सोमवार, 2 मार्च 2015

रंगारंग फ़ागुन में...

रंगारंग फ़ागुन में...

- करण समस्तीपुरी



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सूना मोरा देश रंगारंग फ़ागुन में।

पिया बसे परदेस रंगारंग फ़ागुन में॥
छत पर कुजरे काग, कबूतर, कोयलिया,
ले जाओ संदेश, रंगारंग फ़ागुन में॥



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फ़ूले सरसों गदराया महुआ का तन।
बौरी अमराई में भँवरों का गुंजन॥
पहिर चुनरिया धानी धरती अँगराई
ले दुल्हन का वेश, रंगारंग फ़ागुन में॥


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खन-खन चूरी, कंगन चुभे कलाई में।
अंग-अंग सिहरे सनन-सनन पुरबाई में॥
होंठों की लाली भी अब अंगार हुई,
यौवन करे क्लेश, रंगारंग फ़ागुन में॥

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गाए देवर फ़ाग, ननदिया ताने दे।
बैरी सास-ससुर पीहर न जाने दे॥
कटा टिकट तत्काल पकड़ लो ट्रेन सुबह,
राजधानी एक्स्प्रेस, रंगारंग फ़ागुन में॥

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(रंग लूटऽ... हो... लूटऽ ! आ गइल फ़गुआ बहार.... !!)  

6 टिप्‍पणियां:

  1. हई देखिये!! फगुआ के बयार करण बाबू के साथ! मिजाज हरियर हो गइल इ भाई!!

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  2. रंगारंग फ़ागुन फुहार लिए सुन्दर प्रस्तुति
    रामनवमी की हार्दिक मंगलकामनाएं!

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  3. भाई मनोज जी को जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं!
    सादर

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  4. दुर्गोत्सव और विजयादशमी की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं

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