प्रलय के काले मेघ
उठे
श्यामनारायण
मिश्र
फूस नहीं चढ़
पाया नंगी मिट्टी की दीवारें
लगता रूठा देव
प्रलय के काले मेघ उठे।
एक खेत था बाक़ी वह भी पिछले साल बिका
कौड़ी-कौड़ी वैद खा गये बेटा नहीं टिका
किसी तरह झमिया छमिया के हाथ
लगी हल्दी
रमिया शादी जोग हो गई कैसे इतनी जल्दी
पहले लगन तिलक पचहड़ से शादी
होती थी
अब तो नये नये
न जाने कितने नेग उठे
ख़ूब याद है साथ पड़ी
वो ईद और होली
रंग खेलने घर आया था असगरख़ां हमजोली
सदा बांधती रही राखियां असलम को बिन्दू
थे वे सच्चे मुसलमान और हम
सच्चे हिन्दू
दुराभाव की बात सोचना दोजख़ जैसे था
आज अचानक इस हाथों
में कैसे तेग उठे
रामदीन के पैसा
था तो बनवा दिया कुआं
बहू-बेटियां उठवाता है उसका
ही रमुआ
जोत रहे हैं मंदिर में दी दान भूमियों को
चढ़ता नहीं बुखार तलक मक्कार सूमियों को
दया धरम उठ गये जगत से प्रेम
भाव खोया
इन्सानों के मन में पशुओं से आवेग
उठे
दया धरम उठ गये जगत से प्रेम भाव खोया
जवाब देंहटाएंइन्सानों के मन में पशुओं से आवेग उठे
मन उद्वेलित करती ...बहुत सुन्दर रचना ...!!
आभार श्यामनारायण मिश्र जी एवं मनोज जी ...!!
बहुत गहन रचना .......
जवाब देंहटाएंGod Bless U ......
बहुत उम्दा सुंदर रचना,,,श्यामनारायण मिश्र जी की साझा करने के आभार ,,,मनोज जी,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : प्यार में दर्द है,
बहुत गहन रचना ..आभार मनोज जी .
जवाब देंहटाएंबहुत ही कमाल का शब्द संयोजन ... उम्दा रचना ...
जवाब देंहटाएंमन को झकझोर देने वाली रचना .... आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
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शस्य श्यामला धरा बनाओ।
भूमि में पौधे उपजाओ!
अपनी प्यारी धरा बचाओ!
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पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!
दया धरम उठ गये जगत से प्रेम भाव खोया
जवाब देंहटाएंइन्सानों के मन में पशुओं से आवेग उठे
Bahut sateek aur samayik kawita.
बहुत दिन बाद पढ़ने का अवसर मिला मिश्र जी को.. और रचना दिल को छू गयी!!
जवाब देंहटाएंदया धरम जीवित रह जाये,
जवाब देंहटाएंजैसे दिन थे, वैसे आये।
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक
सादर
अनु
दया धरम उठ गये जगत से प्रेम भाव खोया
जवाब देंहटाएंइन्सानों के मन में पशुओं से आवेग उठे.
बहुत सुंदर और सार्थक विचार.
क्या से क्या हो गया -कैसा लगता है पढ़ कर !
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