गुरुवार, 15 मई 2025

328. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव

राष्ट्रीय आन्दोलन

328. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव



प्रवेश :

1929 के लाहौर कांग्रेस में पूर्ण स्वराज का लक्ष्य तो घोषित कर दिया गया, लेकिन अगले दो महीने तक चुप्पी छाई रही लोग गांधीजी के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे 26 जनवरी, 1930 को सारे देश में स्वाधीनता की शपथ ली गई अंग्रेजी सरकार की भर्त्सना की गई गांधीजी ने सविनय अवज्ञा का आह्वान किया नमक को आन्दोलन का मुख्य मुद्दा बनाया गया जिन लोगों ने नमक को लेकर संशय ज़ाहिर किया था, बाद में ग़लत साबित हुए नमक एक ऐसा मुद्दा था, जो सभी वर्गों को प्रभावित करता था इस आन्दोलन का इतना व्यापक प्रभाव हुआ कि यह कहना ग़लत नहीं होगा कि चुटकी भर नमक से साम्राज्य हिल गया

नमक यात्रा को दुनिया भर में प्रचार मिला, प्रेस की सुर्ख़ियों में जगह मिली। सविनय अवज्ञा आन्दोलन में करों की नाअदायगी भी शामिल थी इसने किसानों को इसका अवसर दिया कि वे अपनी सहायता ख़ुद करते हुए कुछ अतिरिक्त आय कर सकें नगरीय लोगों को मौक़ा मिला कि वे प्रतीक के रूप में जनता के व्यापक कष्टों से ख़ुद को एकाकार कर सकें जब आन्दोलन का विस्तार हुआ तो विदेशी कपड़ों और शराब का बहिष्कार भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया जहां-जहां से गांधीजी गुज़रे ग्राम अधिकारी अपने पदों से त्यागपत्र देने लगे वन विभाग के कानूनों का उल्लंघन करने की भी आज्ञा दे दी गई इस अवज्ञा आन्दोलन में शुरू से ही विदेशी शासन के साथ केवल असहयोग की जगह क़ानून का सायास उल्लंघन शामिल रहा

यह कहना कि ‘सविनय अवज्ञा का अत्यंत सीमित और प्रभावहीन रूप देखने को मिला’, सिर्फ जेल जाने वालों के आंकड़ों को देखें, तो सही प्रतीत नहीं होता बंगाल में 15000, बिहार में 14251, संयुक्त प्रान्त में 12651, पंजाब में 12000, पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में 5000, बंबई नगर में 4700, दिल्ली में 4500, गुजरात में 3549, तमिलनाडू में 2991, आंध्र में 2878 और मध्य प्रांत में 2255 लोग गिरफ्तार हुए देश के विभिन्न भागों में एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जाना प्रमाणित करता है कि आन्दोलन सीमित नहीं था 15 नवंबर 1930 को जो 29054 गिरफ्तारियां हुईं थीं उनमें से 2050 सत्रह वर्ष से भी कम आयु के किशोर थे और 359 स्त्रियाँ थीं ऊपर से सरकार द्वारा शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर नृशंस अत्याचार यह दर्शाता है कि सरकार डरी हुई थी और आन्दोलन काफी प्रभावी था सिर्फ इस आधार पर कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन में मुसलमानों की भागीदारी कम रही, यह कह देना कि यह आन्दोलन अत्यन्त सीमित और प्रभावहीन था, अतिसरलीकरण होगा सरकारी रिपोर्ट में इस बात को स्वीकार किया गया है कि कांग्रेस निम्नवर्गीय मुसलमानों के बड़े हिस्से को अपनी ओर करने में पर्याप्त सफल रही

पाश्चात्य विचारधारा से प्रभावित विद्वान यह बता कर कि सविनय अवज्ञा के साथ किसी बड़े श्रमिक आन्दोलन का आरंभ नहीं हुआ, यह बताने का प्रयास करते हैं कि सविनय अवज्ञा का स्वरुप अत्यंत सीमित और प्रभावहीन था वे यह भी बताना नहीं भूलते कि विरोध के बुद्धिजीवी रूप में कमी आई उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि गांधीजी ने स्कूल-कॉलेजों के बहिष्कार को अस्वीकार कर दिया था श्रमिकों और शहरी बुद्धिजीवी की कमी को व्यापारी वर्गों और किसानों के भारी समर्थन ने पूरा कर दिया था संगठनात्मक अनुशासन और शक्ति ने इस आन्दोलन को अधिक प्रभावी बनाया मध्यप्रांत. महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्यभारत के आदिवासी क्षेत्रों में सविनय अवज्ञा का प्रवेश और वन सत्याग्रह इसके विस्तार को दर्शाता है

आर्थिक दृष्टि से भी देखें तो इस आन्दोलन के प्रयासों से विदेशी कपड़ों के आयात में भारी कमी आई। 1929 में जो आयात 260 लाख पाउंड का था, वही 1930 में 137 लाख पाउंड का रह गया था। 1929-30 में जहां 12,480 लाख गज कपडे का आयात हुआ था, वहीं 1930-31 में घटकर 5,230 लाख गज का रह गया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वदेशी आन्दोलन ने भारतीय उद्योग की सहायता की। बंबई के ब्रिटिश स्वामित्व वाली 16 मिलों का कारोबार बंद हो गया। भारतीय स्वामित्व वाली कंपनी के कारोबार में दुगुनी वृद्धि हुई। खद्दर के उत्पादन में 63 लाख गज से 113 लाख गज की बढ़ोत्तरी हुई। 1929 में 384 खादी भंडारों की तुलना में 1930 में यह संख्या 600 हो गई।

ब्रिटिश सरकार नमक सत्याग्रह की रणनीति का महत्त्व आंकने में बुरी तरह विफल रही। नमक अपने आप में कोई बहुत महत्वपूर्ण चीज नहीं था, लेकिन यह राष्ट्रीयता का प्रतीक बन गया। लोग नमक बनाने के लिए संघर्ष नहीं कर रहे थे बल्कि उसके जरिए वे यह साबित कर रहे थे कि सरकारी दमन बहुत दिनों तक नहीं चल सकता। नमक यात्रा के चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नजर में आए। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी। नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा। विदेशों में भी इसकी प्रतिक्रिया देखी गई पनामा के भारतीय व्यापारियों ने 24 घंटे के लिए अपना काम ठप्प कर दिया। सुमात्रा में भी ऐसा ही हुआ। नैरोबी में भारतीयों ने दुकानें बन्द कर दी। अमेरिका से 102 पादरियों ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को एक तार भेजा कि गांधीजी और भारतीयों के साथ मैत्रीपूर्ण फैसला कर लेना चाहिए। यूरोपीय समाचार पत्र तो इन खबरों से रंगे ही रहते थे।  ‘न्यूफ़्रीमैन’ का अमरीकी संवाददाता वैब मिलर ने नृशंस लाठीचार्ज का आंखों देखा वर्णन किया था मिलर की रिपोर्ट युनाइटेड प्रेस के तहत जब विश्वभर के 1350 से अधिक समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई, तो सनसनी फैल गई।

इस आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि सत्य, अहिंसा और सविनय अवज्ञा में एक छिपी हुई ताक़त है, जो हिंसात्मक कार्रवाई को भी झुका सकती है। इस आंदोलन ने यह भी दिखा दिया कि क़ुर्बानी के लिए देश की जनता तैयार है और आज़ादी के लिए कुछ भी कर गुज़रना हर देशवासी का धर्म है। सबसे बड़ी बात थी, नमक आन्दोलन का अनुशासित ढंग से संपन्न होना, जो सम्पूर्ण सत्याग्रह की एक महान सफलता थी। अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा सत्याग्रह ने ब्रिटिश वर्चस्व तोड़ने के लिए भावनात्मक और नैतिक बल दिया था। गांधीजी का नमक आंदोलन और दांडी पदयात्रा आधुनिक काल के शांतिपूर्ण संघर्ष का सबसे अनूठा उदाहरण है। अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1930 में महात्मा गांधी की अगुआई में दांडी यात्रा के दौरान किए गए ‘नमक सत्याग्रह’ को दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले सर्वाधिक प्रभावशाली दस आंदोलनों में की सूची में अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाने वाली ‘बोस्टन चाय पार्टी’ के बाद दूसरे स्थान पर रखा है। नमक यात्रा की प्रगति को इस बात से भी समझा जा सकता है कि  अमेरिकी समाचार पत्रिका टाइम ने गांधी जो को 1930  का सर्वश्रेष्‍ठ मानव घोषित किया गया था।

 

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नमक जैसे इस प्रतीकात्मक विरोध मार्च ने भारत में विदेशी हुक़ूमत के पतन का भावनात्मक और नैतिक आधार दिया। राष्ट्रीय उद्देश्य को पाने के लिए एक कार्य-प्रणाली के रूप में शांतिपूर्ण सविनय अवज्ञा आंदोलन की उपयोगिता पर अब किसी को संदेह नहीं रह गया था। यह गांधी जी के ही नेतृत्व और प्रशिक्षण का चमत्कार था कि लोग अंग्रेजी हुकूमत की लाठियों के प्रहार को अहिंसात्‍मक सत्‍याग्रह से नाकाम बना गए। लोगों में यह विश्वास जड़ जमा चुका था कि वे विजय की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। देश के लोगों के मन में यह आशा बंध चली थी कि अहिंसात्मक मार्ग ही हमें स्वराज्य की ओर ले जाएगा। 75 वर्षों के सामाजिक सुधार के आंदोलन को भारतीय स्त्रियों को मुक्त करा पाने में जो सफलता नहीं मिली थी, वह इस आंदोलन ने हफ़्तों में प्राप्त कर ली। स्त्रियों का सिविल नाफ़रमानी के इस पूरे  आंदोलन में हज़ारों की संख्या में भाग लेना इस आंदोलन की एक और प्रमुख विशेषता थी। वे धरना देतीं, जुलूसों और प्रदर्शनों में शामिल होतीं, क़ानून तोड़तीं और जेल जातीं। दक्षिण अफ़्रीका से लेकर भारत तक में विदेशी शासन के ख़िलाफ़ महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए सभी सत्याग्रह आंदोलनों में नमक सत्याग्रह, राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक दमन, शोषण व अन्याय के ख़िलाफ़ अहिंसक प्रतिरोध का सबसे दमदार व सटीक उदाहरण है। गांधी जी की अद्भुत कार्यशैली ने साबित किया कि नमक के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा अकेले ही समूचे राष्ट्र को आंदोलित व स्पंदित कर उसे ‘पूर्ण स्वराज’ की प्राप्ति के रास्ते पर अग्रसर कर सकता है।

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मनोज कुमार

 

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संदर्भ : यहाँ पर

 

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