बुधवार, 1 मई 2013

श्रमकर पत्थर की शय्या पर

श्रमकर पत्थर की शय्या पर

आज एक मई है। यानी कि मजदूर दिवस! इन श्रमकरों के श्रम के बिना हम जीवन में कुछ नहीं हासिल कर सकते। उनका श्रम वंदनीय है। मुम्बई में श्रमिकों की सभा को संबोधित करते हुए 15 दिसम्बर 1907 को लोकमान्य तिलक ने कहा था,

“अपनी खेती अपने काम के आए, अपनी मेहनत अपनी रोटी कमा लाए, इसी का नाम स्वराज्य है। मज़दूरी जब इस भावना के बिना होती है तब पशु की मेहनत के बराबर होती है।”

श्रमजीवी हमारे लिए तरह-तरह की रंगबिरंगी दुनियां तैयार करते हैं पर उनका स्वयं का जीवन विभिन्न प्रकार के संकटों से घिरा रहता है। मैक्सिम गोर्की के शब्दों में कहें तो , “वे अपने कन्धों पर उठाकर हजारों मन अनाज जहाज पर लादते हैं ताकि अपना पेट पालने के लिए एक-दो-सेर अनाज उपलब्ध कर सकें।

पर इनका जीवन एक अंधियारी रात की तरह है होती है, एक भयंकर स्वप्न-सा। ये लोग ज़िन्दगी भर अपना खून पसीना एक करते हैं, परन्तु इनका स्वयं का जीवन अज्ञान के घोर अन्धकार में बीतता है।

हम इन मेहनतकशों को सलाम करते हैं! उन्हें बेहतर सुविधाएँ मिलनी चाहिए… पर इसकी चिंता कौन करता है? मालिको के शोषण का शिकार न हों इसके लिये क़ानून तो हैं पर कितने सक्षम, सक्रिय और सफल, यह किसी से छुपा नहीं है। आज भी श्रमजीवियों की हालत बहुत अच्छी नहीं है. कुछ संस्थानों मे अच्छे वेतनमान मिल रहे हैं लेकिन अधिकांश श्रमजीवियों को अभी भी सम्मानजनक वेतन नहीं मिल पाता। यह दुःख की बात और चिंता का विषय है।

जब किसी श्रमकर को दिनभर मेहनत-मशक्कत कर शाम और रात में ज़मीन पर सोये देखता हूँ तो मन भावुक हो जाता है और कविता की कुछ पंक्तियां बन जाती हैं। इन्हें ही प्रस्तुत कर रहा हूँ, दुनिया के तमाम मेहनतकश सच्चे मजदूरों के लिए-

दिन जीते जैसे सम्राट, चैन चाहिए कंगालों की।
रहते मगन रंग महलों में, ख़बर नहीं भूचालों की।
 
तरु के नीचे श्रमकर सोये, पत्थर की शय्या पर।
दिन भर स्वेद बहाया, अब घर लौटे हैं थककर।
शीतलता कुछ नहीं हवा में, मच्छर काट रहे हैं।
दिन भर की झेली पीड़ाएं, कह-सुन बांट रहे हैं।
अम्बर ही बन गया वितान, चिंता नहीं दुशालों की।


 

जब से अर्ज़ा महल, तभी से तुमने नींद गंवाई।

सुख सुविधा के जीवन में, सब आया नींद न आई।
कोमल सेज सुमन सी, करवट लेते रात ढ़लेगी।
समिधा करो कलेवर की, तब यह जीवन अग्नि जलेगी।
दुख शामिल रहता हर सुख में, उक्ति सही मतवालों की।

किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
सुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।
पर अब तक जो जिया अलस, वह जीवन है विश्राम का।
सुख सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की।

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कठिन जीवन है यह , मगर उन्हें ख़ुशी से उठाते देखा .
    श्रमिकों को नमन ! श्रमिकों की बड़ी संख्या कहाँ समझती होगी इन पर क्या लिखा , किसने लिखा

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  2. यही हैं जिनकी शक्ति से हमें आराम मिलता है ...

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  3. सुंदर आलेख के साथ बेहतरीन रचना साझा करने हेतु आभार........

    http://mithnigoth2.blogspot.in/2013/05/1.html

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  4. हर देश, हर समाज की बुनियाद इनके श्रम पर ही टिकी है .....

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...

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  6. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (१ मई, २०१३, बुधवार) ब्लॉग बुलेटिन - मज़दूर दिवस जिंदाबाद पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  7. तरु के नीचे श्रमकर सोये, पत्थर की शय्या पर।
    दिन भर स्वेद बहाया, अब घर लौटे हैं थककर।

    बहुत बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति ,,,

    RECENT POST: मधुशाला,

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  8. मार्मिक
    सुंदर
    मजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
    मजदूर दिवस पर सार्थक
    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    विचार कीं अपेक्षा
    आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  9. उनकी धरती और आकाश भी सुखदायी हो..

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  10. मार्मिक ... इतनी मेहनत ओर पसीने से दूसरों का सुख बटोरना ... इन श्रमिकों के बस की ही बात है ...
    मज्दोरों के जीवन को झांकती हुई लाजवाब रचना ...

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  11. बहुत ही सार्थक और सटीक प्रस्तुति,आभार.

    चलो साल में एक दिन
    याद करके अपने को चमकाते है
    मजदूरों को दधीच बना कर
    अपना इन्द्रलोक बचाते है

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  12. सुन्दर आलेख ,,...एक अच्छी प्रस्तुति

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  13. वे पत्थर उठाते हैं और हम पत्थरदिल होते जाते हैं.. संवेदनशील कविता!!

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  14. सुन्दर भाव व् सुन्दर कविता ...!!

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  15. बहुत सुंदर भाव लिए हुये संवेदनशील रचना ।

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  16. श्रम कानों को सहेजने वाले मज़दूरों को मेरा प्रणाम आपकी बेहतरीन रचना के माध्यम से ....

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  17. सुन्दर सटीक और संवेदनशील रचना ।

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  18. इनके बिना आज का आराम तलब इंसान सुखपूर्वक नहीं जी सकता ...बहुत ही बढ़िया संवेदनशील प्रस्तुति ....आभार...

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  19. कर्मण्य और सार्थक होने का संदेश युगानुरूप है - साधु!

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  20. सार्थक सृजन हेतु करना है, त्याग हमें आराम का।

    मजदूरों की जिंदगी का कटु सत्य दर्शाती संवेदनशील प्रस्तुति एक सार्थक सन्देश देते हुए.

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  21. किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
    सुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।..मैं बिलकुल सहमत हूँ ..आज सबेरे अपने मित्रों के साथ ऐसे ही किसी बिषय पर चिंतन कर रहा था ..फिर यह शानदार रचना पढने को मिली ...आपके यह रहना महसूस की जाने वाले रचना है ..सादर प्रणाम व बधाई के साथ

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  22. श्रम दिवस पर सुन्दर सार्थक प्रस्तुति ..आभार

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