प्रभुसत्ता निर्भर है कबाड़ी पर
श्यामनारायण मिश्र
कीर्ति की पहाड़ी पर
चढ़ने को आतुर हैं बौने
बैठकर प्रपंचों की
पुश्तैनी गाड़ी पर।
दुधमुहों के
मृदुल अधरों पर
आचरण का एक अक्षर
धर नहीं सकते।
किन्तु,
अपने मुंह मियां मिट्ठू बने
बात अपने पुण्य की
कहते नहीं थकते।
पुरखों की थाती
यश-गौरव, प्रभुसत्ता
सब कुछ तो निर्भर है
आजकल कबाड़ी पर।
दांव पर
सब कुछ लगा कर मौज में
नौसिखिए
फेंट रहे पत्तियां।
गंधमादन घाटियों में
जल रहीं
आयात की
बारूदी उदबत्तियां।
रास-रंग में डूबे
उथले मन वाले लोग
हुद्द-फुद्द
नाच रहे ताड़ी पर।
कीर्ति की पहाड़ी पर
जवाब देंहटाएंचढ़ने को आतुर हैं बौने
बैठकर प्रपंचों की
पुश्तैनी गाड़ी पर।
वाह बहुत ज़बरदस्त प्रस्तुति .वाक़ई, इसी तरह के हालात हैं.
दुधमुहों के
जवाब देंहटाएंमृदुल अधरों पर
आचरण का एक अक्षर
धर नहीं सकते।
बहुत सुन्दर नवगीत ..हकीकत को कहता हुआ
adbhud geet.... kuch vimb to sarvatha naveen hain...
जवाब देंहटाएंसार्थक विम्बों से सजा गीत!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
संदेशपूर्ण व सकारात्मक रचना !
जवाब देंहटाएंखुद को भी इस कविता का एक पात्र पाता हूं। शर्मनाक!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंadbhut rachna...
जवाब देंहटाएंदुधमुहों के
मृदुल अधरों पर
आचरण का एक अक्षर
धर नहीं सकते।
waah... kitna sundar...
उदबत्तियां।
जवाब देंहटाएंहुद्द-फुद्द
कुछ नए शब्द जाने.
आभार इस सुन्दर गीत को यहाँ पढवाने का.
दुधमुहों के
जवाब देंहटाएंमृदुल अधरों पर
आचरण का एक अक्षर
धर नहीं सकते।
किन्तु,
अपने मुंह मियां मिट्ठू बने
बात अपने पुण्य की
कहते नहीं थकते।
बहुत खूब सरर्थक और सटीक बात कहता हुआ सुंदर गीत ...आभार
kisi dardmayi drishy ko darshati samvedansheel rachna.
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
अद्भुत लाजवाब नए बिम्बों से सजी एक सर्वथा भिन्न प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवर्तमान सियासी परिवेश पर व्यंग्य करता बड़ा ही आकर्षक नवगीत।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंरास-रंग में डूबे
उथले मन वाले लोग
हुद्द-फुद्द
नाच रहे ताड़ी पर।
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ये क्या जाने
प्रभुसत्ता के द्वार
खुलते हैं किस ओर
बस सब निर्भर है कबाड़ी पर
कि वह उन सद्-ग्रंथों को
किन हाथों में सौंपेगा
जिस में भरी पड़ी है
अमृत-ज्ञान की वर्षा...
या वह बह जाएगी निर्झर
बहुत सुंदर भावमयी रचना ...
किन्तु,
जवाब देंहटाएंअपने मुंह मियां मिट्ठू बने
बात अपने पुण्य की
कहते नहीं थकते।bhut khub.
कीर्ति की पहाड़ी पर
जवाब देंहटाएंचढ़ने को आतुर हैं बौने
बैठकर प्रपंचों की
पुश्तैनी गाड़ी पर।
बहुत खूब