गांधी और गांधीवाद-150
1909
टॉल्सटॉय और गांधी
गांधी जी के जीवनीकार लुई फ़िशर लिखते हैं, “मध्य रूस में एक स्लाव रईस उन्हीं आध्यात्मिक समस्याओं से जूझ रहा था, जिस पर दक्षिण अफ़्रीका में इस हिंदू वकील का ध्यान लगा था।” सबसे पहले पढ़ी, टॉल्सटॉय की पुस्तक ‘द किंगडम ऑफ़ गॉड विदिन यू’ के अध्ययन से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे। इसका अर्थ यह है कि ईश्वर का राज्य तुम्हारे हृदय में है। उसे बाहर खोजने जाओगे तो वह कहीं न मिलेगा। काउंट लियो टॉल्सटॉय (सितंबर 9, 1828 – नवंबर 20, 1910) के लेख गांधी जी का मार्गदर्शन करते थे और उनके संघर्ष में शांति प्राप्त करते थे। “मेरे जेल के अनुभव” में गांधी जी कहते हैं, “टॉल्सटॉय के लेख तो इतने सरस और इतने सरल होते हैं कि चाहे जो धर्म-प्रेमी उन्हें पढ़कर उनसे लाभ उठा सकता है। उनकी पुस्तक पढ़कर यह विश्वास अधिक होता है कि यह मनुष्य जैसा कहता था, वैसा ही करता भी रहा होगा।” आधुनिक सभ्यता, औद्योगिककरण, यौन संबंध और शिक्षा आदि अनेक विषयों पर टॉल्सटॉय की समीक्षा से गांधी जी पूरी तरह सहमत थे।
1828 में जन्मे लियो काउंट टॉल्सटॉय एक रईस व्यक्ति थे। किंतु 57वें वर्ष की उम्र में उन्होंने अमीरी के जीवन का त्याग कर दिया और सादा जीवन जीने लगे। नंगे पांव चलना शुरू कर दिया। सिगरेट पीना, मांस-मदिरा सेवन छोड़ दिया, सादे पोशाक में किसानों की तरह रहते और खुद ही खेती कर उपजाए अन्न से जीवन यापन करते। लंबी-लंबी दूरियां या तो पैदल या साइकिल से तय करते। 1891 में अपने जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्होंने अपनी सारी दौलत अपनी पत्नी और बच्चों को दे दिया और लोगों की सेवा में अपना जीवन बिताने के उद्देश्य से ग्रामीण इलाके में चले गये। गांव के प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने वाले इस व्यक्ति ने नोबेल पुरस्कार लेने से मना कर दिया, क्योंकि वे किसी का दिया धन तो स्वीकार कर ही नहीं सकते थे।
गांधी जी वर्षों से लियो टॉल्सटॉय को पत्र लिखने का साहस संजो रहे थे। 81वां जन्मदिन मना चुके टॉल्सटॉय से गांधी जी का सबसे पहला व्यक्तिगत संपर्क एक लंबे पत्र के द्वारा हुआ। यह पत्र अंग्रेज़ी में वेस्टमिन्स्टर पैलेस होटल, 4 विक्टोरिया स्ट्रीट, एस. डब्ल्यू, लंदन से 1 अक्तूबर 1909 को लिखा गया था। वहां से यह पत्र मध्य रूस में टॉल्सटॉय के पास यासनाया पोलियाना भेजा गया था। नवयुवक गांधी द्वारा टॉल्सटॉय को लिखे इस पत्र में अपार श्रद्धा और कृतज्ञता निवेदित किया गया था। साथ ही उन्होंने इस रूसी उपन्यासकार को ट्रांसवाल के सविनय अवज्ञा आंदोलन से अवगत कराया था। टॉल्सटॉय ने अपनी डायरी के 24 सितंबर 1909 (रूसी तारीख़ें उन दिनों पश्चिमी तारीख़ों से तेरह दिन पीछे चलती थीं) के विवरण में लिखा था, “ट्रांसवाल के एक भारतीय से मनोहारी पत्र प्राप्त हुआ। इस पत्र ने मेरे हृदय को छुआ।”
गार्हस्थिक कष्टों से त्रस्त, आसन्न मृत्यु की छाया में खड़े वयोवृद्ध टॉल्सटॉय ने यास्नाया पोल्याना से 7 अक्तूबर (20 अक्तूबर) 1909 के रूसी भाषा में लिखे अपने जवाबी पत्र में अत्यधिक हर्ष और प्रसन्न विस्मय व्यक्त किया था। टॉल्सटॉय की पुत्री ताशियाना ने इसे अंग्रेज़ी में अनुवाद करके गांधी जी को भेजा। वार एंड पीस, अन्ना केरोनिना और ए कन्फ़ेशन के रचयिता टॉल्सटॉय ने लिखा था, “मुझे आपका बड़ा दिलचस्प पत्र मिला, जिसे पढ़कर मुझे बहुत आनंद हुआ। ट्रांसवाल के हमारे भाइयों तथा सहकर्मियों की ईश्वर सहायता करे। कठोरता के विरुद्ध कोमलता का और अहंकार तथा हिंसा के विरुद्ध विनय और प्रेम का यह संघर्ष हमारे यहां हर साल अपनी अधिकाधिक छाप डाल रहा है। … मैं बंधुत्व की भावना से आपका अभिवादन करता हूं और आपसे संपर्क होने में मुझे हर्ष है।”
नवम्बर 10, 1909 को जब समझौते की सारी उम्मीदें ध्वस्त हो गईं, गांधी जी ने टॉल्सटॉय को दूसरा पत्र लिखा। इसमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार प्रवासी भारतीय महान संघर्ष से जुड़े हैं। अगर यह आन्दोलन सफल रहा तो यह न सिर्फ़ भारत बल्कि विश्व के अन्य देशों को भी उदाहरण पेश करेगा। उन्हें विश्वास था कि इस अहिंसक सत्याग्रह से जीत उन्हीं की होगी। इस पत्र के साथ उन्होंने पादरी जोसेफ़ डोक की लिखी पुस्तक, “M.K. Gandhi : An Indian Patriot in South Africa” भी संलग्न कर दिया था। उन्हें आशा थी कि टॉल्सटॉय इसे पढ़ेंगे, लेकिन उन दिनों वे गंभीर रूप से अस्वस्थ थे। जब वे इसे पढ़ सके, अप्रील 1910 में, तो पढ़कर मंत्रमुग्ध हो गए।
टॉल्सटॉय को गांधी जी ने 4 अप्रैल 1910 को फिर एक पत्र लिखा और उस पत्र के साथ उन्होंने हाल ही में लिखी अपनी पुस्तिका ‘इंडियन होम रूल’ (हिन्द स्वराज्य) की एक प्रति भेजी। उन्होंने लिखा था, “आपका एक नम्र अनुयायी होने के नाते मैं आपको अपनी लिखी हुई एक पुस्तिका भेज रहा हूं। यह मेरी गुजराती रचना का मेरा ही किया हुआ अंग्रेज़ी अनुवाद है। ... यदि आपका स्वास्थ्य इज़ाजत दे, और यदि आपको यह पुस्तिका पढ़ने का समय मिल सके, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि पुस्तिका पर आपकी आलोचना की मैं बहुत ही कद्र करूंगा।”
पत्र मिलने के बाद अपनी डायरी में टॉल्सटॉय ने लिखा था, “गांधी का पत्र और पुस्तक यूरोपीय सभ्यता की तमाम कमियों का और उसकी संपूर्ण अपूर्णता का भी, बोध प्रकट करते हैं।” 8 मई 1910 को लिखे अपने जवाबी पत्र में उन्होंने लिखा था, “प्रिय मित्र! आपका पत्र और आपकी पुस्तक मिली। जिन बातों और प्रश्नों की आपने अपनी पुस्तक में विवेचना की है, उनके कारण मैंने उन्हें दिलचस्पी से पढ़ा है। निष्क्रिय प्रतिरोध केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि सारी मानवता के लिए सर्वाधिक महत्व का प्रश्न है।”
इस प्रकार दोनों में पत्र-व्यवहार चलता रहा। टॉल्सटॉय उन दिनों काफ़ी बीमार चल रहे थे। गंभीर आध्यात्मिक निराशा की हालात में थे। अपनी मृत्यु की निकटता को स्पष्ट महसूस कर रहे थे। उन्हें लग रहा था कि ईसा के उपदेशों में उपलब्ध आनंद की कुंजी का उपयोग करने से मानवता ने इंकार कर दिया है। इसलिए उन्हें गहरा आंतरिक विषाद था। लेकिन गांधी जी का विश्वास था कि वह अपना और दूसरों का सुधार कर सकते हैं। वे ऐसा कर भी रहे थे। यह चीज़ उन्हें आनंद प्रदान करती थी।
20 नवंबर, 1910 को, अपनी मृत्यु से कुछ ही दिनों पहले टॉल्सटॉय ने गांधी जी को पत्र लिखा, “मैं तो अब अधिक दिन न रहूंगा, लेकिन ट्रांसवाल के सत्याग्रह संग्राम का महत्व विश्व मानवता के इतिहास में सदा बना रहेगा।”
आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के बारें में टॉल्सटॉय की समझौताविहीन निंदा ने गांधी जी पर स्थायी प्रभाव डाला। जब टॉल्सटॉय की मृत्यु हुई, तो गांधी जी ने लिखा था, “स्वर्गीय काउंट टॉल्सटॉय के बारे में हम श्रद्धा के साथ ही कुछ लिख सकते हैं। हमारे लिए वे इस युग के महानतम व्यक्तियों में मात्र एक नहीं, कुछ और भी थे। जहां तक संभव हुआ है, हमने उनकी शिक्षाओं पर चलने का प्रयास किया है।”
***
thanks to share this post .
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात
जवाब देंहटाएंआपके आलेख से नई-नई जानकारी मिलती है
हार्दिक शुभकामनायें
बढ़िया आलेख है ...लेकिन बड़े दिनों के बाद पढ़ने को मिला
जवाब देंहटाएंआजकल तो फुरसत में भी लिखना बंद कर दिया है ? :)
दो महान विभूतियों के परस्पर श्रद्धा और सम्मान को जाना .
जवाब देंहटाएंरोचक !
दो महापुरूषों के जीवन से बहुत ही सार्थक सत्य लिखे आपने, जिन्हें पढकर इतिहास की बहुत ही उम्दा जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंरामराम.
महापुरुषों के जीवन के अद्भुत क्षणों से परिचित कराने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सार्थक जानकारी.. आभार
जवाब देंहटाएंसच में, टाल्स्टाय का प्रभाव गाँधीजी पर प्रचुर और प्रखर था।
जवाब देंहटाएंमैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
जवाब देंहटाएं--
पूर्व के कमेंट में सुधार!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
सूचनार्थ...!
--
mera comment spam dekhiye please...
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक आलेख....
जवाब देंहटाएंविनम्रता के परस्पर संवाद से परिचित कराने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंमहानतम व्यक्तियों की छोटी-छोटी बातें भी महान होती है..
जवाब देंहटाएंDear manoj ji
जवाब देंहटाएंA really interesting piece of work which gives an insight and different perspective to life ofgandhi ji who we know but at the same time we don't know. I will try to find the west minster palace hotel if it is still there.
You wrote after long time, please continue for your admirers
Regards
Rakesh