राष्ट्रीय आन्दोलन
340. लंदन में
बच्चों के बीच गांधी
1931
लन्दन में गांधीजी ने कहा था, कि वह “सम्मेलन का
वास्तविक उद्देश्य पूरा कर रहे थे, जो था लंदन के
लोगों से मिलना और उन्हें समझाना।” कुमारी म्युरिअल लेस्टर के निमंत्रण को स्वीकार कर गांधीजी
लंदन की मजदूर बस्ती ईस्ट एंड मुहल्ले के ग़रीब मज़दूरों के ‘किंग्सले हाल’
में ठहरना पसंद किया। वह इलाका दुर्गंधयुक्त
साबुन फैक्ट्रियों और किलेनुमा गोदामों वाला था, स्पष्टरूप से वह लंदन
का सबसे मनमोहक कोना नहीं था। लेकिन गांधीजी इससे मंत्रमुग्ध थे। वह ऐसे लोगों के
साथ रहना चाहते थे जिनकी सेवा के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया था।
मज़दूर लोग असमंजस में थे कि गांधीजी के आगमन पर उनका कौन सबसे पहले स्वागत
करेगा? एक लड़की ने सुझाव दिया कि यह छोटा फ़्रैन्की हर वक़्त गांधीजी की ही बात करता
रहता है। अगले दिन जब गांधीजी वहां पहुंचे, तो फ़्रैन्की की अगुआई में ईस्ट एण्ड के
बच्चों ने गांधीजी का स्वागत किया। जब गांधीजी फ़ुरसत में होते, तो बच्चे उन्हें चारों
ओर से घेर लेते। बच्चे उनसे तरह-तरह के और कई बार तो बड़े बेढ़ब सवाल करते। एक बच्चे
ने पूछा, गांधीजी आपकी भाषा क्या है? गांधीजी ने इसके उत्तर में उन्हें अंग्रेज़ी
और भारतीय भाषा के मिलते-जुलते शब्द बताए ताकि बच्चों को यह पता चले कि सभी भाषाओं
के स्रोत एक ही है। शब्दों की समानता से प्रभावित हो एक बच्चा बोल उठा, इससे यह
साबित होता है कि हम सब एक ही जाति के हैं। गांधीजी ने बच्चों को समझाते हुए कहा,
हम सब एक ही परिवार के हैं, इसलिए हमें मित्र होना चाहिए। गांधीजी उन्हें अपने बचपन
की कहानियां सुनाते।
सुबह-सुबह, वे डॉक गेट्स और ब्लैकवॉल टनल तक पैदल जाते, और फिर नदी के
अँधेरे किनारों पर, जहाँ नावें नवंबर के कोहरे में विलीन हो जाती थीं। वे तेज़
चलते, और कभी-कभी बच्चे चुपचाप उनके पीछे-पीछे चलते, लंबी पतली टांगों
और विशाल सफ़ेद शॉल वाले उस सांवले आदमी के तमाशे से थोड़ा घबराकर, जो किसी विदेशी पक्षी या हैमलिन के पाइड पाइपर जैसा दिखता था।
अपने पूरे लंदन प्रवास के दौरान गांधीजी ने बेहद कड़ा कार्यक्रम रखा। हर रात
वह किंग्सले हॉल लौटते थे, बस थोड़ी सी नींद लेने के लिए - कभी तीन या चार घंटे से
ज़्यादा नहीं, और कभी-कभी तो उससे भी कम। मीराबेन उन्हें सुबह तीन बजे जगातीं और भोर से पहले
टहलने निकल पड़तीं। वह मीराबेन और म्यूरियल लास्टर के साथ बो की सड़कों और नहरों
के किनारे टहलने निकलते थे। प्रातः प्रार्थना के बाद वह सुबह साढ़े पाँच बजे गांधीजी
बो में एक घंटे की सैर पर ईस्ट एंड की प्रमुख गलियों में घूमने निकल पड़ते थे। वह
आमतौर पर जिस सैर को चुनते थे, वह कुछ हिस्सों में आकर्षक होती थी और कुछ हिस्सों में
मज़दूरों के घरों से भरी होती थी।
वह अपने पड़ोसियों से मिलने उनके घर चले जाते। कुछ माता-पिता प्यार से शिकायत
करते थे कि जब वह टहलने जाते थे तो उनके बच्चे सुबह जल्दी उठकर उन्हें "गुड
मॉर्निंग" कहने की ज़िद करते थे। उस क्षेत्र के सभी बच्चे उनके मित्र बन गये
थे। बच्चों के बीच “गांधी चाचा” बड़े लोकप्रिय हो गये थे। वह बच्चों को ईस्ट एंड में ठहरने और सिर्फ लुंगी-चादर
पहनने का कारण समझाते। और उन्हें सदा यही सिखाते कि बुराई का जवाब भलाई से देना
चाहिए। इस उपदेश का बड़ा रोचक परिणाम निकला और चार साल की एक लड़की के पिता को
अपनी शिकायत लेकर गांधीजी के पास आना पड़ा। गांधीजी द्वारा पूछे जाने पर उसने बताया, “मेरी नन्ही जेन
रोज मुझे मुंह पर मार कर जगाती है और कहती है, अब तुम मत मारना क्योंकि गांधीजी कहते हैं कि हमें बदले में नहीं मारना चाहिए।” 2 अक्तूबर को उनकी वर्षगांठ पर बच्चों ने उन्हें ऊन के बने दो
कुर्ते, जन्मदिवस-समारोह में जलाई जाने वाली तीन गुलाबी मोमबत्तियां, टीन की एक तश्तरी, एक नीली पेंसिल और मुरब्बा भेंट किया। गांधीजी ने इन वस्तुओं को बहुत संभाल कर
रखा और अपने साथ भारत ले आए। महादेव देसाई ने गांधीजी के प्रति ब्रिटिश बच्चों के
प्रेम का वर्णन करते हुए लिखा है — “इंग्लैंड में हज़ारों बच्चों ने गांधीजी को देखा होगा और हज़ारों उनसे मिलने आए होंगे। क्या पता, शायद अंग्रेज़ों की इसी पीढी से निपटना पडे?”
मोंटेसरी प्रशिक्षण महाविद्यालय में गांधीजी स्वस्थ, प्रसन्न बच्चों
के सुंदर लयबद्ध व्यायामों का आनंदपूर्वक आनंद लेते थे, जिन्हें सुनकर
उन्हें दुख के साथ 'अर्ध-भूखे भारतीय गांवों के लाखों बच्चों' के बारे में सोचने को मजबूर होना पड़ता था। मैडम मारिया
मोंटेसरी ने उनका परिचय 'महान गुरु' के रूप में कराया। उन्होंने कहा,
'विश्व सभ्यता का
विचार और बच्चे का विचार, यही हमें जोड़ता है...' अपने भाषण में
गांधीजी ने घोषणा की, 'मैं पूर्ण विश्वास करता हूं कि बच्चा इस शब्द के बुरे
अर्थों में शरारती पैदा नहीं होता है। यदि माता-पिता बच्चे के बढ़ने के दौरान
अच्छा व्यवहार करें, तो बच्चा सहज रूप से सत्य के नियम और प्रेम के नियम का पालन
करेगा... सैकड़ों—मैं हजारों कहने जा रहा था—बच्चों के अपने अनुभव से, मैं जानता हूं कि उनमें आपसे और मुझसे कहीं बेहतर सम्मान की भावना है... यीशु
ने इससे ऊंचा या महान सत्य कभी नहीं कहा जब उन्होंने कहा कि ज्ञान शिशुओं के मुंह
से निकलता है। मैं इस पर विश्वास करता हूं....'
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय
आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
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