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बुधवार, 1 जनवरी 2020

नूतन वर्षाभिनन्दन!!

नूतन वर्षाभिनन्दन!!


आ गया है साल नूतन, ख़ुशियों की सौगात लेकर,
करें इसका मिलके स्वागत जोश और ज़ज़्बात लेकर।

याद मन में अपने कर लें, मुस्कुराते बीते कल को
उम्र-भर रोना नहीं, बिगड़े हुये हालात लेकर।

आओ नज्मों में मिला लें, सबसे मीठी प्रेम-भाषा,
हो ग़ज़ल कामिल हर शै, क़लम और दावात लेकर।

दुनिया में बस हो मोहब्बत, प्यार में विश्वास अपना,
स्नेह का आँचल लिए, आये घटा बरसात लेकर।

हो न मैली जग की चादर, मन-चमन ऐसे बुहारें,
साल का हर सुबह आये, चैन-ओ-अमन की रात लेकर।

हो न उनसे वास्ता, जिनकी फितरत हो दबी सी,
तिरछे-आड़े जो चलें, शतरंज की बिसात लेकर।

मिल-जुल रहें ‘मसरूफ़’ सब, हो प्यार का अहसास हरदम,
दो हज़ार बीस है आया, उम्मीद की बारात लेकर।
- मनोज ‘मसरूफ़’

रविवार, 15 सितंबर 2019

आओ हिंदी दिवस मनाऍं

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आओ हिंदी दिवस मनाऍं

- करण समस्तीपुरी


स्वाभिमान की भाषा हिंदी। 
जन मन की अभिलाषा हिंदी। 
सुंदर इसकी है अभिव्यक्ति। 
इसमें है सम्मोहन शक्ति। 
भारत के माथे की बिंदी। 
पुरस्कार देती है हिंदी। 
चलो कहीं भाषण कर आएँ। 
कविता दोहा गीत सुनाएं।  
आओ हिंदी दिवस मनाऍं।  

संविधान का कर लें आदर। 
मन अंग्रेजी हिंदी चादर।  
कोई मुश्किल बात नहीं है। 
न गुजरे वो रात नहीं है।  
इक दिन बस मैनेज करना है। 
कल से हमको क्या करना है। 
गौरव गान आज भर गाएँ।  
आओ हिंदी दिवस मनाऍं। 

हिंदी में रोजगार नहीं है। 
हिंदी का बाज़ार नहीं है।
जब हिंदी में "न्याय" नहीं है!
हिंदी से जब आय नहीं है। 
क्या होगा पढ़कर के हिंदी। 
फ्यूचर हो जायेगा चिंदी।  
अपने बच्चों को समझाएँ। 
आओ हिंदी दिवस मनाऍं। 
 
Hindi Diwas 2019 : Why is hindi diwas celebrated on 14th september, know history | क्या आप जानते हैं 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है हिन्दी दिवस?

सोमवार, 2 मार्च 2015

रंगारंग फ़ागुन में...

रंगारंग फ़ागुन में...

- करण समस्तीपुरी



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सूना मोरा देश रंगारंग फ़ागुन में।

पिया बसे परदेस रंगारंग फ़ागुन में॥
छत पर कुजरे काग, कबूतर, कोयलिया,
ले जाओ संदेश, रंगारंग फ़ागुन में॥



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फ़ूले सरसों गदराया महुआ का तन।
बौरी अमराई में भँवरों का गुंजन॥
पहिर चुनरिया धानी धरती अँगराई
ले दुल्हन का वेश, रंगारंग फ़ागुन में॥


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खन-खन चूरी, कंगन चुभे कलाई में।
अंग-अंग सिहरे सनन-सनन पुरबाई में॥
होंठों की लाली भी अब अंगार हुई,
यौवन करे क्लेश, रंगारंग फ़ागुन में॥

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गाए देवर फ़ाग, ननदिया ताने दे।
बैरी सास-ससुर पीहर न जाने दे॥
कटा टिकट तत्काल पकड़ लो ट्रेन सुबह,
राजधानी एक्स्प्रेस, रंगारंग फ़ागुन में॥

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(रंग लूटऽ... हो... लूटऽ ! आ गइल फ़गुआ बहार.... !!)  

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

कैसा विकास है...?


कैसा विकास है...?

-    करण समस्तीपुरी


कैसा विकास है, ये कैसा विकास है?
सूखा-सा सावन है, जलता मधुमास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??



मंगल पर जा बैठे, मँगली को मारते।
सरेआम देवियों की इज्जत उतारते।
पाकेट में इंटरनेट, घर में उपवास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??

मानवता गिरवी है धर्म की दुकानों में।
भारत माँ रोती है, खेत-खलिहानों में।
मिलती है बूँद नहीं, सागर की प्यास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??

बिकता है न्याय यहाँ कानून दोगला है।
संसद से ऊँचा अंबानी का बँगला है।
गरीबों के रहने को इंदिरा आवास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??





बचपन झुलसता है ईंटों की भट्ठी में।
यौवन सिसकता है गिद्धों की मुट्ठी में।
बेबस बुढ़ापे को वृद्धाश्रम-वास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??

हरिया चलाता मिनिस्टर की कार है।
बाबा ने लिक्खा है, मैय्या बीमार है।
कल से बहुरिया की सूरत उदास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??

मुफ़्त की मलाई से किसको परहेज है?
सस्ती है दुल्हन और महँगा दहेज है।
इंजिनियर बिटिया को वर की तलाश है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??



नफ़रत उपजती सियासत की मिट्टी में।
करते शिकार खूब धोखे की टट्टी में।
कारनामें काले हैं, उजला लिबास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??

अच्छे दिन आएँगे, काल-धन लाएँगे।
सीमा पर दुश्मन के छक्के छुड़ाएँगे।
क्या अपनी बातों पे तुमको विश्वास है?
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??

आँखों की देखी जुबानी मैं कहता हूँ।
पानी को खून नहीं पानी मैं कहता हूँ।
फिर भी तुम कहते हो कविता बकवास है।
कैसा विकास है, ये कैसा विकास है??





मंगलवार, 2 सितंबर 2014

बादल








बादल
- करण समस्तीपुरी

१.
भर अंबर में
रोर मचाए
प्यासी वसुधा
को तरसाए
चमक-दमक के
आश जगाए
ना बरसाए जल
ओ छलिया बादल। 

२.
गई जेठ की
तप्त दुपहरी
सावन रीता
बिन हरियरी
काना, हस्ती
गए स्वाती
चले न अब तक हल
ओ बेसुध बादल।

३.
भादों भद्रा
गई किसानी
का वर्षा जब
कृषी सुखानी
फटा कलेजा
रोए धरती
खेत रहे हैं जल
आफ़त-1ओ निर्मम बादल।

४.
पूरबा डोले
पछुआ डोले
चमके बिजुरी
बदरा बोले
झिर-झिर झीसी
छम-छम बारिस
अवनी हुई सजल
ओ प्यारे बादल।
५.
बजी बैल के
गले में घंटी
कजरी गाए
रहीं कलकंठी
दादुर मोर
पपीहा बोले
विहँस पड़े शतदल
मतवाले बादल।

६.
ताल तलैय्या
भर गया पानी
भयी धरा की
आँचल धानी
अन्न-धन-जीवन
आएगा घर
आँगन रहा मचल
सुखदायी बादल।
७.
दामिनि दमक
रही नभ माहीं
घर में फूटी
कौड़ी नाहीं
सोच-सोच
बाबा के माथे
पड़े हुए हैं बल
बौराए बादल।

८.
थोड़े-बहुत
बचे हैं दाने
ढक आँचल
माँ चली भुनाने
गीली लकड़ी
फ़ू-फ़ू करके
आँख रही है मल
ओ निष्ठुर बादल।

९.
मूसलाधार
बरसता गर-गर
बिजली काँप
रही है थर-थर
माटी का घर
फूस का छप्पर
जाए कहीं न गल
प्रलयंकर बादल।

१०.
आँगन आँगन
पानी पानी
है कागज़ की
नाव चलानी
बच्चे बोलें
बरखा रानी
आ जाना फिर कल
बलिहारी बादल।
११.
घर-घर गूँजे
राग मल्हार
द्वारे-द्वारे
तीज त्यौहार
बिन प्रीतम
कैसा श्रृंगार
विरही मन घायल
ओ बैरी बादल।

१२.
शूल चुभाए
सावन राती
मैं जलती
दीपक बिन बाती
पहुँचा दो
प्रियतम को पाती
मौसम गया बदल
निर्मोही बादल।

१३.
बिन चंदा के
रात अमावस
बिन मितवा के
कैसा पावस?
वर्षा में वह
कैसे आएँ
रुक जाओ दो पल
हरजाई बादल।

१४.
तुम हो
जीवनदायी बादल
अति हो
आतातायी बादल
जग से तेरी
मिताई बादल
करो न कभी
ढिठाई बादल
इतना बरसो
कि मन हरसे
जीवन रहे सरल
ओ नीले बादल।