यह झुलसता गांव लेकर
श्यामनारायण मिश्र
बाग में कदंब नहीं फूले
सावन में नहीं पड़े झूले
झूलने का चाव लेकर
किस जगह जायें।
सूरज पी डलेगा
लगता है नदियां।
एक एक दिन में
होती है सदियां।
लगता है मेघ राह भूले
उठते हैं आग के बगूले
यह झुलसता गांव लेकर
किस जगह जायें।
धूप-धोबिन धो रही
हरियालियां भू से
भूख-भिल्लिन जो मिले
सो पेट में ठूंसे
लाचारी अंतस तक झूले
फटते हैं लाज के बबूले
दीनता का भाव लेकर
किस जगह जायें।
गाँव लेकर कहीं नहीं जा सकते,हाँ वहाँ पधार सकते हैं !
जवाब देंहटाएंजीवन का अस्तित्व सोखती यह गर्मी।
जवाब देंहटाएंसूखे का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है मिश्र जी ने।
जवाब देंहटाएंजवाब नहीं इस नवगीत का.
जवाब देंहटाएंअभिनव प्रयोगों से अलंकृत नवगीत बहुत आकर्षक बन पड़ा है। कुछ टंकणगत त्रुटियाँ शेष रह गई हैं।
जवाब देंहटाएंसूरज पी डलेगा (डालेगा या लेगा होना चाहिए)
लगता है नदियां।
एक एक दिन में
होती है सदियां (अनुनासिक सहित हैं होना चाहिए)
इसके बावजूद इन पंक्तियोँ में नवीन प्रयोग बेहद मनभावन हैं।
धूप-धोबिन धो रही
हरियालियां भू से
भूख-भिल्लिन जो मिले
सो पेट में ठूंसे,
बधाई आपको ||||
जवाब देंहटाएंआह... मन व्याकुल और अधीर हुआ जाता है! आधुनिकीकरण और विकास की यही विडंबना तो सब-कुछ लील रही है!
जवाब देंहटाएंसावन के झूले वाले गाँव अब सपने ही तो हैं ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत!
gaaon kee aatma aur dard hai is kavita me
जवाब देंहटाएंयह अक्टूबर का माह प्रारम्भ हुआ है जब दशहरा और दीपावली की आमद होने वाली है। मौसम भी आनंददायक है। स्वप्नलोक पर एक मौंजू गीत अभी पढ़कर आया हूँ http://doordrishti.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
जवाब देंहटाएंइस उल्लासमय वातावरण में प्रचंड गर्मी की कविता पढ़कर मन के भाव बदल गये। वैसे रचना बहुत अच्छी है।
बेहद गहन और मार्मिक चित्रण किया है फिर चाहे इसे गाँव के संदर्भ मे लें या मनुष्य जीवन के।
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
सूरज पी डलेगा
जवाब देंहटाएंलगता है नदियां।
एक एक दिन में
होती है सदियां।
वाह सच्चाई को चित्राथ करती बहुत ही मार्मिक प्रस्तुत समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
कमाल के प्रयोग दीखते हैं इस नवगीत में!! एक गुमनाम नवगीत रचनाकार की रचनाएँ पढकर सदा मुग्ध होता हूँ!!
जवाब देंहटाएंmarmik rachna....
जवाब देंहटाएंनहीं,नहीं .इतने अच्छे दिन(नवरात्र) ,इतना अच्छा मौसम!
जवाब देंहटाएंअभी नहीं ऐसे गीत कि थोड़े दिनों का यह मोहक परिवेश हवा हो जाय, असल में गीत इतना समर्थ है कि सारा इन्द्रजाल भंग कर अपना ही ताप बिखेर गया तो !