मैं तुम्हारे स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ?
- करण समस्तीपुरी
मैं तुम्हारे स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ?
मैं तुम्हारे विश्व का आधार बन कर क्या करूँ??
मुख के ऊपर हैं मुखौटे अनगिनत,
मैं तुम्हारे रूप का श्रृंगार बन कर क्या करूँ??
शब्द लज्जित, सर उठाती वेदना।
भाव कुंठित, मूक सी संवेदना॥
बिम्ब है बौना बड़ा प्रतिबिम्ब है।
किस नये युग का कहो आरंभ है॥
धूल-धुसरित मान्यताएँ रो रहीं,
मैं तुम्हारी नीति के अनुसार बन कर क्या करूँ?
खा रही हैं सीपियों को मोतियाँ।
शव के ऊपर सेंकते हैं रोटियाँ॥
फूल से सहमी हुई फुलवारियाँ।
इस फ़सल पे रो रही है क्यारियाँ॥
मृत्यु की अभ्यर्थना के अर्थ में,
मैं तुम्हारे मंत्र का उच्चार बन कर क्या करूँ??
हर सिंहासन पर जमा धृतराष्ट्र है।
मूक, बधीरों, कायरों का राष्ट्र है॥
सत्य पर प्रतिबंध, झूठे हैं भले।
छोड़ दामन सर्प छाती में पले॥
छल से छलनी आत्मा अपनी लिए,
मैं तुम्हारे प्रेम का व्यवहार बन कर क्या करूँ??
स्वप्न भी जीवन का ही संसार है ।
जवाब देंहटाएंमन का मन से स्वप्न में अभिसार है ।
इस समाज को सशक्त शब्दों में व्यक्त करती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंआभार !
इस कविता को पढने के बाद समझ में ही नहीं आ रहा कि आईना मैला है या चेहरे मैले हैं... जो भी हों स्थिति यही है.. आपकी वापसी और इतनी धमाकेदार वापसी पर स्वागत!! मेरी ओर से इस रचना के लिये साधुवाद!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज के राजनीतिक परिवेश का खांका खीच दिया है। बहुत कमाल की रचना।
जवाब देंहटाएंवापसी का स्वागत है और कन्टिन्यूटी बनी रहे।
अत्यंत सशक्त एवं प्रभावशाली रचना ! हर पंक्ति चिंतन के नये आयाम खोलती सी ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंमन मे उतर जाती है एक-एक पंक्ति !
जवाब देंहटाएंवाह ...मज़ा अ गया इस लाजवाब रचना का ... आज एक ताने बाने का खाका खींच दिया ...
जवाब देंहटाएंआपकी वापसी का स्वागत है ...
समाज में व्याप्त विषमताओं के मध्य श्रृंगार रस की सोच पाना कठिन है...सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंwah...rochak rachna....
जवाब देंहटाएंहर सिंहासन पर जमा धृतराष्ट्र है।
जवाब देंहटाएंमूक, बधीरों, कायरों का राष्ट्र है॥
सत्य पर प्रतिबंध, झूठे हैं भले।
छोड़ दामन सर्प छाती में पले॥
छल से छलनी आत्मा अपनी लिए,
मैं तुम्हारे प्रेम का व्यवहार बन कर क्या करूँ??
आज का प्रतिबिम्ब सच और सच के सिवाय कुछ भी नहीं
भैया जी सुप्रभात संग प्रणाम