सोमवार, 16 सितंबर 2019

विश्व ओज़ोन दिवस या ओज़ोन परत संरक्षण दिवस

विश्व ओज़ोन दिवस या ओज़ोन परत संरक्षण दिवस

मनोज कुमार
यह बड़ी ही चिंता का विषय है कि ओज़ोन परत में ओज़ोन गैस की मात्रा कम हो रही है। इसका मुख्य कारण हम ही हैं। हम लगातार प्रकृति और पर्यावरण का दोहन कर रहे हैं। जंगलों और पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं। हमने प्रकृति का दोहन करके पूरे तंत्र यानी मनुष्य और प्रकृति, वायुमंडल के बीच एक असंतुलन की स्थिति पैदा कर दी है।  गाड़ियों और उद्योगों से विसर्जित गैस आदि ने हवा को प्रदूषित कर दिया है। इससे ओज़ोन की मात्रा घटती है। परिणामस्वरूप पृथ्वी पर बड़े संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
ओज़ोन एक हल्के नीले रंग की गैस गंधयुक्त गैस होती है। यह ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं (O3) से मिलकर बनती है। यह गैस वातावरण में बहुत कम मात्रा में पायी जाती है। ओज़ोन परत गैस का एक झीना सा आवरण है जो मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर के निचले भाग में पृथ्वी की सतह से 10 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच वायुमंडल के समताप मंडल परत में पाई जाती है।  वायुमंडल में ओज़ोन का कुल प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में बहुत ही कम है। प्रत्येक दस लाख वायु अणुओं में दस से भी कम ओज़ोन अणु होते हैं।
ओज़ोन की परत की खोज 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। इसके गुणों के बारे में ब्रिटिश मौसम विज्ञानी जीएमबी डोबसन ने पता लगाया। डोबसन ने एक साधारण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (डोबसनमीटर) विकसित किया था। इसकी सहायता से धरती के समताप मंडल में मौजूद ओज़ोन की मात्रा मापी जा सकती है। ओज़ोन की मात्रा को मापने की इकाई डोबसन यूनिट, का नाम उनके सम्मान में ही रखा गया। उसने दुनिया भर में ओज़ोन निगरानी स्टेशनों का नेटवर्क स्थापित किया।
ओज़ोन परत पर्यावरण का रक्षक है और पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी के लिए सुरक्षा कवच। ओज़ोन की परत सूरज से आने वाली पराबैंगनी विकिरण (अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन) के 93 और 99 प्रतिशत भाग को अवशोषित कर  एक अच्छे फिल्टर का काम करती है और उससे मनुष्य और जीव-जंतुओं की रक्षा करती है। पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी पर कई जीवित जीवों के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक होती है। पराबैगनी किरणों की बढ़ती मात्रा से चर्म कैंसर, ब्लडप्रेशर की परेशानी, मोतियाबिंद के विकास के अलावा शरीर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। यह मनुष्य और पशुओं की डी.एन.ए. संरचना में बदलाव लाती है। यदि कोई गर्भवती महिला इनके संपर्क में आ जाए तो गर्भस्थ शिशु को अपूरणीय क्षति हो सकती है। पेड़-पौधों के साथ ही वनस्पतियों पर भी इसका बुरा असर होता है। यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया को प्रभावित करती है जिससे से पत्तियों का आकार छोटा हो सकता है, बीजों के अंकुरण का समय बढ़ सकता है। ये किरणें समुद्र में छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती हैं, जिससे मछलियों व अन्य प्राणियों की मात्रा कम हो सकती है। इससे तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। जिससे एक अन्य खतरा ध्रुवों के पिघलने का पैदा हो गया है। अंटार्कटिका में ओज़ोन में एक बड़ा छेद हो गया है। अंटार्कटिका क्षेत्र में बड़े हिमखंड हैं। यदि ये हिमखंड पिघलते हैं तो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ सहित कई खतरे पैदा हो सकते हैं।
ओज़ोन परत सबसे ज़्यादा  नुकसान पहुंचाने वाली गैस क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स (CFCs) है जिसे सीएफसी के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से रेफ्रिजरेटर व वातानुकूलित उपकरणों में क्लोरोफ्लोरो कार्बन इस्तेमाल होती है। सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड भी ओज़ोन की मात्रा को कम करती है।  पिछले सौ वर्षों में ओज़ोन परत मानव निर्मित रसायनों द्वारा क्षतिग्रस्त होती जा रही हैविशेष रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) द्वारा। यह ओजोन परत में छिद्र कर रहे हैं। 1996 में सीएफसी पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद भीप्रत्येक वर्ष इस छेद में लगातार बृद्धि हो रही है।  1985 में सबसे पहले अंटार्टिका में सबसे पहले इस छिद्र को देखा गया था। 1987 में 16 सितंबर को ओज़ोन में हुये छिद्र की चिंता के उपाय हेतु कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में 33 देशों के बीच एक मीटिंग हुई और फिर एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए। जिसमें भारत ने भी हस्ताक्षर किये। इसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के नाम से जाना गया। इसमें यह संकल्प लिया गया कि हमें ओज़ोन परत का संरक्षण करना होगा। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर विश्व ओज़ोन दिवस या ओज़ोन परत संरक्षण दिवस 16 सितंबर को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। 
यह बहुत ही ज़रूरी है कि लोग ओज़ोन परत और इसके संरक्षण को लेकर जागरूक होंआज के दिन हम यह संकल्प लें कि हम अपने पृथ्वी की रक्षा के लिए हर महत्वपूर्ण कोशिश करेंगे। ज़ोन क्षरण पदार्थों पर नियंत्रण हेतु सार्थक प्रयास करेंगे। चीजों का इस्तेमाल ज़रूरत के अनुसार करेंगे और प्राक्रतिक सम्पदा का दुरुपयोग नहीं करेंगेओज़ोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित करेंगे। हम प्रदूषण को रोने के लिए हर संभव उपाय करेंगेबिजली की बचत करेंगे, और रीसाइक्लिंग कि मदद से पुरानी चीज़ों का पुनः इस्तेमाल करेंगे हम पर्यावरण मित्र उत्पादों का इस्तेमाल करेंगे। वृक्षारोपण को बढ़ावा देंगे। जिससे हमारी पृथ्वी सुरक्षित, सुन्दर और स्वच्छ बनी रहे।  

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-09-2019) को    "मोदी स्वयं सुबूत"    (चर्चा अंक- 3462)    पर भी होगी। --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. मनोज जी सादर प्रणाम।
    आपका यह ज्ञानवर्धक लेख मुझे बहुत पसंद आया हम आपकी बातों से अक्षरशः सहमत है।
    प्रकृति जीवन का आधार है बस यही हम इंसान समझ पाते तो आज पर्यावरण की स्थिति इतनी गंभीर न होती।
    आभार आपका।

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