आँच - 93
पुस्तक परिचय
आचार्य किशोरी दास वाजपेय़ी कृत “हिन्दी शब्दानुशासन”
आचार्य परशुराम राय
आँच का आज का अंक निमित रूप से किसी रचना की समीक्षा का अंक न होकर पुस्तक परिचय के रूप में है। हिन्दी भाषा विज्ञान के क्षेत्र में आचार्य किशोरीदास वाजपेयी जैसे मनीषी कम ही हुए हैं। उन्होंने बहुत से ग्रंथों की रचना की, लेकिन उनका “हिन्दी शब्दानुशासन” साहित्य के विद्यार्थियों और अध्यवसायियों के लिए बहुत ही उपयोगी है। अतः विचार हुआ कि इसे एक परिचय के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।
पूर्व में, अन्यत्र, उनके जीवन-वृत्त पर जो जानकारी मिल पायी, लिख मारा। जैसा कि पहले भी कई
हिन्दी भाषा पर आचार्य जी ने नौ पुस्तकें लिखी हैं। यदि इनके द्वारा विरचित ब्रजभाषा का व्याकरण और ब्रजभाषा का प्रौढ़ व्याकरण को जोड़ दिया जाय, इनकी संख्या ग्यारह हो जाती है। इन ग्रंथों को नीचे सूचीबद्ध किया जा रहा है- बार में लिखा गया था कि आचार्य किशोरीदास वाजपेयी जी जैसी हस्ती पर कलम उठाना बड़ा दुस्तर कार्य है। लेकिन इनकी कृतियाँ आज की हिन्दी के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हैं, इसकी जानकारी विद्वानों को तो है, पर उनकी संख्या बहुत कम है। क्योंकि जब इस महापुरुष पर ब्लॉग के लिए काम करने की जिज्ञासा हुई तो कुछ मित्र विद्वान अध्यापकों से आचार्य जी के सम्बन्ध में चर्चा की, तब मुझे आश्चर्य हुआ कि वे इस हस्ती से या तो पूर्णतया अनभिज्ञ हैं या केवल नाम सुना है। इसलिए अपनी तोतली भाषा में उनका गुणगान करने और हिन्दी जगत को उनकी देन पर चर्चा करने की ठानी। इस अंक से आचार्यजी की रचनाओं और भाषा के प्रति उनके मौलिक विचारों पर चर्चा आरम्भ करना अभीष्ट है।
1.हिन्दी शब्दानुशासन, 2. राष्ट्र-भाषा का प्रथम व्याकरण, 3. हिन्दी निरुक्त, 4. हिन्दी शब्द-निर्णय, 5. हिन्दी शब्द-मीमांसा, 6. भारतीय भाषाविज्ञान, 7. हिन्दी वर्तनी और शब्द विश्लेषण, 8. अच्छी हिन्दी और 9. अच्छी हिन्दी का नमूना।
इसके अतिरिक्त अन्य विषयों पर भी उन्होंने पुस्तकें लिखी हैं, जैसे- काव्यशास्त्र, इतिहास, संस्कृति आदि। इनपर फिर कभी एक-एक कर चर्चा की जाएगी, पर पहले भाषा पर लिखी पुस्तकों पर चर्चा अभिप्रेत है।
आचार्यजी ने बड़ी छोटी-छोटी पुस्तकें लिखी हैं। अधिकांश पुस्तकें 100 से 200 पृष्ठों की ही हैं। कुछ तो सौ पृष्ठों से भी कम हैं। अभीतक मैंने इनकी जितनी पुस्तकें देखी हैं, हिन्दी शब्दानुशासन सबसे भारीभरकम लगी। मेरे पास जो इसकी प्रति उपलब्ध है वह पाचवाँ संस्करण है, उसमें कुल 608 पृष्ठ हैं और इसका प्रकाशन नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी * नयी दिल्ली से हुआ है। इस ग्रंथ का प्रथम संस्करण 1958 में नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा प्रकाशित किया गया था।
इस ग्रंथ में कुल तीन भाग हैं- पूर्व-पीठिका, पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध। इसके अतिरिक्त एक परिशिष्ट भाग है जिसमें हिन्दी की बोलियाँ और उनमें एकसूत्रता पर चर्चा की गयी है। चर्चा की गयी है। इसके अलावा परिशिष्ट में पंजाबी भाषा एवं व्याकरण तथा भाषाविज्ञान पर विद्वत्तापूर्ण मौलिक विश्लेषण देखने को मिलते हैं। आचार्यजी इस ग्रंथ के तीसरे संस्करण में सर्वनाम और तद्धित प्रकरणों को फिर से लिखना चाहते थे। पर उनके स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया और इसका यथावत पुनर्मुद्रण हुआ। तीसरे संस्करण के निवेदन में वे लिखते हैं-
“............ मेरी इच्छा थी कि सर्वनाम और तद्धित प्रकरण फिर से लिखे जाएँ। सभा को सूचित भी कर दिया था कि ये प्रकरण फिर से लिखकर भेजूँगा। परन्तु फिर हिम्मत न पड़ी। दिमाग एक विचित्र थकान का अनुभव करता है। इस पर अब जोर देना ठीक नहीं। डर है कि वैसा करने से अपने मित्र कविवर नवीन, महाकवि निराला, महापंडित राहुल सांकृत्यायन तथा कविवर अनूप की ही तरह इस उतरती उम्र में पागल न हो जाऊँ। .................”
हिन्दी शब्दानुशासन की पूर्व-पीठिका में हिन्दी की उत्पत्ति, विकास-पद्धति, प्रकृति और इसके विकास आदि के अतिरिक्त नागरी लिपि, खड़ी बोली का परिष्कार आदि पर बड़े वैज्ञानिक ढंग से विचार किया गया है। अपनी बात आचार्यजी इतने तार्किक ढंग से कहते हैं कि भाषा सम्बन्धी प्रश्नों को विश्राम मिल जाता है। इस भाग का अन्त उन्होंने हिन्दी के विकास की सारिणी देकर किया है।
इसके पूर्वार्द्ध भाग में कुल सात अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में वर्णों पर विचार किया गया है, दूसरे में शब्द, पद, हिन्दी की विभक्तियों के प्रत्यय आदि पर, तीसरे में संज्ञा, सर्वनाम, लिंग-भेद, लिंग-व्यवस्था आदि का विश्लेषण है। चौथे अध्याय में अव्यय, उपसर्ग और परसर्ग पर विचार किया गया है। पाँचवे अध्याय में यौगिक शब्दों की प्रक्रियाओं, कृदन्त और तद्धित शब्दों एवं समास आदि पर विचार किया गया है। छठें अध्याय में क्रिय-विशेषण और सातवें अध्याय में वाक्य संरचना, वाक्य-भेद, पदों की पुनरुक्ति, विशेषणों का प्रयोग, भाववाचक संज्ञाओं और विशेषण, अनेक कर्तृक या बहुकर्मक क्रियाओं आदि का विवेचन किया गया है।
उत्तरार्द्ध भाग में कुल पाँच अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में क्रिया से जुड़े तत्त्वों का विवेचन किया गया है, यथा - क्रियापद, धातु, धातुओं की उत्पत्ति, उनके प्रयोग, क्रियाओं के पुरुष और वचन, धातु-प्रत्यय, तिङन्त और कृदन्त क्रियाएँ, वाच्य, काल, द्विकर्मक, पूर्वकालिक एवं क्रियार्थक क्रियाएँ, हिन्दी धातुओं का विकास-क्रम, धातु और नामधातु के भेद। द्वितीय अध्याय में उपधातुओं के भेद, प्रेरणार्थक या द्विकर्तृक क्रियाएँ और उनकी रचना त्रिकर्मक और अकर्तृक क्रियाएँ का विवेचन मिलता है। तीसरे अध्याय में संयुक्त क्रियाएँ, चौथे में नामधातु और पाँचवें अध्याय में क्रिया की द्विरुक्ति पर विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
परिशिष्ट भाग में हिन्दी की बोलियाँ और उनमें एकसूत्रता आदि पर विवेचन के साथ राजस्थानी, ब्रजभाषा, कन्नौजी या पाञ्चाली, अवधी, भोजपुरी (मगही) और मैथिली बोलियों (भाषाओं) के विभिन्न अवयवों पर विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त पंजाबी भाषा एवं व्याकरण और भाषाविज्ञान पर विचार किया गया है।
इस ग्रंथ के बारे में डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी कहते हैं- अभी तक हिन्दी के जो व्याकरण लिखे गए, वे प्रयोग निर्देश तक ही सीमित हैं। “हिन्दी शब्दानुशासन” में पहली बार व्याकरण के तत्त्वदर्शन का स्वरूप स्पष्ट हुआ है।
(पाठकों के लिए एक बड़ी ही सुखद सूचना है कि वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली ने आचार्यजी के सभी ग्रंथों को आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ग्रंथावली नाम से छः भागों में प्रकाशित किया है। इसका सम्पादन डॉ. विष्णुदत्त राकेश ने किया है और इसका ISBN No. 8181436857 और ISBN13 9788181436856 है। पूछताछ करने पर इसका वर्तमान मूल्य रु.5000/- वाणी प्रकाशन ने बताया है। यह विवरण केवल जानकारी के लिए दिया जा रहा है, कोई इसे विज्ञापन न समझे।)
मनोज भाई मुझे इन में से कुछ पुस्तकें चाहिए, आप से दिवाली बाद बात करता हूँ
जवाब देंहटाएंदिवाली, भाई दूज और नव वर्ष की शुभकामनायें
आचार्य किशोरी दास वाजपेय़ी कृत “हिन्दी शब्दानुशासन” ki badiya gyanvardhak jaankari prastuti ke liye aabhar..
जवाब देंहटाएंDeep parv kee haardik shubhkamnayen!
bahut kuch janne ko mila......dhanybad.
जवाब देंहटाएंUrdu ShayariGood one awesome
जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारी मिली.आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा!
जवाब देंहटाएंदीपावली, गोवर्धनपूजा और भातृदूज की शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर समीक्षा!
जवाब देंहटाएंदीपावली, गोवर्धनपूजा और भातृदूज की शुभकामनाएँ!
हिन्दी शब्दानुशासन का जितना प्रसार होगा, लोग हिन्दी की बारीकियों से उतना ही अधिक परिचित हो सकेंगे। बहुत-बहुत आभार,
जवाब देंहटाएंआचार्य किशोरी दास बाजपेयी. द्वारा लिखित पुस्तक "हिंदी शब्दानुशासन" के बारे में जानकारी मिली । अवसर मिला तो इससे कुछ सीखने का प्रयास करूंगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंयह कृति हिंदी भाषियों के लिए अवश्य लाभकारी होगी...आपकी समीक्षा के बाद इसकी उपयोगिया के विषय में कोई प्रश्न नहीं रह जाता...
जवाब देंहटाएंWow!! Nice blog really this is the great information thanks admin for this article.
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