लहरों के दिन
श्यामनारायण मिश्र
रई जई मकई के
हरियाले कूल।
गोरी के आंचल से
फहरे मस्तूल।
धूप-छाँव होती लहरों के दिन।
जाने कब आयेंगे नहरों के दिन।
मगरे पै नीलकंठ
मड़वे पै काग।
मामा जी आयेंगे
अम्मा के भाग।
द्वारे पै झालरों-फुलहरों के दिन।
जाने कब अयेंगे दशहरों के दिन।
खेत बिके प्राण चुके
छूटे हल-बैल।
छूट गये प्राणों से
प्यारे खपरैल।
सड़कों पै पस्त-थके चेहरों के दिन।
अंतर्मन चीख रहा बहरों के दिन।
हूटर पर कान लगे
यंत्रों पर हाथ।
मन-मस्तक घूम रहे
गीयर के साथ।
अम्ल में नहाये शहरों के दिन।
जाने कब जायेंगे जहरों के दिन।
अम्ल में नहाये शहरों के दिन।जाने कब जायेंगे जहरों के दिन।
जवाब देंहटाएंदेखें !
ग्रामीण परिवेश को दर्शाती सशक्त पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंगाँव की सोंधी सुगंध धारे ......बहुत ही प्यारा गीत
जवाब देंहटाएंअम्ल में नहाये शहरों के दिन।जाने कब जायेंगे जहरों के दिन।
जवाब देंहटाएं.....बहुत गहन बात कह दी
हमेशा की तरह ज़बरदस्त प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंनवगीत की अपनी अलग ही छटा होती है, और उसे इस नवगीत में बखूबी निखारा गया है। रचनाकर को बहुत बहुत बधाई और मनोज भाई आप का भी बहुत बहुत शुक्रिया इसे हम तक पहुंचाने के लिए।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
श्याम नारायण मिश्र जी को पढ़वाकर आप अच्छी खुराक दे रहे हैं...ऐसे मौसम अब कब आयेंगे ?
जवाब देंहटाएंbehtreen prstuti...
जवाब देंहटाएंमगरे पै नीलकंठ
जवाब देंहटाएंमड़वे पै काग।
मामा जी आयेंगे
अम्मा के भाग।
श्याम नारायण मिश्र जी के एक अप्रतिम प्रस्तुति लोक जीवन की झांकी और कहावतों से संसिक्त .
नवगीत तो सुन्दर है ही मगर फोटो तो बहुत ही ज़बरदस्त है.
जवाब देंहटाएंहूटर पर कान लगे ... किसी भी कारखाने का दृश्य सजीव कर दिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना और चित्र तो इस रचना को और भी सशक्त कर रहा है ...
रई जई मकई के
जवाब देंहटाएंहरियाले कूल।
गोरी के आंचल से
फहरे मस्तूल।
kya varnan hai......wah.
बहुत सुन्दर गीत.... गीतों में विम्ब का नूतनता से प्रयोग किया गया है... सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंbahut hi aunda prastuti.. :)
जवाब देंहटाएंपरम आनंद की प्राप्ति हुई इस रचना को पढ़ कर...क्या अद्भुत लिखा है...वाह
जवाब देंहटाएंनीरज
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंसड़कों पै पस्त-थके चेहरों के दिन।
जवाब देंहटाएंअंतर्मन चीख रहा बहरों के दिन।
सत्य उद्घाटित करती सुन्दर कविता
सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंइस गीत को कई बार स्व.श्री मिश्र जी के मुखारविन्द से सुना था हमलोगों ने। बहुत दिनों बाद यह गीत पढ़कर सुखद लगा।
जवाब देंहटाएंआँचलिक बिम्बों के अभिनव प्रयोगों से समृद्ध कविता सुन्दर ही नहीं बल्कि मनोहारी भी बन पड़ी है।
जवाब देंहटाएंवाह!
मैं तो हर बार मुग्ध होता हूँ मिश्र जी के नवगीत पढकर!! यह भी उसी की एक कड़ी है!!
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