शुक्रवार, 28 जून 2024

गांधी और गांधीवाद : 1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

 

गांधी और गांधीवाद

उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में लाया जा सके।

महात्मा गांधी

1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

मनोज कुमार

अनेक युगों के संचित पुण्य का मधुर फल

दुनिया में अनेक नैतिक दार्शनिक हुए हैं, जिनमें से यह कहना कि महात्मा गांधी का नाम सबसे ऊपर है, अतिशयोक्ति नहीं होगी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कल्पलता में कहा था, गांधी भारतवर्ष के अनेक युगों के संचित पुण्य का मधुर फल था। आइए हम गांधीजी के जीवन, दर्शन और विचारों की बात करें और उनके जीवन प्रसंगों से कुछ सीखने का प्रयत्न करें। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। उनका प्यार से पुकारा जाने वाला नाम था मनु, मोनिया, मोहन, मोहनदास, दक्षिण अफ़्रीका में सहयोगियों द्वारा भाई, सत्याग्रहियों द्वारा बापू। दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर लोग उन्हें आदर से महात्मा कहते थे। उनके पिता का नाम  करमचन्द गांधी और माता का नाम पुतली बाई था। पिता श्री करमचन्द गांधी (काबा गांधी) राजकोट, पोरबंदर के दीवान थे। माता पुतली बाई अत्यंत धार्मिक और श्रद्धालु महिला थीं। गांधी जी के दादा का नाम उत्तमचंद गांधी था। बचपन में गांधी जी के माता-पिता एवं मित्र उन्हें मोनिया कह कर पुकारते थे।

गांधी परिवार

गांधी परिवार जाति से बनिया, व्यवसाय से पंसारी था। मूल निवासी वे जूनागढ़ के कुतियाणा गांव के थे। गांधी वंश के एक उद्योगी सदस्य हरजीवन गांधी ने 1777 में पोरबंदर में एक मकान ख़रीदा था। अपने बाल-बच्चों के साथ वह वहीं बस गए। छोटा-मोटा व्यापार करने लगे। हरजीवन के बेटे उत्तमचंद गांधी थे। उत्तमचंद (ओता) गांधी के कार्यों से प्रभावित होकर वहां के राणा खीमाजी ने उन्हें अपनी रियासत पोरबंदर का दीवान बनाया। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पोरबंदर गुजरात-काठियावाड़ की तीन सौ रियासतों में से एक रियासत थी। इसके शासक को राणा या ठाकुर या नवाब कहा जाता था। वे तानाशाह होते थे। ये एक दूसरे से जलते थे और आपस में भिड़ते रहते थे। चूंकि वे ब्रिटिश की मदद से राज करते थे, इसलिए ब्रिटिश रेजिडेंट का भय उनको क़ाबू में रखता था। वातावरण सामंती होता था। लोग यहां के हट्टे-कट्ठे होते थे। लोगों की समुद्र यात्रा और व्यापारिक उद्यमशीलता की एक परंपरा थी। यहां के लोग वैष्णव परंपरा में विश्वास रखते थे, जिस पर आगे चलकर जैन धर्म और सूफ़ीवाद ने अपना प्रभाव डाला। इसका परिणाम यहां के लोगों के रूढ़िवाद और सहिष्णुता, उदासीनता और करुणा, भोग और त्याग के एक विशेष प्रकार के मिश्रण के रूप में देखा जा सकता है। काठियावाड़ एक पिछड़ा और सामंती इलाक़ा था। उत्तमचंद गांधी एक सच्चरित्र, ईमानदार और निर्भीक व्यक्ति होने के साथ-साथ कुशल प्रशासक थे। राजा, ब्रिटिश सत्ता के पोलिटिकल एजेंट और प्रजा के बीच वह काफी कूटनीतिक होशियारी, समझदारी और व्यवहारकुशलता से समन्वय बनाकर काम करते थे। जब वह दीवान बने तो पोरबंदर क़र्ज़ में डूबा हुआ था। दीवान बनने के बाद उन्होंने पोरबंदर को क़र्ज़ मुक्त किया। बदक़िस्मती से राणा खीमाजी का जवानी में ही देहावसान हो गया। महारानी ने हुकूमत की बागडोर संभाली। महारानी को दीवान उत्तमचंद की सच्चाई, स्वाभिमान और स्वतंत्र रूप से काम करने की आदत बिल्कुल पसंद नहीं थी। एकबार एक ईमानदार कर्मचारी कोठारी ने महारानी की बंदियों का ग़लत हुक्म मानने से इंकार कर दिया। उसे बंदी बनाने का हुक्म दिया गया। उत्तमचंद ने उस कर्मचारी को अपने यहाँ शरण दी। महारानी गुस्से आगबबूला होकर फौज का एक दस्ता उत्तमचंद के घर पर भेज दिया। तोपें चलवा दीं। बहुत दिनों तक उत्तमचंद का घर गोली बारी का निशाना बना रहा। पोलिटिकल एजेंट को जब इस बात का पता चला तो उसने रानी की कार्रवाई को रुकवा दिया। इस घटना के बाद उत्तमचंद ने पोरबंदर छोड़ दिया और जूनागढ रियासत के अपने पैतृक गांव में आकर रहने लगे। वहां के मुसलमान नवाब ने उत्तमचंद को बुलवाया। उनका स्वागत-सत्कार किया। दरबार में उत्तमचंद ने नवाब को बाएं हाथ से सलाम किया। किसी ने उनसे इस गुस्ताख़ी का कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, मेरा दाहिना हाथ तो सब कुछ हो जाने पर भी पोरबंदर को ही अपना मालिक तसलीम करता है। इस बेअदबी के लिए उन्हें धूप में दस मिनट तक नंगे पैर खड़े रहने की सज़ा दी गई। लेकिन साथ ही नवाब उनकी स्वामीभक्ति से ख़ुश भी हुआ और इनाम में यह ऐलान किया कि यदि वह अपने पुश्तैनी गांव में व्यापार करना चाहें तो उनसे चुंगी नहीं ली जाएगी। इस बीच रानी की मृत्यु हो गई। उसके बाद राणा विक्रमजीत सिंह पोरबंदर की गद्दी पर बैठे। उन्होंने उत्तमचंद को दीवान बनने के लिए न्यौता दिया। लेकिन उत्तमचंद इसके लिए राज़ी नहीं हुए। तो 1847 में उत्तमचंद के बेटे करमचंद को पच्चीस वर्ष की उम्र में पोरबंदर का दीवान बनाया गया। उत्तमचंद गांधी के दो विवाह हुए थे। पहले विवाह से उनके चार बच्चे थे और दूसरे से दो। इसमें से पांचवे करमचंद गांधी (काबा गांधी) और सातवें तुलसीदास गांधी थे।

अपने पिता की तरह करमचंद गांधी ने भी मामूली शिक्षा पाई थी। लेकिन वे साहसी और दृढ़ चरित्र के स्वामी थे। व्यावहारिक सहजबुद्धि उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। आट्ठाइस सालों तक वह पोरबंदर के दीवान रहे। करमचंद भी अपने पिता की तरह ही सच्चे और निडर थे और साथ ही राज्य के प्रति वफादार थे। उनका भी राजा से किसी बात को लेकर अनबन हो गई। तब वे अपने भाई तुलसीदास को दीवानगीरी सौंपकर राजकोट चले आए और वहां के दीवान बन गए। एक बार राजकोट के पोलिटिकल एजेंट ने महाराज के लिए अपमानजनक शब्द का प्रयोग किया। इससे नाराज़ करमचंद ने उसे बुरी तरह फटकारा। करमचंद को इस गुस्ताख़ी के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया। उनसे माफ़ी मांगने के लिए कहा गया। उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी। उनकी इस निडरता से वह अंग्रेज़ अफसर काफी प्रभावित हुआ और उन्हें छोड़ दिया।

गांधीजी का जन्म

पोरबंदर के दीवान होते हुए भी करमचंद अपने पांचो भाईयों के साथ उसी तिमंजिले पैतृक मकान में रहते थे। एक के बाद एक करमचंद की तीन पत्नियों की मृत्यु हो गई। चालीस से ऊपर की उम्र में उन्होंने पुतलीबाई से चौथा विवाह किया। वह उनसे उम्र में बीस वर्ष छोटी थीं। उनसे तीन पुत्र हुए – लक्ष्मीदास (काला), कृष्णदास (करसनिया) और मोहनदास (मोनिया)। रलियात (गोकी) नामक एक पुत्री भी हुई। पहली पत्नियों से करमचंद के दो पुत्रियां और भी थीं। मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 (संवत्‌ 1925 की भादो वदी बारस के दिन) काठियावाड़ के पोरबंदर के सुदामापुरी नामक स्थान (गुजरात) में हुआ था। पोरबंदर उस समय बंबई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत के तहत एक छोटी सी रियासत काठियावाड़ में कई छोटे राज्यों में से एक था।

भारत की स्थिति

गांधीजी के जन्म के समय तक (1869) ब्रिटिश राज्य भारत में अपनी जड़ें जमा चुका था। 1857 का सिपाही विद्रोह ने एक व्यापारी कम्पनी को एक साम्राज्य के रूप में रूपांतरित कर दिया था। भारत अब अंग्रेज़ों के अधीन था। यह अधीनता न सिर्फ़ राजनीतिक, बल्कि सामाजिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक भी थी। और जब गांधीजी की मृत्यु हुई तो भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र था। वंचित लोगों को उनकी विरासत मिल चुकी थी। यह एक चमत्कार से कम नहीं था कि गांधीजी द्वारा चलाए जाने वाले एक अहिंसक आंदोलन ने शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को भारत छोड़कर चले जाने पर विवश किया। वह देश के राष्ट्रपिता कहलाए।

गांधीजी एक समाज-सुधारक संत

मूलतः गांधीजी एक समाज-सुधारक संत थे। उनका मुख्य कार्य जनता को प्रबुद्ध बनाना था। उन्होंने समाज को नया मार्ग बताया, एक नई दिशा दी। उन्होंने किसी दर्शन और धर्म को जन्म नहीं दिया, किसी सम्प्रदाय की स्थापना नहीं की। फिर भी एक विचारक के रूप में हमारे सामने आए। उनके मत को हम गांधीवाद कहते हैं। गांधीवाद ने सारे विश्‍व को एक नई दिशा दी। गांधीजी ने जो कुछ कहा और किया वह इतिहास बन गया। सत्य के मार्ग पर चलकर किए गए कार्यों ने उन्हें जीते जी संत बना दिया। इसका सबसे प्रमुख कारण यह था कि वे दुनिया की मोहमाया से अपने आपको अलग रख पाए। वह सच के रास्ते पर जीवन भर चलते रहे। अपने व्यवहार, आदर्श और विचारों से उन्होंने पूरे देश का आचरण ही बदल डाला। उनका व्यक्तित्व हमें हमेशा प्रेरणा देता रहता है। अपने जीवन में वे जब-जब अत्यंत विनीत लगे तब-तब वे अत्यंत शक्तिशाली थे, साथ ही अत्यंत व्यावहारिक भी। पं. सोहन लाल द्विवेदी की "युगावतार गांधी" शीर्षक कविता की ये पंक्तियां उस महापुरुष को समर्पित हैं

चल पड़े जिधर दो पग डगमग,

चल पड़े कोटि पग उसी ओर,

पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि,

गड़ गये कोटि दृग उसी ओर।

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रविवार, 23 जून 2024

अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक दिवस

 

अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक दिवस

मनोज कुमार

23 जून, आज अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस है। ओलंपिक खेल हर चार साल बाद होने वाला अंतरराष्ट्रीय बहु-खेल आयोजन है जिसे दुनियाभर के लोग वैश्विक खेल उत्सव के रूप में मनाते हैं ये खेलों का सबसे बड़ा उत्सव है जिसमें बड़ी संख्या में विभिन्न राष्ट्रों के खिलाड़ी और लोग एक ही स्थान पर एक ही समय में इकट्ठा होते हैं

पहला ओलम्पिक खेल:

पहला ओलम्पिक खेल ओलम्पस नामक यूनानी देवता के सम्मान में 776 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान) के ओलंपिया में आयोजित किया गया था। इसी से इसका नाम ओलंपिक खेल पड़ा। इसे ओलंपियाड के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह आयोजन एक एथलेटिक और कलात्मक उत्सव था जो देवताओं की पूजा को समर्पित था

ओलम्पिक खेल बंद:

उन दिनों ओलंपिक का आयोजन एक उत्सव के तौर पर होता था और इसमें सभी तरह के धर्मों के लोग हिस्सा लेते थे। शुरू में केवल एथलेटिक्स के खेल ही आयोजित किए जाते थे। धीरे-धीरे अन्य खेल भी शामिल किए गए। यूनानियों और रोमनों के बीच युद्ध के कारण 394 ई. में ओलम्पिक खेल बंद हो गए थे। रोमन लोग एथलेटिक्स को तिरस्कार की नज़र से देखते थे, नग्न होकर सार्वजनिक रूप से प्रतिस्पर्धा करना उनकी नज़र में अपमानजनक था। चौथी शताब्दी ईस्वी में रोमन शासक सम्राट थियोडोसियस प्रथम ने इस उत्सव के धार्मिक तत्व के कारण ग्रीक ओलंपिक पर प्रतिबंध लगा दिया था। सम्राट थियोडोसियस प्रथम का मानना था कि इसमें मूर्तिपूजा की जाती है और उसने मूर्ति पूजा वाले सभी धार्मिक त्योहार प्रतिबंधित कर दिए थे। इसके बाद ओलंपिक खेल खत्म हो गया।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति:

खेलों के महाकुंभ कहे जाने वाले ओलंपिक को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल 23 जून को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाया जाता है  अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति अप्रैल 1896 में आधुनिक युग के पहले ओलंपिक खेलों से ठीक दो साल पहले 23 जून 1894 को बनाया गया। पहली बार 23 जून 1948 को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाया गयाअंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ओलंपिक खेलों की संरक्षक और ओलंपिक आंदोलन की नेता है। यह समिति  एक गैर-लाभकारी स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो खेल के माध्यम से एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह समिति दुनिया भर में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों के प्रशासन की देखभाल करती है। समिति ओलंपिक खेलों के नियम और विनियम तय करती है। यह भी तय करती है कि अगला ओलंपिक आयोजन कब और कहाँ होगा। वर्तमान में इस समिति में 103 सदस्य, 45 मानद सदस्य और 2 सम्मान सदस्य हैं। 2016 में नीता अंबानी को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति में शामिल किया गया। वह पहली भारतीय महिला हैं जिन्हें इस समिति में शामिल किया गया है। आईओसी का मुख्यालय लुसाने, स्विटजरलैंड में स्थित है। अध्यक्ष का चुनाव आईओसी सदस्यों के बीच गुप्त मतदान द्वारा किया जाता है। वर्तमान में, अध्यक्ष का चुनाव आठ वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है, जिसे एक बार चार वर्ष की अवधि के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है। वर्तमान अध्यक्ष थॉमस बाक हैं। डेमेत्रियास विकेलस पहले अध्यक्ष थे।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष

नाम

देश

साल

दिमित्रियोस विकेलास

यूनान

1894–96

पियरे बैरन डी कुबर्टिन 

फ्रांस

1896–25

हेनरी, बैलेट-लाटौर

बेल्जियम

1925–42

जे सिगफ्रिड एडस्ट्रॉम

स्वीडन

1946–52

एवरी बुन्डेज

संयुक्त राज्य अमेरिका

1952–72

माइकल मॉरिस लॉर्ड किलन

आयरलैंड

1972–80

जुआन एंटोनियो समरंच 

स्पेन

1980–2001

जैक्स रोगे

बेल्जियम

2001–13

थॉमस बाख

जर्मनी

2013–वर्तमान

 

आधुनिक ओलम्पिक खेल: 

सम्राट थियोडोसियस प्रथम के प्रतिबंध लगाने के बाद इन खेलों को एकदम भुला ही दिया लगभग 1500 सालों तक ये खेल आयोजित नहीं किए गए 19वीं शताब्दी में एक बार फिर से ये खेल आयोजित किए गए 1896 में ग्रीस की राजधानी एथेंस में आधुनिक ओलम्पिक खेल को फ्रांस के शिक्षाविद् बैरन पियरे डी कॉबर्टिन के प्रयासों से शुरू किया गया इसके बाद सालों तक ओलंपिक आंदोलन का स्वरूप नहीं ले पाया 1900 में पेरिस और 1904 में सेंट लुई में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ भव्य आयोजन की कमी के कारण ये खेल ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाए फिरभी इन तमाम सुविधाओं की कमी, आयोजन की मेजबानी की समस्या और खिलाड़ियों की कम भागीदारी-इन सभी समस्याओं के बावजूद धीरे-धीरे ओलंपिक अपने मक़सद में क़ामयाब होता गया 1908 में लंदन में आधुनिक ओलंपिक के चौथे संस्करण का आयोजन किया गया तो इसमें 2000 धावकों ने शिरकत की इसके बाद से ओलम्पिक खेलों की लोकप्रियता बढ़ती गयी ओलंपिक खेलों के आयोजन का सम्मान किसी देश को नहीं बल्कि शहर को सौंपा जाता है। 

ओलम्पिक ध्वज:

1914 में बैरन पियरे डी कॉबर्टिन की सलाह पर ओलम्पिक ध्वज बनाया गया। ध्वज सिल्क का बना होता है। यह सफ़ेद रंग का होता है। इस पर आपस में जुड़े नीले, पीले, काले, हरे और लाल रंग के पांच छल्ले होते हैं। ये पांच छल्ले पांच महाद्वीपों की मित्रता और एकता के प्रतीक हैं। नीला छल्ला यूरोप, पीला एशिया, काला अफ्रीका, हरा आस्ट्रेलिया और लाल अमेरिका महाद्वीप का प्रतीक है।

आदर्श वाक्य

19वीं शताब्दी में खेल संगठन नियमित रूप से एक विशिष्ट दर्श वाक्य चुनते थे। ओलंपिक खेलों के आधिकारिक आदर्श वाक्य के रूप में, कोबेर्टिन ने "सिटियस, अल्टियस, फोर्टियस" को अपनाया, जिसका लैटिन में अर्थ है "तेज़, ऊँचा, मजबूत"। ओलंपिक खेलों में सबसे महत्वपूर्ण बात जीतना नहीं बल्कि भाग लेना है।

ओलम्पिक शुभंकर

शुभंकर खेलों के प्रतिनिधि होते हैं और प्रतियोगियों और दर्शकों में उत्साह लाते हैं। इंसान या जानवर की आकृति वाला यह शुभंकर मेजबान देश की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। ओलम्पिक खेलों का पहला शुभंकर 1968 के ओलम्पिक के दौरान आया, हालांकि ये अनाधिकारिक था। आधिकारिक रूप से ओलम्पिक खेलों का पहला शुभंकर 1972 के खेलों में शामिल हुआ। 

ओलम्पिक मशाल:

ओलंपिक खेलों के शुरू होने से कई महीने पहले जलाई जाने वाली ओलंपिक मशाल ओलंपिक का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है और पूरे समारोह के दौरान जलाई जाती है। 1928  के एम्सटर्डम ओलम्पिक से मशाल जलाने की शुरुआत हुई। ओलंपिक मशाल प्राचीन और आधुनिक ओलंपिक खेलों के बीच निरंतरता का प्रतीक है, जिसे ग्रीस के ओलंपिया में जलाया जाता है और खेलों के दौरान जलती रहती है। ओलंपिक मशाल को आज भी ग्रीस के हेरा मंदिर में एक प्राचीन कालीन समारोह में पुराने ढंग से ही जलाया जाता है। इसके बाद यह मशाल मेजबान शहर की ओर बढ़ती है, जिसे आमतौर पर धावक ले जाते हैं।

ओलम्पिक मेडल:

1896 और 1900 के ओलम्पिक खेलों में गोल्ड मैडल नहीं दिए गए थे। विजेता और उपविजेता को चांदी और ताम्बे के मैडल दी गए थे।

ओलम्पिक खेल रद्द हुए:

1916 का छठा बर्लिन ओलम्पिक पहले विश्व युद्ध के कारण रद्द कर दिया गया था। 1940 का 12वां हेलसिंकी (फिनलैंड) ओलम्पिक दूसरे विश्वयुद्ध के कारण रद्द कर दिया गया। 1944 का 13वां लन्दन ओलम्पिक भी रद्द कर दिया गया था। 2020 में COVID-19 महामारी के कारण टोक्यो ओलंपिक रद्द कर दिया गया। इतिहास में यह तीसरी बार था जब ओलंपिक रद्द किया गया।

आधुनिक ओलंपिक खेलों के स्थल

वर्ष

ग्रीष्मकालीन खेल

1896

एथेंस

1900

पेरिस

1904

सेंट लुईस, मिसौरी, अमेरिका

1908

लंडन

1912

स्टॉकहोम

1916

रद्द

1920

एंटवर्प, बेल्जियम।

1924

पेरिस

1928

एम्स्टर्डम

1932

देवदूत

1936

बर्लिन

1940

रद्द

1944

रद्द

1948

लंडन

1952

हेलसिंकी, फिनलैण्ड

1956

मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया।

1960

रोम

1964

टोक्यो

1968

मेक्सिको सिटी

1972

म्यूनिख, डब्ल्यू.गेर।

1976

मॉन्ट्रियल

1980

मास्को

1984

देवदूत

1988

सियोल, एस.कोर.

1992

बार्सिलोना, स्पेन

1996

अटलांटा, गा., यू.एस

2000

सिडनी, ऑस्ट्रेलिया।

2004

एथेंस

2008

बीजिंग

2012

लंडन

2016

रियो डी जनेरियो

2020

टोक्यो

2024

पेरिस

 भारत का पहला स्वर्ण पदक:

भारत ने 1900 के पेरिस ओलम्पिक में पहली बार भाग लिया था। इसमें महिला खिलाड़ी भी शामिल हुई थीं। इसमें भारत ने एथलेटिक्स में दो रजत पदक जीते थे। भारत को पहला स्वर्ण पदक 1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक में हॉकी में मिला था।

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