प्रभुसत्ता निर्भर है कबाड़ी पर
श्यामनारायण मिश्र
कीर्ति की पहाड़ी पर
चढ़ने को आतुर हैं बौने
बैठकर प्रपंचों की
पुश्तैनी गाड़ी पर।
दुधमुहों के
मृदुल अधरों पर
आचरण का एक अक्षर
धर नहीं सकते।
किन्तु,
अपने मुंह मियां मिट्ठू बने
बात अपने पुण्य की
कहते नहीं थकते।
पुरखों की थाती
यश-गौरव, प्रभुसत्ता
सब कुछ तो निर्भर है
आजकल कबाड़ी पर।
दांव पर
सब कुछ लगा कर मौज में
नौसिखिए
फेंट रहे पत्तियां।
गंधमादन घाटियों में
जल रहीं
आयात की
बारूदी उदबत्तियां।
रास-रंग में डूबे
उथले मन वाले लोग
हुद्द-फुद्द
नाच रहे ताड़ी पर।