आचार्य परशुराम राय
इन श्लोकों में बहुत ही प्रभावी छायोपासना की विधि बताई गयी है। यह साधना प्रातःकाल या सायंकाल सूर्य की उपस्थिति में करनी चाहिए। पाठकों से अनुरोध है कि किसी सक्षम गुरु-सान्निध्य के बिना स्वयं इसका अभ्यास न करें। इस साधना के परिणाम स्वरूप कुछ ऐसी अनुभूतियाँ हो सकती हैं, जो मानसिक संतुलन को अव्यवस्थित कर सकती हैं। जो सक्षम गुरु होता है, वह इस साधना के पहले की तैयारी करवाता है। इस साधना का अभ्यास करने के पहले साधक का भयमुक्त होना आवश्यक है।
कालो दूरस्थितो वापि येनोपायेन लक्ष्यते।
तं वदामि समासेन यथादिष्टं शिवागमे।।351।।
भावार्थ – हे देवि, अब मैं तुम्हें शैवागम (आगम अर्थात् तंत्र) में बतायी गयी छाया उपासना की विधि संक्षेप में बताता हूँ, जिससे मनुष्य त्रिकालज्ञ हो जाता है।
English Translation – O Goddess, now I tell you the method of Chhayopasana (a tantric practice on own shadow) in brief, as it has been described in Shaiva Tantra. Its practice enables a man to go beyond time zone.
Here readers of this post are requested not to practice this without help of a master who is competent in this field.
एकान्तं विजनं गत्वा कृत्वादित्यं च पृष्ठतः।
निरीक्षयेन्निजच्छायां कण्ठदेशे समाहितः।।352।।
भावार्थ – एकान्त निर्जन स्थान में जाकर और सूर्य की ओर पीठ करके खड़ा हो जाए या बैठ जाए। फिर अपनी छाया के कंठ भाग को देखे और उस पर मन को थोड़ी देर तक केन्द्रित करे।
English Translation – The person, who is willing to practice it, should select solitude and should stand or sit keeping the sun on the back side. Thereafter he should look at the neck of his shadow and meditate on it.
ततश्चाकाशमीक्षेत ह्रीं परब्रह्मणे नमः।
अष्टोत्तरशतं जप्त्वा ततः पश्यति शंकरम्।।353।।
भावार्थ – इसके बाद आकाश की ओर देखते हुए ह्रीं परब्रह्मणे नमः मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए अथवा तबतक जप करना चाहिए, जबतक आकाश में भगवान शिव की आकृति न दिखने लगे।
English Translation – Then after some time the practitioner should look at the sky reciting the mantra OM HRIM PARABRAHMANE NAMAH 108 times or unless he visualize the image of Lord Shiva in the sky.
शुद्धस्फटिकसंकाशं नानारूपधरं हरम्।
षण्मासाभ्यासयोगेन भूचराणां पतिर्भवेत्।
वर्षद्वयेन ते नाथ कर्त्ता हर्त्ता स्वयं प्रभुः।।354।।
भावार्थ – छः मास तक इस प्रकार अपनी छाया की उपासना करने पर साधक को शुद्ध स्फटिक की भाँति आलोक युक्त भगवान शिव की आकृति का दर्शन होता है। इसके बाद साधक समस्त प्राणी जगत का स्वामी हो जाता है और यदि वह दो वर्षों तक इस प्रकार साधना करता है, तो वह साक्षात् शिव हो जाता है।
English Translation – After doing of this practice for six months the practitioner visualizes Lord Shiva in the form of white light like Crystal (Sphatic) stone. On getting this view the practitioner becomes master of all the creatures in the world and after practice of two years he becomes Shiva himself.
त्रिकालज्ञत्वमाप्नोति परमानन्दमेव च।
सतताभ्यासयोगेन नास्ति किञ्चित्सुदुर्लभम्।।355।।
भावार्थ – इसका नियमित अभ्यास करने से मनुष्य त्रिकालज्ञ हो जाता है और परमानन्द में अवस्थित होता है। इसका निरन्तर अभ्यास करनेवाले योगी के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं होता।
English Translation – When it is practiced regularly, the practitioner becomes competent to know all the three phases of time- present, past and future, and absorbed in the cosmic bliss. Its continuous practice makes everything available to the practitioner he needs.
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
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भगवान शिव की उपासना बहुत सरल विधि से समझाई है
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंत्योहारों की नई श्रृंखला |
मस्ती हो खुब दीप जलें |
धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
दीप जलाने चले चलें ||
बहुत बहुत बधाई ||
बहुत अच्छा अनुवाद और प्रसंग।
जवाब देंहटाएंदेखता हूं इसे भी अपनाकर।
अच्छी जानकारी ..पर मुश्किल है.यहाँ गुरु कहाँ मिलेंगे.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रसंग..अनुवाद से समझने में भी सहायता..आभार.
जवाब देंहटाएंअविश्वसनीय सी साधना। प्रस्तुति के लिए आभार,
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी .......
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी ..
जवाब देंहटाएंit is very good
जवाब देंहटाएंI can try this