शनिवार, 11 मार्च 2017

अभिव्यक्ति ...!

अभिव्यक्ति ...!

मनोज कुमार
महत्वपूर्ण यह नहीं कि ज़िन्दगी में आप कितने ख़ुश हैं, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि आपकी वजह से कितने लोग ख़ुश हैं। वास्तव में कुछ लोगों की कुछ खास बातें, उनकी कुछ खास अदाएं, उनकी अभिव्यक्ति के कुछ खास अंदाज हमें भरपूर खुशी देते हैं, वहीं कुछ लोगों के हाव-भाव, आदत-अंदाज यानी उनकी अभिव्यक्ति हमें चिढ़-कुढ़न और घुटन दे जाती है। कुछ ऐसे भी अन्दाज़ होते हैं लोगों के जिससे हँसी आती है, गुस्सा आता है और कभी-कभी खीझ भी पैदा होती है। प्रेमचन्द ने ‘मेरे विचार’ में कहा है, ‘अभिव्यक्ति मानव हृदय का स्वाभाविक गुण है’। कुछ लोगों के अभिव्यक्ति के गुणों में एक खास अंदाज होता है जिसके द्वारा वे लोगों में अलग प्रकार की छाप छोड़ जाते हैं। मिले-जुले भावों को एक साथ असर पैदा करने के पीछे उनके तकियाकलाम का अनोखा अन्दाज़ भी छिपा होता है।

अभिव्यक्ति एक कला है। इस कला में कुछ खूब निपुण होते हैं, तो अन्य थोड़े कम। निपुणता तो सब में होती है। अब ज़रा इस शे’र पर ग़ौर फरमाएं,
“हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़े बयां और।’
मतलब कवि तो संसार में और भी बहुत अच्छे हैं, परन्तु ग़ालिब की अभिव्यक्ति की निपुणता कुछ विशेष है। अभिव्यक्ति विचारों को व्यक्त करने की कला है। विवेकानन्द जी ने कहा है, ‘बहुत-सा विचार थोड़े शब्दों में व्यक्त करना एक महती कला है’। कुछ लोग अपनी अभिव्यक्ति में मुहावरे और कहावतों का ख़ूब प्रयोग करते हैं। कुछ की अभिव्यक्ति ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’ टाइप की होती है। कुछ होते हैं, जो खड़ी-खड़ी कहने में विश्वास रखते हैं, तो कुछ खड़ी-खोटी सुनाए वाले टाइप के होते हैं। कुछ लोगों की अभिव्यक्ति में उनका तकियाकलाम भरा होता है।
अब देखिये न, एक महानगरीय मित्र से बातचीत में अभी मैंने बस इतना ही कहा था कि फ़ुरसत में जब होते हैं तो, कभी-कभी... और हमेशा भी, अपनी माटी कसकर याद आती है।तो छूटते ही उनके मुंह से निकला, “ओह शिट! मुझे भी अपना नैटिव प्लेस विजिट किए हुए कितने दिन हो गए!ऐसा लगा मानो उन्होंने अपनेनेटिव प्लेससे अपनी मुहब्बत को उस एक तकियाकलाम ओह शिटमें समेट दिया हो।

ये तकियाकलाम भी ग़जब की चीज़ है। बिना इस तकिया की टेक लिये सामने वाला अपना कोई भी कलाम मुकम्मल नहीं कर सकता। सच पूछिये तो यह फ़ुरसत से फ़ुरसतियाने और बैठकर विचारने वाली चीज़ है ही नहीं। यह तो बरबस ही निकलता है, ... निकलता रहता है। इसका मुख्य संवाद के विषय से कोई संबंध नहीं होता। आम लोग अपनी अभिव्यक्ति में माने’, ‘मतलब’, ‘आंए’, ‘हें’, ‘हूं’, आदि बोलते पाए जाते हैं, तो खास लोगओके’, ‘आई मीन’, ‘यू नो’, ‘एक्चुअलीआदि। हमारे एक प्रोफ़ेसर थे, वे तो एक्चुअलीमें लगाकर उसे लंबा खींचते थे ...एक्चुअलिश्श्श्श्श्श’! उनकी इस विशेषता ने उन्हें एक उपनाम ही दे दिया था। जब कोई पूछता कि अभी किसकी क्लास है, तो उत्तर होता, ‘एक्चुअलिश्श्श्श्श्श की

बड़े प्यारे-प्यारे तकियाकलाम होते हैं। तकियाकलामों में भी रिजनल वैरिएशन होता है। अपनी माटीसे हमने बात शुरू की थी तो चलिए वहीं की बात लाऊं। रेलवे कॉलोनी में जब हम रहते थे, तो हमारे पड़ोसी थे ओझा जी। उनको जो है सो कि बोलने की आदत थी। हम पटना पहुंचे, तो जो है सो कि वहां बहुते ठंढ़ा लगा। दूर कहाँ जाएँ, हमारे घर में मौजूद हमारी उत्तमार्ध की अभिव्यक्ति का तो अंदाज और भी निराला है। उनकी कही गई बातों के रिक्त स्थानों की पूर्ति हमें अथी में ढूँढकर करनी होती है। एक बानगी -
ज़रा-सा अथी देना ..!
‘? ? ?’
अथी कहां रख दिए?”
‘? ? ?’
हमारी सीतापुर वाली चाची की हर बात में बुझे कि नहीं टाँका रहता है। आज हमारे साथ तो गजबे हो गया ... बुझे कि नहीं...कुछ तकियाकलाम के साथ ऐक्शन भी जुड़ा होता है। ख़ासकर बातों को रहस्यमय बनाने और आपसे अपनापन दिखाने के लिये इसका प्रयोग होता है का कहें सर्र ...! असल बात तो ई है कि.. और कहते हुये अपने स्वर को फुसफुसाहट में तब्दील करना किंतु तीव्रता इतनी कि हर अगल-बगल वाले को बात सुनाई दे जाए और अन्दाज़ ऐसा कि बस जैसे वो घोड़े के मुँह से (फ्रॉम हॉर्सेस माउथ) सुनकर आ रहे हैं।

कुछ लोगों की अभिव्यक्ति में उनका तकियाकलाम तो सायास निकाले जाते हैं। प्रायः इसके प्रयोग से वे स्वयं अथवा अपने पूर्वजों को ग्लोरिफ़ाई करते हैं (भले ही उनके अतीत में कोई क्राउनिंग ग्लोरी न रही हो) जैसे मैनेजर की आदत है कि वह हर सूक्ति के साथ कहेगा, मेरे पिताजी कहा करते थे ..., भले ही वह बात उनके पिताजी ने नहीं, गोस्वामी तुलसीदास जी ने कही हो। वैसे भी आपके पास उसे वेरिफाई करने के लिए कोई उपाय नहीं है। इस तरह के लोगों के प्रयास से आज कबीरदास के दोहों में इतने दोहे जुड़ गए हैं कि स्वयं कबीरदास भी आज अगर हमारे बीच होते तो आश्चर्य करते कि उन्होंने इतने सारे दोहे रच डाले थे!


बिना रफ़ू के गप करने वाले कुछ लोग अपने सायास तकियाकलामों से हमें अकसर झेलादेने को तैयार बैठे होते हैं। मेरे पिता जी के एक अनन्य मित्र की बात, “तुम लोग क्या पढ़ोगे, हम लोग तो मात्र दो घंटा सोते थे, बाक़ी समय पढ़ते रहते थे।ने इतना पकाया कि इच्छा होने लगी पढ़ना ही छोड़ दें। ज़िन्दगी में सिर्फ़ एक बार विदेश यात्रा किए, वह भी काठमांडू का, रतन जी बात-बात में आपको जता ही देंगे कि उन्होंने विदेश यात्रा की है। जब हम काठमांडू गए थे तो वहां एक बात नोट की ..” , जैसे भारत में नोट करने लायक कोई बात उन्हें मिली ही नहीं। ऐसे लोग अपने विदेश यात्रा या किसी खास पोजिशन के ग्लोरिफिकेशन के कारण न सिर्फ़ इरिटेशन बल्कि ऊब पैदा करते हैं। ऐसे लोग अपनी अभिव्यक्ति द्वारा स्वयम्‌ का विज्ञापन करने के चक्कर में ख़ुद को हास्यास्पद बना लेते हैं। नतीजा यह होता है कि वे हमारी नज़रों में या हमारे दिल में जो सम्मान रखते थे, ख़ुद से, ख़ुद की हरकतों से ध्वस्त करा देते हैं। जहां एक ओर आंए’, ‘बांए’, ‘शांएजैसे अनायास निकलने वाले तकियाकलाम प्रायः लोग अपनी कमियों को छुपाने के लिए आदतन इस्तेमाल करते हैं, वहीं सायास तकियाकलाम अपनी हैसियत को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने के लिए।

6 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा महाशय. जैसे जिने के लिये अपनो कि जरुरत होती है, उसीप्रकार हर एक चीज जो दूर हो उसकी आस होती है.
    अब हम आ हि गये है तो, Maharashtra Police Bharti निकल चुकी है तो जल्द हि आवेदन करे.

    शुक्रिया.

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  2. Thank very much for giving information on Hindi. I am from Maharaashtra Police Bharti police

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