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है। - महात्मा गांधी
60. महामारी में सेवा
राजकोट
जुलाई 1896
बम्बई
(मुंबई) में ब्यूबोनिक प्लेग
गांधीजी इस समय सत्ताईस
वर्ष के थे। उन्हें पता लगा कि बम्बई (मुंबई) में ब्यूबोनिक प्लेग की महामारी फूट
पड़ी। राजकोट में भी ताऊन के फूट पड़ने का डर सामने था। चारों तरफ़ घबराहट फैल गई।
पूरे पश्चिम भारत में आतंक छा गया। राजकोट में जब खलबली मची तो यह आवश्यक हो गया
कि वहां निवारक उपाय किए जाएं। गांधीजी ने हर बार की तरह इस बार भी सरकार को
आरोग्य विभाग में अपनी सेवाएं अर्पित करने की इच्छा, पत्र द्वारा जता दी। उन्हें सनिटरी विजिटर्स कमिटी का सदस्य
बना दिया गया। वे सार्वजनिक सेवा कार्य में जुट गए। सफ़ाई की सुचारु व्यवस्था में
उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। राजकोट नगर की आरोग्य रक्षा के लिए उन्होंने घर-घर
और घर-बाहर की सफ़ाई का कार्यक्रम अपनाया। उन्हें यह काफ़ी रुचिकर काम लगा। गांधीजी
ने शौचालय की सफ़ाई पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि यही वह जगह है जो इस बीमारी के फैलने का घर
है।
शौचालयों
का निरीक्षण
कमेटी ने निश्चय किया कि
गली-गली जाकर शौचालयों का निरीक्षण किया जाए। पहली बार गांधीजी को भारतीय घरों में
शौचालयों और सफ़ाई व्यवस्था को देखने का मौक़ा मिला था। उन्होंने नगर की हर गली के
शौचालयों का मुआयना किया। स्वास्थ्य विभाग को अपनी सलाह दी। उन्होंने कहा, ‘स्वच्छ
शौचालय घर को स्वच्छ रखता है। सभ्य जीवन की कसौटी यही है।’ अपने दौरों में उन्हें
पता चला कि समृद्ध लोगों के घर, अत्यंत ग़रीब लोगों और
विशेषकर अछूतों (जैसा कि
उन्हें उन दिनों कहा जाता था) के घरों की तुलना में, कम साफ़ थे। उन दिनों
राजकोट में निजी घरों में स्वच्छता व्यवस्था दुःस्वप्न जैसी थी। उन्होंने वहां जो
देखा, वह उन्हें भयभीत करने के लिए काफी था। अछूतों को पहली बार उन्होंने उनके घरों में देखा।
ग़रीब लोगों ने अपने शौचालय का निरीक्षण करने देने में बिल्कुल आनाकानी नहीं की।
कुछ धनाढ्य लोगों के शौचालयों और मूत्रालयों के बारे में उन्होंने लिखा है कि
उच्चतम वर्ण के हिन्दू, ऐसी स्थायी सड़ांध में रह, खा और सो सकते होंगे, ऐसा सोचा न था। समिति ने
जिस घर का दौरा किया, उसके दो मंजिला बेडरूम में इतनी बदबू थी कि "यह आश्चर्य की बात थी कि कोई
भी उस कमरे में सो सकता है"। कई लोगों ने तो घरों का मुआयना करने की इज़ाज़त तक न
दी। उनके शौचालय अधिक गंदे थे, उनमें अंधेरा था, कुड्डी पर कीड़े बिलबिलाते थे। जीते-जी रोज़ नरक में प्रवेश
करने जैसी स्थिति थी। संपन्न लोगों के शौचालय सबसे गंदे थे। वे अपने सुधार के
सुझावों के प्रति सबसे अधिक प्रतिरोधी भी थे। परिणामस्वरूप,
उस संबंध में समिति की कई
सिफारिशें एक मृत पत्र बनकर रह गईं।
भंगी
बस्ती में
"अछूतों" (जैसा कि उन्हें उन दिनों कहा जाता था) की
बस्ती का निरीक्षण का विचार चुनौतीपूर्ण
समस्या बन गई। समिति के सदस्यों ने शौचालय-सफाई करने वालों के शौचालयों के
निरीक्षण को "सरासर बकवास" माना। लेकिन कमेटी भंगी बस्ती में भी
गई। गांधीजी के साथ सिर्फ़ एक सदस्य गया, अन्य कोई गण्य-मान्य व्यक्ति नहीं गया। अन्य सदस्यों को लगा कि वहां जाना अनर्थक है। पर गांधीजी को भंगियों की बस्ती देखकर सानन्द आश्चर्य
हुआ। यह गांधीजी
की ऐसी जगह की पहली यात्रा थी। उन्हें बहुत अच्छा लगा। सफाईकर्मियों ने किस तरह एक
पूर्व दीवान के बेटे का स्वागत किया! पुरुष और महिलाएं खुशी से दबी आवाज में बोल
रहे थे। भंगी लोगों को भी गांधीजी को वहां देख कर अचम्भा हुआ। जब गांधीजी
ने शौचालय देखने की इच्छा ज़ाहिर की तो उनमें से एक ने कहा, “हमारे यहां शौचालय कैसे? हमारे शौचालय तो जंगल में हैं। शौचालय तो आप बड़े
आदमियों के यहां होते हैं।”
गांधीजी ने पूछा, “तो क्या आप अपने घर हमें देखने देंगे?”
“आइए न भाई साहब! जहां भी आपकी इच्छा हो, जाइये। ये ही हमारे घर हैं।”
जब वे अन्दर गए और घर तथा
आंगन की सफ़ाई देखा तो ख़ुश हो गए। प्रवेश द्वार अच्छी तरह से साफ किए गए थे, मिट्टी के फर्श पर गोबर और मिट्टी से चिकनी लिपाई की गई थी। आंगन झाड़ा-बुहारा था।
बरतन चमचमा रहे थे। गांधीजी ने अपने समिति के सहयोगियों से कहा, "उन इलाकों में प्रकोप का कोई डर नहीं है।"
वैष्णव
मंदिर में
समिति के सदस्य उस वैष्णव मंदिर भी गए, जहां उनकी मां पुतली बाई देव-दर्शन के लिए नित्य-नियम
से जाती थीं। वहां गए बिना मां अन्न ग्रहण नहीं करती थीं। मंदिर के पुजारी ने उनका
स्वागत किया। मंदिर के अहाते का कोना-कोना उन्होंने देखा। उन्होंने पाया कि भक्तों द्वारा खाने की थाली में इस्तेमाल
किए जाने वाले कूड़े-कचरे और पत्तों को एक कोने में फेंक दिया गया था,
जिसे मंदिर बनने के बाद से कभी
साफ नहीं किया गया था। यह देख कर उन्हें दुख हुआ। उस जगह पर
चील और कौओं का झुंड मंडरा रहा था - मक्खियों और बदबू का तो जिक्र करना भी ज़रूरी नहीं
है। यह किसी को भी बीमार कर देने के लिए काफी था। देव भूमि के आंचल में ही
कूड़ाघर बन गया था। इस तरह के पवित्र स्थल पर तो आरोग्य के नियमों का अधिक से अधिक
पालना होने की आशा रखी जाती है। हिंदू धर्म में साफ-सफाई को एक अनुष्ठान के रूप में माना जाता है। गांधीजी को यह देखकर दुख
हुआ कि जिस देश की सदियों से प्रथा रही हो अपना अंदर-बाहर को स्वच्छ रखने की, वहां के लोग इस विषय में इतने असावधान और उदासीन हो
गए हैं। साफ-सफाई की इतनी घोर अवहेलना ने गांधीजी को बहुत दुखी
किया और उन्हें पूरे भारत में हिंदुओं के पवित्र स्थलों की पूरी तरह से शारीरिक और
नैतिक सफाई करने का संकल्प दिलाया।
उपसंहार
सार्वजनिक सेवा गांधीजी की
राजनीति का मुख्य अंग थी। वे जनसेवा और देवाराधना में कोई व्यवधान न देखते थे।
उनकी ईश्वरभक्ति जनता जनार्दन की सेवा थी। साफ-सफाई उनके मानवतावादी दृष्टिकोण की
मूलभूत पवित्रता की पहचान थी। सफ़ाई की सुचारु व्यवस्था कार्यक्रम में उनकी सक्रिय भागीदारी ने उन्हें स्वच्छता
कार्य से परिचित कराया जो बाद में उनके लिए गहरी रुचि का विषय बन गया। निरीक्षण के दौरान
उन्होंने पाया कि ‘अछूतों” के घर सबसे साफ-सुथरे थे। सबसे गंदे शौचालय ‘ऊपर के दस’ घरों में थे जहां बेरुखी से
उन्हें जाने से रोक दिया गया था। भारतीय समाज के अपने सुधार कार्य में उन्हें
भविष्य में भी कई बड़े लोगों के कम सहयोग और अधिक प्रतिरोध का अनुभव हुआ। बाद के दिनों में जब उन्होंने सुधार कार्यक्रमों को
हाथ में लिया तो अपने सहकर्मियों से मल-मूत्र की टंकियों को साफ़ करने को कहते।
उनका मानना था कि यह जातिप्रथा की जकड़न से हमें आज़ाद करेगा। उनका यह भी मानना था
कि कोई काम खराब नहीं होता। बाद के वर्षों में जब भी गांधीजी किसी आवासीय संस्थान में जाते थे तो सबसे
पहले शौचालयों और फिर रसोई का निरीक्षण करते थे। उनका कहना था कि इससे उन्हें किसी
भी संस्थान के काम का बेहतर मूल्यांकन करने में मदद मिलती थी।
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मनोज
कुमार
संदर्भ :
1 |
सत्य के प्रयोग – मो.क. गाँधी |
2 |
बापू के साथ – कनु गांधी और आभा
गांधी |
3 |
Gandhi Ordained in South
Afrika – J.N. Uppal |
4 |
गांधीजी एक महात्मा की संक्षिप्त जीवनी – विंसेंट शीन |
5 |
महात्मा गांधीजीवन और दर्शन – रोमां रोलां |
6 |
M. K. GANDHI AN INDIAN
PATRIOT IN SOUTH AFRICA by JOSEPH J. DOKE |
7 |
गांधी एक जीवनी, कृष्ण कृपलानी |
8 |
गाांधी जीवन और विचार - आर.के . पालीवाल |
9 |
दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास,
मो.क. गाँधी |
10 |
The Life and Death
of MAHATMA GANDHI by Robert
Payne |
11 |
गांधी की कहानी - लुई फिशर |
12 |
महात्मा गाांधी: एक जीवनी - बी. आर. नंदा |
13 |
Mahatma
Gandhi – His Life & Times by:
Louis Fischer |
14 |
MAHATMA Life of
Mohandas Karamchand Gandhi By:
D. G. Tendulkar |
15 |
MAHATMA GANDHI
By PYARELAL |
16 |
Mohandas A True
Story of a Man, his People and an Empire – Rajmohan Gandhi |
17 |
Catching
up with Gandhi – Graham Turner |
18 |
Satyagraha – Savita Singh |
पिछली
कड़ियां- गांधी और गांधीवाद