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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

भाषा

भाषा

जीवन के किसी भी मोड़ पर

जब भी तुम रोये हो

ऐसे बहुतों ने पोछे हैं

तुम्हारे आंसू

जिनकी भाषा को तुमने

हमेशा ही समझा है

बहुत छोटा करके,

बिताई होंगी कितनी रातें

उन्हीं छोटी भाषा वाले लोगों ने

छटपटाते हुए

सिर्फ देखने के लिए

एक टुकड़ा सुख

तुम्हारी आंखोंमें।

तुम शायद देख नहीं पाये

उनका अन्तर्द्वन्द्व , उनका आर्तनाद

क्योंकि तुमने कभी

जानना ही नहीं चाहा

भाषा निकलती नहीं है सिर्फ-

होठों की देह छूकर,

निकलती है

हदय के कपाट खोलकर

प्रतिवेशी करुणा की उंगली थामे।

किन्तु इस सत्य से साक्षात्कार के लिए

तुम्हें तोड़ना होगा

अहंकार का दर्पण

और खोलने होंगे

अपने चारो ओर के दरवाजे

ताकि तुम अनुभव कर सको

प्रत्येक भाषा के पीछे छुपे

दुख, प्रेम और वेदना को,

जिस दिन तुमसे सम्पन्न होगा

यह विराट सत्य

तुम्हें जरूरत नहीं पड़ेगी

अपनी भाषा को

महानता के सिंहासन पर

आसीन करने की

तुम देखोगे

स्वयं ही खिल उठेगी तुम्हारी भाषा

किसी शिशु की मुस्कान की तरह

जीवन की महानतम अभिव्यक्ति के रूप में।

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श्याम सुन्दर चौधरी

19 जुलाई 1954 को जिला 24 परगना (प0बं0) के रहड़ा नामक गांव में जन्म । सम्पूर्ण शिक्षा कानपुर में ही। 1979 में पहली कहानी प्रकाशित। कहानी, कविता, लघुकथा, अनुवाद, पुस्तक समीक्षा आदि साहित्यिक विधाओं के अतिरिक्त सिनेमा सम्बन्धी आलोचनात्मक लेखन। बंगला और अंग्रेजी लेखन में भी संलग्न। कहानियों का कन्नड़ और उर्दू में अनुवाद।

कहानी संग्रह- टूटते दरख्त, तारीख के गवाह,सिर्फ इतना ही, हादसों को ढोते हुए।

अनूदित- अंधी दौड़ (उपन्यास, मूल- सुनील दास, बंगला), लौकिक अलौकिक (सम्पादित एवं अनूदित बंगला कहानियां), सात रूपवती बहनें (बाल कहानियां, बंगला, मूल- सुनील दास)

सिनेमा- भारतीय सिनेमाः समाज के आइने में

प्रकाशनाधीन- कहानी सग्रंह-समुद्र जलने लगा

रवीन्द्र नाथ टैगोर की बाल कहानियों का अनूदित संग्रह।

सम्मान- कुशीनगर (उ0प्र0) और खण्डवा(म0प्र0) की साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित।

सम्प्रति- रक्षा प्रतिष्ठान में कार्यरत

सम्पर्क- H-61/4, साहनी कालोनी, कैन्ट कानपुर-2008004

मोः 965192410