खड़ा शीश पर नौटंकी का
कालू
श्यामनारायण
मिश्र
कोई दिन
हो गया कलेऊ
कोई दिन ब्यालू
बूढ़ी चाची
कहती बेटे
सबके राम दयालू
सोच-सोचकर
हुआ अजीरन
मन है खट्टा-खट्टा
अभी रसोई मेंकल के लिये सुरक्षित
बाक़ी है
चूल्हा और सिलबट्टा
सींके पर
रक्खे दो आलू
धनिया के
आलिंगन का सुख
दुख ने बढ़ा दिया है
यौवन जैसाउसने भी
ज्वार देह में
ज्वर ने चढ़ा दिया है
कर दिया विदा
अपना स्वभाव झगड़ालू
रात बिताई
अंधकार में
इच्छायें खेते
थिगड़े कंबलखड़ा शीश पर
में अपनी ही
गर्मी सेते-सेते
हरिश्चन्द की
नौटंकी का कालू
***
बात बात में बात-
जवाब देंहटाएंजबरदस्त प्रस्तुति |
आदरणीय नमन ||
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंलाजबाब,प्रस्तुति,श्यामनारायण मिश्र जी रचना साझा करने के लिए आभार,,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंरात बिताई
जवाब देंहटाएंअंधकार में
इच्छायें खेते
थिगड़े कंबल
में अपनी ही
गर्मी सेते-सेते
खड़ा शीश पर
हरिश्चन्द की
नौटंकी का कालू
अद्भुत मनोभाव निःशब्द करती
भई वाह ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
Bahut Hi Badhiya...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंसहज और गहरा सच !
जवाब देंहटाएंbahut acchhi rachna.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंwah.....bahot sunder.
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना!!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ---सुन्दर है
जवाब देंहटाएंसहज शब्द-सुमनों से
जवाब देंहटाएंसुरभित नवगीत।
भावों की कोमलता,
जैसे नवनीत।
बहुत बढ़िया | आभार |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंवहा बहुत खूब बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
रात बिताई
जवाब देंहटाएंअंधकार में
इच्छायें खेते
थिगड़े कंबल
में अपनी हीगर्मी सेते-सेते
सुन्दर ....
कल के लिये रख्खे सींके पर दो आलू . आह ।
जवाब देंहटाएंबहुत दर्दीली नुकीली प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...।