‘सफलता बदला लेने का सबसे अच्छा तरीक़ा है’
मनोज कुमार
1991 में रतन टाटा टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने।
तब टाटा मोटर्स की पहचान ट्रक और पैसेंजर कार (बस) बनाने की सबसे बड़ी कंपनी के तौर पर होती
थी। अब तक भारतीय बाजार में जितनी
भी कार थी उसकी सफलता के पीछे विदेशी कंपनियों की टेक्नोलॉजी, डिजाइन और साझेदारी थी। रतन टाटा एक स्वदेशी कार बनाना चाहते थे। चेयरमैन
बनने के बाद उन्होंने
अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। परिणामस्वरूप 1998 में रतन
टाटा द्वारा हैचबैक कार इंडिका लांच की गयी। इसमें कोई इम्पोर्टेड
टेक्नोलोजी का इस्तेमाल नहीं किया गया था। जब कार मार्केट में लॉंच हुई तो
उम्मीदें बहुत थीं, लेकिन कार उम्मीदों पर खडी नहीं उतरी और रतन टाटा का सपना
टूटने लगा। लोगों ने इसे पसंद ही नहीं
किया।
साल भर के अन्दर ही टाटा को लगा कि यह कोई फलदायी परियोजना नहीं है। दिल्ली - मुंबई की सड़कों पर बारिश के बीच अगर कोई कार सबसे ज्यादा ब्रेकडाउन हुई तो वो इंडिका थी। यह कार बिक्री कम होने के कारण कार मार्केट में अपनी छाप छोड़ने में असफल रही। रतन टाटा को काफी घाटा हो रहा था। कम बिक्री की वजह से टाटा मोटर्स ने कार डिवीजन को बेचने का फैसला किया। फोर्ड मोटर्स ने इस कार फैक्टरी को खरीदने में अपनी रूचि दिखाई।
डेट्रायट शहर ऑटो मैन्युफैक्चरिंग के लिए मशहूर है।
यह शहर मिशिगन झील के दक्षिण-पूर्व में अमेरिकी इंडस्ट्री का नगीना माना जाता है।
यहीं फोर्ड का मुख्यालय है। रतन टाटा अपने पूरे बोर्ड मेम्बर्स के साथ डेट्रायट गए। फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड
से मिले। दोनों के बीच मीटिंग हुई। तीन घंटे तक चली बैठक में बिल फोर्ड ने रतन
टाटा के साथ काफी अपमानजनक व्यवहार किया और कहा कि आप इस कार निर्माण के धंधे में नौसिखिए हैं। इस बिजनेस
इंडस्ट्री के बारे में कुछ नहीं जानते। आपको कारों की तकनीकी बारीकियों का ज़रा पता
नहीं है। आपके पास जब पैसेंजर कार बनाने का कोई अनुभव नहीं था, तो आपने ये बचकानी
हरकत क्यों की। कोई बच्चा भी इतना पैसा नहीं
लगाएगा जहां उसे सफलता ना मिले। आपको कार डिवीजन
शुरू ही नहीं करना चाहिए था। फोर्ड आपकी कार डिविजन खरीदकर टाटा मोटर्स पर एहसान
कर रही है।
रतन टाटा ने गरिमापूर्ण चुप्पी कायम रखी, डील कैंसिल किया, और उसी
शाम डेट्रायट से न्यूयार्क लौटने का फैसला किया। 90 मिनट की फ्लाइट में रतन टाटा उदास से रहे। दूसरे दिन वे भारत लौट आए। फोर्ड कंपनी के मालिक
के बेहद ही नकारात्मक कमेंट को भी इन्होंने सकारात्मक रूप में लिया। बिल की बातों को उन्होंने दिल पर नहीं लिया, बल्कि उसे दिमाग पर लिया
और कंपनी बेचने की सोच को ना सिर्फ टाला बल्कि उन्होंने ठान लिया था कि वे कंपनी को ऊंचाइयों पर पहुंचाएंगे। रतन
टाटा ने उस कंपनी को फिर से ऐसी खड़ी की उसने नया इतिहास रच डाला। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना पूरा फोकस
मोटर लाइन में लगा दिया। उनके इरादे बुलंद थे। लक्ष्य बस एक था, फोर्ड को सबक सिखाना है। लेकिन चैलेंज बहुत
बड़ा था। इसके लिए उन्होंने एक रिसर्च टीम तैयार की और बाजार का मन टटोला। फिर उस कार को फिर से
लॉन्च किया। कहते हैं न कि रेस्ट इज हिस्टरी, उसी तरह भारतीय बाजार के साथ-साथ विदेशों में भी
टाटा इंडिका ने सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ। कुछ ही
समय में टाटा ने इस क्षेत्र में एक विश्वस्तरीय व्यवसाय स्थापित किया।
समय का पहिया घूमा। 2008 में टाटा मोटर्स के पास बेस्ट सेलिंग कारों की एक लंबी लाइन थी। 2008 में विश्वस्तरीय आर्थिक मंदी हुई। फोर्ड मोटर्स दिवालिएपन की कगार पर आ गयी। उनकी प्रीमियम सेगमेंट कारें जगुआर और लैंड रोवर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही थीं। उसे अपने जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) डिवीजन के लिए एक अच्छे खरीदार की तलाश थी।
अवसर के महत्त्व को समझते हुए रतन टाटा ने फोर्ड की लग्जरी कार लैंड रोवर और जगुआर बनाने वाली कंपनी जेएलआर को खरीदने का प्रस्ताव
रखा, जिसको फोर्ड ने स्वीकार भी कर
लिया। बिल फोर्ड बातचीत के लिए मुम्बई आए और कहा कि
रतन टाटा उनसे ये कारें खरीद कर उन पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं।
रतन टाटा ने 2.3 बिलियन डॉलर में जेएलआर खरीद
लिया। टाटा ने न केवल जेएलआर को खरीदा, बल्कि उन्होंने इसे अपने सबसे सफल उपक्रमों में से एक में
बदल दिया। इस डील के कुछ ही सालों के बाद टाटा मोटर्स ने इसमें कुछ बदलाव लिए और
आज जगुआर और लैंड रोवर्स टाटा मोटर्स की सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों में से एक
हैं।
रतन टाटा चाहते तो बिल फोर्ड का अपमान कर बदला ले
सकते थे, लेकिन वे चुप ही रहे। वे लकीर छोटी करने के
बजाए बड़ी लकीर खींचने में यकीन रखते थे। अगर किसी ने अपमान किया हो तो बेहतर है कि पहले से
भे बेहतर मनुष्य बन जाइए। यही उस व्यक्ति को सबसे अच्छा जवाब है। कहते हैं, आम लोग अपमान का बदला तत्काल लेते हैं, पर महान उसे अपनी जीत का साधन बना लेते हैं। रतन टाटा के इस केस में यह कहावत चरितार्थ हुई
कि ‘सफलता बदला लेने का सबसे
अच्छा तरीक़ा है’।
(चित्र साभार गूगल)
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-04-2022) को चर्चा मंच "दिनकर उगल रहा है आग" (चर्चा अंक-4415) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सार्थक आलेख |
जवाब देंहटाएं"आम लोग अपमान का बदला तत्काल लेते हैं, पर महान उसे अपनी जीत का साधन बना लेते हैं।" सच में तभी तो ऐसे लोग महान काम करने में कामयाब होते हैं, यदि बदला लेने में ही वे भी अपना समय बर्बाद करते तो वे कभी महान काम कर ही नहीं पाती जिंदगी में।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सार्थक प्रेरक प्रस्तुति
Health ki jankari le hindi me Health Facts
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