विश्व विटप की डाली पर है,
मेरा वह प्यारा फूल कहां!
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
जग में बस पीड़ा ही पीड़ा,
दुख ज्वाला में जलते तारे।
शशि के उर में करुण वेदना,
प्रिय चकोर हैं दूर हमारे।।
बड़ी विचित्र रचना इस जग की,
कांटों में खिलते फूल यहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
नीर बरसते झम-झम झम-झम,
बादल अम्बर के विरहाकुल।
टकरा-टकरा कर उपलों से,
तट छूने को लहरें व्याकुल।
कैसे पार लगेगी नौका,
हैं धाराएं प्रतिकूल यहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
सुमनों में अब वह सुरभि नहीं,
कोकिल की कूक में दर्द भरा।
मरघट की सी नीरवता में,
है डूब रही सम्पूर्ण धरा।।
सब देख रहे इक-दूजे को,
कर दी है किसने भूल कहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
*** *** *** ***
मेरा वह प्यारा फूल कहां!
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
जग में बस पीड़ा ही पीड़ा,
दुख ज्वाला में जलते तारे।
शशि के उर में करुण वेदना,
प्रिय चकोर हैं दूर हमारे।।
बड़ी विचित्र रचना इस जग की,
कांटों में खिलते फूल यहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
नीर बरसते झम-झम झम-झम,
बादल अम्बर के विरहाकुल।
टकरा-टकरा कर उपलों से,
तट छूने को लहरें व्याकुल।
कैसे पार लगेगी नौका,
हैं धाराएं प्रतिकूल यहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
सुमनों में अब वह सुरभि नहीं,
कोकिल की कूक में दर्द भरा।
मरघट की सी नीरवता में,
है डूब रही सम्पूर्ण धरा।।
सब देख रहे इक-दूजे को,
कर दी है किसने भूल कहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
*** *** *** ***
aaj ke halato ka dard liye sundar rachna .
जवाब देंहटाएंabhar
बहुत बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंसुंदर सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंमनोज जी ,
जवाब देंहटाएंसुमनों में अब वह सुरभि नहीं,
कोकिल की कूक में दर्द भरा।
मरघट की सी नीरवता में,
है डूब रही सम्पूर्ण धरा।।
सब देख रहे इक-दूजे को,
कर दी है किसने भूल कहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
बहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति
दर्द की अनुभूति का शानदार चित्रण जहाँ इंसान विवश महसूस करता है।
जवाब देंहटाएंबड़ी विचित्र रचना इस जग की,
जवाब देंहटाएंकांटों में खिलते फूल यहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
जीवन की दर्द भरी सच्चाई को खूब पिरोया है कविता में आपने.
बड़ी विचित्र रचना इस जग की,
जवाब देंहटाएंकांटों में खिलते फूल यहां।
कैसे पार लगेगी नौका,
हैं धाराएं प्रतिकूल यहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
वाह मनोज भाई, क्या अद्भुत शब्द संयोजन किया है आपने इस रचना में| बड़ी ही सरलता के साथ भावनाओं का सफल चित्रण किया है आपने| बहुत बहुत बधाई|
http://samasyapoorti.blogspot.com
सुन्दर ,अतिसुन्दर..
जवाब देंहटाएंसुमनों में अब वह सुरभि नहीं,
जवाब देंहटाएंकोकिल की कूक में दर्द भरा।
मरघट की सी नीरवता में,
है डूब रही सम्पूर्ण धरा।।
सब देख रहे इक-दूजे को,
कर दी है किसने भूल कहां।
है सुख की शीतल छांव कहां,
चुभते पग-पग पर शूल यहां!
बहुत सुन्दर शब्द संयोजन और काव्यात्मक रचना ..
आभार आप सबों का।
जवाब देंहटाएंManoj uncle,,ye rachna bahut achhi lagi mujhe..mere pas koi shabd nahi hai...main bhi kuchh rachna karta hun...aap mujhe aashirvad de ki main ek achha poet ban saqu..
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