आत्मविश्वास
कालिदास ने कुमारसंभवम में कहा है, ‘प्रायः प्रत्ययमाधत्ते स्वगुणेषूमादरः’ अर्थात् बड़े लोगों से प्राप्त सम्मान अपने गुणों में विश्वास उत्पन्न कर देता है।
ऐसे लोग वही कहते हैं जो जयशंकर प्रसाद जी ने
चन्द्रगुप्त में कहा है,
“अतीत की सुखों के लिए सोच क्यों, अनागत भविष्य
के लिए भय क्यों, और वर्तमान को मैं अपने अनुकूल बना ही लूंगा, फिर चिंता किस बात
की?”
इसे आत्मविश्वास कहते हैं। आत्मविश्वास - यानी
अपने-आप पर विश्वास। यह एक मानसिक शक्ति है। इसीलिए स्वेट मार्डन ने कहा
है, ‘आत्मविश्वास में वह बल है, जो सहस्रों आपदाओं का सामना कर उन पर विजय
प्राप्त कर सकता है।’ एमर्सन की मानें तो, ‘Self-trust is the first
secret of success.’ अर्थात् आत्मविश्वास सफलता का प्रथम रहस्य
है।
महात्मा गांधी ने कहा है, ‘आत्मविश्वास का
अर्थ है अपने काम में अटूट श्रद्धा।’ तभी तो इसके कारण महान कार्यों के सम्पादन
में सरलता और सफलता मिलती है। शिवाजी ने आत्मविश्वास के बल पर ही 16 वर्ष की उम्र
में तोरणा का किला जीत लिया था। साधारण कद-काठी वाले महात्मा गांधी ने आत्मविश्वास
के बल पर ही विशाल साम्राज्य वाले अंग्रेजों से लोहा लिया और ‘अंग्रेजो! भारत
छोड़ो’ का नारा लगाकर अंग्रेज शासकों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्म संयम सिर्फ़ यही तीन
जीवन को बल और सबलता प्रदान कर देते हैं। निर्धन मनुष्यों की सबसे बड़ी पूंजी और
मित्र उनका आत्मविश्वास ही होता है।
इन्द्र विद्यावाचस्पति ने अपने
‘पत्रकारिता के अनुभव’ बताते हुए कहा है, ‘साहसिक कार्य बड़ा हो या छोटा,
उसे कभी दूसरों के बलबूते पर आरंभ न करो। अपने भरोसे पर, पार जाने के लिए गंगा में
भी कूद पड़ो, परन्तु केवल दूसरे के सहारे का भरोसा रखकर घुटनों तक के पानी में भी
पांव न रखो।’
साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हम ज़िन्दगी में
विनम्र बनें आक्रामक नहीं। विनम्र रहने से आत्मविश्वास बढता है।
आत्मविश्वास और आक्रामकता के बीच की रेखा बहुत महीन
होती है।
माधव गोवलकर ने कहा है, ‘मनुष्य के अहंकार
और आत्मविश्वास में पहचान करना कई बार बड़ा कठिन होता है।’
अधिक आत्मविश्वास कभी-कभी स्वाभिमान को अभिमान की
तरफ़ धकेल देता है।
स्वाभिमान बार-बार ठोकरें खाने के बाद भी हमें गिरने
नहीं देता, कर्म पथ से, संघर्ष से पलायन नहीं करने देता। अलका में कहे गए
निराला के शब्दों में कहें तो, ‘जो गिरना नहीं चाहता, उसे कोई गिरा नहीं
सकता।’
अभिमान ... तो .... सम्हलने ही नहीं देता।
लाख योग्यता हो, अपार बल हो, असीम बुद्धि हो, लेकिन
अगर अभिमान भी हो हमारे पास .. तो ये सारी योग्यताएं, ये सारे बल, ये सारी बुद्धि,
ये सारी शक्ति मिट्टी में मिल जाती है।
और .. स्वाभिमान ... हमें सर उठाकर जीना सिखाता है।
अभिमान सर नीचा कर देता है।
स्वाभिमान से हमें खुद पर भरोसा बढता है, अभिमान से
हम दूसरों का भी भरोसा खो बैठते हैं।
स्वाभिमान से हम मुसीबतों से लड़ते हैं, अभिमान करके
मुसीबतों से घिरते हैं।
महात्मा गांधी याद आते हैं मुझे, जिन्होंने
कहा था,
“आत्मविश्वास रावण का-सा नहीं होना चाहिए जो
समझता था कि मेरी बराबरी का कोई है ही नहीं। आत्मविश्वास होना चाहिए विभीषण-जैसा,
प्रह्लाद-जैसा।”
गेटे ने फ़ाउल में कहा है, ‘यदि तुम
अपने पर विश्वास कर सको तो दूसरे प्राणी भी तुम में विश्वास करने
लगेंगे।’
अपनी योग्यता और क़ाबिलियत पर सभी को भरोसा होता है।
लेकिन हमें दूसरों की योग्यता पर भी भरोसा दिखाना चाहिए।
ज़िन्दगी में आत्मविश्वास जितना ज़रूरी है, उतनी ही
ज़रूरी है अपने पर दूसरों का विश्वास हासिल करना।
जो आत्मविश्वासी होता है वह हमेशा सीखने को उत्सुक
होता है।
सफलता के लिए जो सबसे अनिवार्य गुण होता है वह है हर
स्थिति में सीखने की योग्यता का होना।
वहीं आक्रामकता या अभिमान इंसान को कुछ भी सीखने से
रोकता है।
श्रेष्ठता या सफलता कोई मंज़िल नहीं बल्कि एक यात्रा
है।
मनुष्य को हमेशा रचनात्मक और कल्पनाशील होना
चाहिए।
कुछ दिलचस्प तथ्य यह है कि
- आइंस्टीन की दिलचस्पी जितनी विज्ञान के शास्त्र
में थी उतनी ही संगीत में भी थी।
- बट्रेंड रसेल जितने बड़े दार्शनिक थे उतने ही बड़े
गणितज्ञ भी।
इससे यह साबित होता है कि रचनात्मकता और
सर्वोत्कृष्टता साथ-साथ चलती है। आत्मविश्वास से विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती
है, जो हमारी रचनात्मकता को सर्वोत्कृष्टता की ओर ले जाती है।
जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मविश्वास का होना
बहुत ज़रूरी है। आत्मविश्वास ही सफलता की चरम सीमा पर पहुंचाने वाला एकलौता मार्ग
है। यह हमारी बिखरी हुई शक्तियों को संगठित करके उसे दिशा प्रदान करता है। यह हमें
ख़ुद पर, ख़ुद की क्षमताओं पर विश्वास करना सिखाता है। पेड़ की शाखा पर बैठा पंछी कभी
भी इसलिए नहीं डरता कि डाल हिल रही है, क्योंकि पंछी डालों पर नहीं अपने पंखों पर
भरोसा करता है। अतः आत्मविश्वास में कभी कमी नहीं आनी चाहिए। पंचतंत्र में कहा गया
है आत्मविश्वासी व्यक्ति ही समुद्र के बीचों-बीच जहाज के नष्ट हो जाने पर भी तैरकर
उसे पार कर लेता है। अपने आत्मविश्वास में वृद्धि के लिए हमें सकारात्मक
सोच रखनी चाहिए। जैसे विचार हम रखते हैं, दिमाग वही सोचने लगता है। इसलिए
अतीत की असफलताओं और भूलों को भूल कर आत्मविश्वास के साथ लक्ष्य को हासिल करने का
सतत प्रयास करते रहना चाहिए। आत्मविश्वास हमारे उत्साह को जगाकर हमें जीवन में महान
उपलब्धियों के मार्ग पर ले जाता है।
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