शौबीग या फटिकजल – रंग बदलने वाला पक्षी
अंग्रेज़ी में नाम : Common Iora
वैज्ञानिक नाम : Aegithia tiphia
Aigithos – a mythical bird mentioned by Aristotle
Tiphys – the pilot of the Argonauts.
स्थानीय नाम : हिंदी में शौबीग, तेलुगु में पात्सु-जित्ता, तमिल में पाचापोरा, सिन्ना मामपाला-कुरुवी, असमिया में बरसात-सोराइ और बांग्ला में इस पक्षी को फटिकजल कहा जाता है।
विवरण व पहचान : गोरैया की तरह 14 से.मी. के आकार के इस छोटे-से पक्षी का रंग हरा-पीला होता है। यह अत्यंत लजीला पक्षी है। इसके डैनों पर काला-काला दाग होता है। पूरे पंख पर चौड़ी सफेद धारियां होती हैं। नर की पूंछ काली और मादा की हरी होती है। इस पक्षी के परों का रंग ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ बदलता है। गर्मी में नर पक्षी का उपरी वस्त्र काला, सिर और पीठ पीले रंग का होता है। नीचे का वस्त्र गहरा पीला जो कि छाती के पास हलका पीला-हरा होता है। जाड़े में शरीर के पंखों का कालापन लगभग समाप्त हो जाता है। मादा सभी ऋतुओं में हरे-पीले रंग की होती है। मादा के शरीर के ऊपर का हिस्सा जैतूनी रंग का पीलापन लिए हरा तथा निचला पीला होता है। पीला नीचे की तरफ़ और हरा ऊपर की तरफ़ अधिक होता है। पंख गहरा हरा-भूरा, किनारे पर हरा-सफेद, कंधों पर उजली चौड़ी पट्टी होती है। आंख की पुतली का रंग पीलापन लिए सफेद और चोंच और पैर का रंग स्लेटी-नीला होता है।
व्याप्ति : भारत, बंगलादेश, पाकिस्तान, म्यानमार और श्रीलंका में पाया जाता है। (मैंने इसकी तस्वीरें महाराष्ट्र के भुसावल तहसील स्थित हतनुर जलाशय के पास ली थी।)
अन्य प्रजातियां : रंगों के आधार पर इसकी कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से चार भारत में मिलती हैं।
1. A. nigrolutea – Marshall’s Iora
2. A. multicolor – रामेश्वरम द्वीप में पाया जाता है। काले रंग का।
3. A. humei – संपूर्ण भारत
4. A. septentrionalis – पंजाब, ऊपर में काला।
आदत और वास : वानस्पातिक पक्षी जो शहरों में बगीचों में पाया जाता है। यह अधिकतर बड़े-बड़े पेड़ जैसे वट, आम, इमली, पीपल और नीम आदि पेड़ों की औट में रहना पसंद करता है। गांवों के बाहरी इलाके के खुले जंगलों, खेत के मैदानों और झाड़ियों वाले जंगलों में जोड़े में पाया जाता है। यह छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़े को खाने के लिए इस फुनगी से उस फुनगी पर फुदकता रहता है। हालांकि ये साधारणतया जोड़े में रहते हैं लेकिन बीच-बीच में यह देखा जाता है कि ये अन्य पक्षियों के साथ मिलकर शिकार अभियान चलाते हैं। यह सुमधुर स्वर में लंबी सुरीली तान ‘वी-इ-इ-इ-टु’ छेड़ता है या छोटी-छोटी ‘चि-चिट्-चिट्’ की आवाज़ निकालता है।
भोजन : छोटे-छोटे कीटों और उनके अंडों और लार्वों को खाता है।
प्रजनन : समागम काल में नर अनेक हाव-भावों से, हवा में सीधी उड़ान भरते हुए ऊपर जाता है फिर सर्पिल उड़ान से नीचे बसेरे पर आता है। अपने सारे परों को जिसमें पूंछ के पर भी शामिल हैं इस तरह फैला लेता है कि यह एक गेंद की दिखने लगता है। परों के रंगों और और सीटी की तरह की आवाज़ निकालकर मादा को रिझाता है। अपने बसेरे पर वापस आने के बाद मादा के पास जाकर बंद-पंख रीति से बैठता है, मानों प्रणय-याचना कर रहा हो। फिर उठकर मधुर स्वरों में गाता है। मादा चुपचाप बैठी हुई उसकी प्रणय-परीक्षा लेती रहती है। और अंत में उसकी इन अदाओं और कोशिशों से रीझकर उसे प्रेम-भीख देती है। इन दिनों नर नए वस्त्र भी धारण कर लेता है। उसके परों के रंग में एक विचित्र परिवर्तन आ जाता है। इनका प्रजनन काल मई से सितम्बर का होता है। घोंसला बनाने में यह पक्षी पूरा दक्ष होता है। गृष्म ऋतु में यह पेड़ों की फुनगी की दो शाखाओं के बीच की पतली, कोमल डालों पर घास का साफ-सुथरा प्याले के आकार का घोंसला बनाता है और जिसका भीतरी भाग मकड़े के जाले की मदद से अच्छी तरह पलास्टर किया हुआ रहता है। ये हल्के पीले-उजले रंग के 2-4 अंडे देते हैं। नर और मादा दोनों मिलकर बच्चे का लालन-पालन करते हैं।
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बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंरोचक!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन जन्म दिवस - बाबू जगजीवन राम जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंगाँधी जी के अलावा आपका एक और प्रिय विषय!!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख...
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी सी चिड़िया।
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