मंगलवार, 14 मार्च 2017

प्रश्न पूछो दिवस

प्रश्न पूछो दिवस

मनोज कुमार

आज अंतरराष्ट्रीय प्रश्न पूछो दिवस (International Ask a Question Day) है। इसका लक्ष्य लोगों को अधिक और बेहतर प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करना है, ताकि वो मिलने वाले उत्तर से लभान्वित हो सकें।
एरिक हाफर का कहना था, “भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी। उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं, पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है। जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी। प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है।”
चलिए आज प्रश्न-पूछो दिवस पर मेरा प्रश्न यह है कि हम प्रश्न क्यों पूछते हैं? कुछ प्रश्न तो जानकारी संग्रह करने के लिए किए जाते हैं। कई बार बिगड़ते संबंध को बनाए रखने के लिए भी प्रश्न किए जाते हैं। तुम नाराज क्यों हुए, ऐसा क्यों हुआ, वैसा क्यों नहीं हुआ। जहां कुछ प्रश्न सीखने के लिए किए जाते हैं, वहीं कुछ प्रश्न सिखाने के लिए भी किए जाते हैं। हां कऐसे भी लोग हैं जो इसका प्रयोग दूसरे का ज्ञान जांचने-परखने के लिए करते हैंकुछ लोग किसी तीसरे का सहारा लेते हैं, “देश जानना चाहता है ....!”

प्रश्न तो हर कोई पूछता है। लेकिन हममें से कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जागरूकता बढाने के लिए प्रभावशाली औज़ार के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं। सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान और निर्णय प्राप्त करने के लिए भी कई बार हमें उन अवांछित प्रथाओं को विरुद्ध प्रश्न करने पड़ते हैं। समाज में न सिर्फ़ कई कुप्रथाएं, बल्कि  मनगढंत बातें भी फलती-फूलती रहती हैं। इन्हें चुनौती देने के लिए भी प्रश्न उठते रहने चाहिए।  कभी-कभी कुछ प्रश्नों पर गतिरोध हो जाता है, तो उस गतिरोध को दूर करने के लिए भी प्रश्न किए जाने चाहिए। गतिरोध कैसे दूर हो, इसके लिए नई संभावनाओं की तलाश के लिए भी प्रश्न होने चाहिए।
अभी-अभी चुनावों का महादौर समाप्त हुआ है। आपने देखा होगा कई नेता अपने मंचीय भाषण कौशल को और धार-दार बनाने के लिए जनता से प्रश्न करते हैं। लेकिन कई बार तो अनेक प्रश्न ऐसे होते हैं जिसका समाधान उनके पास भी नहीं होता। प्रश्नों के मायाजाल में जनता उलझी रह जाती है। प्रश्न लोगों को उलझाने के लिए नहीं बल्कि स्पष्ट और नीतिगत चिंतन को बढावा देने के लिए होने चाहिए। लक्ष्य निर्धारण और उसकी प्राप्ति के लिए होने चाहिए।
कई प्रश्न वार्तालाप को फलदायक बनाने के लिए किए जाते हैं। आजकल कोर्स आयोजित करने वालों का धन्धा काफी फल-फूल रहा है। अपनी क्लास को रोचक बनाए रखने के लिए प्रायः फैकल्टी ये कहते पाए जाते हैं कि वे ‘टू वे कम्युनिकेशन’ करना चाहते है। फिर कुछ बताने की जगह प्रश्न पूछने लगते हैं और बेचारे ‘पार्टिसिपेन्ट्स’ जवाब देते-देते उनके (फैकल्टी के) ही ज्ञान में इजाफ़ा करते प्रतीत होते हैं। हां सुनने के क्रम में पार्टिसिपेंट्स को भी स्पष्टीकरण के लिए प्रश्न करना चाहिए।
सही प्रश्न पूछना भी एक कला है। प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है। जागरूकता और अभ्यास से ही कोई व्यक्ति असाधरण प्रश्न पूछने वाला बन सकता है। उत्सुकता हमारे पास एक महत्वपूर्ण औज़ार है। इसे हमेशा तराशते रहना चाहिए। कभी यह कुंद न हो। कोई प्रश्न पूछे तो उसे हतोत्साहित नहीं करना चाहिए। कई बार लोग प्रश्न पूछने वाले का यह कह कर मुंह बंद कर देते हैं कि – क्या मूर्खतापूर्ण प्रश्न कर रहे हो। ऐसे लोगों को स्टीनमेज का यह कथन ध्यान में रखना चाहिए कि मूर्खतापूर्ण-प्रश्न, कोई भी नहीं होते औरे कोई भी तभी मूर्ख बनता है जब वह प्रश्न पूछना बन्द कर दे। सबसे चालाक व्यक्ति जितना उत्तर दे सकता है, सबसे बडा मूर्ख उससे अधिक पूछ सकता है। जो प्रश्न पूछता है वह पाँच मिनट के लिये मूर्ख बनता है लेकिन जो नही पूछता वह जीवन भर मूर्ख बना रहता है।
हां यह सही है कि सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है। हमने देखा है कई छात्र प्रश्न पूछने में हिचकिचाते रहते हैं। उन्हें दोनों तरह की परेशानी होती है। एक तो वे प्रश्न को सही तरीक़े से बना ही नहीं पाते, दूसरे सटीक प्रश्न भी नहीं पूछ पाते। इसका परिणाम यह होता है कि जो वो जानना चाहते है, वह जवाब उन्हें नहीं मिल पाता।

हमें प्रश्न पूछते रहना चाहिए। प्रश्न पूछते रहने से जहां एक ओर हम नई-नई चीज़ें सीखते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग नई चीज़ों का ईज़ाद भी कर देते हैं। वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है। सेव गिरते तो पहले भी लोगों ने देखा होगा। पर उस वैज्ञानिक मस्तिष्क में ही यह बात समाई कि सेव नीचे ही क्यों गिरा? .. और हो गया ईज़ाद गुरुत्वाकर्षण का नियम।

रुडयार्ड किपलिंग ने कहा था, मैं छः ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ। इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ। इनके नाम हैं क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन।” इसलिए प्रश्न पूछते रहना चाहिए, स्वयं से भी, दूसरों से भी। हां इस बात का ध्यान अवश्य रखें, कि आपका प्रश्न न तो किसी को परेशान करने के लिए होना चाहिए और न ही किसी की विद्वता परखने के लिए।
तो आइए हम एक दूसरे से तरह-तरह के प्रश्न पूछें?

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5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 140 साल का हुआ टेस्ट क्रिकेट मैच और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  2. श्रीमान जी मैंने अपना विषय आधुनिक मनोविज्ञानिक लेखको पर लिया है ?क्या उसकी जानकारी मुझे मिल सकती है ?मई आपका आभारी रहूँगा

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