351. देवदास गांधी का विवाह
1933
गांधीजी द्वारा उनके
लंबे उपवास के सफल समापन के तुरंत बाद, एक महत्वपूर्ण घरेलू घटना घटी, देवदास गांधी का सी.
राजगोपालाचारी की पुत्री लक्ष्मी से विवाह। विवाह 16 जून, 1933
को
पर्णकुटी में संपन्न हुआ,
जहाँ
लक्ष्मण शास्त्री ने पुरोहित का कार्य किया। यह अन्तरजातीय विवाह था, ब्राह्मण
कन्या का वणिक पुत्र के साथ। प्रेमलीला ठाकरे ने स्वयं विवाह की सारी व्यवस्थाएँ
कीं। गांधीजी विवाह में अनावश्यक ख़र्च नहीं चाहते थे। कम से कम लोगों को निमंत्रित
किया गया था। यहां तक कि पुत्रवधू निर्मला को शादी में आने से रोक दिया गया।
गांधीजी ने देवदास को
हिंदी प्रचार के लिए दक्षिण भारत भेजा था और उसी दौरान वे कुछ समय राजाजी के साथ
रहे और लक्ष्मी से मिले। दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए थे। देवदास को 1927
में लक्ष्मी से प्यार हो गया था, और उसके बाद के सभी वर्षों ने उनके
प्रति उनके प्यार को और पुष्ट किया। हर साल गांधीजी से इस शादी के लिए आशीर्वाद
मांगा जाता,
और
हर साल वे मना कर देते। गांधीजी ने तीन साल की एक परीक्षण अवधि निर्धारित की थी, जिसमें उन्हें न तो
मिलना था और न ही एक-दूसरे को पत्र लिखना था, ताकि यह देखा जा सके कि उनका आपसी
आकर्षण सच्चा प्रेम था,
न
कि केवल मोह। अंततः देवदास अपनी आपत्तियों पर काबू पाने में सफल रहे और अब, तैंतीस वर्ष की आयु
में,
लेडी
ठाकरे के घर में एक संक्षिप्त समारोह में उनका विवाह संपन्न हुआ, जो कुछ ही मिनटों में
संपन्न हो गया। न कोई धूमधाम थी, न कोई दावत। गांधीजी ने स्वयं
समारोह के पाठ को फिर से लिखा था, और उसे इतना संक्षिप्त कर दिया था
कि केवल मूल बातें ही शेष रह गईं। वैष्णव गीत गाया गया। गांधीजी की दृष्टि में यह
गीत विवाह संस्कार का केंद्रीय तत्व बन गया और उन्होंने प्रेमियों को केवल इस शर्त
पर आशीर्वाद दिया कि वे गीत में निहित आदेशों का पालन करें।
गांधीजी ने एक
संक्षिप्त भाषण में दंपत्ति को आशीर्वाद दिया। उन्होंने देवदास से कहा कि वह
भाग्यशाली हैं कि इस अवसर पर उन्हें आशीर्वाद देने के लिए इतने सारे मित्र और
वरिष्ठजन मौजूद थे। गांधीजी ने आगे कहा, उन्होंने राजगोपालाचारी से एक
अनमोल रत्न छीन लिया था। "उनकी रक्षा करो, उनकी रक्षा वैसे ही करो जैसे तुम
लक्ष्मी की करते हो,
जो
अच्छे और सुंदर की देवी हैं। आप दोनों दीर्घायु हों और धर्म के मार्ग पर
चलें।"
धार्मिक समारोह 16 जून
को हुआ। चूँकि पारंपरिक हिंदू प्रथा का पालन नहीं किया गया, इसलिए पाँच दिन बाद एक
नागरिक समारोह हुआ। चूँकि यह प्रतिलोम विवाह था, जिसमें दूल्हा जाति पदानुक्रम में
निचले पद से संबंधित होता है (अनुलोम के विपरीत, जिसमें यह विपरीत होता है), धार्मिक विवाह संस्कार
अमान्य माने जाते हैं। वास्तव में जब गांधीजी ने मदन मोहन मालवीय से विवाह के लिए
आशीर्वाद मांगा,
तो
मालवीय ने कहा कि वे संबंध को स्वीकार नहीं करते, यद्यपि वे देवदास और उनकी पत्नी के
लिए शुभकामनाएं देते हैं। इसलिए राजगोपालाचारी ने सुझाव दिया कि ऐसी गैर-मान्यता
के किसी भी प्रतिकूल सामाजिक और नागरिक परिणाम से बचने के लिए विवाह को सिविल
विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत कराना वांछनीय होगा। तदनुसार देवदास और लक्ष्मी ने
10 जून को पूना में विवाह रजिस्ट्रार के समक्ष विवाह करने के अपने इरादे की घोषणा
की और 21 जून को 1872 के अधिनियम III के तहत उनका विवाह पंजीकृत हो गया।
57
साल
की उम्र में 3 अगस्त 1957
को
देवदास की मृत्यु हो गई। इससे पहले वो हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक रहे। देवदास के
तीन बेटे और एक बेटी थीं-गोपालकृष्ण गांधी, राजमोहन, रामचंद्र और तारा
गांधी। गोपालकृष्ण बंगाल के राज्यपाल थे। राजमोहन लेखक और पत्रकार रहने के साथ
राज्यसभा के सदस्य भी रहे। रामचंद्र गांधी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर थे। वहीं बड़ी
बेटी तारा ने अर्थशास्त्री ज्योति भट्टाचार्य से शादी की। वो गांधी स्मृति से
जुड़ी हुई हैं।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
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