गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

भारतीय धूसर धनेश

 

भारतीय धूसर धनेश

मनोज कुमार


अंग्रेज़ी में नाम : इंडियन ग्रे हॉर्नबिल
(Indian Grey Hornbill)

वैज्ञानिक नाम : टोकस बाइरोस्ट्रिस (Tockus/Ocyceros birostris)

स्थानीय नाम : हिन्दी में इसे धनेश, धन्मार, धानेल, लामदार, बांग्ला में पुटियल धनेश, पंजाबी में धनचिड़ी, गुजराती में चिलोत्रो, उड़िया में कोचिलखाई, मराठी में भिनास, तेलुगु में कोम्मु कसिरि, तमिल में इरावक्के, और कन्नड़ में बूडु कोडुकोक्कि कहा जाता है।

 विवरण व पहचान : भूरे सलेटी रंग का धनेश सबसे आम और अधिक पाया जाने वाला पक्षी है। धनेश की पूंछ पंखे के समान लंबी होती है, जिसके छोर पर सफेदी होती है। मादा धनेश के शरीर का रंग पीलापन लिए कत्थई या भूरापन लिए हुए होता है। नर का शरीर धूसरपन लिए सलेटी होता है। नर धनेश का पेट, जांघ और दुम का निचला हिस्सा सफेदी लिए हुए होता है। इसके उड़ने वाले पंखों के सिरे भी सफेद होते हैं। इस चिड़िया की टेढ़ी चोंच काली-उजली, काफ़ी बड़ी, मज़बूत, झुकी हुई और लंबी होती है और यह दूर से दिखने में लकड़ी की बनी हुई प्रतीत होती हैं। चोंच का ऊपरी भाग सींग-सा टेढ़ा होता है। इस खास तरह की संरचना को शिरस्त्राण (कैसक्यू) कहते हैं। इसी आधार पर, यानी चोंच की बनावट सींग की सी होने के कारण ही अंग्रेज़ी में इसे – हॉर्न (सींग) बिल (चोंच) के नाम से पुकारते हैं। मादा पक्षी में यह संरचना कुछ छोटी होती है। इसका आकार चील के बराबर, लगभग 61 से.मी. का होता है। धनेश पक्षी की एक खास विशेषता है जो अन्य पक्षियों में नहीं पाई जाती, वह यह कि उसकी आंखों के ऊपर भौंहें होती हैं। डैनों के नीचे मुलायम पर, जो अन्य पक्षियों में होते हैं, धनेश में नहीं होते।

व्याप्ति : धनेश की 25 जातियां अफ़्रीका में पाई जाती हैं। इसके अलावा भारत, म्यांमार, थाईलैंड,


मलाया, सुन्डा आईलैंड, फिलीपीन्स, न्यूगिनी आदि दक्षिण-पूर्व एशिया के भागों में इसकी 20 जातियां मिलती हैं। भारत में यह जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीस गढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा और राजस्थान के कुछ भागों में पाया जाता है।

अन्य प्रजातियां : विश्व में धनेश की 45 प्रजातियां और भारत में 9/16 प्रजातियां पाई जाती हैं।

1.   भीमकाय धनेश (ग्रेट हॉर्न बिल) (Buceros bicornis) – अरुणाचल प्रदेश और केरल का राज्य पक्षी है।

2.  मालाबार का धूसर धनेश (O. griseus)

3.  भारतीय श्वेत-श्याम धनेश (Anthracoceros albirostris)

4.  मालाबार का श्वेत-श्याम धनेश (A. coronatus)

5.  नारंगी-भूरी गर्दन वाला धनेश (Aceros nipalensis)

6.  गोल झालर वाला धनेश (A. undulates)

7.  Brown Hornbill (Anorrhinus tickelli)

8.  Narcondam Hornbill (Rhyticeros narcondami)

आदत और वास : यह एक सामाजिक पक्षी है। ये खुले मैदानों, हल्के जंगलों, फल बागानों, सड़क के किनारे उगे वृक्षों, बाग-बगीचों आदि जगह जहां काफी संख्या में पीपल, बरगद आदि फाइकस कुल के पेड़ उगे होते हैं, पाए जाते हैं। फलभक्षी होते हैं।  ये समूहों में रात बिताते हैं और सुबह होते ही फलों, सूंडी, कीड़ों और छिपकलियों की खोज में चारो ओर उड़ जाते हैं। पेड़ों पर रहने वाले ये पक्षी दीमकों को खाने के लिए बार-बार ज़मीन पर नीचे भी आते रहते हैं। उड़ान पर जाने के लिए ये एक-एक कर उड़ते हैं। इनकी उड़ान लहरदार और शोरयुक्त होती है। यह बहुत शोर मचाने वाला पक्षी है। ये पक्षी ज़ोर-ज़ोर से ‘चीं-ईन’ और ‘कांई-ईन’ की आवाज़ करते हैं।

भोजन : ये अंजीर की नई पत्तियां, जंगली फल, बीज, बेरियां, सूंडी, कीड़ों और छिपकलियां आदि खाते हैं।


प्रजनन :
इस पक्षी का घोंसला बनाने और अंडा देने का ढंग बड़ा ही निराला है। धनेश घोंसले नहीं बनाते। मार्च से जून के बीच, जब अंडा देने का समय नज़दीक आता  है,  तब नर धनेश मादा को किसी पेड़ के तने के खोखले भाग के छिद्र (कोटर) में बिठा देता है। मादा इसी में अंडा देती है। एक बार मे 2-3 अंडे देने के बाद मादा अंडे सेने बैठ जाती है। नर मादा को उस कोटर में बिठाकर छिद्र का द्वार पेड़ की छाल के गूदे और अपने चिपचिपे थूक से बंद कर देता है, केवल एक छोटा-सा सुराख भर छोड़ता है। इस सुराख से मादा की चोंच निकली रहती है। नर बाहर से मादा के लिए भोजन ला-लाकर उसकी निकली हुई चोंच में भोजन पहुँचाता रहता है। भीतर बैठी मादा आराम से भोजन खाती और अंडे सेती रहती है। खुद को दिए गए इस कारावास के दौरान मादा के पंख झड़ जाते हैं। बाद में फिर से नए पंख निकल भी आते हैं। अंडा फूटने पर जब उसमें से बच्चा बाहर निकलता है। बच्चे तो उसी घर में रह जाते हैं, लेकिन मादा के बाहर निकलने के लिए द्वार तोड़ दिया जाता है। इसके बाद माता-पिता दोनों मिलकर द्वार पर छोड़ी गई दरार से चूजों को भोजन कराते हैं। धनेश के अंडों से चूजे एक साथ नहीं निकलते। बड़ा चूजा छोटे चूजे से 4-5 दिन बड़ा हो सकता है। इस तरह की क्रिया को ‘असिंक्रोनोअस हैचिंग’ कहते हैं। इस प्रकार चूजे उसी सुरक्षित घर में भय रहित रहते हैं। जब उसके पर निकल आते हैं और वह उड़ने लायक हो जाता है, तब वह द्वार पर बनी दरार को बड़ा करके बाहर आ जाता है। एक-दो दिन बाद छोटा चूजा भी बाहर आ जाता है।

विलुप्तता की कगार पर

समय के साथ यह पक्षी कई कठिनाइयों का सामना कर रहा है। लोगों के अंधविश्वास की मानसिकता ने आज इस पक्षी को विलुप्तता की कगार पर पहुँचा दिया है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा गठिया रोग के लिये धनेश का तेल रामबाण औषधि है। ऐसी मान्यता के चलते इस अद्भुत् पक्षी की हत्या दिन ब दिन हो रही है। 

संदर्भ

1.   The Book of Indian Birds – Salim Ali

2.  Popular Handbook of Indian Birds – Hugh Whistler

3.  Birds of the Indian Subcontinent – Richard Grimmett, Carlos Inskipp, Tim Inskipp

4.  Latin Names of Indian Birds – Explained – Satish Pande

5.  Pashchimbanglar Pakhi – Pranabesh Sanyal, Biswajit Roychowdhury

6.  भारत का राष्ट्रीय पक्षी और राज्यों के राज्य पक्षी परशुराम शुक्ल

7.  हमारे पक्षी असद आर. रहमानी

8.  एन्साइक्लोपीडिया पक्षी जगत राजेन्द्र कुमार राजीव

9.  Watching Birds – Jamal Ara

10.  Net -

 

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सफलता बदला लेने का सबसे अच्छा तरीक़ा है

 

‘सफलता बदला लेने का सबसे अच्छा तरीक़ा है’

मनोज कुमार

1991 में रतन टाटा टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। तब टाटा मोटर्स की पहचान ट्रक और पैसेंजर कार (बस) बनाने की सबसे बड़ी कंपनी के तौर पर होती थी। अब तक भारतीय बाजार में जितनी भी कार थी उसकी सफलता के पीछे विदेशी कंपनियों की टेक्नोलॉजी, डिजाइन और साझेदारी थी।  रतन टाटा एक स्वदेशी कार बनाना चाहते थे। चेयरमैन बनने के बाद उन्होंने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। परिणामस्वरूप 1998 में रतन टाटा द्वारा हैचबैक कार इंडिका लांच की गयी। इसमें कोई इम्पोर्टेड टेक्नोलोजी का इस्तेमाल नहीं किया गया था। जब कार मार्केट में लॉंच हुई तो उम्मीदें बहुत थीं, लेकिन कार उम्मीदों पर खडी नहीं उतरी और रतन टाटा का सपना टूटने लगा। लोगों ने इसे पसंद ही नहीं किया।


साल भर के अन्दर ही टाटा को लगा कि यह कोई फलदायी परियोजना नहीं है। दिल्ली - मुंबई की सड़कों पर बारिश के बीच अगर कोई कार सबसे ज्यादा ब्रेकडाउन हुई तो वो इंडिका थी। यह कार बिक्री कम होने के कारण कार मार्केट में अपनी छाप छोड़ने में असफल रही। रतन टाटा को काफी घाटा हो रहा था। कम बिक्री की वजह से टाटा मोटर्स ने कार डिवीजन को बेचने का फैसला किया। फोर्ड मोटर्स ने इस कार फैक्टरी को खरीदने में अपनी रूचि दिखाई

डेट्रायट शहर ऑटो मैन्युफैक्चरिंग के लिए मशहूर है। यह शहर मिशिगन झील के दक्षिण-पूर्व में अमेरिकी इंडस्ट्री का नगीना माना जाता है। यहीं फोर्ड का मुख्यालय है। रतन टाटा अपने पूरे बोर्ड मेम्बर्स के साथ  डेट्रायट गए। फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड से मिले। दोनों के बीच मीटिंग हुई। तीन घंटे तक चली बैठक में बिल फोर्ड ने रतन टाटा के साथ काफी अपमानजनक व्यवहार किया और कहा कि आप इस  कार निर्माण के धंधे में नौसिखिए हैं। इस बिजनेस इंडस्ट्री के बारे में कुछ नहीं जानते। आपको कारों की तकनीकी बारीकियों का ज़रा पता नहीं है। आपके पास जब पैसेंजर कार बनाने का कोई अनुभव नहीं था, तो आपने ये बचकानी हरकत क्यों की। कोई बच्चा भी इतना पैसा नहीं लगाएगा जहां उसे सफलता ना मिले। आपको कार डिवीजन शुरू ही नहीं करना चाहिए था। फोर्ड आपकी कार डिविजन खरीदकर टाटा मोटर्स पर एहसान कर रही है। 

रतन टाटा ने गरिमापूर्ण चुप्पी कायम रखी, डील कैंसिल किया, और उसी शाम डेट्रायट से न्यूयार्क लौटने का फैसला किया। 90 मिनट की फ्लाइट में रतन टाटा उदास से रहे। दूसरे दिन वे भारत लौट आए  फोर्ड कंपनी के मालिक के बेहद ही नकारात्मक कमेंट को भी इन्होंने सकारात्मक रूप में लिया। बिल की बातों को उन्होंने दिल पर नहीं लिया, बल्कि उसे दिमाग पर लिया और कंपनी बेचने की सोच को ना सिर्फ टाला बल्कि उन्होंने ठान लिया था कि वे कंपनी को ऊंचाइयों पर पहुंचाएंगे। रतन टाटा ने उस कंपनी को फिर से ऐसी खड़ी की उसने नया इतिहास रच डाला।  भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना पूरा फोकस मोटर लाइन में लगा दिया उनके इरादे बुलंद थे। लक्ष्य बस एक था, फोर्ड को सबक सिखाना है। लेकिन चैलेंज बहुत बड़ा था। इसके लिए उन्होंने एक रिसर्च टीम तैयार की और बाजार का मन टटोला। फिर उस कार को फिर से लॉन्च किया।  कहते हैं न कि रेस्ट इज हिस्टरी, उसी तरह भारतीय बाजार के साथ-साथ विदेशों में भी टाटा इंडिका ने सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ कुछ ही समय में टाटा ने इस क्षेत्र में एक विश्वस्तरीय व्यवसाय स्थापित किया


समय का पहिया घूमा 2008 में टाटा मोटर्स के पास बेस्ट सेलिंग कारों की एक लंबी लाइन थी। 2008 में विश्वस्तरीय आर्थ‍िक मंदी हुई फोर्ड मोटर्स दिवालिएपन की कगार पर आ गयी उनकी प्रीमियम सेगमेंट कारें जगुआर और लैंड रोवर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही थीं उसे अपने जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) डिवीजन के लिए एक अच्छे खरीदार की तलाश थी। 

अवसर के महत्त्व को समझते हुए रतन टाटा ने फोर्ड की लग्जरी कार लैंड रोवर और जगुआर बनाने वाली कंपनी जेएलआर को खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिसको फोर्ड ने स्वीकार भी कर लिया। बिल फोर्ड बातचीत के लिए मुम्बई आए और कहा कि रतन टाटा उनसे ये कारें खरीद कर उन पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं

रतन टाटा ने 2.3 बिलियन डॉलर में जेएलआर खरीद लिया। टाटा ने न केवल जेएलआर को खरीदा, बल्कि उन्होंने इसे अपने सबसे सफल उपक्रमों में से एक में बदल दिया। इस डील के कुछ ही सालों के बाद टाटा मोटर्स ने इसमें कुछ बदलाव लिए और आज जगुआर और लैंड रोवर्स टाटा मोटर्स की सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों में से एक हैं।

रतन टाटा चाहते तो बिल फोर्ड का अपमान कर बदला ले सकते थे, लेकिन वे चुप ही रहे वे लकीर छोटी करने के बजाए बड़ी लकीर खींचने में यकीन रखते थे अगर किसी ने अपमान किया हो तो बेहतर है कि पहले से भे बेहतर मनुष्य बन जाइए यही उस व्यक्ति को सबसे अच्छा जवाब है कहते हैं, आम लोग अपमान का बदला तत्काल लेते हैं, पर महान उसे अपनी जीत का साधन बना लेते हैं। रतन टाटा के इस केस में यह कहावत चरितार्थ हुई कि ‘सफलता बदला लेने का सबसे अच्छा तरीक़ा है’

(चित्र साभार गूगल)

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

फ़ॉकलैंड द्वीप समूह विवाद

 

फ़ॉकलैंड द्वीप समूह विवाद

मनोज कुमार

 

ख़बर है कि दक्षिण अमेरिका के देश अर्जेंटीना फ़ॉकलैंड विवाद के हल करने में भारत की सहायता चाहता है। अर्जेंटीना की सरकार ने रविवार, 24 अप्रैल, 2022 को भारत में इस द्वीप पर नियंत्रण को लेकर ब्रिटेन से बातचीत के लिए एक अभियान की शुरुआत की है। उन्होंने एक कमीशन गठित की है, ‘जिसका नाम द कमीशन फॉर द डायलॉग ऑन द क्वश्चेन ऑफ द माल्विनास आईलैंड्स’ है। इसमें भारत के भी सदस्य हैं। इस कमीशन का मक़सद संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुरूप फ़ॉकलैंड विवाद पर ब्रिटेन से बातचीत शुरू करवाना है। ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच इसकी संप्रभुता को लेकर यह विवाद वर्षों पुराना है। भोगौलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से फ़ॉकलैंड ब्रिटेन की अपेक्षा अर्जेण्टीना के काफी निकट है। अर्जेंटीना इन द्वीपसमूहों को अपना भू- भाग मानता है किन्तु ब्रिटेन उसे अपना उपनिवेश मानता है।

फ़ॉकलैंड दक्षिण अटलांटिक महासागर में स्थित एक द्वीप समूह है, जिसे माल्विनास द्वीप या इस्लास माल्विनास भी कहा जाता है। आज यह यूनाइटेड किंगडम का आंतरिक रूप से स्वशासी विदेशी क्षेत्र है। यह अर्जेंटीना से 500 कि.मी. दूर दक्षिण अटलांटिक महासागर में पेटागोनियन शेल्फ पर एक द्वीपसमूह है। इस द्वीपसमूह का क्षेत्रफल 12,000 वर्ग किलोमीटर है।  इसमें वेस्ट फ़ॉकलैंड, ईस्ट फ़ॉकलैंड और 776 छोटे द्वीप शामिल हैं। ब्रिटेन से फ़ॉकलैंड की दूरी 14,000 किलोमीटर है। यहाँ कई बिखरी हुई छोटी बस्तियाँ और साथ ही एक रॉयल एयरफोर्स बेस भी है जो राजधानी स्टेनली से लगभग 56 किमी दक्षिण-पश्चिम में माउंट प्लेजेंट में स्थित है। फ़ॉकलैंड द्वीप समूह की सरकार दक्षिण जॉर्जिया और दक्षिण सैंडविच द्वीप समूह के ब्रिटिश समुद्रपारीय क्षेत्र का भी संचालन करती है, जिसमें शैग और क्लर्क चट्टानें शामिल हैं, जो फ़ॉकलैंड के पूर्व और दक्षिण-पूर्व में 1,100 से 3,200 किमी की दूरी पर स्थित है।

यहाँ की जलवायु सर्द और  नम है। यहां का वार्षिक औसत तापमान लगभग 5 डिग्री सेल्सियस, औसत अधिकतम 9 डिग्री सेल्सियस और औसत न्यूनतम 3 डिग्री सेल्सियस है। फ़ॉकलैंड्स द्वीप पर कोई भी स्तनपायी (Mammals) पशु नहीं हैं। यहां की जंगली लोमड़ी विलुप्त हो रही है। द्वीपों पर काले-भूरे रंग के अल्बाट्रोस, फ़ॉकलैंड पिपिट्स, पेरेग्रीन फाल्कन्स और धारीदार काराकारस सहित पक्षियों की लगभग 65 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। फ़ॉकलैंड रॉकहॉपर, मैगेलैनिक, जेंटू, किंग और मैकरोनी जैसे पेंगुइन के लिए प्रजनन स्थल है। डॉल्फ़िन और पोरपोइज़ बहुतायत में पाए जाते हैं।


** चित्र साभार गूगल

सन 2012 में 2,840  की जनसंख्या वाले इस द्वीपसमूह के 98 प्रतिशत लोगों को ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त है। यहाँ के लोगों की बोली अंग्रेजी है और इसमें मुख्य रूप से ब्रिटिश मूल के फ़ॉकलैंडर्स शामिल हैं और वे अपने को ब्रिटिश न कहकर ‘केल्पर’ (kelpers) कहते है। फ़ॉकलैंड द्वीप पर धर्म मुख्य रूप से ईसाई धर्म है, जिनमें से प्राथमिक संप्रदाय चर्च ऑफ इंग्लैंड, रोमन कैथोलिक, यूनाइटेड फ्री चर्च और लूथरन हैं। द्वीपों पर रहने का पैटर्न स्टेनली और छोटे, अलग-थलग भेड़-खेती समुदायों के बीच बंटी हुई है। आबादी का अस्सी प्रतिशत हिस्सा स्टेनली में रहता है। स्टेनली के बाहर दो मुख्य द्वीपों का लगभग पूरा क्षेत्र भेड़ पालन के लिए समर्पित है। द्वीपों पर लाखों की संख्या में भेड़ें रखी जाती हैं, जिससे सालाना कई हज़ार टन ऊन और साथ ही कुछ मटन का उत्पादन होता है। ऊन फ़ॉकलैंड्स का प्रमुख भूमि-आधारित निर्यात है और इसे ग्रेट ब्रिटेन में बेचा जाता है। 20वीं सदी के अंत में सरकार ने कॉरपोरेट-स्वामित्व वाले खेतों के बजाय छोटे, स्थानीय रूप से संचालित खेतों की संख्या में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाई। 1987 में विदेशियों को मछली पकड़ने के लाइसेंस बेचना शुरू किया गया। 2002 में एक वध सुविधा का निर्माण किया गया और भेड़ और भेड़ के मांस को यूनाइटेड किंगडम में निर्यात किया जाने लगा। जब अध्ययनों से पता चला कि यहां अपतटीय तेल भंडार की उपस्थिति है, तो विदेशी कंपनियों को तेल की खोज के लिए लाइसेंस दिए गए। पर्यटन, विशेष रूप से पारिस्थितिक पर्यटन, यहां की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख अंग है। स्टेनली हार्बर यहां का मुख्य बंदरगाह है; और क्रूज जहाजों को यहां खड़े किए जाते हैं।

17वी शताब्दी के पहले तक, ये द्वीप निर्जन थे। फ़ॉकलैंड द्वीप समूह पर कभी स्वदेशी आबादी नहीं थी। फ़ॉकलैंड की खोज यूरोप के लोगों ने की थी। इस बात का कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं है कि यूरोपीय लोगों द्वारा देखे जाने और बसने से पहले कोई भी द्वीपों पर रहता था या यहां तक कि उन द्वीपों का दौरा भी करता था। समय के साथ यह कई देशों जैसे फ़्रेंच, स्पैनिश, ब्रिटिश और अर्जेंटीना का उपनिवेश बनता रहा। पहले यह फ्रांस की बस्ती बना। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजी नाविक जॉन डेविस 1592 में फ़ॉकलैंड्स को देखने वाले पहले व्यक्ति थे। लेकिन डचमैन सेबाल्ड डी वेर्ड्ट ने 1600 के आसपास पहली बार निर्विवाद रूप से इस द्वीप समूह की जानकारी दी। 1690 में एक अंग्रेज़ कैप्टन जॉन स्ट्रांग पहली बार यहाँ पहुँचे। फ़ॉकलैंड नाम भी उन्होंने अपने अभियान के दौरान अपने संरक्षक एंथोनी केरी, 5वां विस्काउंट फ़ॉकलैंड के नाम पर रखा था। लेकिन इस द्वीप समूह में कोइ बस्ती नहीं बसाई गयी। पहली बस्ती 1764 में फ्रांसीसी नाविक एडमिरल लुई-एंटोनी डी बोगेनविले ने पूर्वी फ़ॉकलैंड में बसाई थी। उसने द्वीपों का नाम अपने घरेलू बंदरगाह के नाम पर माल्विनास रखा। 1765 में ब्रिटेन ने  पश्चिम फ़ॉकलैंड में बस्ती बसाई।  1767 में स्पेन ने फ्राँसीसी बस्ती को खरीद लिया। 1770 में जब ब्रिटिश अपने लिए द्वीपों का दावा करने पहुंचे, तो स्पेन ने ब्रिटेन को यहाँ से खदेड़ दिया। अगले ही वर्ष ब्रिटेन ने युद्ध की धमकी दी और 1771 में वेस्ट फ़ॉकलैंड पर ब्रिटिश चौकी को बहाल कर दिया। लेकिन आर्थिक कारणों से, फ़ॉकलैंड पर अपने दावे को त्यागे बिना, ब्रिटिश 1774 में फ़ॉकलैंड द्वीप से हट गए।

स्पेन ने 1811 तक पूर्वी फ़ॉकलैंड (जिसे इसे सोलेदाद द्वीप कहा जाता है) पर अपनी बस्ती बसाए रखी। 1811 में स्पेन ने फ़ॉकलैंड स्थित किला और स्टेनली बंदरगाह को ब्रिटेन के हवाले करते हुए एक समझौता किया था। अर्जेंटीना ने 1816 में स्पेन से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। फिर 1820 में अर्जेंटीना सरकार, ने फ़ॉकलैंड पर अपनी संप्रभुता की घोषणा की। 1828 में उसने अंग्रेजों को वहां से खदेड कर अपना गवर्नर नियुक्त कर दिया। 1831 में अमेरिकी युद्धपोत लेक्सिंगटन ने पूर्वी फ़ॉकलैंड पर अर्जेंटीना की बस्ती को नष्ट कर दिया। अमेरिका ने ऐसा तीन अमेरिकी पोतों को ज़ब्त किए जाने के जवाब में किया था, जो इस क्षेत्र में सील का शिकार कर रहे थे।

1833 की शुरुआत में ब्रिटेन ने अमरीका की मदद से इस द्वीप पर फिर से अधिकार जमा लिया। 1833 की शुरुआत में एक ब्रिटिश सेना ने बिना गोली चलाए कुछ शेष अर्जेंटीना के अधिकारियों को द्वीप से निष्कासित कर दिया। 1841 में फ़ॉकलैंड में एक ब्रिटिश नागरिक को लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया और वर्ष 1885 तक इन द्वीपों पर लगभग 1,800 लोगों का एक ब्रिटिश समुदाय बस गया। 1892 में ब्रिटेन ने इसे अपना उपनिवेश घोषित कर दिया। तब से लेकर आज तक यह ब्रिटिश उपनिवेश है। अर्जेंटीना लगातार ब्रिटेन के इस क़ब्ज़े का विरोध करता रहा।

अर्जेंटीना हमेशा से ही इन द्वीपों को अपना भाग बताता रहा है, और आज भी इस पर दावा करता है। अर्जेंटीना कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा सम्मेलनो में अपने स्वामित्व के दावे को लगातार दोहराता रहा है किन्तु फॉकलैण्ड द्विप समूह से 12,000 कि.मी. दूर स्थित ब्रिटेन इसे अपना उपनिवेश मानता है। ब्रिटेन फ़ॉकलैंड को इसलिए अपना उपनिवेश बनाये रखना चाहता है क्योंकि फॉकलैण्ड ऑयल कम्पनी तथा तेल और प्राकृतिक गैस के विपुल भण्डारों से उसे करोड़ों पौंड का मुनाफा मिलता है। यहां का कार्यकारी अधिकार ब्रिटिश ताज (क्राउन) में निहित है, और द्वीपों की सरकार का नेतृत्व ताज द्वारा नियुक्त राज्यपाल (गवर्नर) द्वारा किया जाता है। कोई राजनीतिक दल नहीं हैं, और विधायिका के सभी सदस्य निर्दलीय के रूप में चुने जाते हैं। विधान सभा में 10 सदस्य होते हैं, जिनमें से 8 चुने हुए और दो नामित सदस्य होते हैं। सरकार को निर्णय लेने की स्वायत्तता है, लेकिन गवर्नर को रक्षा और आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर ब्रिटिश सेना के क्षेत्रीय कमांडर से परामर्श करना होता है। आधिकारिक मुद्रा फ़ॉकलैंड पाउंड है, जो ब्रिटिश पाउंड के बराबर है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, जिसका मुख्यालय लंदन में है, यहां का एकमात्र बैंक है। स्टेनली में एक प्राथमिक और एक माध्यमिक विद्यालय और ग्रामीण क्षेत्रों में कई छोटे स्कूल हैं। स्टेनली के एक अस्पताल द्वारा नि:शुल्क चिकित्सा सेवा प्रदान की जाती है।

अर्जेंटीना ने द्वीपों पर ब्रिटेन के कब्ज़े का लगातार विरोध किया। अर्जेंटीना का मानना है कि ब्रिटेन ने खुली औपनिवेशिक कार्रवाई की नीति अपनाते हुए अर्जेंटीना से इस द्वीप को जबरदस्ती छीना था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फ़ॉकलैंड द्वीप समूह पर संप्रभुता का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र (UN) में स्थानांतरित हो गया। 1964 में द्वीपों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा उपनिवेशवाद पर बहस शुरू की गई। बातचीत जारी हुई लेकिन दोनों देशों के बीच इस द्वीप समूह को लेकर तनाव बने रहे। वर्ष 1965 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विवाद का शांतिपूर्ण समाधान खोजने हेतु ब्रिटेन और अर्जेंटीना को विचार-विमर्श के लिये आमंत्रित करने वाले प्रस्ताव 2065 को मंज़ूरी दी। वर्ष 1493 के एक आधिकारिक दस्तावेज़ के आधार पर अर्जेंटीना ने फाकलैंड पर अपना दावा प्रस्तुत  किया जिसे टॉर्डेसिलस की संधि (1494) द्वारा संशोधित किया गया। इस संधि के तहत स्पेन और पुर्तगाल ने द्वीपों की दक्षिण अमेरिका से निकटता, स्पेन का उत्तराधिकार, औपनिवेशिक स्थिति को समाप्त करने की आवश्यकता के आधार पर नई दुनिया को आपस में बांट लिया। ब्रिटेन ने फाकलैंड द्वीप पर अपने "स्वतंत्र, निरंतर, प्रभावी कब्ज़ें, व्यवसाय और प्रशासन" के आधार पर दावा प्रस्तुत किया जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर में मान्यता प्राप्त आत्मनिर्णय के सिद्धांत को फाकलैंडर्स पर लागू करने के अपने दृढ़ संकल्प पर आधारित था। इस बीच जहां एक और ब्रिटेन में राजतंत्र के रहते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था थी, वहीं दूसरी और 1970 के दशक में अर्जेंटीना में मिलिटरी शासन जुंटा बहाल हो चुकी थी।

दोनों देशों के बीच बातचीत चलती रही लेकिन स्थिति सुधरने के वजाए बिगड़ती गयी और 1982 में नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच युद्ध हुआ। शुक्रवार 2 अप्रैल, 1982 को अर्जेण्टीना ने अपने 4000 नौ सैनिकों की सहायता से फॉकलैण्ड और सेट जार्जिया, आदि द्वीपो पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश गवर्नर रेक्स हण्ट को पोर्ट स्टेनली से बाहर कर दिया। उस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर थीं। उन्होंने  मंत्रीमंडल की आपातकालीन बैठक बुलाई और फौरन जवाबी कार्रवाई के आदेश दिए। दूसरे ही दिन एच.एम.एस. इनविंसिबल (H.M.S Invincible) नामक युद्धपोत के नेतृत्व में ब्रिटिश नौसेना पोर्टस्माउथ बदरगाह के लिए रवाना हो गयी। विशाल ब्रिटिश नौसेना तथा वायुसेना के बमवर्षक विमानो ने फॉकलैण्ड स्थित अर्जेण्टीना के सैनिक ठिकानो पर हमला किया। प्रतिरोध में अर्जेण्टीना ने आणविक शस्त्रों से युक्‍त ब्रिटिश विध्वंसक ‘शैफील्ड’ को तारपीडो का निशाना बनाकर ध्वस्त कर दिया। अर्जेण्टीना का विशाल पोत ‘जनरल बेलग्रानों (General Belgrano) भी 368 नौ सैनिकों सहित डूब गया। अन्ततः मई के अन्त तक अर्जेंटीना के जनरल गैलतियेरी के सामने स्पष्ट हों गया कि अधिक देर तक जारी रखने से यह युद्ध आणविक युद्ध मे परिवर्तित हो सकता है, जिसका प्रतिरोध करने की क्षमता उनके पास नहीं है। इधर अमरीका ने जनरल गैलतियेरी के साथ हुए वायदों को ताक पर रखकर युद्ध में ब्रिटेन का साथ दिया। यह युद्ध दस-सप्ताह तक चला। लेकिन अर्जेंटीना को सफलता नहीं मिली। ब्रिटेन एक महाशक्ति था और अर्जेंटीना एक छोटा-सा देश। अर्जेंटीना की आर्थिक तथा आंतरिक परिस्थितियां भी प्रतिकूल होने लगी। 14 जून को अर्जेन्टीनी सैनिकों ने फॉकलैण्ड की राजधानी स्टेनली में ब्रिटिश मेजर जनरल जे.जे. मूर के समक्ष अर्जेण्टीना के ब्रिगेडियर जनरल मारियों बेंजामिनों मेनेदेज ने 845 सैनिकों सहित हथियार डाल दिये और अर्जेंटीना की सेना के आत्मसमर्पण के साथ  72 दिवसीय  युद्ध समाप्त हुआ। इस युद्ध में दोनों ओर से 900 से ज्यादा सैनिक मारे गए।

फ़ॉकलैंड युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश प्रशासन को बहाल किया गया था। फ़ॉकलैंड द्वीपसमूह पर ब्रिटेन का पुनः अधिकार हो गया किन्तु फ़ॉकलैंड द्विपसमूह के स्वामित्व का प्रश्न अनसुलझा ही रहा। तब से ब्रिटेन इस विषय पर कोइ बातचीत नहीं करना चाहता है। ब्रिटेन का कहना है कि जब द्वीप का समूह हमारे अधीन है तो हम इस पर क्यों बातचीत करें, और हम इस पर भविष्य में भी किसी प्रकार से कोई बातचीत नहीं करना चाहते हैं। ब्रिटेन का यह भी मानना है कि फ़ॉकलैंड के लोगों ने ब्रिटिश के साथ रहने की साफ इच्छा जाहिर की है और अर्जेंटीना की सरकार को इसका आदर करना चाहिए। हालांकि ब्रिटेन और अर्जेंटीना ने वर्ष 1990 में पूर्ण राजनयिक संबंधों को फिर से स्थापित किया, लेकिन दोनों देशों के मध्य फ़ॉकलैंड पर संप्रभुता का मुद्दा विवाद का विषय बना रहा। ब्रिटेन ने द्वीप पर करीब 2,000 सैनिकों की तैनती को जारी रखा। जनवरी 2009 में एक नया संविधान लागू हुआ जिसने फाकलैंड की स्थानीय लोकतांत्रिक सरकार को मज़बूती प्रदान की और इस  क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति को निर्धारित करने के लिये वहां रहने वाले लोगों के अधिकारों को सुरक्षित किया। मार्च 2013 में आयोजित एक जनमत संग्रह में फाकलैंड द्वीप ने ब्रिटिश क्षेत्र में बने रहने के लिये लगभग सर्वसम्मति से मतदान किया। फ़ॉकलैंडर्स उन्हीं के वंशज थे और खुद को ब्रिटिश नागरिक के रूप में देखते थे।  ब्रिटेन ने ज़ोर देकर कहा कि औपनिवेशिक स्थिति को समाप्त करने से अर्जेंटीना के शासन और उसकी इच्छा के विरुद्ध फाकलैंड के नागरिकों के जीवन पर नियंत्रण की स्थिति उत्पन्न होगी।

अब फ़ॉकलैंड को लेकर अर्जेंटीना के विदेश मंत्री ने कैंपेन की शुरुआत की है और कहा है कि भारत पारंपरिक रूप ब्रिटेन के साथ विवाद सुलझाने का समर्थन करता रहा है। इसमें कोइ शक़ नहीं कि भारत फ़ॉकलैंड को लेकर ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच के विवाद को बातचीत के ज़रिए सुलझाने का समर्थन करता रहा है और उपनिवेशवाद को ख़त्म करने में भारत की भूमिका अग्रणी रही है। कुछ लोगों का मानना है कि कमीशन का सदस्य बनने में कोइ हर्ज़ नहीं है, लेकिन फ़ॉकलैंड को लेकर भारत को तटस्थ ही रहना चाहिए। हमें न तो ब्रिटेन का समर्थन करना चाहिए और न ही अर्जेंटीना का। हालाकि उपनिवेशवाद को लेकर हमारे रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया है, लेकिन जहाँ तक उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ स्पष्ट बात रखने की बात है तो हर देश अपने हित के हिसाब से ही अपनी मुखरता दिखाते हैं और भारत को भी वर्तमान हालात के अनुरूप ही नीति अपनानी चाहिए।

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