फ़ॉकलैंड द्वीप समूह विवाद
मनोज कुमार
ख़बर है कि दक्षिण
अमेरिका के देश अर्जेंटीना फ़ॉकलैंड विवाद के हल करने में भारत की सहायता चाहता है।
अर्जेंटीना की सरकार ने रविवार, 24 अप्रैल, 2022 को भारत में इस द्वीप पर नियंत्रण
को लेकर ब्रिटेन से बातचीत के लिए एक अभियान की शुरुआत की है। उन्होंने एक कमीशन
गठित की है, ‘जिसका नाम द कमीशन फॉर द डायलॉग ऑन द क्वश्चेन ऑफ द माल्विनास
आईलैंड्स’ है। इसमें भारत के भी सदस्य हैं। इस कमीशन का मक़सद संयुक्त राष्ट्र के
प्रस्ताव के अनुरूप फ़ॉकलैंड विवाद पर ब्रिटेन से बातचीत शुरू करवाना है। ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच इसकी संप्रभुता
को लेकर यह विवाद वर्षों पुराना है। भोगौलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से फ़ॉकलैंड ब्रिटेन
की अपेक्षा अर्जेण्टीना के काफी निकट है। अर्जेंटीना इन द्वीपसमूहों को अपना भू- भाग
मानता है किन्तु ब्रिटेन उसे अपना उपनिवेश मानता है।
फ़ॉकलैंड दक्षिण अटलांटिक
महासागर में स्थित एक द्वीप समूह है, जिसे माल्विनास द्वीप या
इस्लास माल्विनास भी कहा जाता है। आज यह यूनाइटेड किंगडम का
आंतरिक रूप से स्वशासी विदेशी क्षेत्र है। यह अर्जेंटीना से 500 कि.मी. दूर दक्षिण अटलांटिक महासागर में पेटागोनियन शेल्फ पर एक द्वीपसमूह
है। इस द्वीपसमूह का क्षेत्रफल 12,000
वर्ग किलोमीटर है। इसमें वेस्ट फ़ॉकलैंड, ईस्ट फ़ॉकलैंड और 776 छोटे द्वीप शामिल हैं। ब्रिटेन से फ़ॉकलैंड की दूरी 14,000 किलोमीटर है। यहाँ कई बिखरी हुई छोटी बस्तियाँ और साथ ही
एक रॉयल एयरफोर्स बेस भी है जो राजधानी स्टेनली से लगभग 56 किमी दक्षिण-पश्चिम में
माउंट प्लेजेंट में स्थित है। फ़ॉकलैंड द्वीप समूह की सरकार दक्षिण जॉर्जिया और दक्षिण
सैंडविच द्वीप समूह के ब्रिटिश समुद्रपारीय क्षेत्र का भी संचालन करती है, जिसमें शैग और क्लर्क चट्टानें शामिल हैं, जो फ़ॉकलैंड के पूर्व और दक्षिण-पूर्व
में 1,100 से 3,200 किमी की दूरी पर स्थित
है।
यहाँ
की जलवायु सर्द और नम है। यहां
का वार्षिक औसत तापमान लगभग 5 डिग्री सेल्सियस, औसत अधिकतम 9 डिग्री
सेल्सियस और औसत न्यूनतम 3 डिग्री सेल्सियस है। फ़ॉकलैंड्स द्वीप पर कोई भी स्तनपायी
(Mammals) पशु नहीं हैं। यहां की जंगली लोमड़ी
विलुप्त हो रही है। द्वीपों पर काले-भूरे रंग के अल्बाट्रोस, फ़ॉकलैंड पिपिट्स, पेरेग्रीन फाल्कन्स
और धारीदार काराकारस सहित पक्षियों की लगभग 65 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। फ़ॉकलैंड रॉकहॉपर, मैगेलैनिक, जेंटू, किंग
और मैकरोनी जैसे पेंगुइन के लिए प्रजनन स्थल है। डॉल्फ़िन और पोरपोइज़ बहुतायत में
पाए जाते हैं।
17वी शताब्दी
के पहले तक, ये द्वीप निर्जन थे। फ़ॉकलैंड द्वीप समूह
पर कभी स्वदेशी आबादी नहीं थी। फ़ॉकलैंड की खोज यूरोप के लोगों ने की थी। इस बात का
कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं है कि यूरोपीय लोगों द्वारा देखे जाने और बसने से पहले
कोई भी द्वीपों पर रहता था या यहां तक कि उन द्वीपों का दौरा भी करता था। समय के साथ
यह कई देशों जैसे फ़्रेंच, स्पैनिश, ब्रिटिश और अर्जेंटीना
का उपनिवेश बनता रहा। पहले यह फ्रांस की बस्ती बना। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजी नाविक
जॉन डेविस 1592 में फ़ॉकलैंड्स को देखने वाले पहले व्यक्ति थे। लेकिन डचमैन सेबाल्ड
डी वेर्ड्ट ने 1600 के आसपास पहली बार निर्विवाद रूप से इस द्वीप समूह की जानकारी दी।
1690 में एक अंग्रेज़ कैप्टन जॉन स्ट्रांग पहली बार यहाँ पहुँचे। फ़ॉकलैंड नाम भी
उन्होंने अपने अभियान के दौरान अपने संरक्षक एंथोनी केरी, 5वां विस्काउंट
फ़ॉकलैंड के नाम पर रखा था। लेकिन इस द्वीप समूह में कोइ बस्ती नहीं बसाई गयी। पहली
बस्ती 1764 में फ्रांसीसी नाविक एडमिरल लुई-एंटोनी डी बोगेनविले ने पूर्वी
फ़ॉकलैंड में बसाई थी। उसने द्वीपों का नाम अपने घरेलू बंदरगाह के नाम
पर माल्विनास रखा। 1765 में ब्रिटेन ने पश्चिम फ़ॉकलैंड में बस्ती बसाई। 1767 में स्पेन ने फ्राँसीसी बस्ती को खरीद
लिया। 1770 में जब ब्रिटिश अपने लिए द्वीपों का दावा करने पहुंचे, तो स्पेन ने
ब्रिटेन को यहाँ से खदेड़ दिया। अगले ही वर्ष ब्रिटेन ने युद्ध की धमकी दी और 1771 में वेस्ट फ़ॉकलैंड
पर ब्रिटिश चौकी को बहाल कर दिया। लेकिन आर्थिक कारणों से, फ़ॉकलैंड पर अपने दावे को
त्यागे बिना, ब्रिटिश 1774 में फ़ॉकलैंड द्वीप से हट गए।
स्पेन ने 1811 तक पूर्वी फ़ॉकलैंड
(जिसे इसे सोलेदाद द्वीप कहा जाता है) पर अपनी बस्ती बसाए रखी। 1811 में स्पेन ने
फ़ॉकलैंड स्थित किला और स्टेनली बंदरगाह को ब्रिटेन के हवाले करते हुए एक समझौता किया
था। अर्जेंटीना ने 1816 में स्पेन से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। फिर 1820 में अर्जेंटीना
सरकार, ने फ़ॉकलैंड पर अपनी संप्रभुता की घोषणा की। 1828 में उसने अंग्रेजों
को वहां से खदेड कर अपना गवर्नर नियुक्त कर दिया। 1831 में अमेरिकी युद्धपोत
लेक्सिंगटन ने पूर्वी फ़ॉकलैंड पर अर्जेंटीना की बस्ती को नष्ट कर दिया। अमेरिका ने
ऐसा तीन अमेरिकी पोतों को ज़ब्त किए जाने के जवाब में किया था, जो इस क्षेत्र में सील
का शिकार कर रहे थे।
1833 की शुरुआत में
ब्रिटेन ने अमरीका की मदद से इस द्वीप पर फिर से अधिकार जमा लिया। 1833 की शुरुआत में
एक ब्रिटिश सेना ने बिना गोली चलाए कुछ शेष अर्जेंटीना के अधिकारियों को द्वीप से निष्कासित
कर दिया। 1841 में फ़ॉकलैंड में एक ब्रिटिश नागरिक को लेफ्टिनेंट
गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया और वर्ष 1885 तक इन द्वीपों
पर लगभग 1,800 लोगों का एक ब्रिटिश समुदाय बस गया। 1892 में ब्रिटेन
ने इसे अपना उपनिवेश घोषित कर दिया। तब से लेकर आज तक यह ब्रिटिश उपनिवेश है। अर्जेंटीना
लगातार ब्रिटेन के इस क़ब्ज़े का विरोध करता रहा।
अर्जेंटीना हमेशा से
ही इन द्वीपों को अपना भाग बताता रहा है, और आज भी इस पर दावा
करता है। अर्जेंटीना कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा सम्मेलनो में अपने स्वामित्व के
दावे को लगातार दोहराता रहा है किन्तु फॉकलैण्ड द्विप समूह से 12,000 कि.मी. दूर
स्थित ब्रिटेन इसे अपना उपनिवेश मानता है। ब्रिटेन फ़ॉकलैंड को इसलिए अपना उपनिवेश
बनाये रखना चाहता है क्योंकि फॉकलैण्ड ऑयल कम्पनी तथा तेल और प्राकृतिक गैस के विपुल
भण्डारों से उसे करोड़ों पौंड का मुनाफा मिलता है। यहां का कार्यकारी अधिकार ब्रिटिश
ताज (क्राउन) में निहित है, और द्वीपों की सरकार का नेतृत्व ताज द्वारा नियुक्त
राज्यपाल (गवर्नर) द्वारा किया जाता है। कोई राजनीतिक दल नहीं हैं, और विधायिका
के सभी सदस्य निर्दलीय के रूप में चुने जाते हैं। विधान सभा में 10 सदस्य होते हैं,
जिनमें से 8 चुने हुए और दो नामित सदस्य होते हैं। सरकार को निर्णय लेने की स्वायत्तता
है, लेकिन गवर्नर को रक्षा और आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर
ब्रिटिश सेना के क्षेत्रीय कमांडर से परामर्श करना होता है। आधिकारिक मुद्रा फ़ॉकलैंड
पाउंड है, जो ब्रिटिश पाउंड के बराबर है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, जिसका मुख्यालय
लंदन में है, यहां का एकमात्र बैंक है। स्टेनली में एक प्राथमिक और एक माध्यमिक
विद्यालय और ग्रामीण क्षेत्रों में कई छोटे स्कूल हैं। स्टेनली के एक अस्पताल द्वारा
नि:शुल्क चिकित्सा सेवा प्रदान की जाती है।
अर्जेंटीना ने द्वीपों
पर ब्रिटेन के कब्ज़े का लगातार विरोध किया। अर्जेंटीना का मानना है
कि ब्रिटेन ने खुली औपनिवेशिक कार्रवाई की नीति अपनाते हुए अर्जेंटीना से इस द्वीप
को जबरदस्ती छीना था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फ़ॉकलैंड द्वीप समूह पर संप्रभुता
का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र (UN) में स्थानांतरित हो
गया। 1964 में द्वीपों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा उपनिवेशवाद
पर बहस शुरू की गई। बातचीत जारी हुई लेकिन दोनों देशों के बीच इस द्वीप समूह को लेकर
तनाव बने रहे। वर्ष 1965 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विवाद
का शांतिपूर्ण समाधान खोजने हेतु ब्रिटेन और अर्जेंटीना को विचार-विमर्श
के लिये आमंत्रित करने वाले प्रस्ताव 2065 को मंज़ूरी दी। वर्ष 1493 के एक आधिकारिक
दस्तावेज़ के आधार पर अर्जेंटीना ने फाकलैंड पर अपना दावा प्रस्तुत किया जिसे टॉर्डेसिलस
की संधि (1494) द्वारा संशोधित किया गया। इस संधि के तहत स्पेन और पुर्तगाल
ने द्वीपों की दक्षिण अमेरिका से निकटता, स्पेन का उत्तराधिकार, औपनिवेशिक स्थिति
को समाप्त करने की आवश्यकता के आधार पर नई दुनिया को आपस में बांट लिया। ब्रिटेन ने
फाकलैंड द्वीप पर अपने "स्वतंत्र, निरंतर, प्रभावी कब्ज़ें, व्यवसाय और
प्रशासन" के आधार पर दावा प्रस्तुत किया जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर में मान्यता
प्राप्त आत्मनिर्णय के सिद्धांत को फाकलैंडर्स पर लागू करने के अपने दृढ़ संकल्प पर
आधारित था। इस बीच जहां एक और ब्रिटेन में राजतंत्र के रहते हुए लोकतांत्रिक
व्यवस्था थी, वहीं दूसरी और 1970 के दशक में अर्जेंटीना में मिलिटरी शासन
जुंटा बहाल हो चुकी थी।
दोनों
देशों के बीच बातचीत चलती रही लेकिन स्थिति सुधरने के वजाए बिगड़ती गयी और 1982 में
नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच युद्ध हुआ। शुक्रवार 2 अप्रैल, 1982 को अर्जेण्टीना
ने अपने 4000 नौ सैनिकों की सहायता से फॉकलैण्ड और सेट जार्जिया, आदि द्वीपो
पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश गवर्नर रेक्स हण्ट को पोर्ट स्टेनली से बाहर कर दिया।
उस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर थीं। उन्होंने मंत्रीमंडल की आपातकालीन बैठक बुलाई और फौरन
जवाबी कार्रवाई के आदेश दिए। दूसरे ही दिन एच.एम.एस. इनविंसिबल (H.M.S
Invincible) नामक युद्धपोत के नेतृत्व में ब्रिटिश नौसेना पोर्टस्माउथ बदरगाह
के लिए रवाना हो गयी। विशाल ब्रिटिश नौसेना तथा वायुसेना के बमवर्षक विमानो ने फॉकलैण्ड
स्थित अर्जेण्टीना के सैनिक ठिकानो पर हमला किया। प्रतिरोध में अर्जेण्टीना ने आणविक
शस्त्रों से युक्त ब्रिटिश विध्वंसक ‘शैफील्ड’ को तारपीडो का निशाना बनाकर ध्वस्त
कर दिया। अर्जेण्टीना का विशाल पोत ‘जनरल बेलग्रानों (General
Belgrano) भी 368 नौ सैनिकों सहित डूब गया। अन्ततः मई के अन्त
तक अर्जेंटीना के जनरल गैलतियेरी के सामने स्पष्ट हों गया कि अधिक देर तक जारी रखने
से यह युद्ध आणविक युद्ध मे परिवर्तित हो सकता है, जिसका प्रतिरोध करने
की क्षमता उनके पास नहीं है। इधर अमरीका ने जनरल गैलतियेरी के साथ हुए वायदों को ताक
पर रखकर युद्ध में ब्रिटेन का साथ दिया। यह युद्ध दस-सप्ताह तक चला। लेकिन अर्जेंटीना
को सफलता नहीं मिली। ब्रिटेन एक महाशक्ति था और अर्जेंटीना एक छोटा-सा देश। अर्जेंटीना
की आर्थिक तथा आंतरिक परिस्थितियां भी प्रतिकूल होने लगी। 14 जून को अर्जेन्टीनी सैनिकों
ने फॉकलैण्ड की राजधानी स्टेनली में ब्रिटिश मेजर जनरल जे.जे. मूर के समक्ष अर्जेण्टीना
के ब्रिगेडियर जनरल मारियों बेंजामिनों मेनेदेज ने 845 सैनिकों सहित हथियार
डाल दिये और अर्जेंटीना की सेना के आत्मसमर्पण के साथ 72 दिवसीय युद्ध समाप्त हुआ। इस युद्ध
में दोनों ओर से 900 से ज्यादा सैनिक मारे गए।
फ़ॉकलैंड
युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश प्रशासन को बहाल किया गया था। फ़ॉकलैंड द्वीपसमूह
पर ब्रिटेन का पुनः अधिकार हो गया किन्तु फ़ॉकलैंड द्विपसमूह के स्वामित्व का प्रश्न
अनसुलझा ही रहा। तब से ब्रिटेन इस विषय पर कोइ बातचीत नहीं करना चाहता है। ब्रिटेन
का कहना है कि जब द्वीप का समूह हमारे अधीन है तो हम इस पर क्यों बातचीत करें, और हम इस पर
भविष्य में भी किसी प्रकार से कोई बातचीत नहीं करना चाहते हैं। ब्रिटेन का यह भी मानना
है कि फ़ॉकलैंड के लोगों ने ब्रिटिश के साथ रहने की साफ इच्छा जाहिर की है और अर्जेंटीना
की सरकार को इसका आदर करना चाहिए। हालांकि ब्रिटेन और अर्जेंटीना ने वर्ष 1990 में पूर्ण राजनयिक
संबंधों को फिर से स्थापित किया, लेकिन दोनों देशों के मध्य फ़ॉकलैंड पर संप्रभुता
का मुद्दा विवाद का विषय बना रहा। ब्रिटेन ने द्वीप पर करीब 2,000 सैनिकों की
तैनती को जारी रखा। जनवरी 2009 में एक नया संविधान लागू हुआ जिसने फाकलैंड की
स्थानीय लोकतांत्रिक सरकार को मज़बूती प्रदान की और इस क्षेत्र की
राजनीतिक स्थिति को निर्धारित करने के लिये वहां रहने वाले लोगों के अधिकारों को सुरक्षित
किया। मार्च 2013 में आयोजित एक जनमत संग्रह में फाकलैंड द्वीप ने ब्रिटिश क्षेत्र
में बने रहने के लिये लगभग सर्वसम्मति से मतदान किया। फ़ॉकलैंडर्स उन्हीं के वंशज
थे और खुद को ब्रिटिश नागरिक के रूप में देखते थे। ब्रिटेन ने ज़ोर देकर कहा कि औपनिवेशिक स्थिति को
समाप्त करने से अर्जेंटीना के शासन और उसकी इच्छा के विरुद्ध फाकलैंड के नागरिकों के
जीवन पर नियंत्रण की स्थिति उत्पन्न होगी।
अब
फ़ॉकलैंड को लेकर अर्जेंटीना के विदेश मंत्री ने कैंपेन की शुरुआत की है और कहा है
कि भारत पारंपरिक रूप ब्रिटेन के साथ विवाद सुलझाने का समर्थन करता रहा है। इसमें
कोइ शक़ नहीं कि भारत फ़ॉकलैंड को लेकर ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच के विवाद को
बातचीत के ज़रिए सुलझाने का समर्थन करता रहा है और उपनिवेशवाद को ख़त्म करने में
भारत की भूमिका अग्रणी रही है। कुछ लोगों का मानना है कि कमीशन का सदस्य बनने में
कोइ हर्ज़ नहीं है, लेकिन फ़ॉकलैंड को लेकर भारत को तटस्थ ही
रहना चाहिए। हमें न तो ब्रिटेन का समर्थन करना चाहिए और न ही अर्जेंटीना का।
हालाकि उपनिवेशवाद को लेकर हमारे रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया है, लेकिन जहाँ
तक उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ स्पष्ट बात रखने की बात है तो हर देश अपने हित के हिसाब
से ही अपनी मुखरता दिखाते हैं और भारत को भी वर्तमान हालात के अनुरूप ही नीति
अपनानी चाहिए।
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