महालट - पारिवारिक वार्तालाप करने वाला पक्षी
अंग्रेज़ी में नाम : Indian Treepie or Rufous Treepie
वैज्ञानिक नाम : डेंड्रोसिट्टा वेगाबंडा (Dendrocitta vagabunda)
Dendron : a tree, kitta : the magpie
Vagabunda : vagabond, wandering
स्थानीय नाम : इस खूबसूरत और आकर्षक पक्षी को हिंदी में महालट और उर्दू में महताब कहा जाता है। पंजाब में लोग इसे लगोजा और बंगाल में टका चोर या हांडी चाचा कहते हैं। आसाम में इसे कोला खोआ (केला खाने वाला) कहते हैं। तेलुगु में इसे कांडा कटि गाडु, तमिल में वाल काकई, गुजराती में खारवडो या खेरकाट्टो, मराठी में टाक्काचोर, उड़िया में हरदा फलिया, कन्नड़ में माता पक्षी कहा जाता है।
विवरण व पहचान : हालाकि महालट सामान्य मैना के आकार का पक्षी है लेकिन इसकी 30 से.मी. लंबी पूंछ होती है। इस पक्षी की संपूर्ण लंबाई लगभग 50 से.मी. होती है। केसरी आभा लिए भूरे (अखरोट-chestnut) रंग के इस पक्षी का सिर, गर्दन और छाती धूएं-सा काला (Sooty) होता है। बाक़ी के पूरे शरीर का वस्त्र लाल-सा भूरा होता है, जो पीठ पर अधिक गहरा होता है। शीर्ष पर काली पट्टियों वाली लंबी भूरी पूंछ होती है। किशोर पक्षियों का सिर काले रंग के बजाय भूरा होता है। पंख हल्की भूरी और और उसका किनारा सफेद धब्बेदार होता है जो उड़ान के समय स्पष्ट दिखता है।
इसकी उड़ान लहरदार होती है, फड़फड़ाने की ज़ोरदार आवाज़ के साथ यह पंख और पूंछ फैलाकर थोड़े-थोड़े अंतराल पर विसर्पण/ग्लाइडिंग भी करता है। नर और मादा एक समान होते हैं। आंख की पुतली लाल-भूरी होती है। चोंच और का रंग सिंग की तरह काला होता है जो जिसका रंग आधार पर हलका हो जाता है। पंजे का रंग भी सिंग की तरह काला होता है
व्याप्ति : यह पूरे देश में पाया जाता है। इसके अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यानमार में पाया जाता है। यह श्रीलंका में नहीं पाया जाता।
अन्य प्रजातियां : आकार और रंग के आधार पर इसकी पांच प्रजातियां पाई जाती हैं।
1. श्वेत-उदर महालट – डेंड्रोसिट्टा ल्यूकोगेस्ट्रा – पश्चिमी घाटों में पाया जाता है। इसका सिर और उदर सफेद होता है। लंबी और सलेटी पूंछ तो होती है लेकिन इसका सिरा काला होता है।
2. कॉलर्ड ट्रीपाई – डेंड्रोसिट्टा फ्रंटेलिस - हिमालय में पाया जाता है।
3. अंडमान ट्रीपाई – डेंड्रोसिट्टा बेलेई – अंडमान के जंगलों में पाया जाता है।
4. Green Treepie : D. formosae – हिमालय की तराई और पूर्वी भारत में पाया जाता है।
5. D. v. pallida – उत्तर-पूर्वी भारत में।
आदत और वास : वृक्षवासी। कहा जाता है कि यह ज़मीन पर कभी नहीं आता पर हमने इसे अपने वारांडे में देखा और वारांडे की छत बैठे इस पक्षी की तस्वीर उतारी। ऐसा यह पीले हड्डे को पकड़ने के लिए करता है, जो प्रायः छतों पर अपना छत्ता बनाते हैं। वृक्षों से भरे बागों, फल बागानों, झाड़ियों और हल्के जंगलों में रहता है। पेड़ की छाल में घुसे कीटों को खाने के लिए उसके तने और शाखाओं पर चढ़ कर उसे अपने बड़े पंजों से जकड़ लेता है तथा संतुलन बनाए रखने के लिए अपनी पूंछ से भी आंशिक मदद लेता है।
हालाकि यह अवासीय परिसर या बगीचे में घूमता-फिरता रहता है, लेकिन यह काफ़ी शर्मीला पक्षी है और अधिकतर समय वृक्षों पर भी पत्तों के बीच छुपा रहना पसंद करता है। इसकी झलक हम तभी पाते हैं जब यह एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उड़कर जाता होता है।
इसकी आवाज़ इसकी सुन्दरता की तरह काफ़ी मीठी होती है। कुछ-कुछ ‘कोकिला’ या ‘बौब-ओ-लिंक’ की तरह इसकी आवाज़ होती है। लेकिन इस मीठी आवाज़ के साथ-साथ यह कौवों की तरह कर्कश और तेज़ आवाज़ भी निकालता है। अलग-अलग समय पर यह धातु की तरह वाली अलग-अलग आवाज़ निकालता है। कभी ‘के-के-के-के’, तो कभी ‘को-कि-ला’ या ‘कू-लो-ही’। जोड़े में या 4-5 पक्षियों के समूह में पाया जाता है।
महालट की एक मनमोहक आदत है – इसका पारिवारिक वार्तालाप। गर्मी की दोपहरी में इस पक्षी का जोड़ा किसी छायादार शाखा पर बैठ जाता है और फिर कई मिनटों तक एक-दूसरे से बतियाता रहता है। इस वार्तालाप के दौरान ये बड़े ही मज़ेदार ढंग से सिर हिलाते हैं और एक शाखा से दूसरी शाखा पर फुदकते रहते हैं। कभी-कभी ये एक-दूसरे से सट कर बैठ जाते हैं, फिर एक-दूसरे का प्यार से स्पर्श करते हैं और इस तरह से एक दूसरे की नज़दीकी का भरपूर आनंद उठाते हैं।
हमने इसकी तस्वीरें कोलकाता के अलीपुर स्थित आवासीय परिसर के वृक्षों से उतारी है।
भोजन : यह सर्वभक्षी जीव है। पेड़ों की शाखाओं पत्तियों के बीच कीड़ों, बेखबर छोटी चिड़ियों, छिपकिलियों, मेढकों, छोटे सांप, फलों, पिपली, और दूसरी प्रजातियों के पक्षियों के अंडों का आहार ग्रहण करता है। ज़मीन पर यह ज़ायकेदार टिड्डों, चूहों, और कनखजूरों की तलाश में उतरता है।
प्रजनन : फरवरी से जुलाई तक इनका प्रजनन काल होता है। जब ये जोड़ा बना लेते हैं तो कंटीली टहनियों की मदद से पेड़ के शीर्ष की तरफ़ दो टहनियों के बीच, बड़ा-सा घोंसला बनाते हैं, जिनपर जड़ों की तह लगा देते हैं। कभी-कभी ऊन या पुआल का मुलायम परत भी लगाते हैं। इनका घोंसला तो कौओं की तरह ही होता है लेकिन कौओं के घोंसले से अधिक गहरा होता है। यह घोंसला पत्तियों के बीच अच्छी तरह से छिपा रहता है। मादा एक बार में 4-5 अंडे देती है। अंडे लम्बे अंडाकार होते हैं, छोटे वाले सिरे पर नुकीले होते हैं। कभी-कभी इस पर हलकी चमक भी होती है। पीले हरे रंग के अंडे पर हलके भूरे रंग की चित्तियां होती हैं। अंडे का आकार 1.17 इंच तक होता है। अंडे सेने और चूजे का पालन-पोषण का काम नर और मादा दोनों मिलकर करते हैं।
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संदर्भ
1. The Book of Indian Birds – Salim Ali
2. Popular Handbook of Indian Birds – Hugh Whistler
3. Birds of the Indian Subcontinent – Richard Grimmett, Carlos Inskipp, Tim Inskipp
4. Latin Names of Indian Birds – Explained – Satish Pande
5. Pashchimbanglar Pakhi – Pranabesh Sanyal, Biswajit Roychowdhury
6. हमारे पक्षी – असद आर. रहमानी
सुंदर जानकारी ।
जवाब देंहटाएंमनमोहक पक्षी !
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन वोट और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंनयी जानकारी के लिए आभार !! मंगलकामनाएं आपके लिए !
जवाब देंहटाएंमहालट जैसे सुन्दर पक्षी के बारे में बढ़िया जानकारी दी आपने। सादर धन्यवाद।।
जवाब देंहटाएंनई कड़ियाँ : शहद ( मधु ) के लाभ और गुण।
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