उस दिन दफ़्तर में पेपर कटिंग की एक छाया प्रति ख़ूब वितरित हो रही थी। किन्हीं विश्वस्त सूत्रों का हवाला देकर यह बताया गया था कि सरकार सेवानिवृत्ति की सीमा 60 वर्ष की जगह 62 वर्ष करने पर विचार कर रही है। अनुमान यह भी लगाया जा रहा था कि प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लालक़िले से देश को संबोधित करते वक़्त इसकी घोषणा भी कर देंगे। अनुभागों में कर्मचारियों के बीच इसकी मिश्रित प्रतिक्रिया थी। पर ज़्यादातर काफी ख़ुश थे। शाम को घर जाते वक़्त श्यामली और रूपसी लिफ्ट में मिलीं। अलग-अलग अनुभागों में कार्यरत होने के कारण दिनभर उनका मिलना हो नहीं पाया था। वे पक्की सहेली हैं। श्यामली बोली, “सुना है सरकार 62 करने जा रही है।”
रूपसी बोली, “हाँ, आज सब पेपर कटिंग लेकर घूम रहे थे।”
“अब तो मर ही जाऊँगी। ये जोड़ों का दर्द, उसपर बढ़ती उम्र। सोच रही थी कि इस महीने रिटायर हो जाऊँगी, तो घर पर बैठकर आराम करूँगी। अब तो दो साल और काम करना पड़ेगा। उफ! अब नहीं होगा हमसे।”
“हां, री” रूपसी बोली, “ सरकार का कौन सा नियम है यह, जो बूढ़े हैं, रोगग्रस्त हैं, उनसे और काम लेना चाहती है। इससे तो अच्छा होता जवान लड़कों से काम लेती, जो बिना काम के इधर-उधर घूमते रहते हैं।”
पंद्रह अगस्त को श्यामली और रूपसी ऑफिस के ध्वजारोहण कार्यक्रम में नहीं जाती हैं। अपने-अपने घर में टीवी पर आ रहे स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम का लालक़िले से सीधा प्रसारण देख रहीं हैं।
प्रधानमंत्री का भाषण समाप्त हो गया, पर उस तरह की कोई घोषणा नहीं हुई। श्यामली काफी दुखी एवं उदास हो गई। उसे इसी महीने सेवानिवृत्त होना पड़ेगा। तभी मोबाइल पर रूपसी का फोन आया। “श्यामली, अगले महीने से हम ऑफिस नहीं जा रहें हैं। हमें घर में ही बैठना होगा।”
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नपे-तुले शब्दों में तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग का सफल व्यंग्यात्मक मनो-विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंgood !
जवाब देंहटाएंMANOJ ! you have given true insight of the psyche of govt. servants !!
जवाब देंहटाएंकिसी भी हाल में सन्तुष्टि नहीं है ...अच्छी लघु कथा
जवाब देंहटाएंआदमी कभी संतुष्ट नहीं होता।
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ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
सच्चाई को उजागर करती खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बहुत सही कहा है आपने ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकिसी भी हाल में सन्तुष्ट न होना ही अब मानसिकता बन गयी है ..... अच्छा दर्शाया आपने ......
जवाब देंहटाएंhum bhartiy aise hi hai
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघु कथा ....
जवाब देंहटाएंसंतोष न तब था....
जवाब देंहटाएंऔर न अब है....
आगे भी होने का चांस नहीं
शानदार सोच
सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंहर बार एक ही बाट ....अगर ऐसा होता तो ज्यादा अच्छा होता .....
जवाब देंहटाएंसही चित्रण एक विशेष मानसिकता का ....!
शुभकामनायें .
अच्छी लघु कथा....
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