गुरुवार, 30 जनवरी 2014

बापू - 30 जनवरी को महाप्रयाण : अन्तिम शब्द – ‘हे राम!’

बापू - 30 जनवरी को महाप्रयाण : अन्तिम शब्द – ‘हे राम!’

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1948 का साल कोई बहुत ताजगी भरी शुरुआत लेकर नहीं आया था। मंगलवार 13 जनवरी 1948 को दिन के ग्यारह बजकर पचपन मिनट पर गांधी जी ने बिना किसी को सूचित किए अपने जीवन का अंतिम उपवास शुरु किया। 11 बजकर 55 मिनट पर गांधीजी के जीवन का अंतिम उपवास शुरु हुआ। उस दिन प्रर्थना सभा में उन्होंने घोषणा की थी कि अपना आमरण अनशन वे तब तक जारी रखेंगे जब तक दंगा ग्रसित दिल्ली में अल्प संख्यकों पर हो रहे अत्याचार और नरसंहार बंद नहीं होता। इसके संबंध में उन्होंने मीरा बहन को लिखा था : “मेरा सब से बड़ा उपवास”।

18 जनवरी को 12 बजकर 45 मिनट पर सभी सात समुदायों के लिखित आश्वासन पर कि `वे न सिर्फ दिल्ली में बल्कि पूरे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र का वातावरण पुनः स्थापित करेंगे’, 78 वर्ष की उम्र के गांधीजी ने 121 घंटे 30 मिनट का उपवास गर्म पानी एवं सोडा वाटर ग्रहण कर भंग किया। दिल्ली में विभिन्न दलों और पार्टियों के प्रतिनिधियों ने गांधीजी की उपस्थिति में एक प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर किये जिसमें उन्होंने दिल्ली में शांति बनाये रखने का जिम्मा लिया। उस समय की स्थिति से क्षुब्ध गांधीजी ने राजाजी को पत्र लिखकर अपनी मनः स्थिति इन शब्दों में प्रकट की थी –

“अब मेरे इर्द-गिर्द शांति नहीं रही, अब तो आंधियां ही आंधियां हैं।

इस उपवास के बाद सांप्रदायिक उपद्रवों का जोर बराबर घटता गया। गांधीजी ने भविष्य की योजनाओं की ओर अपना ध्यान लगाया। राजनैतिक स्वाधीनता के बाद गांधीजी का ध्यान रचनात्मक कार्य़ों की ओर अधिक आकर्षित होने लगा। लेकिन रचनात्मक कार्य़ों को पुनः हाथ में लेना मानो बदा ही न था। 20  जनवरी को झंझावात के चक्र ने अपना पहला रूप दिखाया जब बिड़ला भवन की प्रार्थना सभा में गांधीजी बोल रहे थे तो पास के बगीचे की झाड़ियों से एक हस्त निर्मित बम फेंका गया। वे बाल-बाल बच गये। वह तो अच्छा हुआ कि बम अपना निशाना चूक गया, वरना देश को अपूरनीय क्षति 10 दिन पहले ही हो गयी होती। उन्होंने बम विस्फोट पर ध्यान न देकर अपना भाषण जारी रखा। उसी शाम की सभा में अपने श्रोताओं को संबोधित करते हुए गांधीजी ने निवेदन किया कि बम फेंकने वाले के प्रति नफ़रत का रवैया अख़्तियार न किया जाए। बम फेंकने वाले को उन्होंने “पथभ्रष्ट युवक” कहा और पुलिस से आग्रह किया कि उसे “सतायें” नहीं, किंतु प्रेम और धीरज से समझा कर सही मार्ग पर लायें। मदन लाल नाम का यह “पथभ्रष्ट युवक” पश्चिम पंजाब का शरणार्थी था और गांधीजी की हत्या के षड़यंत्रकारी दल का सदस्य था। दूसरे दिन जब उन्हें विस्फोट के समय जरा भी न घबराने के लिए बधाइयां दी गई तो उन्होंने कहा : “सच्ची बधाई के योग्य तो मैं तब होऊंगा जब विस्फोट का शिकार होकर भी मैं मुस्कराता रहूं और हमला करने वाले के प्रति मेरे मन में जरा भी विद्वेष न हो।”

24 जनवरी को अपने एक मित्र को लिखे पत्र में अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि वे तो राम के सेवक हैं। उनकी जब-तक इच्छा होगी वे अपने सभी काम सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य की राह पर चलते हुए निभाते रहेंगे। उनके सत्य की राह के, ईश्वर ही साक्षी हैं।

29 जनवरी 1948 को गांधीजी ने अपनी पौत्री मनु से कहा था,

यदि किसी ने मुझ पर गोली चला दी और मैंने उसे अपने सीने पर झेलते हुए राम का नाम लिया तो मुझे सच्चा महात्मा मानना।

प्रर्थना सभा में भी उन्होंने कहा था कि यदि कोई उनकी हत्या करता है, तो उनके दिल में हत्यारे के IMG_1526विरुद्ध कोई दुर्भावना नहीं होगी और जब उनके प्राण निकलेंगे तो उनके होठों पर राम नाम ही हो यही उनकी कामना है। और 30 जनवरी को जब वह काल की घड़ी आई तो बिलकुल वैसा ही हुआ जिसकी उन्होंने इच्छा की थी।

नेहरू और पटेल के साथ गांधीशुक्रवार 30 जनवरी 1948 की शाम 5 बजकर 17 मिनट का समय था। अपनी पौत्री मनु के कंधों का सहारा लेकर प्रार्थना सभा की ओर बढ़ रहे थे। दूसरी तरफ गांधीजी का सहारा बना हुई थी आभा। लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए गांधीजी धीरे-धीरे सभा स्थल की ओर बढ़ रहे थे। तभी अचानक भीड़ को चीर कर एक व्यक्ति गांधीजी की ओर झुका। ऐसा लगा मानो वह उनके चरण छूना चाहता हो। मनु ने उसे पीछे हटने को कहा क्योंकि गांधीजी पहले ही काफी लेट हो चुके थे। गांधीजी समय के बड़े पाबंद रहते थे पर उस शाम नेहरुजी ओर पटेलजी के बीच उभर आए किसी मतभेद को सुलझाने के प्रयास में उन्हें 10 मिनट की देरी हो गयी थी। मनु ने उसके हाथ को पीछे की ओर करते हुए उसे हटने को कहा। उस व्यक्ति ने मनु को ज़ोर से धकेल दिया। मनु के हाथ से नोटबुक, थूकदान और माला गिर गई। ज्योंही मनु इन बिखरी हुई चीज़ों को उठाने के लिए झुकी वह व्यक्ति गांधीजी के सामने खड़ा हो गया और उसने एक के बाद एक, तीन गोलियां उनके सीने में उतार दीं। गांधीजी के मुंह से “हे राम ! ... ” निकला। उनके सफेद वस्त्र पर लाल रंग दिखने लगा। लोगों का अभिवादन स्वीकार करने हेतु उठे उनके हाथ धीरे-धीरे झुक गए। उनकी दुबली काया ज़मीन पर टिक गई।

चारों तरफ अफरा तफरी मच गई। किसी ने उन्हें बिड़ला भवन के उनके कमरे में लाकर लिटा दिया। सरदार वल्लभ भाई पटेल, जो कुछ ही देर पहले गांधी जी के साथ घंटे भर की बात-चीत करके गए थे, लौट आए। वे गांधी जी की बगल में खड़े होकर उनकी नब्ज़ टटोल रहे थे, उन्हें लगा शायद प्राण बाक़ी है। पागलों की तरह कोई दवा की थैली से एडरनलीन की गोली खोज रहा था। उसे वैसा कुछ न मिला। कोई डॉ. डी.पी. भार्गव को बुलाने चल दिया और 10 मिनट बाद वे पहुंच गए। तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी। उन्होंने कहा, “इस धरती पर की कोई शक्ति उन्हें बचा नहीं सकती थी। भारत को राह दिखाने वाला प्रकाश- स्तंभ दस मिनट पहले ही बुझ चुका था।”

डॉ. जीवराज मेहता ने आते ही उनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू अपने दफ्तर से भागे-भागे आए और उनकी छाती पर अपना सिर रखकर बच्चों की भांति फूट-फूट कर रोने लगे।

ठीक एक दिन पहले ही 29 जनवरी को गांधीजी ने अपनी पौत्री मनु से कहा था,

“यदि किसी ने मुझ पर गोली चला दी और मैंने उसे अपने सीने पर झेलते हुए राम का नाम लिया तो मुझे सच्चा महात्मा मानना।”

और यह कैसा संयोग था कि 30 जनवरी 1948 के दिन उस महात्मा को प्रार्थना सभा में जाते हुए मनोवांछित मृत्यु प्राप्त हुई। गांधीजी के दूसरे पुत्र रामदास ने अपने बड़े भाई हरिलाल की अनुपस्थिति में उनकी अंत्येष्टि सम्पन्न की।

गांधी हत्या केस की जांच दिल्ली में डी.जे. संजीव एवं मुम्बई में जमशेद नगरवाला ने की। महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने वालों मे से नारायण आप्टे, 34 वर्ष, को फांसी की सजा हुई, क्योंकि जब हत्या का हथियार लिया जा रहा था तो वह भी वहां साथ में मौज़ूद था। वीर सावरकर साक्ष्य की बिना पर रिहा कर दिए गए। नाथूराम गोडसे, मुख्य आरोपी, 39 वर्ष, को फांसी की सजा हुई। विष्णु कारकरे, 34 वर्ष, को आजीवन कारावास का दंड मिला। शंकर किष्टैय्या को सज़ा तो मिली पर अपील के बाद उसे मुक्त कर दिया गया। गोपाल गोडसे, 29 वर्ष, को आजीवन कारावास का दंड भुगतना पड़ा। दिगम्बर बडगे, 37 वर्ष, जो अवैध शस्त्र व्यापारी था, सरकारी गवाह बन गया, और उसे माफी मिल गई। मदनलाल पाहवा को आजीवन कारावास की सज़ा हुई। बिड़ला भवन में 20 जनवरी को जो हादसा हुआ था, जिसमें गांधीजी बाल-बाल बचे थे, मदनलाल पाहवा उसमें मुख्य साजिश रचने वाला था। मदनलाल पाहवा और उसके कुछ साथियों ने गांधीजी को बम से उड़ा डालने का प्रयास किया था, परन्तु गांधीजी बच गए थे, बम लक्ष्य चूक गया। मदनलाल पाहवा पकड़ा गया। ग्वालियर का रहने वाला दत्तात्रेय पारचुरे एक होम्योपैथ का डॉक्टर था, उसने हत्यारों को शस्त्र (Black Brette Automatic Pistol) की आपूर्ति की थी, को अपील पर माफ कर दिया गया। ग्वालियर का रहने वाला दत्ताराय पारचुरे एक होमियोपैथी डाक्टर था। उसने ही गांधीजी के हत्यारों, आप्टे एवं गोडसे को ब्लैक ब्रेट स्वचालित पिस्टल मुहैया कराई थी। गोडसे और आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी पर चढ़ाया गया।

ठीक ही कहा था लॉर्ड माउंट बेटन ने,

सारा संसार उनके जीवित रहने से सम्पन्न था और उनके निधन से वह दरिद्र हो गया।

एक ज़माने में गाँधी जी का उपहास करने वाली टाइम पत्रिका ने उनके बलिदान की तुलना अब्राह्‌म लिंकन के बलिदान से की। पत्रिका ने कहा कि एक धर्मांध अमेरिकी ने लिंकन को मार दिया था क्योंकि उन्हें नस्ल या रंग से परे मानवमात्र की समानता में विश्वास था और दूसरी तरफ एक धर्मांध हिंदू ने गाँधी जी की जीवन लीला समाप्त कर दी क्योंकि गाँधी जी ऐसे कठिन क्षणों में भी दोस्ती और भाईचारे में विश्वास रखते थे, विभिन्न धर्मों को मानने वालों के बीच दोस्ती की अनिवार्यता पर बल देते थे। पैगम्बर या तत्वज्ञानी होने का दावा गांधीजी ने कभी नहीं किया। उन्होंने तो बड़ी दृढ़ता से कहा थाः “गांधीवाद जैसे कोई चीज नहीं है और न मैं अपने बाद कोई पथ छोड़ जाना चाहता हूं।” उन्होंने कहा था गांधीवादी तो केवल एक ही हुआ है और वह भी अपूर्ण तथा सदोष और वह एक व्यक्ति थे, वह स्वयं।IMG_1524

बुधवार, 15 जनवरी 2014

हतनुर जलाशय के किंगफिशर

हतनुर जलाशय के किंगफिशर

मनोज कुमार

जनवरी के दूसरे सप्ताह में महाराष्ट्र के जलगांव ज़िले के वरणगांव शहर जाना हुआ। पहुंचने पर मालूम हुआ कि वहां स्थित रक्षा मंत्रालय के उत्पादन ईकाई आयुध निर्माणी वरणगांव में एक औद्योगिक कर्मचारी श्री अनिल महाजन पक्षी प्रेमी हैं और वहां उनके संरक्षण हेतु एक ग़ैर सरकारी संगठन से जुड़े हैं। मैंने उनसे मिलने पर उनके सामने पक्षियों के दर्शन का प्रस्ताव रखा और वे फौरन तैयार हो गए। उनके साथ हम पहुंचे हतनुर जलाशय के पास। तवा नदी पर बने इस जलाशय में हजारों की संख्या में प्रवासी और स्थानीय पक्षी पाए जाते हैं। हरितिमा से आच्छादित  दलदल ज़मीन इस स्थल को पक्षियों के लिए उपयुक्त बनाते हैं।

किंगफिशर (किलकिला)

अत्यंत आकर्षक और ख़ूबसूरत किंगफिशर की भारत में नौ प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें स्मॉल ब्लू किंगफिशर और सफेद ब्रेस्टेड किंगफिशर अधिक जानी-पहचानी जाती हैं।

  1. PIED KINGFISHER – Ceryle rudis
  2. SMALL BLUE KINGFISHER - Alcedo atthis
  3. BLUE-EARED KINGFISHER – A. meninting
  4. ORIENTAL DWARF KINGFISHER – Ceyx erithacus
  5. STORK-BILLED KINGFISHER – Halcyon capensis
  6. RUDDY KINGFISHER – H. coromanda
  7. WHITE-BREASTED KINGFISHER – H. smyrnensis
  8. BLACK-CAPPED KINGFISHER – H. pileata
  9. COLLARED KINGFISHER - Todiramphus

किंगफ़िशर का स्थानीय नाम किलकिला या कौड़िल्ला है। बंगाल में इसे शंदाबुक मछरंगा कहा जाता है जबकि तमिल में इसे मीनकोट्टि कहते हैं। कन्नड़ में इसे राजामत्सी और उड़िया में माछरंका कहा जाता है। पंजाबी में बड्डा मछेरा जबकि असमिया में लाली माछ सोराई कहते हैं।

स्मॉल ब्लू किंगफिशर

1472944464e89cdc7799ffयह पूरे भारत में पाया जाता है। 18 से.मी. के आकार के इस पक्षी का आकार लगभग गौरेया जितना होता है। इसके शरीर का ऊपरी हिस्सा तथा पूंछ नीले-हरे या फ़िरोजी रंग का होता है। इसके सामने के धड़ वाला हिस्सा चाकलेटी-भूरा होता है। इसकी चोंच सीधी और मज़बूत नुकीली होती है। इस चोंच के साथ किंगफिशर के लिए मछली पकड़ना आसान होता है। इसकी पूंछ छोटी होती है। नर और मादा दिखने मे समान ही होते हैं। यह पक्षी आमतौर पर अकेला रहना पसंद करता है। ये पक्षी पानी के स्रोतों के पास दिखाई देता है। नदी, पोखर, तालाब, पानी से भरे गड्ढे, आदि के आस-पास के पेड़ों की डालों या तारों पर ये बैठे होते हैं और वहां से ये मछली या अन्य छोटे जलीय जन्तु टैडपोल, केकड़ा आदि पर निगाह जमाए रहते हैं। यह पानी के ऊपर तेजी से उड़ता है और चीं-चीं की आवाज़ निकालता है, फिर तेजी से अपने शिकार पर झपट्टा मारता है तथा उसे चोंच में दबाकर पेड़ की डाल आदि पर बैठकर खाता है।

स्मॉल ब्लू किंगफिशर मार्च-जून तक अपना घोंसला बनाता है। यह नदी के आस-पास के एकान्त गर्तों की ज़मीन खोद कर एक सुरंगनुमा घोंसला बनाता है। इसकी लम्बाई 50 से.मी. होती है। सुरंगनुमा घोंसले का आख़िरी भाग चौड़ा होता है और यहां अंडों को सुरक्षित रखा जाता है। ये एक बार में पांच से सात अंडे देते हैं। नर और मादा दोनों अंडों की देखभाल बारी बारी से करते हैं।

व्हाइट ब्रेस्टेड किंगफिशर हेलकायोन स्मिरनेनसिस – Halcyon smyrnensis

इनका आकार कबूतर और मैने के बीच का (28 से.मी.)होता है। चमकदार त्वचा वाले इस पक्षी की पीठ फिरोजी नीले रंग की होती है। इसका सिर, गर्दन और धड़ का निचला भाग चॉकलेटी भूरे रंग का होता है। इसके सामने वाली गर्दन के नीचे का हिस्सा सफेद होता है। इसकी चोंच लाल रंग की, मज़बूत, लम्बी और नुकीली होती है। इसका पैर लाल होता है। जब यह उड़ता है तो अंदर का सफेद हिस्सा स्पष्ट दिखाई देता है।

यह भी ज़्यादातर अकेले रहना और अकेले शिकार करना पसंद करता है। यह बाग-बगीचे, पेड़ों की बहुतायत वाले स्थानों और पानी के आस-पास या बिना पानी के जगहों पर भी पाया जाता है। भारत के सभी समतल मैदानी इलाकों और कम ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जता है। यह बहुत अधिक पानी पर निर्भर नहीं करता। पोल के ऊपर तारों पर हम इसे बैठा हुआ देख सकते हैं। यहां से यह अपने शिकार को अच्छी तरह से देख पाता है। जब भी इसे रैंगता हुआ या पानी में तैरता शिकार दिखता है यह उसके उपर इधर-उधर उडता है और सही अवसर पर झपट कर ले आता है। इसके भोजन में जलीय जन्तुओं मछली, टैडपोल, के अलावा ग्रासहॉपर, छोटी छिपकिलियां, गिरगिट और अन्य कीड़े शामिल हैं।

White-throated Kingfisherइसकी आवाज़ काफ़ी तेज़ और कर्कस होती है। उड़ते समय निकलने वाली इसकी आवाज़ दुहराती हुई चटचट चिर्र के एक अनवरत स्वर के रूप में होती है। प्रजनन के मौसम में यह आवाज़ काफ़ी तेज़ हो जाती है। इनमें प्रजनन मानसून आने से पहले मार्च से जून-जुलाई के मध्य होता है। मार्च-जुलाई तक यह अपना घोंसला बनाता है। यह नदी के आस-पास के एकान्त गर्तों की ज़मीन खोद कर एक सुरंगनुमा घोंसला बनाता है। इसकी लम्बाई 50 से.मी. होती है। यहां अंडों को सुरक्षित रखा जाता है। ये एक बार में पांच से सात गोल अंडे देते हैं। इनके अंडे सफेद होते हैं। नर और मादा दोनों अंडों की देखभाल बारी बारी से करते हैं।

पाइड किंगफ़िशर सेरिल रूडिस

हमे एक पाइड किंगफ़िशर भी वृक्ष की शाखा पर बैठा दिखा। काफ़ी मशक्क़त के बाद हम उसे अपने कैमरे में क़ैद कर सके। मैना के आकार के इस पक्षी का आकार 31 Cm के आसपास होता है। चश्मे के ऐसा धब्बा आंख के पास और शरीर पर काली और सफेद धारियां पाई जाती हैं। नर के गले पर काली पट्टी होती है, जबकि मादा में यह पट्टी टूटी होती है। स्थिर जलाशय, झील, गड्ढ़े एवं धीमी गति से बहने वाले झरनों के समीप इसे देखा जा सकता है। भोजन में यह मछली ज़्यादा से ज़्यादा खाना पसंद करता है जिन्हें यह पानी में गोता लगा कर पकड़ता है।

किसी जलाशय के आस-पास किंगफ़िशर का पाया जाना उस जलाशय में मछलियों और अन्य प्राणियों के बहुतायत में होना दर्शाता है।

अन्य किंगफ़िशर

blue eared kingfisherRUDY KINGFISHERORIENTAL DWARF KINGFISHERCOLLARED KINGFISHERSTORK BILLED KINGFISHER

शनिवार, 4 जनवरी 2014

फ़ुरसत में … 116 : जरासंध वध

फ़ुरसत में … 116

जरासंध वध

406896_2515618585360_1884583692_nमनोज कुमार

पिछले दिनों हम राजगीर गए थे। कई जगहों के दर्शन हुए। राजगीर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है जरासंध का अखाड़ा है। इसे जरासंध की रणभूमि भी कहा जाता है। यह महाभारत काल में बनाई गई जगह है। यहां पर भीमसेन और जरासंघ के बीच कई दिनों तक मल्ल्युद्ध हुआ था। कभी इस रणभूमि की मिट्टी महीन और सफ़ेद रंग की थी। कुश्ती के शौकीन लोग यहां से भारी मात्रा में मिट्टी ले जाने लगे। अब यहां उस तरह की मिट्टी नहीं दिखती। पत्थरों पर दो समानान्तर रेखाओं के निशान स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसके बारे में लोगों का कहना है कि वे भगवान श्री कृष्ण के रथ के पहियों के निशान हैं। इस जगह ने मुझे जरासंध के बारे में थोड़ा विस्तार से जानने के लिए प्रेरित किया। सोचा आज फ़ुरसत में आपसे शेयर कर ही लूं।

प्राचीन समय से बौद्ध, जैन, हिन्दू और मुस्लिम तीर्थ-स्थल राजगीर पांच पहाड़ियों, वैराभगिरी, विपुलाचल, रत्नगिरी, उदयगिरी और स्वर्णगिरी से घिरी एक हरी भरी घाटी में स्थित है। बिहार की राजधानी पटनासे लगभग 100 कि.मी. की दूरी पर स्थित इस नगरी में पत्थरों को काटकर बनाई गई अनेक गुफ़ाएं हैं जो प्राचीन काल के जड़वादी चार्वाक दार्शनिकों से लेकर अनेक दार्शनिकों की आवास स्थली रही हैं। प्राचीन काल में यह मगध साम्राज्य की राजधानी रही है। प्राचीन काल में इसे कई नामों से जाना जाता था। “रामायण” में इसका नाम “वसुमती” बताया गया है। इसका संबंध पौराणिक राजा वसु से है जो ब्रह्मा के पुत्र कहलाये जाते हैं।

रामायण के अनुसार ब्रह्मा के चौथे पुत्र वसु ने “गिरिव्रज” नगर की स्थापना की। बाद में कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले वृहद्रथ ने इस पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया। वृहद्रथ काफ़ी वीर और बली था। उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। काशिराज की जुड़वा बेटियों से उसका विवाह हुआ था। उसने अपनी दोनों पत्नियों को वचन दे रखा था कि वह दोनों में से किसी के साथ पक्षपात नहीं करेगा। यानी दोनों को बराबरी का दर्ज़ा देगा।

बृहद्ररथ को कोई संतान नहीं हुई। वृद्धावस्था आ चली थी। वह काफ़ी निराश हो चला था। सांसारिक जीवन में उसे कोई रुचि नहीं रह गई थी। उसने अपना राजपाट अपने मंत्रियों के हवाले कर दिया। अपनी पत्नियों के साथ वह वन में चला गया और एक आश्रम में रह कर तपस्या करने लगा। एक दिन उसके आश्रम में चण्डकौशिक मुनि पधारे। वे महर्षि गौतम के वंशज थे। उनका वृहद्रथ ने काफ़ी स्वागत-सत्कार किया। अपनी आवभगत से प्रसन्न होकर मुनि ने राजा को वर मांगने को कहा। राजा ने कहा, “मैं बहुत ही अभागा इंसान हूं। जब पुत्र ही नहीं हुआ तो और क्या आपसे मांगूं?”

यह सुन मुनि को राजा पर दया आई। उन्होंने राजा की समस्या के हल के लिए आम के एक वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाया। थोड़ी देर में उनकी गोद में एक पका हुआ आम गिरा। मुनि ने उसे राजा को दिया और कहा कि इसे अपनी पत्नियों को खिला दे। दोनों पत्नियों में से किसी के प्रति पक्षपात न करने का वचन दे चुके राजा ने उसके दो टुकड़े कर दोनों रानियों को खिला दिया। रानियां गर्भवती हुईं। राजा के ख़ुशी का ठिकाना न रहा। रानियां हर्षित हुईं। लेकिन जब उनके बच्चे पैदा हुए तो दोनों को घोर निराशा हुई। उनके बच्चे का शरीर आधा था। यानी एक के केवल एक हाथ, एक आंख, एक पैर,आदि। उसे देख कर ही घृणा होती थी। यह तो मांसका पिंड था, जिसमें जान थी। उस पिंड को उन्होंने दाइयों के हवाले किया और कहा कि इसे फेंक दिया जाय। दाइयों ने उसे कूड़े के ढ़ेर पर फेंक दिया।

कुछ देर के बाद उधर से एक जरा नामक राक्षसी गुज़र रही थी। वह इंसानों के मांस खाती थी। उसने कूड़े के ढ़ेर पर जब मांस के टुकड़े को देखा तो फूली न समाई। खाने के लिए उसने ज्यों ही मांस के दोनों पिंडों को उठाया तो वे आपस में जुड़ गए और एक सुन्दर बचा बन गया। यह तो चमत्कार हो गया। सुंदर दिखने वाले उस बच्चे पर उसका मन मोहित हो गया। उसने उसे मारना ठीक नहीं समझा। जरा राक्षसी ने एक सुन्दर युवती का वेश धारण किया और राजा बृहद्रथ के पास पहुंची। राजा को उस बच्चे को सौंपती हुई बोली कि यह आपका बच्चा है। राजा को ख़ुशी की सीमा नहीं रही। वह अपनी पत्नियों और बच्चे के साथ मगध वापस लौट आया और ख़ुशी-ख़ुशी राजकाज करने लगा।

मुनि चण्डकौशिक के वरदान के कारण बच्चा काफ़ी बलशाली हुआ लेकिन उसका शरीर चूंकि दो टुकड़ों के मिलने से बना था, इसलिए कभी भी अलग हो सकता था। वही बच्चा जरासंध के नाम से मशहूर हुआ। वह अपनी शक्ति के लिए प्रसिद्ध था। उसके जैसा बलशाली उन दिनों दूसरा कोई नहीं था। अथाह बल के कारण उसमें मद और गुरूर आना स्वाभाविक ही था। उसने आस-पास के कई राजाओं को पराजित कर अपने अधीनस्थ बना लिया था। जरासंध ने कृष्ण के मामा और मथुरा के राजा और महाराज उग्रसेन के लड़के कंस के साथ वैवाहिक संबंध क़ायम किया था। उससे जरासंध ने अपनी दोनों बेटियों अस्ति और प्राप्ति की शादी की थी। समय के साथ कंस को श्री कृष्ण ने उसके पापों की सज़ा देते हुए वध कर डाला। उसकी मृत्यु के बाद कंस की दोनों विधवा पत्नी, अस्ति और प्राप्ति अपने पिता जरासंध के घर पहुंची। दोनों रानियों ने कंस की मृत्यु और उसके बाद के हाल का विवरण अपने पिता को सुनाया। यह सब सुनकर मगधराज जरासंध शोकाकुल हो गया। उसने पृथ्वी को यदुवंशियों से रहित करने का निश्चय किया। उसने अपनी सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण करने की योजना बनानी शुरू कर दी। उसने अपनी तेरह अक्षौहिणी सेना के साथ यदु राजाओं की राजधानी मथुरा पर आक्रमण कर दिया। जरासंध की विशाल सेना को देख मथुरावासी भय से व्याकुल हो गए। श्रीकृष्ण की सेना छोटी-सी थी। फिर भी श्रीकृष्ण और बलराम उसके समक्ष डट गए। दोनों पक्षों में युद्ध शुरू हुआ। जरासंध के सभी सैनिकों का बध हो गया। श्रीकृष्ण ने जरासंध को मुक्त कर दिया। अपमानित होकर जरासंध लौट आया और फिर से श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिए शक्ति एकत्र करने लगा। जरासंध ने मथुरा पर सत्रह बार आक्रमण किया, हर बार उसकी हार हुई। हर बार उसे अपमानित होना पड़ता, हर बार उसे बंदी बनाया जात और छोड़ दिया जाता।

कुछ समय बाद जरासंध ने तेईस अक्षौहिणी सेना लेकर मथुरा पर फिर से आक्रमण कर दिया। श्रीकृष्ण इस अठारहवें आक्रमण से मथुरा की रक्षा करना चाहते थे। बार-बार के आक्रमण से मथुरावासी वैसे ही काफ़ी परेशान थे। सैनिकों के और अधिक बध को रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने युद्ध किए बिना ही रणक्षेत्र छोड कर चल दिए। दरअसल जरासंध की विशाल सेना से वे तनिक भी भयभीत नहीं थे, वे तो एक साधारण मानव होने का अभिनय कर रहे थे। बिना कोई शस्त्र लिए वे रणक्षेत्र से पैदल चले गए। इसी लिए उन्हें रणछोड़ भी कहा जाता है। जरासंध ने सोचा कि श्रीकृष्ण और बलराम उसकी सैन्य शक्ति से भयभीत हो गए हैं। लेकिन श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं में से यह भी एक लीला थी।

पैदल चलते-चलते श्रीकॄष्ण और बलराम बहुत दूर चले आए। अपनी थकान को दूर करने एवं विश्राम हेतु वे एक काफ़ी ऊंचे पर्वत पर चढ़ गए। इस पर्वत पर लगातार वर्षा होती रहती थी, इसी लिए इस पर्वत को प्रवर्षण कहा जाता था। जरासंध जो उनका पीछा कर था ने सोचा कि दोनों भाई उससे डर कर पर्वत शिखर पर छिप गए हैं। उसने दोनों भाईयों को ढूंढ़ने की काफ़ी कोशिश की,किंतु उसे सफलता हाथ नहीं लगी। उसने शिखर के चारों ओर तेल डाल कर आग लगा दी। जब आग चारों ओर तेज़ी से फैलने लगी रो दोनों भाई पर्वत से काफ़ी दूर नीचे धरती पर कूद गए। वे जरासंध की आंखों से ओझल होकर सुरक्षित काफ़ी दूर निकल गए। जरासंध ने सोचा कि दोनों भाई जलकर भस्म हो गए। वह अपनी राजधानी मगध लौट आया। इधर श्री कृष्ण को मथुरा छोड़कर दूर द्वारका में जाकर रहना पड़ा।

उन दिनों इन्द्रप्रस्थ में पांडव राज कर रहे थे। उनका राज-काज अपनी न्यायप्रियता के मशहूर था। युधिष्ठिर के भाईयों की इच्छा हुई कि राजसूय यज्ञ कर सम्राट का पद धारण किया जाए। सलाह-मशवरा के लिए श्री कृष्ण को संदेश भेजा गया। संदेश पाकर श्री कृष्ण द्वारका से इन्द्रप्रस्थ पहुंचे। युधिष्ठिर को भरोसा था कि श्री कृष्ण सही सलाह देंगे। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और उनके भाईयों को बताया कि मगध के राजा जरासंध ने सभी राजाओं को जीतकर उन्हें उन्हें अपने वश में कर रखा है। चारो तरफ़ उसने अपनी धाक जमा रखी है। यहां तक कि शिशुपाल जैसे पराक्रमी राजा ने भी उसकी अधीनता स्वीकार कर ली है। अतः बिना जरासंध को रास्ते से हटाए सम्राट पद पाना दूर की बात है। आज तक जरासंध किसी से नहीं हारा है। उसके जीते-जी तो राजसूय यज्ञ सफल हो ही नहीं सकता। इसलिए उसको रास्ते से हटाना होगा, उसका वध करना होगा। साथ ही श्रीकृष्ण ने उन्हें आगाह किया कि राजा जरासंध कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। उसकी शारीरिक शक्ति दस हज़ार हाथियों की शक्ति के समान है। अगर कोई व्यक्ति है जो इसे हर सकता है तो वह भीमसेन है, क्योंकि वह भी दस हज़ार हाथियों की शक्ति रखते हैं। हां, उसे सैन्य बल से हराना कठिन होगा, इसलिए हमें चालाकी से काम लेना होगा।

इधर युधिष्ठिर ठहरे न्याय-प्रिय और शान्तिप्रिय राजा। श्रीकृष्ण की बातें सुनकर युधिष्ठिर ने सम्राट बनने का विचार त्याग दिया। उनका मानना था कि जो पद मिल ही नहीं सकता उसके बारे में सोचना ही बेकार है। जब स्वयं श्रीकृष्ण ही उसके भय से मथुरा छोड़कर चले गए तो उस पराक्रमी के सामने उनकी ख़ुद की क्या हस्ती है। इतना विनम्र बनना और नरम रुख अख्तियार करना भीम को नहीं भाया। उसने कहा कि हमें प्रयास तो अवश्य ही करना चाहिए। हमें हाथ-पर-हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए। यह तो कायरों का गुण है। हमें कोई न कोई युक्ति निकालनी ही होगी। हमारे साथ श्री कृष्ण की नीति कुशलता है, मेरा बल है और अर्जुन का शौर्य है। यह सब मिल जाए तो मुझे पूरा भरोसा है कि हम जरासंध की शक्ति पर क़ाबू पा सकते हैं। अर्जुन ने भी भीम का समर्थन किया और कहा कि जिस काम को हम कर सकते हैं उसे हमें ज़रूर करना चाहिए। अंत में निश्चय हुआ कि जरासंध का वध करना उनका कर्तव्य है। किन्तु श्री कृष्ण ने उन्हें आगाह किया कि उसपर हमला करना बेकार है, उसे तो मल्ल युद्ध में ही हराया जा सकता है। राजा जरासंध ब्राह्मणों के प्रति समर्पित है और उनका अत्यन्त आदर करता है। वह ब्राह्मणों का कोई निवेदन अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए हमे ब्राह्मण के वेश में जरासंध के पास जाकर भिक्षा मांगनी चाहिए। और फिर भीमसेन को उसके साथ युद्ध में लगना चाहिए।

भीम, अर्जुन और श्रीकृष्ण ने एक साथ वेश बदल कर ब्राह्मण का रूप धारण किया। जब वे राजगृह में प्रवेश किए, तो उन्होंने ब्राह्मणों का वेश धारण किया हुआ था। उनके हाथ में कुश था। निःशस्त्र और वल्कल धारण किए अतिथि को ब्राह्मण समझ जरासंध ने उनका आदर के साथ स्वागत-सत्कार किया। जरासंध के स्वागत-सत्कार के जवाब में सिर्फ़ श्री कृष्ण ही बोले, भीम और अर्जुन चुप रहे। श्री कृष्ण ने बताया कि उनका मौन व्रत है जो आधी रात के बाद ही खुलेगा। जरासंध ने तीनों अतिथियों को यज्ञशाला में ठहराया और वापस अपने कहल में चला गया। जब आधी रात हुई तो वह अतिथियों से मिलने गया, तो वहां उसे यह देख कर ताज़्ज़ुब हुआ कि उनकी पीठ पर ऐसे चिन्ह हैं जो धनुष की डोरी से पड़ते हैं। धनुष उठाने की वजह से उनके कन्धों पर दबाव के निशान थे। उनके शरीर सुडौल थे। उसने दृढ़तापूर्वक निष्कर्ष निकाला कि ये तो ब्राह्मण नहीं है। उसने कहा तुम लोग तो ब्राह्मण नहीं दिखते, सच बताओ, कौन हो तुम लोग? इस पर सच बताते हुए उन लोगों ने कहा कि हम तुमसे द्वन्द्व युद्ध करने आए हैं। उन्होंने अपना परिचय भी दिया।

उन दिनों यह प्रथा थी कि किसी क्षत्रिय को कोई द्वन्द्व युद्ध के लिए चुनती देता तो उसए उसकी चुनौती स्वीकार करनी पड़ती थी। जरासंध ने उनका प्रस्ताव स्वीकार करते हुए कहा, “मूर्खों! यदि तुम मुझसे लड़ना चाहते हो तो मैं तुम्हारा निवेदन स्वीकार करता हूं। किंतु अर्जुन तो बच्चा है, इसलिये उससे लड़ने का सवाल ही नहीं है। और मैं जानता हूं कि तुम कायर हो। तुम मुझसे लड़ते समय घबड़ा जाते हो। मेरे डर से तुम मथुरा छोड़कर भाग गए। इसलिए मैं तुमसे युद्ध करने से इंकार करता हूं। जहां तक भीमसेन का प्रश्न है, तो मैं सोचता हूं कि मुझसे लड़ने के लिए वह उपयुक्त प्रतिस्पर्धी है।

अखाड़े में भीम और जरासंध के बीच कुश्ती शुरु हुआ। उनको देखकर ऐसा लगता था कि दो हाथी युद्ध कर रहे हैं। तेरह दिन तक लगातार दोनों में मल्ल युद्ध होता रहा। दुर्भाग्य से वे आपस में किसी को भी पराजित नहीं कर सके, क्योंकि दोनों इस कला में निपुण थे। चौदहवें दिन जरासंध थोड़ी देर के लिए अपनी थकान मिटाने के लिए रुका। यह देख श्री कृष्ण ने भीम को इशारे से समझाया। भीमसेन ने जरासंघ को उठाकर ज़ोर से चारो ओर घुमाया और ज़मीन पर पटक कर उसके दोनों पैर पकड़ कर बीच से चीर डाला। जरासंध को मरा हुआ समझ कर भीम अपनी जीत का उल्लास मना ही रहा था कि उसके चिरे हुए टुकड़े आपस में जुट गए और वह खड़ा होकर फिर से लड़ने लगा।जरासंध_वध

अब समस्या थी कि जरासंध को कैसे हराया जाए? श्री कृष्ण ने भीम को फिर इशारे में समझाया। उन्होंने एक तिनका उठाया। उसे बीच से चीरा। उन्होंने दायें हाथ के टुकड़े को बाईं ओर और बाएं हाथ के टुकड़े को दाईं ओर फेंक दिया। अब बात भीम को समझ में आ गई। उसने दुबारा जरासंध के शरीर को चीर डाला और दोनों हिस्सों को एक दूसरे के विपरीत दिशाओं में फेंक दिया। अब टुकड़े आपस में नहीं जुड़ सके। इस प्रकार उसने जरासंध को हराया और उसे मार डाला। बंदीगृह के सभी राजाओं को कैद से आज़ाद कर दिया गया। जरासंध के बेटे सहदेव को मगध की राजगद्दी पर बिठाकर वे इन्द्रप्रस्थ लौट आए।

समाप्त

बुधवार, 1 जनवरी 2014

हैप्पी न्यू यीअर है!

हैप्पी न्यू यीअर है!

- केशव कर्ण

 

हैप्पी न्यू यीअर है!

हैप्पी न्यू यीअर है!!

राइवल को पीअर को,

नियर और डियर को,

लाइफ़ में चीअर को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

गाँवों की गलियों को,

फ़ूलों को, कलियों को,

निर्बल को, बलियों को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

पनघट, अमराई को,

गुड़ की मिठाई को

दादी की चटाई को,

हैप्पी न्यू यीअर है!

 

मंगल के हटिया को,

चौक को, चौबटिया को,

दादाजी की खटिया को,

हैप्पी न्यू यीअर है!

 

मैय्या को, ताई को,

दीदी, भौजाई को,

छोटे-बड़े भाई को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

बाबा को चच्चों को,

बूढ़ों और बच्चों को,

झूठों को, सच्चों को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

दीया और बाती को,

जीवन के साथी को,

पुरखों की थाती को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

गाँव के चौपाल को,

सास-सासुराल को,

ससुरे के माल को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

हँसते हुए बचपन को,

मदमाते यौवन को,

मानव के जीवन को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

सागर के लहरों को,

पर्वत के शिखरों को,

बिछड़े हुए मित्रों को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

लाइफ़-स्टाइल को,

महँगे मोबाइल को,

होंठों के स्माइल को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

शहर के उजालों को,

देश को घोटालों को,

मदिरा के प्यालों को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

देश के विकास को,

मिडिया के बकवास को,

जनता के विश्वास को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

मनमोहनी बाई को,

नेशनल जमाई को,

बढ़ती मँहगाई को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

हारे हुए काँग्रेस को,

ठहरे हुए प्रोग्रेस को,

नई-नई एक्ट्रेस को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

फ़िल्मों के हीरो को,

सिब्बल के ज़ीरो को,

सेना के वीरों को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

जयपुर में सिंधिया को,

माथे की बिंदिया को,

रात्रि में निन्दिया को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

भारत में नामो को,

आफ़िस में कामो को,

हाशिये पे बामो को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

होनी-अनहोनी को,

हीरो-हीरोनी को,

एमएस धोनी को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

गंगा के पानी को,

इटली की रानी को,

एल के अडवानी को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

रजनी को, गजनी को,

साजन की सजनी को,

लीट्टी और चटनी को,

हैप्पी न्यू यीअर है!

 

कश्मीर घाटी को,

आम आदमी पाटी को,

लालू की लाठी को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

शिमला के एप्पल को,

कोल्हापुरी चप्पल को,

यहाँ सभी कपल को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

कर्णाटक राज को,

सज्जन समाज को,

कल और आज को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

बंगलोर सिटी को,

नेचुरल ब्यूटी को,

आई टी की ड्यूटी को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

यारों के यार को,

घर परिवार को,

यूपी बिहार को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

इंडिया के नेवर को,

यू.एस के तेवर को,

इनकम-टैक्स पेयर को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

नेता बेचारे को,

आप के सितारे को,

अन्ना हजारे को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

मंदिर को मस्जिद को,

मुल्ला को पंडित को,

भारत-अखंडित को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!

 

महीने के रेशन को,

माडर्न फ़ैशन को,

और पूरे नेशन को,

हैप्पी न्यू यीअर है!!